Thursday 25 August 2022 11:08 AM IST : By Gopal Sinha

और कितना रुलाएगी महंगाई...

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इस बात से आम आदमी पर कोई फर्क नहीं पड़ता कि किसी तिमाही में इस देश की महंगाई दर अनुमान से 2 प्रतिशत अधिक रही। उसे फर्क इस बात से पड़ता है कि जो दूध वह कुछ दिनों पहले तक 40-45 रुपए लीटर खरीदता था, उसके लिए उसे रोज 5-8 रुपए ज्यादा खर्च करने पड़ रहे हैं। वह सोच में डूबा है कि आटा, चावल, दाल, चीनी, चाय, खाद्य तेल, रसोई गैस के दामों में लगातार आ रहे उछाल से कैसे पार पाया जाए। कोई आखिर कितनी कटौती करे ! भरपेट खाना, कपड़े-लत्ते, बच्चों की पढ़ाई-लिखाई और हारी-बीमारी के खर्चे को रोक पाना भला मुमकिन है? वाकई यह संकट का दौर है, जब मध्य वर्ग के मुंह से पहले कोरोना ने निवाला छीना और अब महंगाई उसे जरूरी चीजों से भी दूरी बनाने पर मजबूर कर रही है। 

देखा जाए, तो मध्य वर्ग का ज्यादातर काम लोन से ही चलता है। एकमुश्त रकम ना उपलब्ध होने के कारण वह कर्ज के जाल में फंसता है। फ्रिज, टीवी, कंप्यूटर, स्कूटी, घर या फिर बच्चों की हायर स्टडीज, सब कुछ उसकी झोली में कर्ज के जरिए ही आ पाता है। 

कुछ दिनों पहले तक बैंक थोड़े सस्ते इंटरेस्ट रेट पर कर्ज दे रहे थे, लेकिन महंगाई पर काबू पाने के चक्कर में रिजर्व बैंक ने अपना रेपो रेट दो महीने में 2 बार क्या बढ़ाया, बैंकों ने धड़ाधड़ अपने सभी तरह के कंज्यूमर लोन के इंटरेस्ट को बढ़ा दिया। रेपो रेट वह है, जिस पर रिजर्व बैंक अन्य बैंकों को उधार देता है। अगर रेपो रेट बढ़ेगा, तो बैंक को महंगा लोन मिलेगा और नतीजतन वे अपने ग्राहकों को महंगा लोन दे पाएंगे। जो पुराने ग्राहक हैं, उन्हें ज्यादा ईएमआई चुकानी पड़ रही है और जो नए ग्राहक बनेंगे, उन्हें महंगे रेट पर लोन मिलेगा। मोटे तौर पर यह जानें कि अगर आपने 20 साल के लिए 20 लाख रुपए का होम लोन फ्लोटिंग रेट पर लिया है, तो हर महीने ईएमआई में करीब 900 रुपए और देने को तैयार हो जाइए। यहां गलती किसकी है, किसकी नहीं, यह मालूम करने की ना तो मध्य वर्ग के पास ताकत है और ना ही जरिया, उसे तो बस पिसते जाना है। 

आंकड़ों में महंगाई रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के गवर्नर शशिकांत दास की बात मानें, तो अभी रिटेल महंगाई में कमी आने के आसार नहीं हैं, इसीलिए इस फाइनेंशियल इयर के लिए महंगाई दर को 5.7 प्रतिशत से बढ़ा कर 6.7 प्रतिशत कर दिया गया है। महंगाई दर 
चाहे बढ़ा दी गयी है, पर अर्थव्यवस्था में 7.2 प्रतिशत के विकास का अनुमान बरकरार रखा गया है। रिजर्व बैंक के मुताबिक, यह सारा गड़बड़झाला रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से हुआ है। यानी लड़े कोई, भरे कोई !

