Monday 27 September 2021 03:06 PM IST : By Team Vanita

बदलें पीरियड्स को ले कर दकियानूसी सोच

पीरियड्स का मामला पिछले दिनों काफी गरम हुआथा, जबर्दस्त बहस छिड़ी थी। फिल्म एक्ट्रेस जरीन खान ने कहा था कि पीरियड्स के दौरान उनको कभी काम से छुट्टी लेने की जरूरत नहीं पड़ी। यह एक सामान्य बात है, इसे सोसाइटी ने बेवजह इतना बड़ा इशू बना दिया है। करीना कपूर ने इसे एकदम सामान्य बात माना। उनके लिए यह कोई छिपाने वाली बात नहीं है। टि्वंकल खन्ना लड़कियों को पहले से इसके बारे में जानकारी होने पर जोर देती हैं, क्योंकि उनको स्कूल कैंटीन में अचानक पीरियड्स होने से तुरंत हॉस्टल जा कर कपड़े बदलने पड़े। उनके कपड़ों में धब्बे पड़ गए थे। पहले से जानकारी होती, तो ऐसा ना होता। ये सारे पीरियड्स को ले कर दिए गए प्रोग्रेसिव विचार हैं। वहीं धर्मगुरु स्वामी कृष्ण स्वरूप दास के इस कुरूप बयान पर गौर करें कि माहवारी के दौरान खाना बनाने वाली स्त्री अगले जन्म में ‘बिच’ होगी औरउसके हाथ से बना खाने वाला आदमी बैल बनेगा। यानी हम जहां से चले, वहीं पहुंच गए। समाज में पीरियड्स को ले कर पॉजिटिव बदलाव आ रहा है, हमारी यह सोच कहीं खामखयाली तो नहीं है, वरना क्यों आज तक सैनिटरी नैपकिन काले पॉलिथिन में पैक करके दिया जाता। 

गृहिणी नीना टंडन मानती हैं कि पीरियड्स को ले कर धारणा तो बदली है। इसे बदलने में सैनिटरी नैपकिन को हर महिला के लिए उपलब्ध करानेवाले मुरुगनाथम का बड़ा हाथ है। उन पर ही पैडमैन फिल्म बनी। उसे राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला। पहले के समय में कुंआरी लड़की, उसकी मां हो या बुआ, पीरियड्स के समय में वे रसोई में कदम नहीं रख सकती थीं। अचार को हाथ लगाने का मतलब उसका सड़ जाना तय था। पूजापाठ का तो सवाल नहीं था। यह सोच आज भी कायम है।

दिल्ली में फोर्स ऑफ लाइफ की डाइरेक्टर, साइकोथेरैपिस्ट और लाइफ कोच कविता शर्मा के अनुसार, पीरियड्स एक शारीरिक स्थिति है। इसे इंसान ने नहीं बनाया, पर कुप्रथा का रूप जरूर दे दिया। पुराने समय में महिला को इन दिनों आराम देने के लिए घर की बड़ी-बुजुर्ग महिलाअों ने यह प्रथा बनायी होगी। लेकिन अब पीरियड्स को ले कर जिस तरह के पोंगापंथी और अपमानजनक बयान आ रहे हैं, वे उन लोगों के मानसिक रूप से बीमार होने की ओर इशारा करते हैं। पीरियड्स के दिनों में खाना बनाने, अचार छूने या पति के साथ होने पर अगले जन्म में मिलने वाली सजाएं इन धर्मगुरुअों द्वारा खयालातों का बनाया हुआ पुलाव है, जिसे वे बना, खा और परोस रहे हैं। अगला जन्म किसने देखा है? पढ़ी-लिखी, फैशनपरस्त महिलाएं भी इस मामले में कई बार कूढ़मगज निकलती हैं। उनकी पीरियड्स को ले कर सोच दकियानूसी है, जिससे ना तो उनका मेकअप मेलखाता है और ना ही कपड़े। तीज-त्योहार, पूजापाठ में अलग बैठ जाएंगी। इससे बेहतर है, नहा-धो कर काम में लगा जाए। ऐसी सोच का असर उनकी सेहत पर यह पड़ता है कि वे अपनी पीरियड्स से जुड़ी परेशानियों को शेअर नहीं करतीं। मर्ज बढ़ता जाता है।

