Tuesday 29 December 2020 04:23 PM IST : By Nisha Sinha

कैसे पहचानें आपका टीनएजर ड्रग्स के चंगुल में तो नहीं

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आजकल जहां देखो, वहीं ड्रग्स का शोर मचा है और जो नहीं जानते वे भी सब जान चुके हैं। सबको हैरानी है कि अगर यह नशा वाकई जहरीला है, तो युवा इसके सम्मोहन में क्यों है? दुनिया भर को अपनी गुडी-गुडी इमेज से मदहोश करने वाले फिल्मी सितारे ड्रग्स में डूब कर नीम बेहोशी के आलम में रहते हैं, आखिर क्यों?

उम्र केवल 16 साल। नशे की ऐसी लत कि इंस्टिट्यूट ऑफ ह्यूमन बिहेवियर एंड एलाइड साइंसेज, दिल्ली में इलाज के लिए जाना पड़ा। यह किशोर लगातार 3 सालों से कैनाबिस (भांग, गांजा और चरस) लेे रहा था और अब पिछले डेढ़ महीने से वह इससे दूरी बनाने की कोशिश कर रहा है। वॉर्ड में उसका व्यवहार देख कर ऐसा लग रहा था कि वह खुद को बदलना चाहता है और इसके लिए पूरी कोशिश कर रहा है। लेकिन पिछले कुछ दिनों से उसे फिर से नशे की तलब लगने लगी। निगरानी में रहने के कारण ड्रग्स से उसकी दूरी बनी हुई है। लगातार उसकी काउंसलिंग की जाती है। इस किशोर की हिस्ट्री देखी गयी, तो पता चला कि उसके परिवार के सदस्यों को शराब की लत थी। उसकी उम्र और स्थिति को देखते हुए उसे स्पेशलिस्ट की एक टीम की देखरेख में रखा गया। दवाओं के जरिए उसका डिटॉक्सिफिकेशन किया जाता रहा। उसे योग भी कराया गया, ताकि वह खुद पर नियंत्रण रख सके। साथ-साथ काउंसलिंग भी की गयी। लगभग 3 सप्ताह बाद उसे डिस्चार्ज किया गया। उसे यह अहसास हो रहा था कि वह ड्रग्स के गहरे दलदल में धंसा था और कितनी मुश्किल से उसकी जान बची है।

इस रियल लाइफ केस को बताने वाले इंस्टिट्यूट ऑफ ह्यूमन बिहेवियर एंड एलाइड साइंसेज के साइकियाट्रिस्ट डिपार्टमेंट के हेड डॉ. दीपक कुमार के अनुसार, यह सच है कि किशोरों में ड्रग्स की लत बड़ी परेशानी बन कर उभरी है। टीनएजर बच्चों के नशे की तरफ खिंचने के कई कारण होते हैं, जैसे बचपन में किसी तरह का शोषण हुआ हो। परीक्षा में अच्छे नंबर नहीं आए हों। पेेरेंट्स को हमेशा लड़ते देखते हों। किसी तरह की कमतरी की भावना हो, बहुत जल्दी गुस्सा आता हो। कंडक्ट डिस्ऑर्डर, एडीएचडी, एंग्जाइटी से परेशान किशोर और युवा भी इसकी चपेट में आसानी से आ जाते हैं।

डॉ. दीपक कुमार के अनुसार पेरेंट्स ड्रग्स एडिक्शन की लत को पहचान कर उनकी मदद करें-

- ड्रग्स लेने के सही कारणों का पता चलते ही पूरा परिवार एकजुट हो कर उसकी मदद को सामने आए।

- बच्चों से दोस्ताना तरीके से बातचीत करें। उसकी हर गलती को स्वीकारें और प्यार से बात करें। किसी भी कीमत पर ऐसी प्रतिक्रिया ना दें, जिससे वह खीज जाए। उसमें यह उम्मीद जगे कि उसकी गलती को माफी मिल सकती है। पीअर प्रेशर से निकलने में उसकी मदद करें।

- अपनी, किसी पारिवारिक सदस्य की या किसी मित्र की नशे की या दूसरी बुरी आदतों के बारे में उसे बताएं। साथ ही बताएं कि किस तरह से खुद में सकारात्मक बदलाव ला कर बेहतर जीवन जिया जा सकता है। ऐसा करके उसे विश्वास में लें और इलाज की शुरुआत करें।

टारगेट पर कौन और क्यों

नशे पर हुए एक राष्ट्रीय सर्वे के मुताबिक, देश में करीब 73 लाख लोगों को भांग और गांजे की लत है। इसके करीब 11 लाख लती उत्तर प्रदेश और 5 लाख पंजाब से हैं। इस सर्वे का सबसे डरानेवाला हिस्सा यह है कि नशा करने वालों में किशोरों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। आखिर लोग इस नशे को अपना साथी क्यों बना रहे है, जो समय बीतने पर उनकी सेहत, उम्र और चेतना सब सोख लेता है। इसके कई मिथ भी हैं। काउंसलिंग करने वाले साइकोलॉजिस्ट यह मानते हैं कि कम उम्र के बच्चों को यह लगता है कि एक बार ड्रग्स लेने में कोई हर्ज नहीं और वह 1-2 बार ऐसा करने के बाद इस आदत को छोड़ देंगे, पर वे इसकी गिरफ्त में फंस जाते हैं। इस नशे को ले कर एक गलत धारणा यह भी है कि इससे सोचने की प्रक्रिया बेहतर हो जाती है और कॉन्संट्रेशन बढ़ती है। एक्टिंग, राइटिंग, आर्ट जैसे क्रिएटिव फील्ड से जुड़े लोग कामयाबी हासिल करने के लिए ऐसा करते है। इस वजह से युवा भी इस ओर आकर्षित हो रहे हैं।

