Thursday 24 September 2020 09:00 PM IST : By Nishtha Gandhi

मॉडर्न पेरेंट्स की मदद के लिए हाजिर है सोशल मीडिया

सोशल मीडिया किस तेजी से लोगों के जीवन में पैठ बनाता जा रहा है, इसका उदाहरण है इंटरनेट पर पेरेंटिंग से जुड़े ब्लॉग्स की लोकप्रियता। क्या वाकई अब यह परिवार से बढ़ कर हो गया है?

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सोशल मीडिया अौर नेटवर्किंग के इस जमाने में जब लोगों के घर में यूट्यूब देख कर खाना बन रहा है, बिजली की चीजों की मरम्मत की जा रही है, अॉनलाइन हेल्थ सलाह ली जा रही है, तो ऐसे में बच्चों का पालन-पोषण करनेवाले पेरेंट्स भला कैसे पीछे रह सकते हैं। घर में बड़े-बुजुर्गों की जगह अब सोशल मीडिया ने ले ली है। गूगल पर अाप सिर्फ चाइल्ड केअर, पेरेंटिंग, प्रेगनेंसी, मदरहुड जैसे शब्द टाइप करेंगे, तो इंटरनेट पर पेरेंटिंग से जुड़े ब्लॉग्स, ग्रुप की लंबी फेहरिस्ट अापके सामने खुल जाएगी। गूगल पर उपलब्ध अांकड़ों को सच मानें, तो अाज 60 प्रतिशत परिवार एकल परिवार हैं अौर हर साल भारत में 2 करोड़ 90 लाख बच्चे पैदा हो रहे हैं। अगर महिलाअों को अपने बच्चों के लिए कुछ चीज खरीदनी होती है, तो वे 3-4 घंटे तक इंटरनेट पर उससे जुड़ी जानकारी सर्च करते हैं। 70 प्रतिशत मांएं अॉनलाइन प्रोडक्ट्स की जानकारी सर्च कर रही हैं।
दिल्ली की निशा बतरा 2 बच्चों की मां हैं। बेटी 8 साल की अौर बेटा 5 साल का। पति-पत्नी दोनों कामकाजी हैं, जिस कारण वे बच्चों को कम समय दे पाते हैं। निशा का कहना है, ‘‘काम में व्यस्तता के कारण बच्चों को समय ना दे पाना अखरता है, फिर कई बार यह समझ नहीं अाता कि बच्चों को काबू कैसे करें। ऐसी स्थिति में पेरेंटिंग से जुड़े ब्लॉग्स बहुत मददगार होते हैं। मैं पेरेंटिंग से जुड़े ब्लॉग्स अौर यूट्यूब वीडियो देखती हूं। मेरे फेवरेट स्पीकर्स में परीक्षित जोबनपुत्रा का नाम शुमार है। उनके दिए टिप्स को मैं फॉलो करती हूं, जिनसे बच्चों को हैंडल करने में मदद मिलती है। पेरेंटिंग ब्लॉग्स पर जब अाप अपने जैसे दूसरे पेरेंट्स के अनुभव पढ़ते हैं, तो पता चलता है कि दूसरे पेरेंट्स भी लगभग उन्हीं स्थितियों से गुजर रहे हैं, जिनसे कि हम। इससे हमारा भी तनाव दूर होता है अौर हम रिलैक्स होते हैं। मैं तो खाली समय में मोबाइल पर ही ऐसे ब्लॉग्स अौर वीडियो देखती हूं, कई बार घर पर अपने हसबैंड को भी दिखाती हूं।’’ं
इंटरनेट पर अाज हर मुद्दे से जुड़ी सैकड़ों वेबसाइट्स, टि्वटर हैंडल, इंस्टाग्राम अौर फेसबुक कम्यूनिटीज हैं, जिन्हें लाखों लोग सर्च करते हैं। एक पेरेंटिंग ब्लॉग टाइम्स अॉफ अम्मा की फाउंडर श्वेता गणेश कुमार का कहना है, ‘‘पेरेंटिंग ब्लॉग पर अाज युवा माता-पिता अपने कई तरह के अनुभव शेअर कर रहे हैं। खासकर से वे जो अकेले या विदेशों में रहते हैं। इनके पास चूंकि परिवार में कोई सपोर्ट सिस्टम नहीं होता, इसलिए वे वर्चुअल दुनिया की तरफ भागते