Saturday 28 August 2021 03:55 PM IST : By Team Vanita

दही हांडी के नाम पर खतरे में गोविंदा

janmashtmi

गोविंदा आला रे आला, जरा मटकी संभाल ब्रजबाला...

इस गीत की पुकार मुंबई की फिजाओं में जन्माष्टमी यानी गोकुल अष्टमी आने के पहले से गूंजने लगती हैं। दही हांडी के आयोजक मंडल सक्रिय हो जाते हैं। हर बच्चा, किशोर और युवा खुद को गोविंदा यानी कृष्ण से कम नहीं समझता। परंपरा, संस्कृति और इनाम के नाम पर अपनी जान की बाजी लगाने जाने कितने गोविंदा मटकी तोड़ने की लालसा में अपने क्षेत्र के मंडलों की दही हांडी प्रतियोगिता में हिस्सा लेते हैं। यों समिझए कि अपनी जान की बाजी लगाते हैं। 

इन दिनों जगह-जगह लोगों से ठसाठस भरी चॉल में दही हांडी का जलवा देखने लायक होता है। लेकिन दही हांडी तोड़ने के दौरान गोविंदाओं के घायल होने की घटनाएं बढ़ती ही जा रही हैं, जिन्हें बाद में बात-बात पर संस्कृति की दुहाई देनेवाले मंडल और नेता पूछते तक नहीं हैं। देखभाल और मदद का तो सवाल ही नहीं उठता। 

मुंबई में हर जन्माष्टमी पर सरकारी अस्पताल हवा में झूलती दही हांडी तोड़ने के चक्कर में बुरी तरह घायल हुए गोविंदाओं से भर जाते हैं। कई बार ऊपर तक पहुंच कर गिर पड़ते हैं, तो कई बार मटकी तक पहुंच कर, उसे पकड़ने के चक्कर में पैर छूट जाता है, तो कभी जनसमूह से बना पिरामिड किसी के कमजोर पड़ने पर एक-दूसरे पर गिरना शुरू हो जाता है। तब एक साथ कई लोग घायल होते और अस्पताल पहुंचते हैं। उस समय उनको पूछने वाला कोई नहीं होता है। 

परंपरा-त्योहार की जबर्दस्त चाहत की लहर पर सवार जनमानस बड़े सा बड़ा जोखिम उठाने को तैयार हो जाता है। हर लड़का, युवक अपने आपको मटकी फोड़ माखनचोर, रास रचैया श्रीकृष्ण और गोप-गोपियों का गोविंदा मान कर इस समय को जीता है। उस समय मंडलों द्वारा इनाम की बड़ी-बड़ी घोषणाएं होती हैं, आश्वासन होते हैं और ऊंची टंगी मटकी को फोड़ने के गोविंदाओं के दुस्साहस के पीछे विशेष तरह का प्रोत्साहन होता है। 

एक घटना में दही हांडी फोड़ने की कोशिश में 2 बच्चे गंभीर रूप से घायल हो गए। उनके सिर और पीठ पर गहरी चोट लगी। सुरक्षा के उपाय, सेफ्टी नेट, सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर 20 फुट तक पिरामिड की ऊंचाई के उल्लंघन, मौके पर डॉक्टर व एंबुलेंस की नामौजूदगी जैसे सवालों पर मंडलों के आयोजक चुप्पी साध लेते हैं।