इस उम्र के बच्चों के मन बहुत नाजुक होते हैं, मोहब्बत में मंजिल नहीं मिलने पर भी वे नशे की इस राह पर चल पड़ते हैं। किशोरों व युवाअों में इसे एक स्टेटस सिंबल की तरह भी देखा जाता है। इस कारण साधारण परिवारों के बच्चे अच्छे और अमीर घरानों के बच्चों से दोस्ती करने के लिए या उनके बीच अपनी जगह बनाने के पहले इस आदत को गले लगा बैठते हैं। शराब और सिगरेट के अलावा इस उम्र के बच्चों में कैनाबिस (भांग, गांजा, चरस), ओपिऑयड्स (अफीम, कोकीन), नींद की गोली (अल्प्राजोलम), सूंघने वाला नशा (ग्लू, थिनर, पेट्रोल) जैसी नशे की आदत पड़ जाती है।

दिल्ली स्थित धर्मशिला नारायणा सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल की काउंसलिंग साइकोलॉजिस्ट डॉ. नेहा दत्त के अनुसार ड्रग्स लेने से धीरे-धीरे इम्युनिटी कमजोर होने लगती है। अंदर ही अंदर शरीर के अंगों को नुकसान पहुंचने लगता है, जो शुरू में बाहरी तौर पर नजर नहीं आते हैं, लेकिन बाद में गंभीर बीमारियों का रूप ले लेते हैं। कई बार ड्रग्स लेने के कारण संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है। युवा अपने साथियों के साथ ड्रग्स लेने के समय एक ही इन्जेक्शन का इस्तेमाल करते हैं। ड्रग्स की वजह से किशोर मानसिक रूप से भी कमजोर हो जाते हैं। इनमें मूड स्विंग्स भी बहुत होते हैं। ये आसानी से अवसाद और तनाव में चले जाते हैं।

भारत में जीवन शैली में होने वाले बदलावों के कारण बड़ी संख्या में युवतियां भी ड्रग्स की चपेट में आयी हैं। ऐसा नहीं है कि केवल संभ्रांत तबकों में यह फैशन की तरह लिया जा रहा है, निचले तबके की महिलाएं भी इसकी गिरफ्त में हैं। 2018 में यूनाइटेड नेशंस ऑफिस ऑन ड्रग्स क्राइम की ओर से करायी गयी एक स्टडी की बात करें, तो महिलाअों में ड्रग एब्यूज को पकड़ पाना आसान नहीं है। इसकी वजह यह भी है कि इनके लिए ट्रीटमेंट की ज्यादा सुविधाएं मौजूद नहीं हैं। पंजाब सरकार की ओर से 31 डी-एडिक्शन सेंटर चलाए जा रहे हैं। इसमें केवल एक ही महिलाअों के लिए है। इसके बाद 2019 मार्च में राज्य सरकार की ओर से डी-एडिक्शन सेंटर्स में वुमन-ओनली वाॅर्ड बनाने का आदेश दिया गया।

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अगर वे प्रेगनेंसी के दौरान ड्रग्स (ओपिएट ड्रग्स) लेती रहती हैं, तो उसके बेबी में निओनेटल अब्सटिनेंस सिंड्रोम होने की पूरी आशंका होती है, क्योंकि यह ड्रग्स मां के प्लेसेंटा से हो कर बेबी के शरीर में जाता है। इस वजह से मां के साथ-साथ बेबी को भी इसकी आदत लगनी शुरू हो जाती है। बेबी बर्थ के बाद उसे यह नहीं मिल पाता, तो उसे परेशानी होने लगती है। बेबी के जन्म के 24 से 48 घंटे के बाद या कभी-कभी 5 से 10 दिन बाद इस सिंड्रोम के लक्षण दिखायी देने लगते हैं। सिंड्रोम के लक्षणों में कंपकंपी, जोर से आवाज निकाल कर रोना, स्लीपिंग प्रॉब्लम, सीजर्स, बहुत पसीना आना, वॉमिटिंग, डायरिया और शरीर के तापमान का कभी कम और कभी ज्यादा होना शामिल है। इतना ही नहीं ड्रग्स की आदत जिन महिलाअों को होती है, उनमें प्री मैच्योर बेबी बर्थ की आशंका भी अधिक रहती है। पेरेंट्स अपने मन से यह धारणा निकाल दें कि ड्रग केवल लड़कों को बर्बाद करने में लगा है, बल्कि यह लड़कियों की लाइफ में भी अपनी जगह बनाता जा रहा है। अगर उन्हें कभी शक होता हो, तो वे बच्चियों की कमरों की तलाशी लें। उन जगहों की भी तलाशी लें, जिसके बारे में आप सोच भी नहीं सकते।

