Thursday 08 February 2024 12:30 PM IST : By Nishtha Gandhi

बच्चों को बोर्ड गेम्स का चस्का लगाएं

1828351286

हो सकता है कि आपको यह सुनना अजीब लगे क्योंकि आज के समय में बच्चों के हाथ से मोबाइल छुड़वा कर उन्हें बोर्ड गेम खेलने की आदत डालना बहुत टेढ़ी खीर है। हालांकि हम सब यह बात जानते हैं कि साथ मिल बैठ कर लूडो, कैरम, शतरंज, ताश, स्क्रैबल, मोनोपोली जैसे गेम्स खेलने से बच्चों को बहुत से फायदे मिलते हैं।

फरीदाबाद के मैरिंगो क्यूआरजी हॉस्पिटल की क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ. जया सुकुल के अनुसार, ‘‘पिछले कुछ समय में बच्चों में एडीएचडी डिसऑर्डर के मामले बहुत बढ़े हैं। हाई स्क्रीन टाइम की वजह से बच्चों का दिमाग हाइपर होने लगा है। मेरे पास काउंसलिंग के लिए आने वाले बच्चों में से 70-75 प्रतिशत में यह समस्या देखी जा रही है। यही नहीं, बच्चे अपनी उम्र के मुताबिक सामाजिक व्यवहार करना नहीं सीख पा रहे हैं। सोशल मैच्योरिटी में बच्चे दो-ढाई साल पीछे चल रहे हैं। लगभग सभी बच्चों में एकाग्रता की कमी, लोगों से मिलने-जुलने के नाम पर एंग्जाइटी होने लगती है। स्क्रीन टाइम के बढ़ने से बच्चों का दिमाग हाइपर एक्टिव हो गया है। बच्चों का आईक्यू लेवल भी घट रहा है। इन सारी समस्याओं का मुख्य कारण बच्चों की जरूरत से ज्यादा टेक्नोलॉजी पर निर्भरता है। जिस तरह से बच्चों में एडीएचडी यानी अटेंशन डेफिसिट हाइपर डिसऑर्डर के मामले बढ़ रहे हैं, वह वाकई चिंता का विषय है।’’

इस बात में कोई दो राय नहीं है कि पिछले 2 सालों ने हमारी जिंदगी को 5-10 साल पीछे पटक दिया है। इसका प्रभाव बच्चों पर सबसे बाद में देखने को मिला है, लेकिन यह सिद्ध हो चुका है कि वे भी इससे अछूते नहीं रहे हैं। हर बच्चे के हाथ में वाईफाई से कनेक्टेड मोबाइल कोरोना की ही देन है। इसमें वे पढ़ाई के अलावा भी और बहुत से काम कर रहे हैं। अगर कुछ नहीं कर रहे, तो वह है दोस्तों से मिलना-जुलना, बाहर खेलना, बातचीत करना। एक तरह से घर की रौनक कहलाने वाले बच्चे परिवार से भी कटते जा रहे हैं।

बच्चों की उठापटक, शोरशराबा जिन घरों में गूंजता था, वहां अब खामोशी पसरी रहती है। ऐसा नहीं है कि दो सालों में बच्चे अचानक से बहुत बड़े हो गए हैं, बस अपनी दुनिया में मस्त हो कर घर के कोनों में सिमटे स्क्रीन से चिपक कर रह गए हैं।

जरूरी है खेलना-कूदना

बच्चों के विकास के लिए खेल उतने ही जरूरी हैं, जितना शारीरिक विकास के लिए सही पोषण। डॉ. जया सुकुल के अनुसार जो बच्चे रोजाना थोड़ा समय किसी ना किसी तरह का गेम खेलने में बिताते हैं, उनमें बुढ़ापे में याददाश्त कमजोर होना और याददाश्त में कमी जैसे लक्षण देर से दिखायी देते हैं। लेकिन यह बात समझना जरूरी है कि वे किस तरह के गेम्स खेल रहे हैं। मोबाइल और वर्चुअल गेम्स जहां ब्रेन की स्पीड बढ़ाते हैं, वहीं लूडो, कैरम, शतरंज, मोनोपोली जैसे बोर्ड गेम्स बच्चों के दिमाग की ट्रेनिंग करके मानसिक विकास में सहायता करते हैं। जानिए और क्या फायदे हैं बोर्ड गेम्स के-

- बोर्ड गेम्स स्ट्रेस दूर करने का सबसे बढि़या जरिया हैं। इन्हें खेल कर माइंड फ्रेश होता है और बच्चे-बड़े सभी को बर्नआउट सिंड्रोम से भी छुटकारा मिलता है। यही नहीं, इन गेम्स की खासियत है कि इनसे बच्चे स्ट्रेस लेना और स्ट्रेस काे मैनेज करना भी सीखते हैं।