एक नजर डालते हैं पिछले दिनों चीजों के दाम कितने बढ़ गए: 

पेट्रोल- मई 2020 में 62 रुपए, मई 2022 में 105 रुपए

रसोई गैस सिलेंडर-  मई 2020 में 580 रुपए, मई 2022 में 999 रुपए

सीएनजी- जून 2021 में 47 रुपए/कि.ग्रा., अप्रैल 2022 में 72 रुपए 

रोजमर्रा की चीजों पर असर

आंकड़ों के मुताबिक, पिछले 2 सालों में रोजमर्रा की चीजों की कीमतों में बेतहाशा बढ़ाेतरी हुई है। पिछले 6 महीने में तो रोजमर्रा की चीजों के दाम 29 प्रतिशत तक बढ़ गए। चावल, आटा, दालें, चीनी, दूध, चाय सबकी कीमतों ने जेब पर अतिरिक्त बोझ डाला है। पेट्रोल-डीजल की कीमतें बढ़ती हैं, तो माल ढुलाई बढ़ जाती है और फिर हर चीज महंगी हो जाती है। व्यापारियों को माल ढुलाई के लिए अब 20 से 30प्रतिशत तक अधिक खर्च करना पड़ रहा है, जिसका सीधा असर उपभोक्ता की जेब पर पड़ता है। 

रोजमर्रा की चीजें बनाने वाली कंपनियों ने चतुराई से अपना मुनाफा कम नहीं होने दिया है। उन्होंने वेट गेम खेला, अगर पहले 150 ग्राम के बिस्किट का पैकेट 10 रुपए में मिलता था, तो उन्होंने कीमत तो वही रखी, बस माल 150 ग्राम से घटा कर 100 ग्राम कर दिया। आम आदमी इसी में खुश हो लेता है कि चलो, बिस्किट के दाम तो नहीं बढ़े, थोड़ा वजन कम हुआ, यह चलेगा। यह फॉर्मूला तकरीबन हर एफएमजीसी कंपनी आजमा रही है, दाम मत बढ़ाअो, माल कम कर दो। इस महंगाई ने लोगों को थोड़े में खुश रहना सिखा दिया है, जो दरअसल आभासी खुशी है। उनकी जेब पर तो डाका पड़ ही रहा है। 

सर्विस सेक्टर भी महंगाई से अछूता नहीं रहा है। बच्चों के ट्यूशन का खर्च हो या ब्यूटी पार्लर में छोटे-मोटे सौंदर्य निखार संबंधी काम कराना, सब कुछ महंगा हो गया है। खुदा ना खास्ता घर का कोई मेंबर बीमार पड़ गया, तो अस्पताल और दवाअों का खर्चा तो कमर तोड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ता। 

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हालांकि अगर आपके पास बचत की उम्मीद है, तो आप खुश हो सकते हैं। ज्यादातर बैंक अपने फिक्स्ड डिपॉजिट के रेट बढ़ा चुके हैं और इनमें निवेश करना अब पहले के मुकाबले फायदे का सौदा है। छोटी बचत योजनाअों के ब्याज दर में भी बढ़ोतरी की उम्मीद है। लेकिन महंगाई ऐसी बचत पर करारा चपत लगा रही है। 

सरकार क्या कर रही है

कोरोना संकट ने पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था पर गहरी चोट पहुंचायी है, अपना देश भी इससे अछूता नहीं है। रूस-यूक्रेन युद्ध ने तो मानो करेले को नीम पर चढ़ा दिया। पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतों में वृद्धि का असर प्रत्यक्ष रूप से बाजार में देखने को मिल रहा है। सरकार ने महंगाई पर लगाम लगाने के लिए कुछ कदम तो जरूर उठाए हैं, पर वे नाकाफी हैं। रुपया डॉलर के मुकाबले कमजोर हुआ, तो चीजों को इंपोर्ट करना महंगा हो गया। सरकार ने गेहूं और चीनी के एक्सपोर्ट करने पर बंदिश लगायी। पिछले वित्त वर्ष 2021-2022 में विकास दर8.7 प्रतिशत रही थी, जो पिछले 22 साल में सबसे अधिक थी। महंगाई का आलम यह है कि वही विकास दर जनवरी-मार्च की तिमाही में 4.1 प्रतिशत तक सिमट गयी। एक्सपर्ट आशंका जता रहे हैं कि विकास दर के कम रहने से रोजगार पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है, जो पहले से ही संकट में है। 

