Thursday 11 November 2021 12:43 PM IST : By Nishtha Gandhi

ये हैं शेरों की आंटियां

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चाहे जंगल सफारी पर जाएं या चिडि़याघर में, हमारी नजरें सबसे ज्यादा जिसे ढूंढ़ती हैं, वह होता है जंगल का राजा शेर। यह कितना खूंखार हो सकता है, यह बताने की जरूरत नहीं है। इन्हें पकड़ने के लिए कोई शेर दिल ही चाहिए और यह भी जरूरी नहीं कि यह शेर दिल कोई पुरुष ही क्यों, कोई महिला भी हो सकती है, जिसका काम ही हो इन शेरों के पीछे भागना, उन्हें पकड़ना और दवा देना। गुजरात के गीर जंगल ना सिर्फ दुर्लभ एशियाई शेरों का घर होने के कारण चर्चा में हैं, बल्कि इसकी चर्चा की एक और वजह है, वह है कि इन शेरों की सुरक्षा में तैनात हैं कुछ शेरनियां। गीर की फॉरेस्ट रेस्क्यू टीम का हिस्सा हैं कुछ महिलाएं, जो घने जंगल में पूरी दिलेरी से जंगली जानवरों के पीछे भागती हैं। पिछले दिनों अभिनेता रणवीर सिंह के टीवी शो बिग पिक्चर में एक खास गेस्ट अायी थीं, जिनका नाम था पिंटूबेन गुजराती। पिंटूबेन गीर के जंगलों में फॉरेस्ट ऑफिसर हैं, जो दिन रात शेरों के बीच में रहती हैं। पिंटूबेन ने जब रणवीर को बताया कि कैसे शेरों का एक दल उनकी तरफ देखते हुए बस हाथ भर के फासले से ही निकल गया, तो सबके रोंगटे खड़े हो गए। दिलेर पिंटूबेन की तरह गीर के जंगलों में और भी महिलाएं हैं, जो दिन रात शेर और जंगली जानवरों की देखभाल में लगी रहती हैं। आइए उनसे मिलते हैं- 

गीर की रानी रसीला

जूनागढ़ के ढंढूरी गांव के साधारण परिवार की लड़की रसीला वढेरा जीवन में कुछ ऐसा करना चाहती थी कि सब उसे याद रखें। बीए की पढ़ाई पूरी करने के बाद किसी दोस्त के कहने पर उसने वन विभाग में नौकरी के लिए आवेदन कर दिया। रसीला का कहना है, ‘‘नौकरी मिलने तक मेरे लिए शेर और एक साधारण जानवर में कोई फर्क नहीं था। यह कितना खतरनाक हो सकता है, यह बात मुझे तब पता चली, जब मेरा एक शेरनी से सामना हुआ।’’

अपने पहले रेस्क्यू अॉपरेशन की यादें रसीला के मन में आज भी ताजा हैं, ‘‘मुझे याद है मई के महीने की वह शाम, जब हमें एक घायल शेरनी के बारे में खबर मिली। शरीर में कांटे चुभ जाने की वजह से शेरनी काफी तकलीफ में थी और भूखी भी थी। हम उसे पकड़ने के लिए चारे के तौर पर एक बकरी का बच्चा साथ ले कर गए थे। चूंकि शेरनी बहुत भूखी थी, इसलिए वह उस मेमने को छीन कर भाग गयी। अभी हम दूसरे मेमने को पिंजरे में बांध ही रहे थे कि एक और शेरनी अपने बच्चे के साथ वहां आ गयी। मैं कुछ समझ पाती, इससे पहले ही सारे साथी भाग कर गाड़ी पर चढ़ गए।

‘‘मैं गाड़ी के पीछे पिंजरे की रस्सी पकड़ कर खड़ी थी। शेरनी हम पर हमला कर चुकी थी। मेरे सिर पर लकड़ी की चोट पड़ी और मैं अपने होश खो बैठी। कुछ देर बाद जब होश आया, तो टीम लीडर ने रेस्क्यू अगले दिन करने की बात कही। वह शायद एक लड़की को अपनी टीम में होने को एक जिम्मेदारी समझ रहे थे, लेकिन मैंने रेस्क्यू उसी दिन करने पर जोर दिया। हमने फिर से शेरनी काे ढूंढ़ना शुरू किया और थोड़ी मुश्किलों के बाद उसे सुबह 5 बजे रेस्क्यू सेंटर में पहुंचा दिया। इस तरह से मेरा वह पहला रेस्क्यू अॉपरेशन एक यादगार एडवेंचर बन गया।’’ 

