Thursday 24 September 2020 09:02 PM IST : By Nishtha Gandhi

क्या अापका बच्चा भी करता है स्पेलिंग मिस्टेक

स्पेलिंग्स याद करने में बच्चा गलतियां कर रहा है, तो उस पर गुस्सा होने के बजाय उसकी समस्या को समझें अौर कुछ अासान तरीकों की मदद से उसे स्पेलिंग याद कराएं।

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छोटे बच्चे अकसर स्पेलिंग याद करने में गलतियां कर जाते हैं। जब वे लिखना शुरू करते हैं, तो अकसर एक जैसे दिखनेवाले अक्षर लिखने में कंफ्यूज हो जाते हैं, जैसे अंग्रेजी के b, d, i, j, m, n जैसे एल्फाबेट्स वहीं हिंदी के ज, ज्ञ, च, ज, प, ध, घ जैसे अक्षरों में बच्चों को यह पता नहीं चल पाता कि उन्हें पेंसिल को दायीं अोर गोल मोड़ना है या बायीं अोर। ये अाम गलतियां हैं, जो सब बच्चे करते हैं, लेकिन रोज अभ्यास करने से ये गलतियां भी दूर हो जाती हैं। कुछ बच्चों को इसे सुधारने में ज्यादा समय लगता है, तो कुछ को कम। जैसे-जैसे बच्चे बड़े होते जाते हैं, वे दो, तीन, चार अक्षरों से बननेवाले शब्द सीखते जाते हैं। कुछ अाम शब्दों को छोड़ दें, तो लगभग बाकी सभी शब्दों की स्पेलिंग बच्चों के मन में डर ही पैदा करती है। मनोविज्ञानियों की मानें, तो स्पेलिंग याद करने, रीडिंग करने अौर क्लास में फोकस करने की यह दिक्कत बच्चों में डिस्लेक्सिया की अोर भी इशारा करती है। यह एक तरह की लर्निंग डिसएबिलिटी है, जो अापके दिमाग के उन हिस्सों का विकास ना होने के कारण होती है, जो देखने-सुनने में हमारी मदद करता है। पारस हॉस्पिटल, गुड़गांव में वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. ज्योति कपूर का कहना है, ‘‘डिस्लेक्सिया को सामान्य भाषा में रीडिंग डिस्अॉर्डर भी कहा जाता है। चूंकि इस डिस्अॉर्डर में व्यक्ति अक्षरों की पहचान नहीं कर पाता है, इसलिए उसे पढ़ने अौर लिखने में दिक्कत अाती है। गौर करें कि यह कमी किसी भी तरह की शारीरिक अौर मानसिक कमी की अोर इशारा नहीं करती है। कई केसेज में तो माता-पिता इसे समझ नहीं पाते अौर पढ़ाई की अाम कमजोरी की तरह लेते हैं। उन्हें लगता है कि बच्चे बहाना बना रहे हैं। डांट के डर से बच्चे अपनी यह समस्या कह नहीं पाते, इसलिए वे पढ़ाई अौर स्कूल जाने से कन्नी काटना शुरू कर देते हैं। माता-पिता के जिद करने पर पेट दर्द, सिर दर्द, उल्टी, भूख ना लगना, बिस्तर गीला करना, सांस फूलना जैसे लक्षण भी इन बच्चों में विकसित हो जाते हैं।
‘‘किसी तरह से अगर उन्हें स्कूल भी भेज दिया जाए, तो स्कूल जाने पर वे क्लास में बुक रीडिंग के लिए खड़ा किए जाने पर चुप रह जाते हैं। ब्लैकबोर्ड पर लिखने से बचते हैं, कुछ बच्चे तो क्लास में अपनी कॉपी-किताबें ही नहीं खोलते। इसकी वजह से वे टीचर अौर पेरेंट्स की भी डांट खाते हैं। इस सब स्थितियों के बीच फंसा बच्चा अपनी उलझनें अौर डर किसी से कह नहीं पाता अौर अंदर ही अंदर घुटते हुए खामोश हो जाता है।’’
दरअसल, हमारे देश में किसी भी तरह की दिमागी समस्या को सीधे तौर पर पागलपन से जोड़ दिया जाता है। बच्चे को कोई स्लो कह दे, तो हम अपनी बेइज्जती समझने लगते हैं। जबकि डिस्लेक्सिया जैसी कुछ समस्याएं किसी एक्सपर्ट की देखरेख अौर जरा सा ध्यान देने से काफी हद तक ठीक हो सकती हैं। जितनी जल्दी इस समस्या की पहचान अाप कर लेंगे, उतना ही बच्चे के लिए फायदेमंद होगा। डॉ. ज्योति का कहना है कि नर्सरी टीचर्स को इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि उनकी क्लास के किस बच्चे को अक्षरों की पहचान करने में ज्यादा परेशानी हो रही है। अगर लिखने में उनकी गलतियों में एक पैटर्न दिखायी देता है, तो उसके अाधार पर किसी एक्सपर्ट की मदद से डिस्लेक्सिया के बाकी लक्षणों की उन बच्चों में पहचान की जा सकती है।
यह भी जरूरी नहीं कि हर वह बच्चा, जिसे स्पेलिंग याद करने या मिलते-जुलते अक्षर लिखने में दिक्कत हो रही हो या वह क्लास में एकाग्र ना रह पाता हो, तो वह डिस्लेक्सिया से पीडि़त है। पेरेंट्स को भी यह समझना होगा कि हर बच्चा क्लास का टॉपर या कुशाग्र बुद्धि नहीं हो सकता। कुछ बच्चे पढ़ाई में सामान्य भी होते हैं। बच्चों को स्पेलिंग याद करवाने के लिए कुछ टिप्स अाजमाएं, शायद अापको मदद मिले-