उम्मीदों का मानसून

आखिर महंगाई पर काबू कैसे किया जाए, ताकि आम जनता राहत की सांस ले सके। इस दिशा में फिलहाल मानसून से बड़ी उम्मीदें हैं। मौसम विभाग के अनुसार, इस साल अच्छी बारिश होने के आसार हैं। इसका सीधा असर खेतीबाड़ी पर पड़ेगा। भरपूर उपज होगी, तो महंगाई पर थोड़ा विराम लगाने में मदद मिल सकती है। 

अभी पिछले दिनों महंगाई को ले कर जो आंकड़े सामने आए हैं, वे कुछ उम्मीद तो जता रहे हैं, पर इतना नाकाफी है। जैसे खुदरा महंगाई दर मई में सालाना आधार पर 7.79 प्रतिशत से घट कर 704 प्रतिशत हो गयी है। अप्रैल महीने में यह 8.31 प्रतिशत रही थी। पेट्रोल-डीजल की कीमतों में एक्साइज ड्यूटी कम करने से यह गिरावट आयी है, क्योंकि इससे यातायात पर खर्च में कमी आयी। 

महंगाई के मुद्दे पर सरकार को निशाना बनाना या आरोप-प्रत्यारोप कोई हल नहीं है। इसके लिए नीति निर्धारकों को दूरगामी फैसले ले कर कुछ कड़े कदम उठाने होंगे, तभी महंगाई काबू में रह सकती है, वरना हम गाते ही रहेंगे- महंगाई डायन खाए जात है... 

मधु व नवदीप विनायक

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मधु व नवदीप विनायक

परिवार- पति-पत्नी और बेटी नंदिनी, बेटा गर्व, घर खर्च- 20,000 रुपए, होम लोन ईएमआई- 24,500 रुपए, बिजली बिल- 8,000 रुपए,फैकल्टी की सैलरी- 20,000 रुपए, बच्चों की पढ़ाई- 6,500 रुपए, अन्य खर्च- 5,000 रुपए
हम दोनों पति-पत्नी अपने इंस्टिट्यूट स्टडी एंड सक्सेस में इंग्लिश, जर्मन और फ्रेंच लैंग्वेज के कोर्स कराते हैं। कोरोना के टाइम में तो हमारे यहां स्टूडेंट्स की संख्या जीरो थी, अभी भी कम ही है। घर का खर्च चलाना अलग बात है और जो दूसरों को देना होता है, वह अलग बात है। रेंट, इलेक्ट्रिसिटी बिल, होम लोन और दूसरे जरूरी खर्चे रोक नहीं सकते हैं। उधर किचन में कटौती कैसे मुमकिन है? खाने का सामान, दूध, सब्जी तो लेना ही है। कोरोना के पहले फेज में तो जैसे-तैसे काम चल गया, फैमिली लोन से काम चलता रहा, लेकिन इससे देनदारियां बहुत बढ़ गयीं। मिडिल क्लास के पास कोई फंड जमा तो इतना होता नहीं, किचन तक में फाइट आ गयी है। ये मुश्किलें तो बढ़ती रहेंगी, क्योंकि हर साल लाखों बच्चे तमाम कोर्स करके जॉब पाने की कतार में खड़े होते हैं और नौकरियां हैं नहीं। महंगाई बढ़ने का दूसरा कारण मेरी नजर में जमाखोरी है। किसानों को पूरा पैसा नहीं मिलता और जमाखोर सस्ते में खरीद कर महंगा बेचते हैं। हमारे खर्चे कम हो नहीं सकते और इनकम का कोई भरोसा नहीं, ऐसे में खींचतान हो ही रही है। 