ऐसे ही एक सवाल पर दही हांडी समन्वय समिति के सचिव एक चैनल पर बरस ही पड़े, ‘‘सिर्फ 20 फीट की ऊंचाई? इतने ऊंचे पिरामिड तो हम ऊंघते हुए बना दें। हम तो 10 लेवल से ऊंचा पिरामिड बना कर नया विश्व कीर्तिमान बनाना चाहते हैं।’’ दरअसल स्पेन के नाम 9 इंसानी लेवल्स का मानव पिरामिड गिनीज बुक अॉफ रेकॉर्ड्स में दर्ज है। भिवंडी के नागेश इसी तरह इंसानी पिरामिड से नीचे गिरे और उनकी रीढ़ की हड्डी बुरी तरह जख्मी हो गयी। इस एक्सीडेंट के बाद इलाज कराना तो दूर मंडल से कोई देखने तक नहीं पहुंचा। उनकी कई सर्जरी हो चुकी हैं, लाखों रुपए अपने पास से ही खर्च करने पड़े। नागेश कहते हैं कि उस वक्त ऊपर चढ़ने का जुनून ऐसा होता है कि इसकी परवाह नहीं रहती कि 5 या 10 स्तरों पर पिरामिड बना है। लेकिन इस बात का पक्का इंतजाम तो रखा जाए कि गोविंदाओं के घायल होने पर उनको पूरा इलाज और सुरक्षा मिलेगी। नागेश ने एक सोशल मीडिया कैंपेन चलायी। बॉम्बे हाई कोर्ट ने भी सुरक्षा संबंधी निर्देश दिए। लेकिन सामाजिक कार्यकर्ताओं का मानना है कि कोर्ट के निर्देशों का पालन नहीं हो रहा है, इसलिए स्थिति काबू से बाहर है।

जब सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने आदेश में मानव पिरामिड की सीमा और 18 साल से कम उम्र के बच्चों के शामिल होने से रोकने के आदेश दिए, तो वहां के नेताओं का महाराष्ट्र स्वाभिमान जाग गया। इसे उन्होंने अपनी संस्कृति पर कानूनी दखलंदाजी माना। राज ठाकरे ने कहा, ‘‘त्योहार वैसे ही मनाया जाएगा, जैसे मनाया जाता है।’’ नतीजा यह हुआ कि मुंबई के ठाणे इलाके में दही हांडी को 49 फीट की ऊंचाई पर टांगा गया। राज ठाकरे की टी-शर्ट पर मराठी में लिखा था, ‘मैं कानून तोड़ूंगा।’

मुंबई की पुरानी वानी चॉल पर रहनेवाले दयानंद पिछले कई सालों से बिस्तर पर हैं। उनकी रीढ़ की हड्डी टूट गयी है। हुआ यह कि वे ऊंचाई पर टांगी गयी दही हांडी को तोड़ने के लिए मानव पिरामिड पर चढ़ते चले गए। पिरामिड बने लोगों में से कुछ हिल गए और खतरों से खेलते दयानंद सीधे जमीन पर धड़ाम से आ गिरे। वे 20-25 दिनों तक कोमा में रहे। कुछ समय तक मंडल, मित्र, रिश्तेदार आए, पर आज वेे बिलकुल अकेले हैं। वे वॉकर के सहारे बमुश्किल खड़े हो पाते हैं। उस पर नौकरी का चले जाना भी कम बड़ा सदमा नहीं था। 

दयानंद जैसे मामले हर साल कई इलाकों में दोहराए जाते हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि त्योहार बहुत तामझाम वाला हो गया है और कुछ मंडलों में पुरस्कार की राशि एक करोड़ रुपए तक पहुंच गयी है। एक करोड़ रुपए किसी भी युवा के सपनों को सच कर सकते हैं। दही हांडी तोड़ने को लालायित लड़के वे ही हैं, जिनका कैरियर बनना अभी शुरू हुआ है या इसकी तैयारी में हैं। उन्हें पैसे चाहिए। इसी का नतीजा है कि वे बढ़-चढ़ कर इसमें हिस्सा लेते हैं। उनकी अांखों के सामने एक करोड़ रुपए हैं, जो वे पा भी सकते हैं। मंडल एकदम उलटी बात करते हैं, उनका कहना है, पैसा सूखे के कारण कम होता जा रहा है। गोविंदाओं को पैसा बहुत कम मिलता है। दरअसल ये लड़के ऐसे निम्न मध्यम परिवारों से आते हैं, जो घायल होने पर अपना इलाज नहीं करा सकते। गोविंदाओं को आमतौर पर एड़ी, टखने की हड्डी, हिप या कमर के फ्रैक्चर से लंबे समय तक जूझना पड़ता है। 

