कम उम्र में कैरिअर, अपना घर, गाड़ी, घुमक्कड़ी और पूरे ऐशोआराम के साथ-साथ युवाओं का लिव इन रिश्ते में उतरना विवाह जैसे संस्कार पर सवाल उठा रहा है। हाल में एक डिजिटल न्यूज एप द्वारा नेट सर्फ करने वाले 18-35 वर्ष के 1.4 लाख युवाओं पर सर्वे किया गया, जिसमें 80 प्रतिशत लोगों ने यह माना कि लिव इन रिलेशनशिप आज भी भारतीय समाज में एक टैबू है। इसमें 26 प्रतिशत युवाओं ने स्वीकार किया कि वे ताउम्र लिव इन में रहना पसंद करेंगे। 86 प्रतिशत लोग मानते हैं कि लिव इन के पीछे सेक्स ही मुख्य वजह नहीं है। 45 प्रतिशत मानते हैं शादी से पहले लिव इन में रहना इसीलिए जरूरी है, ताकि मालूम हो जाए कि विवाह सफल हो पाएगा या नहीं। इस पर जानिए, क्या है युवाओं की सोच-
हमें कमिटेंट चाहिए
नोएडा में सीएमए की चेअरपर्सन रूबी मिश्रा कमिटमेंट से जुड़े अपने डर बताते हुए कहती हैं, ‘‘कमिटमेंट फोबिया मुझे भी है, क्योंकि समाज दोहरे चेहरे का हो गया है। शादी में सभी लड़कों को सबसे सुंदर, अच्छे कैरिअर वाली लड़की चाहिए। अब तो विवाह में रुपयों के अलावा भी कई शर्तें हो गयी हैं। इसी वजह से लड़कियों के मन को चोट पहुंचती है। उन्हें पता है कि अगर अरेंज मैरिज करेंगे, तो पेरेंट्स पर काफी दवाब पड़ेगा। इसीलिए वे इंतजार करती हैं कि उन्हें कोई समझदार, अच्छा लड़का लाइफ पार्टनर के तौर पर मिल जाए। अगर मिल भी जाता है, तो फैमिली के इन्वॉल्व होने पर उनकी डिमांड होने लगती है। दूसरी ओर देखें, तो लगता है कि लिव इन युवतियों के लिए एक तरह का मेंटल टॉर्चर है। लड़कियां इस सचाई के साथ नहीं रह पातीं कि इस अस्थायी रिश्ते में अपने साथी की सारी बातें मानना और उसे बिना किसी शर्त के प्यार करना है। भारतीय युवतियों की मानसिकता थोड़ी अलग है। उन्हें रिश्ते में कमिटमेंट चाहिए, एक समय के बाद उन्हें सहारा चाहिए। दिल बहलाने के लिए कपल कह देते हैं कि हम लिव इन में हैं, लेकिन सच यह है कि लड़कियां इसमें कंफर्टेबल नहीं हो पाती हैं।’’
टॉप लेवल की जिम्मेदारी

हमारे माता-पिता का समय अलग तरह का था, वे अपनी जॉब्स में व्यस्त थे। पहले कम उम्र में शादी हो जाती थी, लेकिन आज की पीढ़ी के साथ ऐसा नहीं है। उन्हें लाइफ में जल्दी सेटल होना है। उन्हें अपने माता-पिता के माध्यम से काफी कुछ थाली में परोसा हुआ मिल चुुका है। उनके सामने पारिवारिक जिम्मेदारी निभाने का कुछ दबाव नहीं है। आज की पीढ़ी को आप मी जेनरेशन कह सकते हैं। वे अपने लिए जीना चाहते हैं। अपने शौक, अपना कैरिअर, घुमक्कड़ी सभी कुछ अपने लिए। शादी में बहुत कमिटमेंट चाहिए और वे अपनी प्राथमिकताओं में शादी को सबसे अंत में रखते हैं। उसके बारे में रिलैक्स हो कर सोचना चाहते हैं। इसीलिए लेट मैरिज का चलन बढ़ा है। लिव इन भी इसी का हिस्सा है। बहुत कम युवा रह गए हैं, जो 24-25 साल की उम्र में शादी करते हैं। वे शादी से पहले एक-दूसरे को समझना चाहते हैं कि उनका पार्टनर कैसा है। इसीलिए इसे जांचने के लिए वे लिव इन रिश्ता चाहते हैं।
शादी की जिम्मेदारी नहीं लेना चाहते हैं, बच्चों की जिम्मदारी तो उनके लिए टॉप लेवल की जिम्मेदारी है। हालांकि मॉडर्न पेरेंट्स की संख्या कम है, जो इसे सपोर्ट करते हैं। वे बच्चों पर छोड़ देते हैं, लेकिन छोटे शहरों में पेरेंट्स आज भी अभी भी विवाह संस्कार को मानते हैं । दिल्ली के ऑडियो इंजीनियर संजू अब्राहम इस बारे में अपने विचार व्यक्त करते हुए कहते हैं।
स्मार्ट पैकेज

