Tuesday 04 July 2023 10:48 AM IST : By Nishtha Gandhi

बच्चे भी होते हैं परेशान, जानिए उन्हें कैसे समझाएं

worried-child

अगर आपका यह मानना है कि सिर्फ बड़े ही परेशान होते हैं या बच्चों को कैसी परेशानी, किस बात की चिंता, तो फिर आप गलत हैं। बच्चे सिर्फ एग्जाम के समय ही तनाव में नहीं आते, बल्कि वे तमाम बातें उन्हें भी परेशान करती हैं, जिनसे आपके मन में खलबली मचती है। खासकर आजकल के समय में हम सभी एक अनिश्चितता के दौर से गुजर रहे हैं। स्कूल, कॉलेज में ना सिर्फ पढ़ाई, बल्कि एक्स्ट्रा कुरिकुलर एक्टिविटीज में भी अच्छा परफॉर्म करने का प्रेशर बढ़ रहा है। इतना ही नहीं, पेरेंट्स की भी बच्चों से अपेक्षाएं बढ़ती जा रही हैं। वे चाहते हैं कि उनका बच्चा हर फील्ड में बेस्ट परफॉर्म करे। इसकी एक बड़ी वजह हमारे जीवन में सोशल मीडिया का बढ़ता हुआ दखल भी है। हर बच्चा अपने पीअर ग्रुप में एक्सेप्टेंस चाहता है। इस वजह से कई बार वे ऐसे काम भी करने लगते हैं, जिन्हें करने में वे खुद सहज महसूस नहीं करते। अपनी पोस्ट पर लाइक्स व कमेंट्स आए कि नहीं, दोस्तों ने चैट के लिए इनवाइट किया या नहीं, अपोजिट सेक्स की तरफ से इंट्रेस्ट रिसीव हुआ कि नहीं, ऐसी कई बातें प्री टीनएज और टीनएज में परेशान कर सकती हैं। इस वजह से बच्चों में परेशानी, एंग्जाइटी एक आम सी फीलिंग है, जिससे उबरने में अगर पेरेंट्स मदद ना करें, तो समस्या बड़ी बन सकती है।

बात ध्यान से सुनें

जब आप बच्चों की बात ध्यान से सुनेंगे, तो वे आपसे अपनी फीलिंग्स शेअर करने में सेफ महसूस करेंगे। उन्हें वे सब कुछ कहने दें, जो वे कहना चाहते हैं। बीच-बीच में उनकी बात को जरूर दोहराएं, ताकि बच्चों को भी इस बात पर विश्वास हो सके कि आप उनकी बात सच में सुन रहे हैं। यह जरूरी नहीं कि वे हर बात ठीक कह रहे हों, कुछ बातें बेमानी भी हो सकती हैं, लेकिन इन अजीबोगरीब बातों का नाम ही बचपन है। बच्चों की एंग्जाइटी दूर करने के लिए उन्हें यह अहसास दिलवाना बहुत जरूरी है कि आप उनकी प्रॉब्लम को समझ रहे हैं और यह मान रहे हैं कि वाकई वे किसी मुश्किल में हैं। अमेरिका के नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ के एक्सपर्ट लेविस खासतौर से ऐसी परिस्थितियों में पेरेंट्स को कुछ खास शब्द इस्तेमाल करने की सलाह देते हैं। वे बताते हैं कि पेरेंट्स को उनकी परेशानी की वजह को खारिज करने के बजाय ‘मैं समझ रही हूं कि तुम्हें इस समय बुरा महसूस हो रहा है, मुझे पता है कि तुम्हें डर लग रहा है, हमें भी कभी-कभी ऐसा महसूस होता है।’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल करना चाहिए। इससे बच्चों को लगेगा कि आप और वे एक ही जैसी बात सोच रहे हैं।