एजुकेटेड, नौकरीपेशा 28 साल की कृति मिश्रा की शादी ऐसे परिवार में हुई, जहां पीरियड्स के दौरान छुआछूत एक रूढि़ की तरह कायम था। सास अमेरिका में बसे बेटे के पास बहू की डिलीवरी के समय गयी हुई थीं। कृति ने वसंत पंचमी के दिन अपनी नहायी-धोयी 17 साल की ननद को मीठे चावल का भोग लगाने के लिए प्लेट पकड़ा दी। ननद यह कहते हुए बिदक गयी कि नहीं भाभी, मैं डाउन हूं। कृति ने उसके मुंह में दो तुलसी की पत्तियां डालीं और कहा, ‘‘जाओ, भोग लगाओ, देवी सरस्वती भी स्त्री हैं, कुछ नहीं होता। जो पाप लगना होगा,मुझे लगेगा।’’ कृति बताती हैं, ‘‘कम उम्र होने की वजह से ननद ने झिझकते हुए मेरी बात मान ली, पर अब पीरियड्स को ले कर उसमें कोई गिल्ट नहीं है।’’ वहीं 13-14 साल की 2 बेटियों की मां मीनाक्षी उनियाल बेटियों के पीरियड्स को ले कर असमंजस में थीं कि कैसे बताएं कि पीरियड्स भी होते हैं और उस बीच भगवान के कमरे से दूर रहना है। हिम्मत करके बेटियों को बिठा कर समझाना शुरू किया, तो वे लापरवाही से बोलीं, ‘‘हमें पता है, हमारे स्कूल में सब बताया जाता है। हम सारे काम कर सकते हैं।’’ 

इस बदल रही सोच के बावजूद महिलाअों के अपने दिमाग में पीरियड्स को ले कर इतना वहम है कि वे मंदिर जाना तो दूर, उन दिनों भगवान को हाथ जोड़ते हुए भी घबराती हैं। ‘तर्क वही पुराना कि 3 दिन अौरत को आराम मिल जाता है। दावा करती हैं कि पीरियड्स के दिनों में मुरब्बा धूप में रखने के लिए ही छुआ, पर बाद में जब खोला, तो खराब हो गया था। कुछ तो सचाई है।’ पीरियड्स के दौरान खुद के अपवित्र होने की भावना आज भी उनके मन में गहरी बैठी है। भुज में सहजानंद गर्ल्स इंस्टिट्यूट तब चर्चा में आया, जब पीरियड्स की जांच के लिए 60 छात्राअों को कपड़े उतारने के लिए मजबूर किया गया। यहां पीरियड्स के समय लड़कियां परिसर में मौजूद मंदिर में नहीं जा सकतीं औरमेस में दूसरी छात्राअों के साथ खाना नहीं खा सकतीं। यह इंस्टिट्यूट बिच और बैल की फिलॉसफी झाड़ने वाले कृष्ण स्वरूप दास का है। आज के जमाने में ऐसी सोच हैरानी में डालने वाली है। हिंदुस्तान में कुल आबादी की करीब 30 प्रतिशत महिलाएं पीरियड्स से गुजर रही हैं। हर घर में महिलाएं हैं, जिनके बिना काम नहीं होता, पर पीरियड्स होना गुनाह से कम नहीं है, छुपे शब्दों में पीरियड्स होने की बात कही जाती है। मसलन आज ‘सिर धोने पर हैं’, ‘एमसी हैं’, ‘डाउन हैं’ वगैरह-वगैरह।