लड़कियां आजकल आर्थिक रूप से स्वतंत्र और समझदार हो गयी हैं। कोई भी लड़की 27-28 साल से पहले शादी नहीं करना चाहती। अगर वे पढ़-लिख कर कुछ प्रोफेशनल डिग्री लेने के बाद नौकरी कर रही हैं, तो उनकी 30 साल की उम्र तक शादी हो जाना लाजमी है। पहले लड़कियां छोटी उम्र में ब्याह दी जाती थीं और अपने परिवेश में ढल जाती थीं। पर अब ऐसा नहीं है। उन्हें जो बात अच्छी लगती है, तो वह सही है। जो बात गलत है, तो गलत लगती है। शादी के बाद बहुत सारी जिम्मेदारी आती है, जो पति-पत्नी दोनों को निभानी पड़ती है। बच्चों की जिम्मेदारी औरत पर ही आती है, फिर चाहे वह वर्किंग है या नॉन वर्किंग। सबसे बड़ी वजह अब लड़कियां चाहती हैं कि वे शादी ना करें। लड़कों को इस मामले में बहुत फर्क नहीं पड़ता। शादी से पहले वे आर्थिक रूप से ज्यादा मजबूत होना चाहते हैं। उन्हें मालूम है कि अगर वे शादी करेंगे, तो अपने मुताबिक विदेश में हनीमून जाने के लिए कम से कम उन्हें 2 लाख रुपए का पैकेज चाहिए। इसके अलावा वे घर की जरूरत का सारा सामान भी पहले से ही खरीदना चाहते हैं। इसीलिए वे शादी से पहले रुपया जोड़ना चाहते हैं। लेकिन पेरेंट्स चाहते हैं कि उनके बच्चे जल्दी से जल्दी सेटल हों। घर चलाने का आर्थिक दबाव पुरुषों पर सबसे ज्यादा आता है। लड़के शादी के लिए जल्दी हां नहीं करते हैं। लड़कियां शादी के बाद एकल परिवार में रहना चाहती हैं, पर जब बेबी बर्थ होता है, तब लगता है कि बेबी पेरेंट्स पाल दें, पर ऐसा नहीं होता। ऐसे में कैरिअर चौपट होता हुआ महसूस होता है। इसीलिए शादी के बंधन में बंधने में वे कतराने लगी हैं, कहना है गाजियाबाद की एक अभिभावक प्रीति सेठ का
शर्तों पर जिंदगी

गुरुग्राम के पारस अस्पताल की मनोचिकित्सक डॉ. ज्योति कपूर का कहना है, ‘‘पहले की जीवनशैली सामाजिक थी, लेकिन अब लोग अकेले ही रहना पसंद करते हैं। अपनी तरह-तरह की इच्छाओं को पूरा करने के लिए तत्पर हाेते हैं। शादी में एक-दूसरे के हिसाब से एडजस्टमेंट करने की जरूरत होती है। इसमें कई बार युवतियों को अपने प्रोफेशन से समझौते करने पड़ते हैं, कई चीजें छोड़नी पड़ती हैं। इसीलिए वैवाहिक संस्कार से बचना चाहती हैं। उनका मानना है कि उनसे परिवार वाले कई उम्मीदें करते हैं और पूरी ना होने पर झगड़े होते हैं। पहले के मुकाबले युवाओं की इच्छाओं और लक्ष्य का दायरा बढ़ गया है। पहले सिर्फ पढ़ाई, कैरिअर और शादी तक ही जीवन सीमित था। पर आज की तारीख में सिर्फ यही बातें नहीं रह गयी हैं। युवाओं को निजी संतुष्टि भी चाहिए। कैरिअर के अलावा उनकी रुचि का दायरा बढ़ गया है। वे शादी जैसे सामाजिक संस्कार में खुद को कैद नहीं करना चाहते। बहुत से युवा छोटे शहरों से निकल कर महानगरों में काम करने के लिए आते हैं। वे शहरों में अकेले रह रहे हैं। उनके सामने बहुत सारी परेशानियां सामने आ रही हैं, जिसमें से माता-पिता की ओर से शादी का प्रेशर भी एक है। लेकिन बच्चे ऐसा करने लिए आगे नहीं आते। वे चाहते हैं कि वे अपनी मर्जी से शादी करें। छोटे शहरों से महानगरों में नौकरी के लिए आयी लड़कियां अपने घर में बंदिशों का माहौल देख चुकी होती हैं, इसीलिए वे वापस अपने बंदिशों से भरे जीवन में लौटना नहीं चाहतीं। अपने छोटे शहर में उतनी आजादी नहीं होती, जबकि वे महानगरों में अपने हिसाब से अपनी शर्तों पर जी रही होती हैं। इसीलिए खासतौर पर महिलाएं आसानी से शादी नहीं करना चाहती हैं। उनके जीवन में बदलाव आया है कि अब सिर्फ शादी लक्ष्य नहीं है। आर्थिक रूप से सुरक्षित होना लक्ष्य है।’’