Monday 22 November 2021 04:21 PM IST : By Nishtha Gandhi

क्या आप भी सामान जमा करके रखती हैं

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हर घर में काम की चीजों के अलावा बेकार सामान का भी अंबार लगा रहता है। हमारा दिल इन्हें फेंकने का तो नहीं करता, लेकिन ये कभी काम नहीं आते। आमतौर पर महिलाअों में सामान जमा करने की आदत होती है। 

कई बार इस तरह के लोग चीजों का जरूरत से ज्यादा स्टॉक भी खरीद लेते हैं, उन्हें इस बात का डर बना रहता है कि पता नहीं कब इसकी जरूरत पड़ जाए। कोई चीज फेंकनी पड़ जाए, तो उन्हें अच्छा नहीं लगता। जब यह आदत जरूरत से ज्यादा बढ़ जाती है, तो इससे घर के बाकी मेंबर्स को भी दिक्कत होने लगती है। खराब चीजों का जमावड़ा होने से चीजों से टकरा कर चोट लगने का डर बना रहता है, इससे घर का इंटीरियर खराब होता है और वास्तु दोष भी पैदा होता है। एक्सपर्ट्स का यह भी मानना है कि इस डिस्ऑर्डर के शिकार लोगों में डिप्रेशन, एंग्जाइटी डिस्ऑर्डर, फोबिया जैसी समस्याएं भी हो सकती हैं।

क्यों करते हैं लोग जमाखोरी

बीएल कपूर सुपर स्पेशिएलिटी हॉस्पिटल में कंसल्टेंट साइकियाट्रिस्ट डॉ. मनीष जैन का कहना है, ‘‘औरतों में जमाखोरी की आदत बेहद सामान्य है। इसके पीछे मनोवैज्ञानिक कारण यह भी है कि वे अपनी व घर की जरूरतों को ले कर बेहद सचेत होती हैं। इसके अलावा पैसों से ले कर रोजमर्रा की चीज कब काम आ जाए, इसकी भी चिंता आपको रहती है। जमाखोरी का दूसरा पहलू पैथोलॉजिकल है और उसे हम बीमारी के रूप में लेते हैं, जिसके इलाज की जरूरत है। इसे ओसीडी यानी ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिस्ऑर्डर के नाम से जाना जाता है। यह एक तरह से चिंता और वहम की बीमारी है, जिसमें कुछ गैरजरूरी विचार या आदतें किसी इंसान के दिमाग में इस कदर जगह बना लेते हैं कि वह चाह कर भी उन पर काबू नहीं कर पाता। आपका दिमाग किसी एक बात को बार-बार सोचता रहेगा या फिर आप किसी एक काम को बार-बार तब तक करते रहेंगे, जब तक कि आपके मन को चैन नहीं मिल जाता।’’

वे लोग जिन्हें काफी संघर्ष और गरीबी के दिन देखने पड़ते हैं, वे भी चीजों को संभाल-संभाल कर रखते हैं। किसी भी चीज को फेंकने से पहले सौ बार सोचते हैं और फिर यह सोच कर रख लेते हैं कि शायद किसी काम ही आ जाए, वरना जरूरत पड़ने पर पैसे खर्च करने पड़ेंगे। 

कई बार कुछ महिलाएं पुराने पंखे, गैस के चूल्हे, बिजली के तार यह सोच कर सहेज लेती हैं कि अब ऐसी मजबूत चीज कहां मिलेंगी। कबाड़ी इनके बहुत कम पैसे देगा। यही हाल पुराने फरनीचर और बरतनों का भी है। भले ही वे इस्तेमाल में ना आएं, लेकिन भारी हैं, बढि़या हैं, यह सोच कर घर में पड़े रहते हैं, जबकि मॉडर्न इलेक्ट्रानिक आइटम्स में इन चीजों का कोई काम नहीं होता।

पुराने जूतों और कपड़ों का भी घर में ढेर लगा होता है। महिलाएं यह सोचती हैं कि शायद कभी तो उनका वजन कम हो जाएगा और वे पुराने कपड़ों में फिट आ जाएंगी, लेकिन ऐसा कभी हो नहीं पाता। 

कुछ लोग बहुत ज्यादा मात्रा में सब्जियां, घर का राशन और तरह-तरह की चीजें खरीद लाते हैं, जिनमें से आधे से ज्यादा चीजें इस्तेमाल में भी नहीं आतीं और खराब हो जाती हैं। 

जिन चीजों से लोग इमोशनल तौर पर जुड़े होते हैं, कई बार उन्हें फेंकने में भी हिचकते हैं। 

