Saturday 28 November 2020 03:01 PM IST : By Meena Pandey

ऑनलाइन क्लासेज और बच्चों की सेहत

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ऑनलाइन क्लासेज शुरू होने पर पेरेंट्स ने सुकून की सांस ली थी। बच्चों की पढ़ाई नहीं हो पाने की चिंता खत्म हुई, लेकिन नयी परेशानियां सामने आने लगीं। बच्चों का ज्यादातर समय लैपटॉप, मोबाइल, आईपैड और कंप्यूटर स्क्रीन के सामने बैठे हुए ही गुजर रहा है। उनका स्क्रीन टाइम बढ़ गया है। अब माता-पिता दुविधा में हैं। बच्चे रह-रह कर आंख, कान और कंधों में दर्द रहने की शिकायत तो कर ही रहे हैं, उनमें बिहेवियर से जुड़ी प्रॉब्लम्स भी नजर आने लगी हैं। वे गुस्सैल होने के साथ उदास रहने लगे हैं। ऑनलाइन रहने का उनकी शारीरिक और मानसिक सेहत पर असर पड़ रहा है।

हालांकि बच्चों का टाइम टेबल स्कूल की तरह बनाया गया है। उनकी ऑनलाइन क्लासेज सुबह साढ़े आठ से दोपहर 1-2 बजे या सुबह 9 से शाम 4 बजे तक चलती हैं। एक क्लास 40-45 मिनट की होती है। हर क्लास के बाद 15 मिनट का ब्रेक भी मिलता है। स्कूल्स वॉट्सएप और दूसरे एप्स के जरिए ऑनलाइन क्लासेज चला रहे हैं। टीचर्स प्रोजेक्ट्स दे रहे हैं। बच्चों को टेस्ट पेपर और असाइनमेंट्स भी दिए जा रहे हैं। ऑनलाइन रहनेवाले बच्चों को पेरेंट्स की खास देखभाल ही बचा सकती है।

फिजिकल हेल्थ पर असर

आई केअरः दिल्ली की आई स्पेशलिस्ट डॉ. शोभा दुग्गल के पास लगभग रोज 10-12 बच्चे आंखों में दर्द, लाली, सिर दर्द और धुंधला दिखने की परेशानी ले कर आ रहे हैं। ये वे बच्चे हैं, जो ज्यादातर मोबाइल फोन के जरिए पढ़ाई कर रहे हैं। इसकी वजह मोबाइल की स्क्रीन का छोटा होना है, जिससे आंखों पर जोर पड़ता है। बच्चे को 3 घंटे से ज्यादा और लगातार स्क्रीन पर बिलकुल नहीं रहना चाहिए। पढ़ाई के 20-25 मिनट के बीच 10 मिनट का गैप होना जरूरी है। इस ब्रेक में वह आंखों पर ठंडे पानी के छींटे मारे, मुंह धोए। आंखें रिलैक्स होंगी। लैपटॉप, डेस्कटॉप के जरिए ऑनलाइन क्लासेज से स्टडी करनेवाले बच्चों की आंखों पर उतना ज्यादा असर नहीं होता है। छोटी क्लास के बच्चों को ऑनलाइन क्लासेज के लिए मोबाइल नहीं देना चाहिए। मोबाइल और कंप्यूटर से निकलनेवाली रोशनी से नजर कमजोर होने के साथ धुंधला दिखने लगता है। इसलिए आंखों और सिर में दर्द रहने की शिकायत करनेवाले बच्चों की आंख की जांच करा लेना अच्छा रहेगा। अगर आंखों में समस्या होगी, तो इलाज हो जाएगा।

