Friday 01 July 2022 12:05 PM IST : By Vanita

डॉक्टर्स डे पर सुनें डाक्टर्स के दिल की बातें

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डॉक्टर्स को दिल से शुक्रिया कहने के मौके पर हमने बात की कुछ डॉक्टरों से, जो बता रहे हैं अपने प्रोफेशन व पर्सनल लाइफ से जुड़ी खास बातें-

आज भी वह पेशेंट मुझे कॉल करती है- डॉ. परिणिता कौर, मेडिसिन स्पेशलिस्ट, आकाश हेल्थ केअर, नयी दिल्ली 

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इन दिनों स्वास्थ्य के नजरिए से समय और परिवेश पूरी तरह बदल चुका है। महामारी की वजह से अस्पताल में कब और कहां जरूरत पड़ जाए, आप नहीं कह सकते। डॉक्टर के वर्किंग आवर अपने आप ही बढ़ चुके हैं। ऐसे में डॉक्टर खुद को स्वस्थ रखें, इसके लिए उन्हें खास कवायद करनी पड़ती है। डॉक्टर होने के नाते मुझे खुद को स्वस्थ और फिट रखना जरूरी है। 

फिटनेस मंत्राः मैं लोगों के लिए लाइफलाइन हो सकती हूं, पर मेरी डोमेस्टिक हेल्प मेेरी लाइफलाइन है। मेरी फैमिली मेरा सपोर्ट सिस्टम है। समय पर घर का खाना और रोज एक्सरसाइज करना मेरा रुटीन है, ऐसा नहीं होने पर अस्पताल में लिफ्ट की जगह सीढि़यां चढ़ती हूं। इससे काफी वर्कआउट हो जाता है। समय मिलता है, तो वॉकिंग और साइकलिंग करती हूं या बैडमिंटन खेलती हूं। 

डाइट और एनर्जी लेवलः खुद को एनर्जी से भरने के लिए मैं खाने में फ्रूट्स और वेजिटेबल पर ज्यादा फोकस करती हूं। लेकिन कभी भी भूखे पेट नहीं रहती। 

हॉलीडे मूडः हर 4-5 महीने में जब जोश में कमी आने लगती है, तो मैं अपने रुटीन को ब्रेक देने के लिए 2-3 दिन के लिए कहीं हॉलीडे पर जाती हूं। बाकी महिलाओं की तरह मैं भी शॉपिंग करती हूं, पर पहले की तुलना में अब शॉपिंग करना कम हो गया है। ऑनलाइन की तुलना में मुझे खुद जा कर शॉपिंग करना अच्छा लगता है। दिल्ली हाट और एंपोरियम्स में जाना पसंद करती हूं। वहां पर खाना-पीना और शॉपिंग दोनों पूरे हो जाते हैं। जब हॉलीडे पर जाती हूं, तो मैं खुद को नेचर के करीब पाती हूं, ज्यादातर समय मोबाइल लैपटॉप सब बंद कर देती हूं। अपनी हॉबी पूरी करने के लिए समय-समय पर मधुबनी पेंटिग करती हूं या बुक्स पढ़ती हूं। 

पेशेंट एक्सपीरिएंसः कोविड महामारी का दौर जब अपने चरम पर था, उन दिनों हमारे पास एक प्रोफेसर प्रेगनेंट पेशेंट आयी थीं। वे अस्पताल में एडमिट थीं। ओवरनाइट उनकी तबियत खराब हो गयी। सांस में दिक्कत आ रही थी। हमने एक्सरे कराया। पता चला, उन्हें ऑक्सीजन चाहिए और तबियत ज्यादा बिगड़ चुकी है। उनके पति को कोविड था और वे होम आइसोलेशन में थे, लेकिन फिर भी उन्हें बुलाया गया। उन्हें समझाया कि तुरंत सिजेरियन करना होगा, जिससे दोनों में से किसी को बचाना होेगा। सिर्फ 32 हफ्ते की प्रेगनेंसी थी। कोई गारंटी नहीं थी कि बच्चा बच पाएगा। लेकिन ऑपरेशन सफल रहा। बहुत मुश्किल से वेंटिलेटर जुटाया गया। कभी वेंटिलेटर में डाला,तो कभी निकाला। जैसे-तैसे मां बच्चे दोनों सही रहे। अस्पताल से जाने के बाद आज भी वह पेशेंट मुझे कॉल करती हैं, तो लगता है कि कुछ अच्छा किया, डॉक्टर होने पर गर्व होता है। 