मुश्किलें कम नहीं हैं, इन वन्य कर्मचारियों के लिए, दिन हो या रात, ये हर समय ड्यूटी पर रहते हैं। इसीलिए रसीला ने शादी से पहले ही होने वाले पति को अपने काम के बारे में सब कुछ साफ-साफ बता दिया था। पति को अपनी इस शेरनी बीवी पर गर्व है। 

रसीला को अब जंगली जानवरों से डर नहीं लगता, बल्कि उनसे प्यार है। वे जानती हैं कि अगर इनसे एक सुरक्षित दूरी बना कर रखी जाए, तो ये जानवर हमला नहीं करते। एक बार इसी तरह रसीला का सामना बेहद जहरीले माने जानेवाले सांप रसेल्स वाइपर से हो गया। गांववालों ने इन्हें बताया था कि कुएं के पास एक बड़ा अजगर है, लेकिन जब वहां पहुंचे, तो पाया कि असल में वह तो जहरीला सांप है। आननफानन में वहां से गांववालों को हटाया गया। ‘‘इस समय मेरे साथ सिर्फ एक ट्रैकर था। किसी तरह हमने उस सांप को पकड़ कर पिंजरे में डाल दिया,’’ रसीला ने उस वाकये को याद करते हुए बताया। 

एक समय में जहां अपने ही विभाग के लोग एक साधारण सी लड़की को जंगल में ले जाते हुए डर रहे थे, वही लड़की अब टीम लीडर बन चुकी है। 

गीर के जंगलों की इस रानी का दिल जब उदास हो जाता है, तो वह यहां पर कमलेश्वर डैम पर जा कर वक्त बिताती है। रसीला का कहना है, ‘‘लगभग 500 से ज्यादा मगरमच्छों का घर है यह जगह, जहां 10-15 मिनट में सारी थकान और उदासी दूर हो जाती है।’’ यों तो गुजरात की लॉयन क्वीन के पास उदास होने की कोई खास वजह नहीं है। परिस्थितियों ने जिन जंगलों में पहुंचाया थी, वही जंगल अब रसीला के लिए दूसरा घर बन चुका है। 

लगभग 8 साल के इस कैरिअर में रसीला 600 से ज्यादा रेस्क्यू अॉपरेशंस का हिस्सा बन चुकी हैं, जिनमें शामिल हैं कुएं में गिरे शेर को बचाना, तेंदुअों को वैक्सीन लगाना, किसी घायल शेरनी की दवादारू करना, जहरीले सांपों को पकड़ना, इन खूंखार जंगली जानवरों के बच्चों की देखभाल करना, यानी वे सारे काम, जिन्हें करने के बारे में सोच कर ही एक आम आदमी के पसीने छूट जाएं। रसीला और उनकी साथी महिलाअों की टीम वैसे ही काम करती है, जैसे आप अपने दफ्तर में करते हैं। 

जाने क्यों इन बहादुर महिलाअों की कहानी सुन कर गुनगुनाने को दिल करता है, ‘हम तुम एक जंगल से गुजरें और शेर आ जाए...’ रसीला और उनकी टीम होती, तो शायद यही कहती कि ‘मैं शेर से कहूं कि सबसे हाथ मिलाए और पिंजरे में चला जाए...’

छोटे शेरों की आंटी किरण

घर में अगर कोई पालतू पशु हो, तो वह दूर से आपकी गंध और आवाज पहचान लेता है। किंतु किरण पाथिया जब गीर के जंगलों में राउंड पर निकलती हैं, तो शेर और तेंदुए के बच्चे उनकी आवाज और गंध पहचान कर काऊं-काऊं करने लगते हैं। गीर में कितने जानवर हैं, कौन खूंखार है, कौन शांत है, अगर यह जानना हो, तो किरण की बाइक पर बैठ कर इस जंगल में घूमिए।