पुष्पम शर्मा आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, दिनकर शर्मा फ्रीलांस पत्रकार 

मंथली इनकम- 35,000 रुपए, परिवार- पति-पत्नी और बेटा अंकुर, घर खर्च- 15,000 रुपए, ट्रांसपोर्ट- 5,000 रुपए, बिजली बिल- 4,000 रुपए, अन्य खर्च- 5,000 रुपए

महंगाई की मार से हम इतने त्रस्त हैं कि हमारा किचन ही नहीं, पूरा घरेलू बजट बिगड़ चुका है। इनकम तो बढ़ती नहीं है, पर सभी चीजों के दाम आसमान छू रहे हैं। देखिए, गैस सिलेंडर का दाम 1000 रुपए से ऊपर पहुंच गया है, जो कुछ साल पहले 400-500 रुपए में आता था। सरसों तेल के दाम ने तो रेकॉर्ड तोड़ दिया है। मसाले-सब्जियां सबके रेट में बेतहाशा बढ़ाेतरी हुई है। दूध के दाम तो साल में 2-3 बार बढ़ जाते हैं। घर चलाना मुश्किल हो रहा है। समझ में नहीं आता, क्या करें। 

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(बाएं से दाएं) अन्नपूर्णा सिंह व अतुल सिंह, पुष्पम व दिनकर शर्मा

किसी तरह सामंजस्य बैठाते हैं। बहुत सारी चीजों में कटौती करनी पड़ी है। घर से बाहर घूमना, नए कपड़े खरीदना, सब कुछ भुलाना पड़ा है। बर्थडे, शादी-ब्याह में लेनदेन सब प्रभावित हुआ है। 

सालाें से एक खास ब्रांड की चाय पीते थे, लेकिन जब उस ब्रांड की चाय पत्ती लगातार महंगी हो गयी, तो मजबूरन हमने अपने बजट में आनेवाली चाय पत्ती लानी शुरू कर दी। यही समझिए कि अतिथि सत्कार के लिए जो चाय-बिस्किट लेते हैं, उसमें भी कॉम्प्राेमाइज करना पड़ा है।

अन्नपूर्णा सिंह हाउसवाइफ , अतुल सिंह आईटी प्रोफेशनल

मंथली इनकम- 50,000 रुपए, परिवार- पति-पत्नी, बेटियां सौम्या-आस्था, बेटा अर्पित, घर खर्च- 10,000 रुपए, बच्चों की पढ़ाई- 7,000 रुपए, होम लोन ईएमआई- 16,000 रुपए, कार खर्च- 4,000 रुपए, इंटरनेट- 1,000 रुपए, मेडिकल इंश्योरेंस- 1200 रुपए, अन्य खर्च- 5,000 रुपए

बढ़ती महंगाई से हम सभी बहुत परेशान हैं। मेरे जैसे फिक्स्ड इनकमवालों को एक-एक पैसा सोच-समझ कर खर्च करना पड़ता है। इतनी खींचतान है कि पूछिए मत ! कुछ घरेलू खर्चे तो कम हो ही नहीं सकते। आलम यह है कि पेट्रोल की कीमतें बेतहाशा बढ़ने के बाद तो कार से घूमना-फिरना बहुत जरूरी होने पर ही करते हैं। ज्यादातर बाइक ही इस्तेमाल करते हैं। पहले वीकेंड पर बाहर चले जाते थे, अब वह भी बंद हो गया। पहले बच्चों के हर सबजेक्ट का ट्यूशन अलग-अलग लगवा रखा था, लेकिन बजट में एडजस्ट करने के लिए एक ही ट्यूशन से काम चला रहे हैं। खाना-पीना तो नहीं छोड़ सकते, तो जितना संभव है, उतनी बचत करने की कोशिश में लगे रहते हैं। वर्क फ्रॉम होम होने से इस बात की राहत है कि ऑफिस आने-जाने का खर्च नहीं है।