Thursday 09 July 2020 04:34 PM IST : By Nishtha Gandhi

जब बच्चे को होस्टल भेजें

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पेरेंट्स के बिजी होने पर घर में अगर बच्चों को शिक्षा का सही माहौल नहीं मिल पाता, तो उनका कैरिअर चौपट हो सकता है। ऐसे में उन्हें होस्टल भेजना जरूरी हो जाता है। हालांकि बच्चों के लिए यह एक बुरी खबर  से कम नहीं होता। अगर बच्चे छोटे होते हैं, तो उन्हें लगता है कि उन्हें सजा दी जा रही है अौर बड़े बच्चे इमोशनल प्रेशर में अा जाते हैं। हालांकि बाद में वे होस्टल लाइफ के अादी हो जाते हैं अौर वहां रहना अच्छा लगने लगता है।
8 वर्षीय अार्यमन के माता-पिता को जब लगने लगा कि वर्किंग होने के कारण वे ना उस पर ध्यान दे पा रहे हैं अौर ना ही उसके छोटे भाई पर, उस पर यहां पर मेड के भरोसे रहने के कारण वह कुछ गलत अादतें भी सीखने लगा है, तो उन्होंने उसे होस्टल भेजने का फैसला किया। हालांकि उन्होंने पहले लगभग एक साल तक उसे मानसिक रूप से तैयार किया। वह होस्टल चला तो गया, लेकिन कुछ ही दिनों में उसका रोना-धोना शुरू हो गया। अार्यमन की मम्मी ने होस्टल जाने से पहले उससे वादा लिया था कि वे दोनों एक दूसरे को चिट्ठी लिखेंगे। शुरुअात उन्होंने ही की, लेकिन उन्हें हैरानी तब हुई, जब अार्यमन ने चिट्ठी का जवाब भेजा। अाज वह होस्टल में एडजस्ट हो चुका है। 
बिड़ला बालिका विद्यापीठ, पिलानी, राजस्थान की प्रिंसिपल डॉ. एम. कस्तूरी का कहना है, ‘‘बढ़ती उम्र की समस्याएं सुलझाने में होस्टल अहम भूमिका निभाता है। यहां फिक्स्ड रुटीन होता है अौर बच्चे बिजी रहते हैं, इसलिए उनका दिमाग इधर-उधर नहीं भटकता अौर वे ज्यादा फोकस्ड रहते हैं। किशोर मन की कई उलझनें होती हैं, होस्टल में उनकी कई तरह से काउंसलिंग की जाती है, जिसमें उनके शारीरिक अौर भावनात्मक बदलावों के बारे में खुल कर बात की जाती है। बच्चों में जबर्दस्त एनर्जी होती है। उन्हें स्पोर्ट्स, एक्स्ट्रा करिकुलर एक्टिविटीज में बिजी रख कर उनकी एनर्जी को सही दिशा दी जा सकती है। माता-पिता को बच्चों के साथ बातचीत ऐसे करनी चाहिए, ताकि वे उनके साथ अपने मन की बातें खुल कर कह सकें। बच्चों को मॉनिटर करने अौर उन्हें कंट्रोल करने में बहुत फर्क है। उनकी गतिविधियाें पर नजर जरूर रखें, लेकिन उन्हें यह अहसास ना कराएं कि अाप उन्हें कंट्रोल कर रहे हैं। होस्टल में भी बच्चे के साथ टच में रहना जरूरी है।’’

