बॉक्सिंग के खेल में पूरी दुनिया में भारत का परचम लहराने वाली निखत जरीन अब किसी परिचय की मोहताल नहीं। बेहद साधारण परिवार से आने वाली निखत जैसी कई खिलाडि़यों ने कॉमनवेल्थ गेम्स में सोने चांदी की बौछार करवायी है। वनिता को दिए एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में निखत जरीन ने अपनी लाइफ, परिवार और कैरिअर के बारे में खुल कर बात की।
जीवन का अहम फैसलाः मुझे बॉक्सिंग का क्रेज बचपन से ही था। छोटी उम्र में लड़कों के साथ खेलती थी। सोचती थी कि जो खेल लड़के खेलते हैं, लड़कियां क्यों नहीं खेल सकतीं? मैं पढ़ने में इतनी ज्यादा अच्छी नहीं थी, पिता को लगता था कि स्पोर्ट्स कोटा में मुझे आगे चल कर अच्छी नौकरी मिलेगी, इसीलिए उन्होंने स्पोर्ट्स में जाने को कहा। पर मैंने बॉक्सिंग को नौकरी के लिए नहीं, बल्कि खेल की तरह ही अपनाया। 13 साल की उम्र में मैंने जीवन का यह बड़ा फैसला ले लिया था कि मैं खेलूंगी और पापा ने मेरे फैसले का स्वागत किया। पर मां को मेेरे चेहरे को ले कर चिंता होती थी। एक बार मुझे याद है, जब एक अनुभवी लड़के के साथ मेरा मैच था। जब खेल शुरू हुआ, मेरे कोच जोर से चिल्लाए बॉक्स ! मैं पंच लेने के लिए तैयार नहीं थी। मेरी नाक और आंख में चोट लग गयी। घर आ कर मैं चुपचाप बाथरूम में गयी और चोट को साफ किया। मम्मी ने मुझे खाने के लिए बुलाया। मैं कमरे से बाहर आयी, तो मेरे चेहरे को देख कर मम्मी घबरा गयीं। वे रो पड़ी और उन्होंने मुझे खेलने से मना करते हुए कहा, ‘‘तेरा चेहरा खराब हो गया, तो कौन तुमसे शादी करेगा?’’ मैंने उन्हें आश्वासन दिया कि अरे अम्मी टेंशन नक्को लो, नाम हो जाएगा तो दूल्हों की लाइन लग जाएगी। उसके बाद मां भी सहज हो गयीं। अब जब भी मुझे बॉक्सिंग में चोट लगती है, तो मां कहती हैं, ‘‘आइस लगा लो, ठीक हो जाओगी।’’ अब तो मुझे लगता है कि मां ही मेरी कोच हैं। दरअसल, यह खेल जोखिम और जोश से भरा है और यह एक तरह से मेल डोमिनेटिंग स्पोर्ट है। इसमें लड़कियों को जाने के लिए मना किया जाता है। पर मैंने साबित कर दिया कि लड़कियां लड़कों से कम नहीं होतीं।
लड़की होने के कारण कोई भेदभाव नहींः हम 4 बहनें हैं, मैं तीसरे नंबर पर हूं। हमारे घर में कभी लड़की और लड़के में अंतर नहीं महसूस कराया गया। पापा एथलीट हैं। उन्होंने मुझे हमेशा गाइड किया, शायद इसीलिए मैंने कोई गलत फैसला नहीं लिया। मैं जिस कम्युनिटी से ताल्लुक रखती हूं, वहां छोटे कपड़े पहनने की अनुमति नहीं है। बहुत लोगों को नाराजगी थी, पर पापा ने कहा कि तुम अपने खेल पर ही फोकस रखो। जब वर्ल्ड चैंपियन बन जाओगी, ये लोग ही तुम्हारे साथ सेल्फी लेंगे।