संवेदना जीवित रहनी चाहिए - डॉ. यतीश अग्रवाल, डीन, इंद्रप्रस्थ यूनिवर्सिटी, दिल्ली

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सन 1982 की बात है, मैं हाउस फिजिशियन था। एक बच्चा 12वीं में पास नहीं हुआ और उसकी वजह से उसने कॉपर सल्फेट खा लिया था। मेरे सीनियर रेजिडेंट ने कहा कि इसका कुछ हो नहीं सकता। डिपार्टमेंट के हेड ने भी निराशा जाहिर की। लेकिन मैं उसी समय लाइब्रेरी गया, चेक किया तो पता चला कि एक नयी दवा है, वह उपलब्ध हो जाए, तो शायद इस बच्चे की जान बच सकती है। उसके बाद मैंने कई केमिस्ट से पता किया, तो चांदनी चौक में एक केमिस्ट के पास वह दवा उपलब्ध थी। बच्चे के पिता तुरंत वह दवा ले आए। दवा दी, लाभ हुआ और जिस बच्चे के बचने की संभावना नहीं थी, उसमें काफी सुधार हुआ। लेकिन किडनी पर काफी असर पड़ चुका था, ताे मैंने एम्स जा कर व्यक्तिगत अनुरोध करके बच्चे को वहां एडमिट कराया और वह बच्चा ठीक हो कर घर गया। उसके माता-पिता के चेहरों पर जो खुशी थी, वह मेरा सबसे बड़ा रिवॉर्ड था। 

क्या आप वही डॉक्टर हैं, जो लिखते हैं: एक बार मेरे केबिन में एक व्यक्ति साधारण कपड़ों में आया और कहा कि मैं आपको धन्यवाद देना चाहता हूं, क्योंकि मैंने आपकी किताब स्वास्थ्य के 300 सवाल खरीदी और उससे मैं बहुत लाभान्वित हुआ हूं। वह धन्यवाद दे कर चला गया। बाद में मैंने देखा कि वह लाइन में लग कर अपनी बारी की प्रतीक्षा कर रहा है। उसने मुझसे यह नहीं कहा कि मेरा काम करा दें। वह एक जेनुइन एक्नॉलेजमेंट थी। 

डॉक्टर बेहतर लेखक हो सकते हैंः डॉक्टर मानवीय संवेदना के बेहद निकट होते हैं। अगर उनमें वह संवेदना जीवित रहे और भाषा की पकड़ हो, तो वे बहुत अच्छे लेखक बन सकते हैं। जीवन और मृत्यु के जितने अनुभव डॉक्टर के पास हाेते हैं, उनसे बहुत सीख मिलती है। 

वजन तो बढ़ना ही थाः मेरी डॉक्टर के साथ लेखक की भी दिनचर्या है। सुबह 9 बजे अस्पताल पहुंचने के लिए 7 बजे तक जगना ही होता है। कभी-कभी मैं रात के 2-3 बजे तक भी काम करता हूं। उसकी कीमत भी अदा करनी पड़ती है। मैंने जब मेडिसिन में ग्रेजुएट किया था, तब मेरा वजन 46 किलो था। बैठे-बैठे काम करते रहने से वजन बढ़ा। जीवनशैली में बदलाव लाने से वजन कम हुआ। 

गुरु की विनम्रताः मेडिसिन में किसी को भी गुरूर नहीं करना चाहिए। एक बार एक केस में मेरे गुरु जी ने पूछा कि क्या हो सकता है। मैंने अपने डायग्नोस के आधार पर बताया कि यह अब्डॉमिनल ट्यूबरकुलोसिस निकलेगा। गुरु जी ने मुस्करा कर कहा कि यह कुछ भी हो सकता है, पर अब्डॉमिनल ट्यूबरकुलोसिस नहीं। लेकिन बाद की जांचों में पता चला कि अब्डॉमिनल ट्यूबरकुलोसिस ही है। जब मैं चुप रहा, तो उन्होंने कहा कि बोलते क्यों नहीं, तुम बिलकुल सही थे, मैं ही गलत था। उन्होंने अपनी गलती स्वीकारी, यह उनका बड़प्पन था। 