वैसे 16 साल से ज्यादा उम्र के बच्चे मोबाइल से पढ़ाई कर सकते हैं। अगर मोबाइल की स्क्रीन बड़ी हो, तो अच्छा रहता है। स्क्रीन की ब्राइटनेस से आंखों पर ज्यादा जोर पड़ता है। लाइट कंट्रोल होगी, तो आंखों पर असर नहीं होगा। जहां बैठ कर पढ़ाई कर रहे हैं, वहां भी लाइट ठीकठाक होनी चाहिए। मोबाइल में ब्लू स्क्रीन का उपयोग करना ठीक रहेगा। बच्चों को बहुत करीब से नजर गड़ा कर मोबाइल देखने से रोकें। कम से कम 30-35 सेंटीमीटर दूर रख कर मोबाइल देखें। कंप्यूटर या लैपटॉप से 2 मीटर की दूरी रखें। मानव संसाधन मंत्रालय द्वारा जारी किए गए निर्देशों के अनुसार प्री-प्राइमरी के बच्चों के लिए रोजाना 30 मिनट और इससे बड़े बच्चों के लिए 30-45 मिनट के अधिकतम 4 सेशन की समय सीमा तय की गयी है। इन गाइडलाइंस का स्कूलों को पालन करना होगा।

जिन बच्चों का स्क्रीन टाइम ज्यादा है, वे एंटी ग्लेअर चश्मे का इस्तेमाल करें, लेकिन यह बिलकुल भी ना सोचें कि इसे लगा कर घंटों स्क्रीन के सामने गुजार सकते हैं। ये लिमिटेड स्क्रीन टाइम के साथ ही सुरक्षा देते हैं।

इयर केअरः ईएनटी विशेषज्ञ डॉ. ललित नारंग का कहना है कि हेडफोन या लीड लगा कर क्लास अटैंड करने का असर कानों की सुनायी देने की क्षमता पर पड़ रहा है। हेडफोन, ब्लूटूथ डिवाइस बच्चों को इस्तेमाल ना करने दें। उसकी आवाज कम ही रखें। एक्सपर्ट्स का मानना है कि अगर बच्चे स्पीकर पर फोन या कंप्यूटर क्लास लेते हैं, तो असर नहीं पड़ता। इसके विपरीत कानों में लीड लगा कर क्लास अटैंड करने से उनके सुनने की क्षमता कम हो सकती है। ज्यादा तेज आवाज लगातार कानों में गूंजने से कान के परदे कमजोर पड़ने लगते हैं।

कंधों में दर्दः ऑनलाइन क्लास में सुबह 9 से शाम 5 बजे तक लैपटॉप के सामने बैठे रहने से बच्चे पीठ, गरदन और कंधे में दर्द की शिकायत करने लगे हैं।

- दिनभर माउस पर हाथ रहने से कलाई में दर्द की शिकायत भी बच्चे कर रहे हैं। कलाई घंटों एक ही पोजिशन में रहती है। लैवेंडर ऑइल से कंधे व पीठ की हल्की मालिश करें।

- ऑनलाइन क्लासेज के स्ट्रेस की वजह से भी टेंशन की शिकायत हो जाती है। अगर ज्यादा देर तक या गलत पोस्चर में बैठने की वजह से बच्चे को कंधे में दर्द महसूस हो, तो कुछ देर बेड पर आराम कराएं। नहाने के पानी को हल्का गरम करके इसमें 2 चम्मच सेंधा नमक डाल कर बच्चों को उससे नहाने को कहें। मांसपेशियों को आराम मिलेगा।