कइयों की चोट में जटिलताएं आने और इन्फेक्शन होने की वजह से रीढ़ की हड्डी की सर्जरी करनी पड़ती है और पैरालिसिस जैसी स्थिति भी पैदा हो जाती है। वे आधे शरीर के लकवे और गरदन के निचले हिस्से के बेजान पड़ने से गहरे डिप्रेशन के शिकार भी हो जाते हैं। इनकी मदद करने वाला कोई नहीं होता। धीरे-धीरे मिलने वाले किनारा कर जाते हैं और ये बिस्तर पर पड़े-पड़े, दूसरों के रहमोकरम पर जिंदगी बिताने को मजबूर हो जाते हैं, जहां भविष्य की कोई रोशनी नहीं होती। जिंदगी की कोई प्लानिंग नहीं होती। हर ओर बिखरा अंधेरा उनको गहरी उदासियों से भर देता है। हर दिन कहीं से मदद मिलने की उम्मीद में गुजरता है, जो हकीकत में कभी मिलती नहीं है। ज्यादातर गोविंदा चॉल में रहते हैं और इनकी इतनी हैसियत नहीं है कि अपनी देखरेख और साफ-सफाई के लिए कोई नर्स रख पाएं। इनमें से कई बेडसोर, यूरिन इन्फेक्शन और सांस में तकलीफ की वजह से गुजर जाते हैं या मौत से बदतर जिंदगी बिताने को विवश होते हैं। जिंदगी से सबको प्यार होता है, पर जब यह अपनी गलती या दूसरे की लापरवाही से नासूर बन जाए, तो क्या किया जाए?

दही हांडी को एडवेंचर स्पोर्ट की श्रेणी में डाल देने की वकालत करने वाले नेता, मंडल आदि गोविंदाओं को हेल्मेट व लंबर जैकेट देने, नेट लगाना अनिवार्य करें। वैसे इसकी मुहिम शुरू हो चुकी है। दही हांडी आज से नहीं हो रहा है। पुराने लोग और पुराने मंडल वाले इस त्योहार के वर्तमान रूप से खासे निराश हैं। त्योहार की मौजमस्ती गायब हो गयी और इसका व्यवसायीकरण हो गया। पहले यह सब सिर्फ पुरस्कार राशि के लिए ही नहीं होता था। तब कुछ ही जगहों पर दही हांडी होती थीं और इतने ऊंचे पिरामिड नहीं होते थे, इसलिए यदि कोई गिरता भी था, तो बहुत चोट नहीं आती थी। इसकी बड़ी वजह राजनैतिक पार्टियों द्वारा मंडलों को स्पॉन्सर करना है। अब तो फिल्मी सितारे भी मंडल के स्टेज पर नजर आ जाते हैं। कहीं ऐसा ना हो कि दही हांडी एक सामाजिक-राजनैतिक लड़ाई का भद्दा रूप ले ले। कोर्ट के निर्देशों से जन सामान्य क्यों आहत हो रहे हैं? जिन्होंने इसके भुक्तभोगियों को तड़पते, भुगतते देखा है, वे इस पर लगी पाबंदियों का विरोध नहीं करेंगे। इसमें भाग लेनेवाले एक गोविंदा का कहना है कि हम प्रेम और भाईचारे के लिए इसका हिस्सा बनते हैं, लेकिन हमारी फिक्र कौन करता है? बातें बनाने से कुछ नहीं होता, किसी राजनैतिक पार्टी का मराठा स्वाभिमान से कोई लेना-देना नहीं है। एक राजनीतिज्ञ ने तो यह तक कह दिया कि अगर दही हांडी के दौरान किसी की मौत भी हो जाए, तो भी कोर्ट का आदेश मानने की जरूरत नहीं है। 

राज्य सरकार गोविंदाओं के मानव पिरामिड बनाने की कला को एडवेंचर स्पोर्ट का दर्जा देने की योजना बना रही है, जिसमें 12 साल से छोटे बच्चों को सहभागी नहीं बनाया जाएगा। लेकिन दही हांडी की ऊंचाई पर उसने चुप्पी साध ली है। अब देखना है कि आगे भी इसी तरह दही हांडी के नाम पर गोविंदाओं की जानें जाती हैं या वाकई सुरक्षा के उपाय करके गोविंदाओं की जानें बचायी जाएंगी या सुप्रीम कोर्ट के आदेश की फिर से धज्जियां उड़ेंगी।