Tuesday 21 December 2021 04:44 PM IST : By Nishtha Gandhi

क्या करें जब टीनएजर लड़का लड़कियों की तरह बर्ताव करने लगे

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टीनएज की शुरुआत यानी शारीरिक विकास के साथ यौन भावनाओं के विकास की भी शुरुआत। दाढ़ी-मूंछ उगना, कद का बढ़ना, ब्रेस्ट का विकास होना, आवाज भारी होना, ये सब ऐसे लक्षण हैं, जो आमतौर पर किशोर मन में उलझनें भी पैदा करते हैं। लड़कियां अपनी बॉडी को ले कर थोड़ा झेंपने लगती हैं, वहीं लड़कों को भी अब बच्चों वाले खेल पसंद आने बंद हो जाते हैं। वे खुद को वयस्क समझने लगते हैं। हालांकि इनमें कुछ बच्चे अलग भी होते हैं। जैसे लड़के लड़कियों की तरह बर्ताव करने लगते हैं, उनकी तरह चलने- बोलने लगते हैं, तो कुछ लड़कियों का स्वभाव भी लड़कों की तरह हो जाता है। हालांकि यह भी समाज का एक दूसरा चेहरा ही है कि यहां टॉमबॉय लड़कियों को स्वीकार कर लिया जाता है, लेकिन लड़कों को समाज की हंसी, मानसिक प्रताड़ना का शिकार होना पड़ता है। 

अब चूंकि समाज में पहले के मुकाबले काफी ज्यादा खुलापन आ गया है, ऐसे में पेरेंट्स बहुत छोटी उम्र से ही बच्चों में आए बदलाव को ले कर परेशान हो जाते हैं। ऐसे पेरेंट्स की भी कमी नहीं है, जो सोशल मीडिया पर अपने 3-4 साल के बच्चों के व्यवहार पर परेशानी जाहिर करते नजर आ जाते हैं। उम्र बढ़ने के साथ ही इन आदतों में भी बदलाव आ जाता है। जिन बच्चों की आदतों में बदलाव नहीं आता, उन्हें ना सिर्फ बाहर बल्कि घर में भी उपहास का पात्र बनना पड़ता है, खासकर लड़कों को। लड़कियों को टॉमबॉय, रफ और लड़कों को जनाना,बेबे, छक्का जैसे जुमले सुनने पड़ते हैं। उन्हें देख कर लोगों का मुंह दबा कर हंसना, मजाक उड़ाना, चुटकी काटना तो आम बातें हैं ही, कुछ लोग इनका यौन शोषण करने तक से नहीं चूकते। 

पारस हॉस्पिटल, गुड़गांव में सीनियर साइकोलॉजिस्ट डॉ. ज्योति कपूर का इस बारे में कहना है, ‘‘होमोसेक्सुअल होना कोई बीमारी नहीं है। यह किसी व्यक्ति विशेष की सेक्सुअल चॉइस है, जो नेचुरल और जन्म से ही होती है। ऐसे व्यक्ति अपोजिट सेक्स के बजाय समान सेक्स के व्यक्तियों के प्रति ही आकर्षण महसूस करते हैं। इन्हें अपनी सेक्सुअल पहचान से कोई परेशानी नहीं होती, वह अगर लड़का है, तो उन्हीं की तरह उसका स्वभाव और पसंद नापसंद होते हैं। जबकि वे बच्चे, जो अपने सेक्सुअल आइडेंटिटी से खुश नहीं होते, बार-बार यह महसूस करते हैं कि उनका शरीर बेशक लड़कों की तरह है, लेकिन मन से वे लड़की हैं या फिर लड़कियां इससे उल्टा महसूस करती हैं, तो वह एक अलग मनोवैज्ञानिक अहसास है। इसे एक तरह का सेक्सुअल आइडेंटिटी डिस्अॉर्डर कहा जा सकता है। इस स्थिति में बढ़ती उम्र के किशोर-किशोरियां कंफ्यूज रहते हैं। किसी से खुल कर बात ना कर पाने के कारण और मजाक उड़ने के डर से वे शर्मिंदगी महसूस करके अपने खोल में सिमटते जाते हैं। यह उनके कॉन्फिडेंस और आत्मविश्वास पर भी बुरा असर डालता है।’’ 

