Thursday 25 May 2023 10:39 AM IST : By Gopal Sinha

थायरॉइड : जब बात बिगड़ जाए

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जब थकान महसूस हो, किसी काम में मन ना लगे, वजन अचानक बढ़ने या घटने लगे, तो शुभचिंतक सलाह देने लगते हैं कि अपना थायराॅइड चेक कराओ। गले में मौजूद तितली के आकार की यह अंतःस्रावी ग्रंथि है तो छोटी सी, पर काम बड़े करती है। इससे स्रावित होनेवाले हारमोन हमारे शरीर के तकरीबन सभी क्रियाकलापों को नियंत्रित करते हैं। ये हारमोन्स जब कम या ज्यादा बनने लगें, तो मामला गड़बड़ा जाता है। यही थायरॉइड डिसऑर्डर है। थायरॉइड हारमोन्स हमारी बॉडी पर किस तरह असर करते हैं और इनके कम या ज्यादा होने पर क्या परेशानियां हो सकती हैं और उपचार के क्या तरीके हैं, इन्हीं सब सवालों के साथ हमने बात की डॉ. राममनोहर लोहिया अस्पताल, दिल्ली की सीनियर एंडोक्राइनोलॉजिस्ट डॉ. बिंदु कुलश्रेष्ठ से।

जब कम बनें हारमोन

डॉ. बिंदु कुलश्रेष्ठ कहती हैं कि थायरॉइड ग्लैंड से निकलनेवाले हारमोन हमारी पूरी बॉडी के सेल्स में मेटाबाॅलिज्म को रेगुलेट करते हैं मसलन बॉडी में कितना टेंपरेचर होना चाहिए, कितनी एनर्जी होनी चाहिए। अगर थायरॉइड हारमोन कम बन रहे हों, तो इसे हायपोथायरॉइडिज्म कहते हैं। उसमें थकान महसूस होगी, ठंड ज्यादा लगेगी और बॉडी के सारे सिस्टम्स को एनर्जी नहीं मिल पाएगी। धुंधला दिखेगा, नींद ज्यादा आएगी, डाइजेस्टिव सिस्टम कम काम करेगा, कब्ज हो जाएगी। महिलाओं में माहवारी अनियमित हो जाएगी। कंसीव करने में दिक्कत होगी। स्किन ड्राई हो जाती है। थायरॉइड हारमोन के कम हाेने से बॉडी के कनेक्टिव टिशूज में सूजन आ जाती है। थायरॉइड पेशेंट की बॉडी में इसी वजह से सूजन दिखायी देती है। हार्ट कम काम करने लगता है, ब्लड प्रेशर लो हो सकता है। हाथ-पैर ठंडे रहते हैं। ज्यादातर ये लक्षण हल्के ही रहते हैं, लेकिन अगर इन्हें इग्नोर किया गया, तो इमरजेंसी की नौबत भी आ जाती है। थायरॉइड हारमोन का नॉर्मल होना हमारे लिए बहुत जरूरी है। शुरू में लक्षण हल्के होते हैं, लेकिन महसूस होेने पर टेस्ट करा लेना चाहिए।

नवजात बच्चों की थायरॉइड स्क्रीनिंग जरूरी

न्यूबॉर्न बेबी में थायरॉइड ग्लैंड तीसरे-चाैथे महीने में बन जाता है और यूटरस में ही हारमोन भी बनने लगते हैं, जो बॉडी सिस्टम्स को विकसित होने में मदद करते हैं। लेकिन अगर ग्लैंड नहीं बना या थायरॉइड हारमोन पर्याप्त नहीं बने, तो ऐसे बच्चे आयोडीन की कमी की वजह से क्रिटिन पैदा होते हैं, जिनका आईक्यू बहुत कम होता है। सालों तक बोल नहीं पाते, मेंटली रिटार्डेड होते हैं। बहुत से देशों में जन्म लेते ही बच्चे की थायरॉइड स्क्रीनिंग करायी जाती है, ताकि थायरॉइड की गड़बड़ी का पता चल जाए। अपने यहां भी हर नवजात बच्चे की थायरॉइड स्क्रीनिंग जरूर होनी चाहिए।