थोड़ी शिकायत थोड़ी अपेक्षाः समाज और डॉक्टर के बीच जो संबंध था, वह आज बदल चुका है। आज ज्यूडिशियरी हो, एग्जिक्यूटिव हो या पुलिस प्रशासन, उनका दृष्टिकोण वैसा नहीं है, जैसा होना चाहिए। तरह-तरह के नए नियम, नयी दंड संहिताएं बनती जा रही हैं, लेकिन क्या यह देखा जा रहा है कि हमारे यहां उस तरह की सुविधाएं उपलब्ध हैं, जिसकी हम तुलना पश्चिमी देशों से करते हैं। हमें व्यावहारिक होना होगा।

पारिवारिक मोर्चे परः मेडिसिन में जीवनभर की पढ़ाई है और बदले में रिटर्न बहुत कम है। कम ही लोग इसमें आना चाहते हैं। मेरे दोनों बच्चे तो इस पेशे में नहीं आए। मुझे मेरी पत्नी का हमेशा साथ रहा, उन्होंने मुझे हमेशा प्रोत्साहित किया, ताकि मैं अपना धर्म निभा सकूं। 

प्रकृति को शुक्रिया कीजिए - डॉ. दलबीर सिंह, मुख्य चिकित्सा अधिकारी, सीजीएचएस, दिल्ली

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मैं ने अपने पूरे मेडिकल सर्विस पीरियड में मरीजों के प्रति अपना स्वभाव नरम रखा। सरकारी डॉक्टर हूं, फिर भी कई बार मरीजों को अपने ओपीडी टाइम के बाद भी देखता हूं। प्रत्येक मरीज को उनकी जरूरत के मुताबिक दवा, दिलासा और सलाह बहुत इतमीनान से देता हूं। मुझे कभी हड़बड़ी नहीं रहती। मुझे लगता है किसी भी डॉक्टर को पॉपुलर बनने के लिए सेवा, अच्छा स्वभाव और काम को ले कर लगन बहुत जरूरी है। 

हॉबी टाइमः इतनी व्यस्तता के बाद भी मैं अपने लिए समय निकाल लेता हूं। कोई भी व्यक्ति किसी भी प्रोफेशन में क्याें ना हो, अगर कुछ समय वह प्रकृति के बीच बिताता है और उसका शुक्रिया अदा करता है, तो यह ना सिर्फ उसके तन-मन के लिए अच्छा है, बल्कि घर में ताजगी और स्वच्छ वातावरण के लिए भी बेहतर है। मैं सुबह 4 बजे उठ कर अपने पेड़-पौधों के साथ डेढ़ घंटे बिताता हूं। उनसे बात करता हूं। शाम को भी मौका मिलने पर इन्हीं के बीच बैठता हूं। मेरी घर की बालकनी में करीब 150 से अधिक गमले हैं, जिसमें बोनजाई, मौसमी फूल, इंटीरियर प्लांट हैं। इतना ही नहीं, मैंने अपनी सोसाइटी के परिसर में भी अशोक, गुलमोहर और नीम जैसे पेड़ लगा रखे हैं।

फिटनेस मंत्राः सुबह जल्दी उठने वाले डॉ. दलबीर का मानना है कि फिट रहने के लिए कुछ ना कुछ कोशिशें और शरीर को एक नियम में ढालना ही पड़ता है। अपने मनपसंद की कोई भी एक्सरसाइज चुनें। मैंने चुना है, वॉकिंग और प्राणायाम। शरीर का मूवमेंट और मेटाबॉलिज्म सही रहना चाहिए। 

डाइट और एनर्जी लेवलः अपनी रुटीन लाइफ में ग्रीन टी या दालचीनी की चाय और दूध रेगुलर शामिल करता हूं। हर व्यक्ति को यह बात मन में गांठ बांध लेनी चाहिए कि कम उम्र में आपका शरीर खूब एक्टिव रहता है, लेकिन जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है, शरीर को सपोर्ट देने के लिए जरूरी विटामिन, आयरन, मिनरल और कैल्शियम की जरूरत होती है। इसीलिए 40 की उम्र में व्यक्ति को मल्टीविटामिन और कैल्शियम की जरूरत होती है। लेकिन ये सब डॉक्टर की सलाह पर ही लें।