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बच्चों को होस्टल अाप चाहे किसी भी उम्र में भेजें, लेकिन उन्हें वहां एडजस्ट होने में थोड़ा समय तो लगता ही है। अाप भी अगर कुछ बातों का ध्यान रखेंगे, तो बच्चों को होस्टल में जल्दी एडजस्ट होने में मदद मिलेगी-
⇛ बच्चे को होस्टल भेजना उसके लिए जीवन बदलनेवाला अनुभव है। उसे होस्टल भेजने से पहले पास बिठा कर समझाएं कि यह उसकी बेहतरी के लिए ही है। होस्टल में रह कर पढ़ाई के साथ उसकी पर्सनेलिटी भी बेहतर बनेगी।  
⇛ बच्चे को यह जरा भी अहसास ना कराएं कि उसे किसी सजा के तहत अाप होस्टल भेज रहे हैं। अामतौर पेरेंट्स अपनी बात ना मानने पर बच्चों को यह कह डांटते हैं कि अगर उन्होंने उनकी बात नहीं मानी, तो वे उन्हें होस्टल भेज देंगे। यह ठीक नहीं है। इस तरह से बच्चे के दिमाग में होस्टल की नेगेटिव इमेज बनेगी अौर वे कभी भी होस्टल में सेटल नहीं हो पाएंगे।
⇛ बच्चे को होस्टल भेजने से पहले कुछ ऐसे पेरेंट्स से भी बात करें, जिनके बच्चे होस्टल में पढ़ते हों। उनके अनुभवों से भी अापको मदद मिलेगी।  
⇛ अगर अापको लगता है कि बोर्डिंग स्कूल में जाने के नाम से बच्चा नर्वस हो रहा है, तो अाप उसे अपनी जानपहचान के कुछ सफल लोगों से भी मिलवा सकते हैं। उन्हें कुछ मशहूर लोगों के जीवन से जुड़ी बातें भी बताएं।  
⇛ होस्टल में बच्चों के लिए एक फिक्स टाइमटेबल सेट होता है। इसके लिए बच्चों को पहले से बता दें अौर तैयार करें। अामतौर पर अब होस्टल में बच्चों के लिए लॉन्ड्री, रूम क्लीनिंग अादि सुविधाएं दी जाती हैं, लेकिन फिर भी हो सके, तो होस्टल जाने से कुछ दिन पहले से उसे इन कामों की अादत डालें। 
⇛ बच्चों को होस्टल में एडमिशन करा कर छोड़ने से पहले भी अपने साथ ले कर जाएं अौर बोर्डिंग स्कूल, मेस, डॉर्मिटरी अादि दिखाएं, जिससे वहां के माहौल अौर टीचर्स का उसके मन पर एक पॉजिटिव इंप्रेशन पड़ सके। हो सकता है कि वहां का माहौल अौर सुविधाएं बच्चे को इतनी अच्छी लगें कि उसके मन में बोर्डिंग स्कूल जाने की उत्सुकता पैदा हो जाए।
⇛ शुरू-शुरू में घर से दूर होने पर बच्चे सेपरेशन एंग्जाइटी के शिकार हो जाते हैं अौर बहुत ज्यादा होम सिकनेस फील करते हैं। यह बहुत सामान्य बात है। अापको भी घर उनके बिना बहुत खाली लगेगा। लेकिन फिर भी उन्हें बार-बार फोन करके हालचाल ना पूछें। इससे बच्चा हर छोटी बड़ी बात को ले कर अापसे शिकायत करेगा अौर उसमें एंग्जाइटी बढ़ेगी। कई बार इस वजह से बच्चा पेट दर्द, उलटी, घबराहट की भी शिकायत करता है। इन बातों से परेशान ना हों। उसे भी लगातार हिम्मत बंधाते रहें।  
⇛ हो सकता है कि होस्टल जाने के बाद बच्चा हर अापसे शिकायत करे कि खाना अच्छा नहीं है, कमरे की सफाई ठीक से नहीं होती, बाथरूम साफ नहीं है, रूममेट से परेशान है। उसकी सारी बातों को धैर्य के साथ सुनें जरूर, लेकिन हर चीज के लिए होस्टल के वॉर्डन से लड़ने ना बैठ जाएं। कुछ मामलों में अपने बच्चे को भी धीरज रखने के लिए कहें। 
⇛ कुछ बच्चे होस्टल में जा कर अपने में ही सिमट कर रह जाते हैं अौर नए दोस्त नहीं बना पाते। उन्हें शुरू से ही यह समझा कर भेजें कि वे होस्टल में अलग-थलग ना रहें, अगर वे दूसरों के साथ घुलेंगे-मिलेंगे, तो उनकी कई सारी दिक्कतें अासानी से दूर होंगी अौर उन्हें अकेलापन महसूस नहीं होगा।
⇛ यह बात अापको भी समझनी होगी कि बच्चे को होस्टल में घर जैसा माहौल अौर सुविधाएं नहीं मिलेंगी। इसलिए बच्चे से बात करते समय अापका अपना रवैया भी बहुत पॉजिटिव होना चाहिए। जब वह अापको कुछ नेगेटिव बात बताए, तो अाप उसे तूल ना दें। उसे मुश्किल का हल निकालने का पॉजिटिव तरीका बताएं।
⇛ छोटे बच्चे तो रूममेट के साथ फिर भी जल्दी एडजस्ट हो जाते हैं, लेकिन बड़े बच्चों को रूममेट के साथ एडजस्ट होने में दिक्कत होती है। अगर वह रूममेट की अापसे शिकायत करता है, तो उसे भी समझाएं कि वह छोटी-मोटी बातों को इग्नोर करे।