हैं। यहां वे ब्रेस्टफीडिंग, सिंगल पेरेंट्स की दिक्कतें, स्पेशल बच्चों की देखभाल, नजदीकी पार्क या प्लेग्राउंड की जानकारी, एक्टिविटीज के साथ-साथ पेरेंट्स के साथ मॉम एंड बेबी कॉफी मीट अप्स, चाइल्ड बर्थ के बाद अपने बिजनेस या दोबारा नौकरी की शुरुअात जैसे तमाम मुद्दों पर बातचीत करते हैं। टाइम्स अॉफ अम्मा पर 170 के करीब महिलाअों ने पेरेंटिंग से जुड़े अपने अनुभवों को लिख कर साझा किया है।’’
कहते हैं अावश्यकता अााविष्कार की जननी है। श्वेता का ब्लॉग टाइम्स अॉफ अम्मा भी ऐसे ही शुरू हुअा था। अपनी बेटी के जन्म के समय वे विदेश में थीं। परिवार साथ ना होने के कारण वे अकेलापन महसूस करती थीं अौर यह समझ नहीं पाती थीं कि 5 महीने की बच्ची के लालन-पालन के दौरान पेश अानेवाली छोटी-मोटी मुश्किलें किससे साझा करें। अाज इस ब्लॉग के इंस्टाग्राम अौर फेसबुक पेज पर हजारों फॉलोअर्स हैं।
किड्सस्टॉपप्रेस की फाउंडर मानसी जावेरी की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। मार्केटिंग फील्ड में अच्छे-खासे कैरिअर को छोड़ कर अाज वे फुलटाइम ब्लॉगर बन चुकी हैं। हालांकि जब वे नौकरी कर रही थीं, तो सोचती थीं कि उनकी तरह ही कई हजारों महिलाएं होंगी, जो काम के साथ घर अौर बच्चों की जिम्मेदारियां पूरी करने की मशक्कत में फंसी होंगी। इस ब्लॉग के 10 लाख से ज्यादा फॉलोअर्स हैं अौर यूट्यूब वीडियोज देखनेवालों की संख्या 20 लाख से ज्यादा है।
मानसी का कहना है, ‘‘मैं वर्किंग मदर्स के लिए पूरी दुनिया से जुड़ने के लिए एक विंडो खोलना चाहती थी, जहां पेरेंट्स एक-दूसरे से जुड़ कर अपने डर, समस्याएं अौर खुशियां बांट सकें। इस ब्लॉग पर कुछ एक्सपर्ट्स जैसे डॉक्टर्स, बाल मनोविज्ञानी अादि भी हमने जोड़े हैं, जो समय-समय पर पेरेंट्स को उपयोगी सलाह देते रहते हैं। अामतौर पर ब्लॉग्स पर पेरेंट्स हर तरह के सवाल पूछते हैं, जैसे वीकेंड पर बच्चों को कहां ले जाएं, घर में खाली बैठे बच्चों को बिजी कैसे करें अादि,  लेकिन बच्चों को खाने में क्या दें अौर कैसे उन्हें सब्जियां खिलाएं सबसे बड़ा सवाल है, खासकर वर्किंग महिलाअों की यह सबसे बड़ी समस्या है। इसके अलावा बच्चों के लिए स्कूल का चुनाव, कौन से प्रोडक्ट्स खरीदें जैसे सवाल भी माता-पिता पूछते हैं।’’
गूगल द्वारा ही कराए गए एक सर्वे में पाया गया कि इन ब्लॉग्स पर सक्रिय रहनेवालों में 23-45 उम्र की महिलाअों की संख्या ही ज्यादा है। श्वेता गणेश का कहना है कि दादी-नानी की उम्र की कुछ महिलाएं भी हमारे ब्लॉग पर सक्रिय हैं। शायद वे अपने पोते-पोतियों के लिए अपडेटेड रहना चाहती हैं। वहीं मानसी ने अपने ब्लॉग पर सेलेब्रिटीज अौर न्यूटीशनिस्ट अौर एक्सपर्ट्स की पोस्ट पर लोगों के सबसे ज्यादा लाइक्स देखे हैं।