रुटीन चेकअपः सिर्फ मरीजों को सलाह देने से बात नहीं बनती। अपने ऊपर भी रुटीन चेकअप की सलाह लागू होनी चाहिए। मैं बीच-बीच में शुगर, थायराॅइड, बोन डेंसिटी, कोलेस्ट्रॉल, इको, अल्ट्रासाउंड जैसे जरूरी चेकअप कराता हूं। 

पेशेंट एक्सपीरिएंसः हर दिन नए-नए पेशेंट के साथ सामना होता रहता है। इसीलिए कह नहीं सकता कि कोई एक पेशेंट खास था, जिसे मैं याद कर सकूं। मेरे लिए हर मरीज के साथ नया तजुर्बा है और हर मरीज खास है। 

पुराने पेशेंट्स से मिल कर खुशी होती है - डॉ. जेबी शर्मा, एचओडी, ऑन्कोलॉजी, एक्शन बालाजी इंस्टिट्यूट, दिल्ली

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दिल्ली के एक्शन बालाजी इंस्टिट्यूट के ऑन्कोलॉजी विभाग के एचओडी और वरिष्ठ सलाहकार डॉक्टर जेबी शर्मा लगभग 30 सालाें से इस पेशे में हैं। वे कहते हैं कि इन 30 सालों में ना सिर्फ टेक्नोलॉजी, बल्कि डॉक्टर और मरीज के रिश्ते में भी काफी बदलाव आए हैं। पहले मेडिकल कोर्सेज में कम सीट्स होती थीं, लेकिन अब इस फील्ड में कॉम्पीटिशन भी बहुत बढ़ गया है। 

हुए हैं बहुत बदलावः पहले डॉक्टर्स की लाइफ बहुत टफ होती थी, हम लगातार नाइट ड्यूटी, लंबी शिफ्ट्स में काम करते थे और खाने-पीने का समय भी मुश्किल से निकाल पाते थे, लेकिन आजकल नयी पीढ़ी में डेडिकेशन की भावना कम हो रही है। सरकार ने भी कुछ नियम बदले हैं कि अब कोई डॉक्टर 8 घंटे से ज्यादा काम नहीं करेगा। पहले लोग डॉक्टर को भगवान मान कर उन पर विश्वास करते थे। अब नियमों के अधीन रह कर डॉक्टर्स को काम करना पड़ता है, तो इस वजह से डॉक्टर्स का स्ट्रेस भी बढ़ा है। आज हर डॉक्टर इस बात से डरा रहता है कि कहीं वह किसी कानूनी पचड़े में ना फंस जाए। 

देखे हैं कई चमत्कारः इतना होने के बावजूद कुछ मरीज ऐसे हैं, जिनके साथ जुड़े अनुभव किसी चमत्कार से कम नहीं लगते। ऐसा ही एक मरीज मुझे याद आ रहा है। सालों पहले एक 17 साल का लड़का हॉस्पिटल में एडमिट हुआ था। उसे ब्लड कैंसर था और बचने की उम्मीद ना के बराबर थी। लेकिन कुछ ही दिनों में ट्रीटमेंट ने अपना असर दिखाना शुरू किया। लगभग 3 साल इलाज के बाद ना सिर्फ वह ठीक हुआ, बल्कि एक दिन मिठाई का डिब्बा लिए मेरे सामने खड़ा था। उसकी शादी हो गयी थी। उस दिन मुझे तहेदिल से खुशी हुई। फिर वह पिता बनने की मिठाई खिलाने भी आया। आज वह अपने परिवार के साथ हंसी-खुशी रह रहा है और अकसर मुझसे मिलने भी आता है। ऐसे दिल छूने वाले किस्सों और लोगों की बदौलत ही मेडिकल प्रोफेशन पर गर्व होता है।

फिटनेस मंत्राः खुद को फिट रखने के लिए मैं रोज सुबह एक घंटा वॉक और योग करता हूं, इससे स्ट्रेस दूर होता है। समय-समय पर डाइट में बदलाव भी करता रहता हूं। इस काम में पत्नी मेरी बहुत मदद करती हैं। हालांकि परिवार वालों को यह शिकायत भी रहती है कि मैं उन्हें समय नहीं दे पाता, पर जितना हो सके, उनकी शिकायत दूर करने की कोशिश करता हूं। हालांकि जब बच्चे छोटे थे, तो उन्हें समय नहीं दे पाता था और अब बड़े होने पर उन्हें मेरे समय की जरूरत नहीं है। फैमिली के साथ क्वॉलिटी टाइम बिताने के लिए आउटिंग, मूवीज पर जाने के अलावा हम लोग घर पर ही साथ बैठ कर वेबसीरीज देखते हैं। 