यह भी देखा गया है कि जिन लोगों में यह डिस्ऑर्डर होता है, वे ना सिर्फ वस्तुएं, बल्कि अपने फोन और लैपटॉप का पुराना डाटा और बेकार तसवीरें भी संभाल कर रखते हैं। किसी वजह से फोन फॉर्मेट करना पड़ जाए या फिर लैपटॉप खराब हो जाए, तो वे कई दिनों तक परेशान रहते हैं। 

बुजुर्गों में होर्डिंग डिस्ऑर्डर

घर में बुजुर्ग हों, तो उनमें चीजों को जमा करने की आदत ज्यादा पायी जाती है। उम्र बढ़ने के साथ यह समस्या बढ़ती ही जाती है। 

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बुजुर्गों की शारीरिक और कॉग्निटिव क्षमताएं कम होने के कारण उनके साथ दुर्घटनाएं ज्यादा होती हैं। सामान की उठापटक में उलझे रहने के कारण चिड़चिड़ापन, दवा का समय भूलना और कबाड़ की वजह से इन्फेक्शन होने का रिस्क उनके साथ ज्यादा रहता है। 

एक अध्ययन में यह पाया गया कि बुजुर्गों में चीजें जमा करने की आदत उनकी याददाश्त, एकाग्रता जैसे स्किल्स पर भी निर्भर करती है। इनकी कमी होने से वे चीजें यहां-वहां रखने लगते हैं।

हालांकि ये सब बेहद आम बातें हैं और सभी घरों में ऐसे लोग पाए जाते हैं, लेकिन जब यह समस्या इतनी बढ़ जाए कि इनकी वजह से घर में चलने-फिरने की भी जगह ना बचे, दूसरों को परेशानी और आपस में लड़ाई-झगड़ा होने लगे, तो फिर यह एक समस्या है। मनोवैज्ञानिक इसे होर्डिंग डिस्ऑर्डर कहते हैं। ऐसे लोगों के दिमाग में उन हिस्सों में गड़बड़ होती है, जो निर्णय लेने और यह अंदाजा लगाने से जुड़े हैं कि किसी चीज की घर में कितनी जरूरत है। ये दोनों समस्याएं मिल कर आपको कोई भी चीज फेंकने से रोक लेती हैं। इन लोगों को एक्सपर्ट की मदद की जरूरत पड़ती है। ट्रीटमेंट के दौरान थेरैपिस्ट इन्हें यह समझाते हैं कि कैसे धीरे-धीरे बेकार चीजों को वे फेंकना शुरू करें। अगर इसकी वजह से उन्हें एंग्जाइटी होती है, तो इसे दूर करने में भी एक्सपर्ट इनकी मदद करते हैं। दूसरे स्टेप में इन लोगों की चीजों को करीने से रखने, निर्णय लेने, समस्याअों को सुलझाने और रिलैक्स करने की क्षमताअों को सुधारा जाता है। इस थेरैपी में एक से दो साल का समय लग सकता है।

समय रहते संभलना जरूरी 

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कहीं आप इस बुरी आदत की शिकार तो नहीं हो रहीं? कई बार ऐसा होता है कि घर में किसी बुजुर्ग की चीजें जमा करने की आदत से हम इतना चिढ़ जाते हैं कि उनकी नजर बचा कर चीजें फेंकना शुरू कर देते हैं, जिस वजह से काम की चीजें भी कई बार फेंक दी जाती हैं। कुछ बातों का ध्यान रखें-

कोई चीज या कपड़ा अगर 6 महीने तक आपके काम नहीं आ पाया, तो समझ लीजिए कि आगे भी उसका इस्तेमाल होना मुश्किल ही हो जाएगा। इन्हें घर में जमा करके रखने का कोई फायदा नहीं है। 

बिना सोचे-समझे भी कोई चीज फेंकना ठीक नहीं है। पर्यावरण का भी खयाल रखें। अगर कोई चीज जैसे डिब्बा या बोतल दोबारा इस्तेमाल में लाए जा सकते हों, तो उन्हें इस्तेमाल करें। 
किसी जरूरतमंद को भी घर की बेकार चीजें देना वेस्ट मैनेजमेंट का अच्छा तरीका है। 

घर की कोई चीज सिर्फ इसीलिए ना खरीदें कि वह आपको पसंद आ रही है, बल्कि यह सोचें कि क्या वाकई आपको उसकी जरूरत है। इस तरह से घर में फालतू चीजों का अंबार नहीं लगेगा।