मेघा 5 साल की बच्ची की मां है। हालांकि वह जॉइंट फैमिली में रहती है, लेकिन फिर भी प्रेगनेंसी के समय से ले कर अभी तक वह बेबीसेंटर वेबसाइट लगातार चेक करती है। उसका कहना है, ‘‘चूंकि अब स्मार्टफोन से अाप सारा दिन अॉनलाइन रह सकते हैं, इसलिए मैंने भी प्रेगनेंसी के दौरान अपनी डिलीवरी की डेट पता करने के लिए यह वेबसाइट खोली। फिर कई अौर चीजों के बारे में इस साइट से जानकारी लेती रहती थी। यहां तक कि बेटी के जन्म के बाद भी फीडिंग, नैपी रैशेज जैसे मुद्दों पर मैं इस ब्लॉग पर एक्टिव रहती थी। मौसम बदलने पर मेरी बेटी को छाती में कफ जमा होने पर इसी वेबसाइट को देख कर मैंने घर में तेल बनाया, जिससे मेरी बेटी को काफी राहत मिली। इसी तरह पहली बार बच्चे को क्या खिलाया जाए, बच्चों के माइलस्टोंस जैसे मुद्दों पर मैं इस ब्लॉग से सलाह लेती रही हूं।’’
मानसी जावेरी का कहना है, ‘‘अाज एक यूजर घंटों पेरेंटिंग ब्लॉग्स पर बिताता है। मॉडर्न मांएं अपडेटेड रहने के लिए वेबसाइट्स पर यकीन कर रही हैं। उन्हें इस साइट से जोड़े रखने के लिए हम बेस्ट किड्स प्रोडक्ट अवार्ड, सब्सक्राइब करने पर बच्चों के लिए शॉपिंग, डिनर अौर मनोरंजन पर डिस्काउंट की सुविधा उपलब्ध करवाते हैं। केएसपी रेडियो भी अब भारत के पहले डिजिटल रेडियो के रूप में शुरू हो चुका है। यहां पर बच्चों के लिए कहानियां अौर जानकारियों का खजाना है। इस तरह से बच्चे स्क्रीन को देखने के बजाय सुन कर समय बिता सकते हैं। इससे उनकी अांखों पर जोर नहीं पड़ता, बल्कि एकाग्रता अौर धैर्य का विकास होता है।’’
ना सिर्फ पेरेंटिंग से जुड़े मुद्दे, बल्कि अपनी निजी जिंदगी भी लोग साझा करने लगे हैं। रिलेशनशिप में अानेवाले उतार-चढ़ाव, पारिवारिक मुद्दों, लो सेल्फ एस्टीम, डिप्रेशन सभी पर अौरतें अपनाऐ दिल खोल कर रखती हैं अौर दिल का बोझ हल्का करती हैं। श्वेता गणेश का कहना है, ‘‘हालांकि हम यह तो नहीं कह सकते कि हमारे ब्लॉग्स किसी ट्रेंड काउंसलर की जगह ले सकते हैं। हां, इतना जरूर है कि यह वह जगह है, जहां पर महिलाएं अपनी इमेज खराब होने की परवाह किए बिना अपने दिल का बोझ हल्का कर सकती हैं। उनके अनुभवाें से जहां दूसरे सीख लेते हैं, वहीं दूसरों के पोस्ट से उन्हें उन परिस्थितियों से लड़ने का हौसला भी मिलता है। कई महिलाअों ने अपने साथ बचपन में किसी रिश्तेदार द्वारा किए गए यौन शोषण के किस्से साझा किए, तो कइयों ने घरेलू हिंसा की बातें बतायीं। एक महिला, जिसे सुनायी कम देता था, उसकी पोस्ट भी बड़ी चर्चा में रही। उसका बच्चा सेरेब्रल पाल्सी से पीड़ित था। उसने बताया कि कैसे उसने ना सिर्फ अपने बच्चे के उपचार, बल्कि अपने ट्रीटमेंट के दौरान भी हिम्मत नहीं हारी। एेसे किस्से पढ़ कर जाहिर तौर पर बाकी महिलाअों को भी हिम्मत मिलती है, साथ ही अगर कोई इनकी मदद के लिए अागे अाता है, तो फिर वह सोने पर सुहागा ही है।’’
कहना ना होगा कि इंटरनेट के इस युग में ये पेरेंटिंग वेबसाइट्स बड़ी तेजी से लोगों का भरोसा हासिल करती जा रही हैं। हालांकि परिवार की जगह कोई नहीं ले सकता, यह ध्यान रखना भी जरूरी है।