हायपोथायरॉइडिज्म में पेशेंट को थायरॉइड हारमोन की डोज देते हैं, जो बॉडी में नहीं बन पा रहा है। हारमोन का लेवल नॉर्मल होने पर पेशेंट का मेटाबॉलिज्म सुधर जाता है। आमतौर पर जीवनभर यह दवा लेनी पड़ती है।

जब हारमोन ज्यादा बनें

जब थायरॉइड हारमोन ज्यादा बनने लगें, तो इस कंडीशन को हायपरथायरॉइडिज्म कहते हैं। हायपोथायरॉइडिज्म के पेशेंट की संख्या हायपरथायरॉइडिज्म के मरीजों के मुकाबले कम है। इसमें मेटाबॉलिज्म बढ़ जाता है। आप खाना ज्यादा खाएंगे, तो भी बॉडी को नहीं लगेगा। वेट लॉस हो जाएगा, गरमी ज्यादा लगेगी। नर्वस सिस्टम एक्स्ट्रा काम करने लगेगा, हमेशा चिंतित रहेंगे, हाथ-पैरों में कंपन होगी। हार्ट बीट काफी तेज हो जाएगी। लोड बढ़ने से हार्ट फेलियर होने का जोखिम बढ़ जाएगा। कंसीव करने में और माहवारी में भी दिक्कतें आएंगी। लूज मोशन हो सकते हैं। नजर में बदलाव आते हैं। पसीना बहुत आता है। हायपरथायरॉइडिज्म के मरीजों को उनकी स्थिति को देखते हुए ऐसी दवाएं देते हैं, जो थायरॉइड हारमोन बनने के स्टेप्स को रोकते हैं।

ग्वाइटर की समस्या

थायराॅइड हारमोन 2 तरह के होते हैं- ट्राईआयडोथायरॉइनिन और टेट्राआयडोथायरॉनिन। दोनों ही हारमोन में आयोडीन होता है। जब आयोडीन की कमी हो जाती है, तो बॉडी थायराॅइड ग्लैंड के आकार को बड़ा बनाने लगता है, ताकि ज्यादा हारमोन बन सकें। कुछ समय तक यह ग्लैंड थोड़ा ज्यादा हारमोन बनाता है, लेकिन दरअसल यह आयोडीन की कमी से होनेवाली दिक्कत है। अभी भी दूरदराज के गांवों में लोगों के खानपान में आयोडीन कम है। आयोडीन युक्त नमक लेने से इसे काफी हद तक दूर किया जा सकता है। ग्वाइटर या घेघा हो या ग्लैंड में सूजन हो, तो डॉक्टर से जरूर दिखाएं, क्योंकि यह कभी-कभी कैंसर का भी रूप ले सकता है।

किसे होता है थायरॉइड डिसऑर्डर

ज्यादातर यह 30 साल की उम्र के बाद होनेवाली समस्या है, लेकिन बच्चों में भी थायरॉइड की समस्या देखी जा रही है। आयोडीन की कमी के साथ अब और भी कारण थायरॉइड डिसऑर्डर के हैं, जैसे पॉल्यूशन, खाने-पीने की चीजों में फर्टिलाइजर, पेस्टिसाइड्स, ये थायरॉइड ग्लैंड को प्रभावित करते हैं। अगर माता-पिता को थायरॉइड डिसऑर्डर है, तो बच्चे में होने की आशंका रहती है। परिवार में यह दिक्कत हो, तो बच्चे की थायरॉइड स्क्रीनिंग जरूर करानी चाहिए। थायरॉइड हारमोन कई स्टेप्स में बनते हैं, उसमें कहीं भी गड़बड़ हो, तो हारमोन कम या ज्यादा बनने लगते हैं। कई बार थायरॉइड ग्लैंड ऑटोइम्युनिटी का शिकार हो जाता है, जिसमें एंटीबॉडी बन जाती है, जो थायरॉइड ग्लैंड को काम करने से रोकती है।

आमतौर पर प्रेगनेंसी के दौरान थायरॉइड हारमोन की जरूरत लगभग 25 प्रतिशत तक बढ़ जाती है। प्रेगनेंट महिला में थायरॉइड हारमोन का बढ़ा हुआ लेवल नॉर्मल माना जाता है। अगर कोई महिला पहले से ही हायपोथायरॉइडिज्म से ग्रस्त है, तो उसे डॉक्टर की सलाह से ज्यादा पोटेंसी की दवा लेनी चाहिए।