बच्चा जरूरी है समाज नहीं

अजंता-एलोरा और खजुराहो के देश में आज दोगलापन इस कदर हावी हो गया है कि यहां सेक्स से जुड़े हर मुद्दे को फुसफुसा कर कान में कहने की चीज बना दिया गया है। समाज के आम मापदंडों के मुताबिक अगर कोई बर्ताव नहीं करता, तो उसके साथ-साथ पूरे परिवार को अपमान झेलना पड़ता है। यही वजह है कि बच्चे खुल कर अपने माता-पिता से कुछ बात कर ही नहीं पाते। ट्रांसजेंडर को घर छोड़ कर अलग रहने पर मजबूर होना पड़ता है। नीम-हकीमों, अोझाओं और बाबाओं के चक्कर में जाने मासूमों को यौन शोषण का शिकार तक होना पड़ता है। इससे भी बुरी स्थिति तो उनकी होती है, जिनकी जबरन शादी करवा दी जाती है। शरम और अवसाद के कारण आत्महत्या तक के मामले सामने आए हैं। इन्हें भी परिवार के लोग आपसी कलह, व्यापार में नुकसान का नाम दे कर दबा देते हैं। 

क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट दीपाली बत्रा का कहना है, ‘‘किसी लड़के में स्त्रियोचित गुण होना कोई बीमारी नहीं है, यह एक कुदरती प्रक्रिया है, जिसे आप बदल नहीं सकते। हालांकि पेरेंट्स के लिए इस सचाई को स्वीकार करना बहुत मुश्किल होता है। हालांकि लोग अभी भी इस मुद्दे पर बात करने से कतराते हैं और इसे शरम का विषय ही मानते हैं। यह एक ऐसी चीज है, जिसकी वजह से लोग आत्महत्या तक कर लेते हैं। हमारे पास ऐसे कई मामले आते हैं, जिनमें माता-पिता हमारे साथ हाथ जोड़ कर गिड़गिड़ाते हुए अपने बच्चों का इलाज करने के लिए कहते हैं। उन्हें यह समझाना बहुत मुश्किल होता है कि यह कोई बीमारी नहीं है, जिसका दवाओं से इलाज किया जाए। हम बस उन्हें सही मार्गदर्शन दे सकते हैं। लेकिन घर वालों को बस यही चिंता रहती है कि उनका वंश कैसे आगे बढ़ेगा। पिछले दिनों 19 साल का एक लड़का अपने पिता और दादा जी के साथ मेरे पास आया। वह लड़का होमोसेक्सुअल था। यह बात वह खुद अपने घरवालों से कह नहीं पा रहा था, तो उसने एक दोस्त के माध्यम से घरवालों से यह बात कहलवायी। इसके बाद तो पूरे परिवार में जैसे तहलका ही मच गया। रोना-धोना, बेटे को समझाना, उसके आगे गिड़गिड़ाना, कुछ काम नहीं आया। उसे ठीक करने की दवा क्या है, हमारा वंश कैसे आगे बढ़ेगा, रिश्तेदार क्या कहेंगे, पहले तो ऐसा नहीं होता था, फिर आज के जमाने में यह क्या हो रहा है जैसे तमाम सवाल पेरेंट्स के दिमाग में होते हैं।’’ 

ऐसी स्थिति में माता-पिता को बड़ी समझदारी से काम लेना होगा। बच्चों को डांटने-डपटने और कोसने के बजाय उनकी बात सुनें। हालांकि यह आपके लिए भी किसी शॉक से कम नहीं होगा, पर अपने बच्चों को कुंठाओं से बचाने के लिए आप जितनी जल्दी इसे स्वीकार करें,उतना ही अच्छा है, क्योंकि चाहे कितनी ही कोशिश क्यों ना की जाए, इसे बदला नहीं जा सकता।