जिंदगी की पहली चाहतः बचपन में हर बच्चे को डॉक्टर, इंजीनियर, टीचर या आईपीएस अॉफिसर बनने की घुट्टी पिला दी जाती है। शुरू में आईपीएस की वर्दी के प्रति मेरा क्रेज था। मैं हमेशा से देश के लिए कुछ करना चाहती थी। आईपीएस बन कर ना सही, बॉक्सर बन कर देश के लिए खेल रही हूं। बॉक्सिंग में सबसे जरूरी है- सही कोच का चयन। ऐसा कोच चुनें, जिन्हें बॉक्सिंग की पूरी जानकारी हो।
जीवन की प्रेरणाः बॉक्सिंग ही जीवन की प्रेरणा है। मोहम्मद अली और माइक टाइसन की बॉक्सिंग मुझे काफी पसंद है। उनके वीडियोज देख कर काफी कुछ सीखा। निकोला एडम्स से मैं काफी प्रभावित हूं। मेरा सपना था कि उनके साथ एक मैच खेलूं, पर वह रिटायर हो गयी हैं। इस खेल में भी जबर्दस्त तनाव, चोट, जोखिम और मेंटल प्रेशर होता है, आपके ऊपर परिवार और देश की उम्मीदें टिकी रहती हैं। कई बार हमें गहरी चोट लगती है, लेकिन मजबूत इरादों की बदौलत ही हम जख्मों से उबर पाते हैं। हमारे देश में बहुत अच्छी वुमन प्लेअर हैं, स्ट्रेंथ, स्टेमिना और पावर सभी में बेस्ट हैं, पर इंटरनेशनल गेम्स के दौरान वे नर्वस हो जाती हैं। दरअसल, मेंटल प्रेशर को दूर करने के लिए काम करना चहिए। पहले लोगों को मुझसे इतनी उम्मीदें नहीं थीं, पर वर्ल्ड चैंपियन बनने के बाद उम्मीदें बहुत बढ़ गयी हैं। पेरिस में ओलंपिक के लिए मुझे अब पहले से ज्यादा मेहनत करनी होगी।
शौक कैसे कैसेः मैं खाली समय में संगीत सुनना पसंद करती हूं। मुझे लगता है, संगीत मन को सुकून देता है। मैं हिंदी फिल्में भी देखती हूं। सलमान खान की फैन हूं। मैं काफी फूडी हूं। मम्मी के हाथ का बना खाना अच्छा लगता है, खासतौर पर बिरयानी। अपने दोस्तों के साथ घूमना पसंद है। वैसे शेरो-शायरी का भी शौक रखती हूं। अर्ज किया है, ‘‘कभी तो सूरज ने की होगी चांद से मोहब्बत, तभी तो चांद में दाग है। मुमकिन है चांद ने की होगी बेवफाई, तभी तो सूरज में आग है।’’
जीवन से उम्मीदेंः मुझे लगता है, क्रिकेट की तरह बॉक्सिंग या दूसरे स्पोर्ट्स भी टेलिकास्ट होते, तो लोगों में बाकी खेलों के प्रति और भी उत्साह होता। हर किसी के जीवन में संघर्षभरे दिन होते हैं, संघर्ष से हार मान कर पीछे नहीं हटना है, बल्कि उससे लड़ कर आगे बढ़ना है। वर्ल्ड चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल लेने के बाद अब ओलंपिक में मेरा फोकस है।
सच होते सपनेः मैं वर्ल्ड चैंपियन में पूरी तरह फोकस्ड थी, अब ओलंपिक्स के लिए मुझे स्ट्रेंथ, स्पीड और बॉक्स विद द डिफरेंट स्टाइल पर काम करना है। मुझे लगता है, ज्यादातर समर कैंप और स्कूल बॉक्सिंग नहीं सिखाते, क्योंकि इसमें रिस्क है। पर मेरा सपना है कि मैं एक अकेडमी खोलूं और जो लड़कियां वाकई में इसे गेम को खेलना चाहती हैं, उन्हें इसमें दाखिला दूं। लड़कियों को सेल्फ डिफेंस के लिए भी बॉक्सिंग आनी चाहिए। खेलो इंडिया स्कीम में बच्चों को भाग लेना चाहिए, स्कूलों, कॉलेज और यूनिवर्सिटी में बॉक्सिंग कंपीटिशन होने चाहिए, जिससे बच्चों की प्रैक्टिस होगी और ये बच्चे इंटरनेशनल लेवल पर आगे आएंगे।