तलाशी कहां-कहां लें

- कमरे की अलार्म क्लॉक को खोल कर चेक करें।

- उनके जूतों के अंदर की तलाशी लें।

- चॉकलेट की पन्नियों में भी लपेट कर रखते हैं।

- वे स्कूटर या कार चलाते हैं, तो उनके वाहनों के हर संभव कोनों में ढूंढ़ें। स्टियरिंग का कवर उतार कर चेक करें। पहियों को भी नजरअंदाज नहीं करें।

- म्यूजिक के शौकीन हैं, तो उनके इंस्ट्रूमेंट की भी तलाशी करें। गेम कन्सोल भी देखें।

- मेकअप किट को अच्छी तरह से खंगालें। खाली लिपस्टिक में या लिप बाम बॉक्स में।

- डिओडरेंट की खाली ट्यूब में भी चेक करें।

- किताबों, पेन पेंसिल व खत्म चुके बॉलपेन में।

- सैनिटरी पैड या टैंपून में भी देखें।

- जूस या दूसरी खाने-पीने की चीजों के कैन में।

- शेविंग किट में। बेल्ट का बकल जरूर देखें।

- होम डेकोर से जुड़ी चीजों में जैसे फोटो फ्रेम के पीछे, गद्दों और तकियों में।

चंगुल से कैसे निकलें

एक्टर सुशांत सिंह की हत्या से जुड़े आंकड़ों के अनुसार पूरे विश्व में गांजे की खपत के मामले में भारत का स्थान 120वां है, वहीं मुंबई का स्थान छठा है। पंजाब के तो युवाअों में बढ़ रहे ड्रग्स के मामले को ले कर फिल्म उड़ता पंजाब बनी थी। एक रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि करीब 75 प्रतिशत भारतीय घरों में एक व्यक्ति ड्रग ले रहा है। अब समय आ गया है कि कानून में सुधार कर दोषी को सजा दी जाए और सोचा जाए कि किस तरह से युवा और किशोर को इससे दूर रखा जाए। बकौल डॉ. दीपक कुमार, अभी भी खुद को इसके चंगुल से निकालने के लिए मेडिकल ट्रीटमेंट लेनेवालों या काउंसलिंग के लिए आनेवालों की संख्या बहुत कम है।

दिल्ली स्थित ऑनक्वेस्ट लेबोरेटरीज लिमिटेड के लैब ऑपरेशंस के मेडिकल डाइरेक्टर डॉ. राजन वर्मा का मानना है कि ड्रग्स के इस्तेमाल से सीजर्स, स्ट्रोक, मेंटल कंफ्यूजन और ब्रेन हैमरेज होता है। यह फेफड़ों को भी नुकसान पहुंचाती है। ऐसे लोगों में फैसला लेने की शक्ति नहीं रह पाती है। सबसे बुरा परिणाम मौत के रूप में सामने आता है। सिंथेटिक ओपिऑयड्स और हेरोइन से मरनेवालों की संख्या में तेजी से इजाफा हुआ है। पिछले 12 महीनों में 2 लाख 12 हजार लोग जिनकी उम्र 12 साल से ऊपर है, ने पहली बार ड्रग का इस्तेमाल किया है। इस तरह की लत में जाने के बाद युवा अपने प्रोफेशन की तरफ ध्यान नहीं देते या उनका ज्यादातर समय यह जानने में लगता है कि ड्रग्स उनको कहां से मिल सकती है। इस तरह की लत में जानेवाले युवा अकेला रहना पसंद करने लगता है। वह खुद को दूसरों से अलग कर लेता है, ताकि वह बिना पकड़ में आए नशा कर सके।

बिहेवियरल थेरैपी और काउंसलिंग की मदद से इस तरह के युवाअों को बचाया जा सकता है। इसके अलावा मेडिकेशन और ड्रग बेस्ड ट्रीटमेंट भी कारगर साबित होता है। इस आदत के शिकार बच्चों के माता-पिता और दोस्त जो भी इनकी मदद करना चाहते हैं, इस बात का ध्यान रखें कि नशे की आदत कई बार आसानी से नहीं छूटती। इसमें लंबा समय लगता है। यह पूरी प्रक्रिया काफी थका देनेवाली हो सकती है, क्योंकि इस तरह की लत केवल शरीर पर नहीं, व्यक्ति पर मनोवैज्ञानिक रूप से भी असर डालती है। इसलिए धीरज के साथ अपनों को नशे के दलदल से बाहर निकलने में मदद करें। परिवार के सदस्यों और उनका प्यार इस समस्या से उबरने में सबसे ज्यादा मदद करता है। जरूरी है कि पेरेंट्स बच्चों को समय दें, उनकी भावनात्मक जरूरतों को समझें और उन्हें परिवार से कभी भी कटने ना दें। याद रखें प्यार से बड़ी कोई दूसरी दवा नहीं होती।