अब भी गांवों, छोटे शहरों में 62 प्रतिशत महिलाएं कपड़ा इस्तेमाल करती हैं। कपड़े का पाउच बना कर उसमें राख और बालू भर कर पैड की तरह इस्तेमाल करनेवाली महिलाएं भी हैं, जो अकसर बीमार रहती हैं। वे सच में मानती हैं कि पीरियड्स के समय वे अशुद्ध औरअपवित्र हो जाती हैं। उस दौरान नहाने से बचती हैं, ‘क्योंकि दादी ने या मां ने कहा था कि ‘उस समय रसोई, पति औरपानी के पास नहीं जाना।’ उन्होंने पोती या बेटी के मन में कमतर होने का बीज बो दिया, जबकि पीरियड्स एक कुदरती प्रक्रिया है, फिर इतना हल्ला क्यों? विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट बताती है कि भारत में 27 फीसदी सर्वाइकल कैंसर के मामलों के पीछे सबसे बड़ी वजह माहवारी के दौरान साफ-सफाई ना रखना है। 

ऐसा नहीं है कि महिलाअों ने इसका विरोध नहीं किया हो। कहीं हैप्पी टू ब्लीड कैंपेन चला, ताे कहीं पैड्स अगेंस्ट सेक्सिज्म मुहिम छिड़ी। जो महिलाएं खुद को प्रोग्रेसिव श्रेणी में रखती हैं, वे एकदम अति पर पहुंच जाती हैं। माहवारी में सबरीमाला मंदिर में जाने की जिद कुछ ऐसी ही है। एक महिला ने तो पीरियड्स से जुड़ी रूढि़यों को तोड़ने के नाम पर तुलसी के पौधे को पीरियड्स के फ्लूइड से सींचना शुरू कर दिया। इसमें प्रगतिशीलता क्या है। वैसे अब तो छोटे परिवारों और शहरों में मजबूरी कुछ ऐसी हो गयी है कि चाह कर भी वैसी रूढि़यों पर नहीं चला जा सकता। अगर पति-पत्नी दोनों नौकरीपेशा हैं, तो कौन खाना बनाएगा। आदमी तो बनाने से रहे। बूढ़ी सास पर खाना बनाने की जिम्मेदारी कैसे डाली जा सकती है, वरना कुछ परिवारों में तो पीरियड्स के दौरान महिला का कमरा, बरतन सब अलग कर दिए जाते थे। तेइस परसेंट लड़कियाें का तो पीरियड्स के बाद स्कूल जाना ही बंद करा दिया जाता है। आखिर हम कहां जा रहे हैं, दकियानूसी सोच और प्रोग्रेसिव समझ के बीच उलझने के बजाय क्या इनसे बाहर आना ठीक नहीं रहेगा। 

पीरियड्स से जुड़े मिथ

इन दिनों नहाएं नहीं। दही, मट्ठा और कढ़ी नहीं खानी है, नुकसान पहुंचेगा। जबकि साफ-सफाई जरूरी है।

एक्सरसाइज व योग नहीं करना। उस दौरान स्कूल नहीं जाना। हालांकि पीरियड्स के दौरान हल्की-फुल्की एक्सरसाइज की जा सकती है। ऐसी कोई रोक नहीं है। 

अशुद्ध होने के कारण इन दिनों पूजापाठ, व्रत, मंदिर जाने से बचेें। पूजापाठ करेंगी, तो भी कोई हर्ज नहीं होगा। 

रसोई में नहीं जाना है। पुरुषों के लिए खाना नहीं बनाना है। अचार को हाथ नहीं लगाना, वरना सड़ जाएगा। आजमा लें, ऐसा नहीं होता। 

माहवारी के तीसरे दिन बाल धो कर शुद्ध होना है। पौधों में पानी नहीं देना है। पौधे बच्चों जैसे हैं, उनको नियमित पानी देना पाप कैसे हो गया।