रिलैक्स होने में मदद करें

कई बार बतौर पेरेंट्स हमें ही यह समझ नहीं आता कि बच्चों को भी रिलैक्स होने की जरूरत है। बच्चों को जब कोई बात बहुत परेशान करने लगे, तो फिर वे तबियत खराब होने का बहाना भी बनाने लगते हैं। जरूरी नहीं है कि ऐसा बहुत छोटे बच्चे ही करें। किसी नयी क्लास में आने पर कोई टीचर अगर बच्चे को पसंद नहीं आती, तो भी वह पेट दर्द, सिर दर्द जैसे बहाने बनाने लगता है। अगर यह मामला रोजाना का बन जाए, तो पूरी तसल्ली से उससे बात करें। हो सकता है कि किसी सख्त मिजाज टीचर से डरने लगा हो, पढ़ाई का प्रेशर बढ़ने की वजह से वह परेशान हो रहा हो। इस स्थिति में उसे किसी तरह का लेक्चर ना देने लगें, क्योंकि बच्चे ऐसी हालत में पहले से यह सोच लेते हैं कि मम्मी-पापा उसे क्या कहने वाले हैं। इसलिए बेहतर है कि उसका ध्यान वहां से हटा दें। बच्चे को रिलैक्स फील करवाने के लिए उसे डीप ब्रीदिंग भी करवा सकती हैं। लेकिन अगर बच्चा हाइपर हो रहा हो, तो उसे कहीं बाहर ले जा कर ट्रैंपोलिन पर बाउंसिंग करवाएं। उसे डांस करना पसंद हो, तो तेज म्यूजिक लगवा कर उसे डांस भी करवा सकती हैं। जब बच्चा रिलैक्स हो जाए, तो उससे बात करें। उसे अपनी परेशानी दूर करने की कोई स्मार्ट टेक्नीक भी आप बता सकती हैं। कुछ और टिप्स इसमें आपकी मदद कर सकते हैं-

- बच्चा डर कर रो रहा हो, गुस्से में चिल्ला रहा हो, तो उस समय बिलकुल शांत रहें। उसके साथ चिल्लाने से कोई नतीजा नहीं निकलेगा।

- यह भी ध्यान रखें कि जिद में रोने-चिल्लाने और परेशानी या डर से रोने-चिल्लाने में फर्क होता है। बच्चों की जिद पर बेशक ध्यान ना दें, लेकिन उनके डर को दूर करना जरूरी है।

- उनके दिमाग में पॉजिटिव सोच को बढ़ावा देने का काम करें, जैसे अगर उसे यह दिक्कत है कि क्लास के कुछ बच्चों ने उससे दोस्ती तोड़ ली है, तो उसे यह अहसास करवाएं कि कुछ बच्चों ने दोस्ती तोड़ ली है, तो क्या हुआ। उसके और भी दोस्त हैं। बच्चे को आप यह सोचना सिखाएं। उसे बताएं कि जब भी वह कुछ बच्चों की वजह से अकेलापन महसूस करता है, तो उसे यह सोचना चाहिए कि उसके बाकी दोस्त भी तो हैं। एक तरह से यह उसकी सोच और विचारों की रिफ्रेमिंग होगी।

- कई बार बच्चा किसी चीज या किसी खास तरह की आवाज से डरता है, मसलन गली में कुत्तों का भौंकना, तेज आवाज में डोरबेल बजना, दाढ़ी वाले अंकल को देखना, शादी में ढोल की तेज आवाज आदि। इन चीजों का डर समय के साथ अपने आप निकल जाता है। पर फिर भी आपको इन सबकी एक पॉजिटिव इमेज बनाने की कोशिश भी करनी होगी। उसे ऐसे कार्टून दिखा सकती हैं, जिनमें जानवरों को बच्चों के दोस्त के रूप में दिखाया गया हो। दूसरों के घर की डोरबेल कैसे बजती है, यह दिखा सकती हैं या फिर उस पर कोई नर्सरी राइम सिखा सकती हैं।

- कई बार आपको यह भी लगने लगेगा कि वह इन बेकार की बातों में सबका वक्त खराब कर रहा है। ऐसा सोच कर उसे डांटने-डपटने ना लग जाएं। हो सके, तो अपना टाइम ऐसे मैनेज करें कि आप बच्चों को पूरा समय दे सकें।