- रोजाना कुछ देर बोर्ड गेम खेलने से छोटे बच्चों का दिमागी व्यायाम होता है, उनमें तर्क क्षमता, एकाग्रता, धीरज जैसे गुण विकसित होते हैं।
ऐसे बच्चों में बड़े होने पर दूसरों के मुकाबले सोचने-समझने और निर्णय लेने की बेहतर क्षमताएं होती हैं।

- मोबाइल पर गेम खेलते समय आप अकेले होते हैं, जबकि बोर्ड गेम 2-3 लोग मिल कर खेलते हैं। इस दौरान बच्चों में टीम भावना, खेल भावना विकसित होती है। उन्हें यह पता ही नहीं चलता कि कब वे खेल-खेल में समस्याओं से निपटना सीख गए हैं।

- परिवार के लोग साथ बैठ कर जब लूडो, ताश, कैरम जैसे खेल खेलते हैं, तो आपसी बॉन्डिंग मजबूत होती है। फैमिली के साथ क्वॉलिटी टाइम बिताने का यह एक बहाना है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि किशोर होते बच्चों से उनके फ्रेंड्स, रिलेशनशिप या सेक्स जैसे जटिल मुद्दों पर बात करने का यह सबसे अच्छा समय होता है, क्योंकि इस दौरान बच्चे रिलैक्स और पॉजिटिव मूड में होते हैं और घर का माहौल भी अच्छा होता है।

- बच्चे इस तरह के गेम्स से लाइफ स्किल्स भी सीखते हैं। शब्द ज्ञान, भाषा ज्ञान, सामान्य ज्ञान बढ़ाने का इन गेम्स से ज्यादा बेहतरीन जरिया और कोई नहीं। रोजाना गेम्स खेलने से बच्चों का दिमाग ज्यादा सक्रिय बनता है।

- बोर्ड गेम या आउटडोर एक्टिविटी के लिए दो या उससे ज्यादा बच्चों की जरूरत होती है। साथ मिल कर खेलते हुए बच्चे झगड़ते हैं और आपस में समझौता करके दोबारा खेलना शुरू कर देते हैं। जीवन में रिश्ते निभाने के लिए समझौता, आपसी बातचीत जैसे जो अनिवार्य गुण हैं, बचपन से बोर्ड गेम्स के माध्यम से बच्चे सीख जाते हैं।

- वर्चुअल दुनिया में गेम खेलते समय आपका सरोकार मशीनों और कंप्यूटर तक ही सीमित रहता है। जबकि आमने सामने बैठ कर गेम खेलते समय हमें साफ पता चलता है सामने वाला किस तरह की मनोस्थिति से गुजर रहा है। कई बार दूसरे खिलाड़ी की भावनाओं का सम्मान करते हुए जानबूझ कर हारना और अपने से छोटों को पहले चाल चलने देने से बच्चे भावनात्मक रूप से सुदृढ़ बनते हैं और दूसरों की भावनाओं का सम्मान करना भी सीखते हैं।

कैसे डालें खेलने की आदत

- पेरेंट्स को यह समझना होगा कि बच्चे कोई रोबोट या चाबी वाला खिलौना नहीं हैं। वे एक ही बार में आपके कहने भर से मोबाइल छोड़ कर लूडो या कैरम खेलने नहीं बैठ जाएंगे। आजकल छोटे बच्चों को भी ये गेम्स आकर्षित नहीं करते, इसलिए उन्हें समझाने या लेक्चर देने के बजाय खुद ही गेम्स खेलना शुरू करें, ताकि बच्चे आपके साथ इन्वॉल्व हो सकें। एक बार उन्हें गेम खेलने का चस्का लग गया, तो फिर धीरे-धीरे यह उनकी आदत में शुमार हो जाएगा।

इस बात को हमेशा ध्यान रखें कि फैमिली टाइम को पॉजिटिव बनाएं। जब साथ मिल कर गेम्स खेल रहे हों, तो उन्हें डांटना या कोई काम ना करने का ताना ना मारें, वरना बच्चे आपके साथ बैठने से कतराने लगेंगे।

किस गेम से क्या फायदा

सोशल स्किल्स बेहतर बनाने, टीमवर्क सिखाने के अलावा अलग-अलग तरह के बोर्ड गेम्स बच्चों को कई फायदे देते हैं, जैसे -

लूडोः गिनती गिनता, दिमागी व्यायाम

कैरमः आंखों और हाथों की मूवमेंट का तालमेल और संतुलन विकसित करना

सांप सीढ़ीः बार-बार नीचे गिरना और फिर उठ कर आगे बढ़ना

मोनोपोली/बिजनेसः पैसों का हिसाब-किताब रखना, बिजनेस के गुर सिखाना

स्क्रैबलः भाषा और शब्द ज्ञान बढ़ाना

शतरंज/चाइनीज चेकर्सः दिमागी व्यायाम करना, स्ट्रैटेजी बनाना

जेंगाः संतुलन और एकाग्रता बढ़ाना

स्कॉटलैंड यार्डः बॉडी लैंग्वेज को समझना, टीम भावना विकसित करना।