मनोवैज्ञानिक फायदे-नुकसान

सर गंगाराम हॉस्पिटल में सीनियर एडोलेसेंट पीडियाट्रिशियन डॉ. लतिका ऑनलाइन क्लासेज से बच्चों की फिजिकल और साइकोलॉजिकल हेल्थ पर पड़नेवाले प्रभावों पर कहती हैं कि जिन स्कूल गोइंग बच्चों की उम्र 8-10 साल से कम है, वे स्कूल में पढ़ाई से ज्यादा डिसिप्लिन में रहना, दोस्ती करना, शेअरिंग, गेम्स से यूनिटी के साथ रहना सीखते हैं। वहीं से उनको बिहेवियर की ट्रेनिंग मिलती है। घर पर वे स्कूल की गतिविधियों को बहुत मिस कर रहे हैं। ऑनलाइन क्लासेज शुरू होने से उनका रुटीन फिर से ठीक हो गया है। ऑनलाइन क्लासेज में जब 4-6 साल के बच्चे अपने पेरेंट्स के साथ बैठते हैं और टीचर से डिस्कस करते हैं, तो उतनी देर उनको लगता है कि वे घर से बाहर हैं, इसलिए रिलैक्स होते हैं। 12-15 साल की उम्र के बच्चों के लिए दोस्तों से बढ़ कर कोई नहीं, वैसे भी इस उम्र में वे पेरेंट्स से दूर होने लगते हैं, उनका अपना पीअर ग्रुप बन जाता है। वे पढ़ाई के बाद दोस्तों से रूबरू होते हैं, जिससे उनका मीडिया टाइम बढ़ रहा है।

- इन क्लासेज से नुकसान यह है कि बच्चों का ईटिंग पैटर्न बिगड़ रहा है, क्योंकि उठते ही वे क्लास अटैंड करते हैं, उसके बाद ब्रेकफास्ट। अगर पेरेंट्स भी वर्क फ्रॉम होम कर रहे हैं, तो उनके पास बच्चों के लिए टाइम नहीं है। 16-19 साल के स्टूडेंट्स काफी एंग्जाइटी में हैं। मसलन उनकी एजुकेशन और कैरिअर क्या होगा? वे कॉम्पिटीटिव एग्जाम्स में कैसे पार्टिसिपेट करेंंगे, उनके रिजल्ट देर से आए हैं, कैरिअर काउंसलिंग भी वे लोग नहीं ले पाए हैं, इसलिए गफलत में हैं। एडमिशन मिलेगा या नहीं इस वजह से बच्चे क्रोनिक स्ट्रेस में हैं, जिसका असर उनके बॉडी पार्ट्स पर पड़ रहा है।

- कुछ स्टडीज के अनुसार जो बच्चे ज्यादा समय तक स्क्रीन पर रहते हैं, तो उनमें जिज्ञासा में कमी, गुस्सा, अस्थिरता, ध्यान ना लगने व दोस्त ना होने की समस्या बढ़ती है। पेरेंट्स ख्याल रखें कि बच्चों को उदासी की समस्या कम या ज्यादा नींद की वजह से तो नहीं हो रही है। उनके जागने-सोने का टाइम टेबल बनाएं।

- पेरेंट्स का अपने बच्चों को समय देना बहुत जरूरी हो गया है। बच्चों को ढांढ़स बंधाएं कि स्कूल जरूर खुलेंगे। पेरेंट्स गार्डनिंग करते समय उनकी मदद लें, उनके साथ योग और एक्सरसाइज करें। लूडो खेलें। वे रिलैक्स होंगे। उनको पेंटिंग, बेकिंग में इंटरेस्ट आ रहा है, तो उनका साथ दें। उनको रचनात्मक काम में लगाएं, वे रिलैक्स रहेंगे।

- ऑनलाइन क्लासेज ने बच्चों का एक रुटीन बना दिया, जो मानसिक सेहत के लिए बहुत जरूरी व अच्छा है। बच्चों का समय स्कूल ना खुलने से बर्बाद नहीं हो रहा है। एक्सपर्ट का मानना है कि जब बच्चे पढ़ाई करने बैठें, तो मेज-कुरसी पर बैठ कर पढ़ें। बच्चे के बैठने का पोस्चर ठीक हो, स्क्रीन और बच्चे की आंखों का लेवल बराबर रहे। उनका सिर व पीठ सीधे रहें, जो उसकी सेहत के लिए जरूरी है।