Thursday 05 August 2021 03:29 PM IST : By Nishtha Gandhi

सावन का मीठा तोहफा है घेवर

ghewar

सावन का महीना आते ही या यों कहिए कि बारिश की पहली फुहार पड़ते ही चाय-पकौड़ों के साथ जो चीज खाने को मन ललचाने लगता है, वह है गोल-गोल जालीदार घेवर। यों तो पूरे उत्तर भारत में सावन और भादो के महीने में तीज मनायी जाती है, लेकिन सावन की हरियाली तीज और गणगौर की बात ही अलग है। मेंहदी, शृंगार और चूड़ियों वाली इस तीज को खासकर ना सिर्फ सुहागिनें, बल्कि कुंअारी लड़कियां भी खूब धूमधाम से मनाती हैं। कहते हैं सावन के महीने में ही पार्वती जी ने तपस्या करके शिवजी को प्रसन्न किया था। आज भी कई घरों में खासकर बहू-बेटियों को तीज के मौके पर झूला झुला कर घेवर जरूर खिलाया जाता है। घेवर के बिना तीज का सिंधारा अधूरा है। हालांकि अब घेवर लगभग पूरे उत्तर भारत में बहुत आसानी से मिल जाता है, लेकिन कुछ लोग इसे पारंपरिक राजस्थानी मिठाई के रूप में ही जानते हैं। हालांकि ऐसा माना जाता है कि यह मिठाई मुगलों के जमाने में ईरान या फारस से आयी थी। वहीं उत्तर प्रदेश और राजस्थान में घेवर की उत्पत्ति को ले कर झगड़ा रहा है। बहरहाल, मिठाइयों को ले कर विभिन्न राज्यों का यह झगड़ा कोई नयी बात नहीं है, रसगुल्ले पर भी बंगाल और उड़ीसा इसी तरह से लड़ते आए हैं। बात घेवर के स्वाद की करें, तो अपने नरम मुलायम जालीदार रूप-रंग के कारण यह बाकी मिठाइयों से अलग है। 

बरसात के मौसम की नमी के कारण ही घेवर को इसका असली स्वाद और रंग-रूप मिलता है। अंग्रेजी में इसे हनीकोंब डेजर्ट के नाम से भी जाना जाता है। मैदा, दूध, छेना और मावा जैसी चीजों से बननेवाला घेवर पहले सिर्फ सावन के महीने में ही बनाया जाता था, इसकी शायद एक वजह यह भी रही होगी कि पहले जमाने में गरमियां शुरू होते ही मावा और पनीर की बिक्री बंद हो जाती थी, क्योंकि इनके जल्दी खराब होने का डर रहता था और गरमियों में दूध से बनी चीजों को पचाना भी आसान नहीं होता था। हालांकि अब ऐसा नहीं है, पर फिर भी ज्यादातर हलवाई बरसात होने पर ही घेवर बनाना शुरू करते हैं। 

पहले जहां सादा घेवर और मावे वाला घेवर ही बनाया जाता था, वहीं अब मलाई घेवर, केसरिया मलाई घेवर, चाॅकलेट घेवर, मैंगो घेवर जैसे एक्सपेरिमेंट्स भी खूब किए जा रहे हैं। जयपुर के लक्ष्मी मिष्ठान्न भंडार ने पनीर घेवर ईजाद करने का सेहरा अपने सिर पर बांधा है, जिसे उन्होंने कई क्विंटल दूध और कई किलो मैदा से एक्सपेरिमेंट करने के बाद बनाया था। इसे बनाने में छेना का प्रयोग किया जाता है। 

घेवर की रेसिपी

एक बड़े मिक्सिंग बोल में 100 ग्राम घी ले कर उसमें 4-5 आइस क्यूब्स डालें और इसे तब तक फेंटें, जब तक कि घी सफेद और फूला हुआ ना दिखने लगे। अब इसमें 200 ग्राम मैदा, आधा कप ठंडा दूध और एक चौथाई कप ठंडा पानी मिला कर कुछ देर फेंटें, ताकि स्मूद बैटर बन जाए। घोल थोड़ा पतला होना चाहिए। अगर घोल गाढ़ा लगे, तो इसमें थोड़ा-थोड़ा करके दूध और पानी मिला सकते हैं। इसे कुछ देर रख दें। कड़ाही में घी या तेल गरम करें और एक कलछी से थोड़ा बैटर ले कर कड़ाही के बीच में डालती जाएं। कड़ाही में घोल डालते ही इसमें जाली बनेगी और यह फूल जाएगा। अब एक पतले चाकू या चम्मच से इसके बीच में छेद कर दें। जब घेवर सिंक जाए, तो इसे चाशनी में डाल दें। इसे घर में रबड़ी बना कर या मावा से सजा कर परोसें।