मनोचिकित्सक डॉ. ज्योति कपूर का कहना है, ‘‘आमतौर पर बच्चे इस विषय पर अपने घर में बात करने से कतराते हैं। एक तो सेक्स ही ऐसा विषय है, जिस पर बात करना हमारे यहां अच्छा नहीं माना जाता। दूसरे उन्हें शर्मिंदगी भी महसूस होती है कि कहीं परिवार में उन्हें अक्षम और नामर्द ना समझा जाने लगे। इस वजह से वे परिवार और दोस्तों से अलग-थलग रहने लगते हैं। मन में नकारात्मक विचार आने लगते हैं, तनाव उन पर हावी हो जाता है, जिसे दूर करने के लिए नशे के आदी भी हो सकते हैं।’’

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पेरेंट्स को चाहिए कि अपने बच्चे के बर्ताव पर पहले गौर करें, कुछ समय तक चुप रह कर सिर्फ यह देखें कि उसमें क्या शारीरिक बदलाव हो रहे हैं। अगर आप ही उनके साथ डांट-डपट करेंगे, तो वे भी आपसे बात करने से कतराने लगेंगे और कुंठाएं उन पर हावी होने लगेंगी। इसलिए बेहतर है कि बच्चे को किसी मनोचिकित्सक के पास ले जाने से पहले खुद किसी एक्सपर्ट से इस बारे में सलाह लें। आज कई ट्रांसजेंडर, गे और लेस्बियन कपल्स हैं, जो अपने माता-पिता के साथ रह रहे हैं। हालांकि शुरू में इनके परिवार के लिए भी इस बात को स्वीकार करना मुश्किल ही था, लेकिन धीरे-धीरे उनकी भी समझ आ गया कि परिवार से अलग किसी गलत संगत में रहने से अच्छा है कि बच्चा उनके साथ और सुरक्षित रहे। 

वंश बढ़ाने की जिद में आ कर जबर्दस्ती शादी के झंझट में उन्हें फंसाने की कोशिश ना करें। इसका नतीजा जबर्दस्त मानसिक तनाव और रिश्तों में खटास के रूप में भुगतना पड़ सकता है। आप पर तलाक, दहेज, मानसिक प्रताड़ना, धोखाधड़ी और घरेलू हिंसा जैसे कई गंभीर आरोप भी लग सकते हैं। 

परिवार का सपोर्ट जरूरी है

मित्र ट्रस्ट से जुड़ी ट्रांसजेंडर एक्टिविस्ट और आर्टिस्ट रुद्राणी छेत्री का कहना है, ‘‘किसी भी व्यक्ति के जीवन में परिवार की भूमिका सबसे अहम होती है। यही वह जगह है, जहां आप सुरक्षित महसूस करते हैं। मेरे साथ भी यही हुआ। हालांकि परिवार का बहुत सपोर्ट नहीं रहा, लेकिन ऐसा भी नहीं था कि मुझे माता-पिता के सामने अपमान झेलना पड़ा था। अब तो जमाना बहुत तेजी से बदल रहा है। इंटरनेट पर हर विषय से जुड़ी जानकारी सहज उपलब्ध है, काउंसलर्स और मनोवैज्ञानिक हर जगह मौजूद हैं, इसलिए कोई व्यक्ति अगर इन चीजों से गुजरता है, तो उसे भला-बुरा कहने के बजाय माता-पिता को खुद इसके बारे में जानकारी इकट्ठी करनी चाहिए और बच्चों पर किसी तरह का दबाव नहीं डालना चाहिए। मैंने जब सेक्स चेंज अॉपरेशन करवाया, तो वह दौर थोड़ा मुश्किल था। शारीरिक बदलावों के अलावा मानसिक, भावनात्मक और आसपास के माहौल के बदले रवैये को भी झेलना था। डॉक्टर्स का कहना है कि इस समय डिप्रेशन, एंग्जाइटी आदि होना आम बात है, क्योंकि हमारी बॉडी में और हारमोन्स में बदलाव होते हैं। समय-समय पर कुछ टेस्ट करवाने भी जरूरी होते हैं, जो थोड़ा डराने वाला होता है। इसी समय अगर आपका परिवार सपोर्ट कर दे, तो इस दौर से निकलना आसान हो जाता है।’’