Wednesday 27 July 2022 02:04 PM IST : By Indira Rathore

द्रौपदी मुर्मू ने ली राष्ट्रपति पद की शपथ

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देश के राजनीतिक इतिहास में जुलाई महीने की 25 तारीख बहुत खास रही क्योंकि इस दिन द्रौपदी मुर्मू ने पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति के रूप में शपथ ग्रहण की। हालांकि वह देश की दूसरी महिला राष्ट्रपति हैं। इससे पहले प्रतिभा पाटिल राष्ट्रपति पद पर विराजमान रह चुकी हैं। गौरतलब है कि द्रौपदी मुर्मू देश की 15वीं राष्ट्रपति हैं। झारखंड की राज्यपाल के तौर पर उनका कार्यकाल शानदार रहा। मूल रूप से उड़ीसा की द्रौपदी मयूरभंज जिले के रायरंगपुर शहर की हैं। यहीं से उनकी स्कूली पढ़ाई हुई। यहां उनका बचपन वाला छोटा सा घर है तो बाद के दिनों में बनाया गया उनका दोमंजिला घर भी। इसी जिले के पहाड़पुर गांव में उनकी ससुराल है। 

जुझारु और संघर्षशील महिला

द्रौपदी मुर्मू संथाल जनजाति से आती हैं और उन्होंने इस जनजाति को समाज की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए लंबी लड़ाई लड़ी है। प्रारंभिक शिक्षा लेने के बाद द्रौपदी ने भुवनेश्वर के रमा देवी महिला कॉलेज से कला स्नातक की डिग्री हासिल की। वह अपने गांव की अकेली लड़की थीं, जो भुवनेश्वर जैसे बड़े शहर में पढ़ने गईं। ग्रेजुएशन के दौरान ही उनकी मुलाकात श्याम चरण मुर्मू से हुई, जो भुवनेश्वर में ही पढ़ाई कर रहे थे। यह मुलाकात दोस्ती में बदली और फिर श्याम चरण से उनकी शादी हो गई। एक ही बिरादरी से होने के बावजूद इस शादी के लिए उन्हें परिवारों का काफी विरोध झेलना पड़ा। हालांकि बाद में परिवार वाले मान गए। उनके पति बैंक अधिकारी थे। द्रौपदी ने अपने शहर रायरंगपुर में ही बतौर शिक्षिका अपने करियर की शुरुआत की। उनकी तीन संतानें हुईं, दो पुत्र और एक पुत्री। लेकिन शायद उनके जीवन में कई दुखद मोड़ आने थे। एक के बाद एक पहले दो बेटों और फिर पति के असमय निधन ने उन्हें तोड़ दिया। आध्यात्मिक संस्था ब्रह्मा कुमारी के संपर्क में आने के बाद जीवन के प्रति द्रौपदी की सोच बदली। उन्होंने अपने घर को स्कूल में तब्दील किया। स्कूल का नाम एसएलएस मेमोरियल उनके पति और दोनों बेटों के नाम पर रखा गया है, जहां तीनों की मूर्तियां भी लगी हैं। अपने पति व बेटों की पुण्यतिथि पर द्रौपदी आज भी वहां जाती हैं। 

क्लर्क से राजनीति तक का सफर

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शुरू से ही द्रौपदी के मन में समाज के लिए कुछ करने की इच्छा थी। उन्होंने अपना जीवन गरीबों, आदिवासियों और दलितों की सेवा में समर्पित कर दिया। कुछ समय उन्होंने उड़ीसा सरकार के साथ बिजली व सिंचाई विभाग में बतौर क्लर्क काम किया। रायरंगपुर में पार्षद बनने से पहले उन्होंने कुछ समय पढ़ाया। पार्षद बनने के दौरान भी वह हर एक काम अपनी निगरानी में करवाती थीं। वर्ष 1997 में वह भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुईं। यहां से उनकी राजनीतिक यात्रा की शुरुआत हो गई। कुछ समय जिलाध्यक्ष और राज्य अध्यक्ष के तौर पर काम किया। वह दो बार भाजपा विधायक चुनी गईं। फिर वह उड़ीसा सरकार में राज्य मंत्री रहीं। 2013 में वह मयूरभंज जिले की जिला अध्यक्ष चुनी गईं। वह झारखंड की पहली महिला राज्यपाल बनीं। अब वह देश की सबसे कम उम्र की राष्ट्रपति के रूप में चुनी गई हैं। 

सबकी प्रिय दीदी

द्रौपदी मुर्मू के राष्ट्रपति बनने से ना सिर्फ महिलाओं की उम्मीदें बढ़ी हैं बल्कि हाशिये पर रहने वाले आदिवासी समाज को भी संबल मिला है। उनके स्कूल में पढ़ने वाली छात्राओं का कहना है कि वह जब भी स्कूल में आती हैं, हमेशा उनका मनोबल बढ़ाती हैं और कहती हैं कि शिक्षा ही वह हथियार है, जो किसी को उसका हक दिला सकता है। उन्हें करीब से जानने वालों का मानना है कि वह एक ईमानदार व साहसी लीडर हैं और उनका व्यवहार उन्हें लोगों का प्रिय बनाता है। वह सबके लिए द्रौपदी दीदी हैं। द्रौपदी मुर्मू बेशक अपने दोमंजिला पांच कमरों वाले घर से रायसीना के लगभग सवा तीन सौ एकड़ में फैले 340 कमरों वाले राष्ट्रपति भवन में रहने आ गई हों लेकिन जानने वालों के लिए वह उनकी सहज-सरल प्रिय दीदी ही बनी रहेंगी।