उनकी बाइक की आवाज और खाकी यूनिफॉर्म यहां के लगभग सारे जानवर भलीभांति पहचानते हैं। लेकिन किरण की आंखें ढूंढ़ती हैं तेंदुए के उस बच्चे को, जिसे उसकी मां ने बीमार हालत में छोड़ दिया था। किरण ने रेस्क्यू सेंटर में उस बच्चे की देखभाल की और आज वह किरण की खाकी यूनिफॉर्म और बाइक की आवाज को इस कदर पहचान गया है कि उसे देखते ही काऊं-काऊं की आवाज निकालने लगता है। लेकिन किरण अगर तेंदुए के इस बच्चे से ही मिल कर घर लौट आए, तो शेरनी का वह बच्चा नाराज हो जाएगा, जिसे उन्होंने ट्रेनिंग दी है। वह भी तो किरण की गंध और आवाज तक पहचानता है। उनका आसपास होना ही काफी है बस। अपनी खुशी जाहिर करने के लिए वह भी किरण को आवाज लगाना नहीं भूलता। 

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इस बच्चे की मां बीमार होने के कारण उसे दूध नहीं पिला पा रही थी, जिस कारण उस बच्चे को सुबह-शाम दूध देने की जिम्मेदारी किरण को सौंपी गयी। कुछ ही दिनों में वह बच्चा किरण को पहचानने लगा। अब जब भी वह आती दिखती, तो वह बच्चा दूसरे पिंजरे से बाहर निकल कर आगे वाले पिंजरे में आ कर बैठ जाता। 

इन छोटे शावकों को किरण की यूनिफॉर्म से प्यार है, तो राजकोट की नन्ही किरण को भी बचपन से ही पुलिस की खाकी वर्दी आकर्षित करती थी। लेकिन मां ने पुलिस में जाने की इजाजत नहीं दी।फिर एक प्रोफेसर के कहने पर फॉरेस्ट डिपार्टमेंट में नौकरी के लिए अप्लाई कर दिया। नेशनल लेवल की जिमनास्ट रही इस युवती को नौकरी मिल भी गयी। लेकिन मुसीबत अभी खत्म कहां हुई थी। एक दिन जोश में भर कर मां और बहन को अपनी बाइक पर बैठा कर शेर दिखा दिया। बस फिर क्या था, मां ने तो वहीं ऑफिस में हल्ला मचा दिया और बेटी को सब छोड़छाड़ कर घर वापस चलने का फरमान जारी कर दिया। किसी तरह किरण की सहकर्मियों ने उन्हें समझाबुझा कर शांत किया। 

यों तो किरण रात-दिन शेरों के आसपास रहती हैं, लेकिन वह वाकया आज भी जहन में ताजा है, जब एक शेरनी से बस हाथभर की दूरी पर आमना-सामना हुआ। किस्सा कुछ यों हुआ कि एक बार फॉरेस्ट की रेस्क्यू टीम ने एक शेरनी को पिंजरे में बंद किया। अभी यह अॉपरेशन पूरा ही हुआ था कि टीम को पास में कुछ और शेरों के होने की जानकारी मिली। टीम का ध्यान दूसरी तरफ था, तभी किसी मेंबर की गलती से शेरनी वाला पिंजरा खुल गया। सामने खड़ी थीं किरण। अब करें, तो क्या करें। पांव जैसे जड़ हो गए। अगर वहां से भागने की कोशिश करतीं, तो शेरनी के हाथों मौत निश्चित थी। लगभग एक-दो मिनट तक दोनों एक-दूसरे की आंखाें में झांकती रहीं। शायद वह शेरनी अपने सामने खड़ी इस युवती को देख थोड़ी भ्रमित हो गयी थी। इससे पहले कि शेरनी कुछ समझ पाती, एक साथी ने आ कर पिंजरे का दरवाजा बंद कर दिया और किरण की जान में जान आयी। 

‘‘यह काम ऐसा है कि हमें 24 घंटे ड्यूटी पर रहना पड़ता है। मेरे पति भी वन विभाग में ही काम करते हैं, इसलिए वे इस काम की जटिलताएं समझते हैं। मेरा भाई तो मुझे शेरनी कहता है।’’ 

इस काम में इतना जोखिम होने के बावजूद किरण चाहती हैं कि उनका बेटा भी बड़ा हो कर इंडियन फॉरेस्ट सर्विसेज में जाए। ‘‘फिलहाल मैं जंगल में जा रही हूं। एक घायल शेरनी के बारे में पता चला है, उसका अता-पता मालूम करके रेस्क्यू टीम को बताना है,’’ कह कर किरण ने बातचीत खत्म कर दी। 

‘‘अपना ध्यान रखना,’’ बस यही शब्द मैं उनसे कह पायी और फिर अनायास ही मुस्करा पड़ी कि इन शेरनियों को भला किस बात का डर !