ऑपरेशन थिएटर से जुड़ी हैं बहुत सी यादें- डॉ. उमा वैद्यनाथन, सीनियर कंसल्टेंट, फोर्टिस हॉस्पिटल, दिल्ली

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दिल्ली के फोर्टिस हॉस्पिटल में ऑब्सटेट्रिक्स व गाइनीकोलॉजी विभाग में सीनियर कंसल्टेंट डॉ. उमा वैद्यनाथन पिछले 17-18 सालों से मेडिकल प्रोफेशन में सक्रिय हैं। शुरुआती सालों में जिन बच्चों की डिलीवरी डॉ. उमा ने करवायी थी, उनमें से कई आज टीनएज में भी पहुंच चुके हैं। उनके कैरिअर के इस खूबसूरत सफर से कई हसीन यादें जुड़ी हैं, जो कभी खूब हंसाती हैं, तो कभी भावुक भी कर देती हैं। 

हुए हैं बहुत बदलावः गाइनीकोलॉजिस्ट होने के नाते महिलाओं के सुख-दुख की साथी भी हमें बनना पड़ता है और उन्हें अपनी हेल्थ का ध्यान ना रखने पर डांट भी लगानी पड़ती है। अपनी फिटनेस की बात करूं, तो खुद को फिट और स्ट्रेस फ्री रखने के लिए मैं मेडिटेशन करती हूं, प्रार्थना करती हूं। अकेले वॉक करना और अच्छा म्यूजिक सुनना मुझे स्ट्रेस फ्री करता है, अपनी बेटी के साथ समय बिताना मुझे बहुत पसंद है। मुझे किताबें पढ़ने का शौक है। अब मेरी बेटी मुझे सलाह देती है कि कौन सी बेस्टसेलर नॉवल मुझे पढ़नी चाहिए। मैं बहुत अच्छी कुकिंग भी करती हूं, तो मेरी कोशिश रहती है कि सब हेल्दी खाना ही खाएं। जंक फूड से दूरी और ताजे फल-सब्जियों को अपनी डाइट में शामिल करना ही मेरी पूरी फैमिली का फिटनेस मंत्रा है। 

डॉक्टर्स को भी होती है शिकायतः मेरी बस इतनी ही शिकायत है कि अब सोशल मीडिया के आने से मरीजों की डॉक्टरों से अपेक्षाएं बहुत बढ़ गयी हैं। लोग किसी भी समय मैसेज भेज देते हैं या फिर फोन कर देते हैं और यह उम्मीद करते हैं कि हम भी फौरन उन्हें जवाब दें। यह गलत है। लोगों को यह समझना चाहिए कि डॉक्टर भी बिजी हो सकते हैं या फिर उनकी कोई प्राइवेट लाइफ होती है। 

जब पहली बार ओटी में गयीः उस समय मैं मेडिकल कॉलेज में थी और पोस्ट ग्रेजुएशन कर रही थी। वहां ओटी में एक महिला का अबॉर्शन हो रहा था। उस समय का प्रोसिजर भी बहुत मुश्किल होता था। वह सीन अभी तक मुझे याद है। उस समय मुझे यह लग रहा था कि मैंने यह प्रोफेशन चुन कर सही भी किया या नहीं ! 

एक साथ 3 बच्चों का जन्मः एक और किस्सा मुझे याद है, जब एक महिला आयी, आईवीएफ प्रोसिजर के बाद उसके जुड़वां नहीं, बल्कि 3 बच्चे एक साथ होनेवाले थे। वह रेयर और हाई रिस्क प्रेगनेंसी थी, उसकी डिलीवरी के समय ऑपरेशन थिएटर का सीन देखनेवाला था। डॉक्टर्स की टीम के अलावा वहां 3 पीडियाट्रीशियंस भी मौजूद थे। पहले एक बेबी, फिर दूसरा बेबी, फिर तीसरा बेबी जब बाहर निकला, तो वाकई वह किसी चमत्कार से कम नहीं लग रहा था। 9 महीने बाद पहली बार वह महिला चैन की नींद सोयी थी।

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