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⇛ छोटे बच्चों के लिए तरह-तरह की किताबें अाती हैं, जिनमें कलरफुल चित्रों की मदद से बड़े साइज में कुछ शब्द लिखे होते हैं। बच्चे के साथ बैठ जाएं अौर हर अक्षर पर उंगली रख कर उसे पढ़ाएं। इस तरह से उसके दिमाग में उन अक्षरों का चित्र अंकित हो जाएगा।
⇛ वे अक्षर, जिन्हें लिखने में बच्चों को बार-बार दिक्कत अा रही हो, उन्हें सिखाने के लिए बच्चे को वैसी अाकृति उंगली से हवा में बनाने को कहें। इस तरह से उसके दिमाग में यह बात अच्छी तरह से बैठ जाएगी कि फलां अक्षर लिखने के लिए हाथ किस दिशा में घुमाना है।
⇛ बच्चे रंगों के माध्यम से जो अाकृतियां देखते हैं, वे उनके दिमाग में अंकित हो जाती हैं। अाजकल बाजार में कर्सिव राइटिंग की कई तरह की बुक्स मिलती हैं, जिनमें बड़े-बड़े साइज में एल्फाबेट लिखा होता है। क्रेयाॅन्स से उनमें रंग भरने से बच्चे को उसकी शेप समझ अा जाएगी।
⇛ अब कई स्कूलों में बच्चों को फोनेटिक साउंड्स सिखायी जाने लगी हैं। इनमें अंग्रेजी एल्फाबेट्स को उनके उच्चारण के हिसाब से ही बोला जाता है। जैसे टी को ट, सी को क, बी को ब। इस तरह से बच्चा साउंड के हिसाब से स्पेलिंग्स अासानी से बना सकता है।
⇛ बच्चे के दिमाग में कोई स्पेलिंग नहीं बैठ पा रही है, तो ‘स्टेअर मैथड’ एक अच्छा तरीका है। जैसे अाप एक-एक करके सीढ़ी चढ़ते हैं, वैसे ही एक-एक करके एल्फाबेट जोड़ती जाएं। तीन-चार बार के अभ्यास से बच्चे के दिमाग में एक-एक अक्षर जुड़ता है।
⇛ स्पेलिंग ट्रेन बनाने से बच्चों के दिमाग में स्पेलिंग बैठ जाती हैं। एक कागज पर बच्चाें से स्पेलिंग लिखवाएं। फिर उसके अाखिरी एल्फाबेट से शुरू होनेवाला शब्द लिखने को कहें। इस तरह से बच्चों का शब्द ज्ञान भी बढ़ता है।
⇛ जब अाप बच्चे को कोई शब्द कॉपी में 3-4 बार लिखने को कहते हैं, तो उसे वह बोरिंग लगता है। इसे दूर करने के लिए कॉपी में तीन कॉलम बना दें। पहले कॉलम में बिंदुअों से अक्षर या स्पेलिंग लिख दें, दूसरा अौर तीसरा कॉलम खाली छोड़ दें। अब बच्चे से कहें कि वह बिंदु मिला कर लिखे, उसे पढ़े अौर दूसरे कॉलम
में देख कर लिखे, फिर तीसरे कॉलम में वह शब्द याद करके बिना देखे लिखे। इस तरह से याद की गयी स्पेलिंग्स बच्चे को जीवनभर याद रहती हैं।
⇛ मोबाइल अौर अाई पैड पर कुछ वर्ड गेम्स डाउनलोड करें, बच्चा खेल-खेल में स्पेलिंग सीख जाएगा। 
⇛ हिंदी की मात्राअों में बच्चे खूब गलतियां करते हैं। शुरू-शुरू में उन्हें श्रुतलेख लिखने को दें। जब कोेई शब्द बोलें, तो उसकी मात्रा पर जोर दें, ताकि वह अापके उच्चारण के हिसाब से मात्रा लगा सके। ध्यान रखें कि सही शब्द लिखना बच्चे की अादत में तब शुमार होगा, जब इसका कई बार अभ्यास कराएंगे।
⇛ अाजकल कई तरह के एजुकेशनल गेम्स बाजार में उपलब्ध हैं। बच्चे एेसे गेम्स में काफी रुचि लेते हैं। अाप भी खरीदें या फिर एल्फाबेट्स की शेप की फ्रिज मैगनेट्स भी खरीद सकती हैं। इन्हें मेज पर, फ्रिज पर, बोर्ड पर अलग-अलग शब्दों के रूप में अरेंज करते हुए बच्चा जो सीखेगा, वह जीवनभर याद रहेगा।
⇛ सड़क पर चलते हुए किनारे लगे साइन बोर्ड्स, होर्डिंग्स अादि पढ़ने के लिए बच्चों को प्रेरित करें। इस तरह से वे शब्दों को पढ़ना सीखते हैं, उनकी स्पेलिंग्स भी याद होती हैं। इससे उनमें एकाग्रता भी बढ़ती है।