Friday 05 May 2023 01:42 PM IST : By Indira Rathore

क्या अकेलापन आपको भी दे रहा है एंप्टी नेस्ट सिंड्रोम

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मेरी एक रिश्तेदार अकसर सिर दर्द या घुटनों के दर्द की शिकायत करती थीं। खूब दवाएं खायीं, डॉक्टर्स के पास दौड़ीं, लेकिन कोई खास फायदा होता नहीं दिखा। दरअसल वे एंप्टी नेस्ट सिंड्रोम से ग्रस्त थीं। एकाएक उनके दोनों बच्चे नौकरी और फिर शादी के बाद अलग-अलग शहरों में रहने चले गए। वे तो अपनी जिंदगी में व्यस्त हो गए, लेकिन रिटायरमेंट के बाद उनके माता-पिता का घर और जीवन खाली सा हो गया। दिनभर वे इस आस के साथ शाम का इंतजार करते कि बच्चे फोन करेंगे, लेकिन कई बार बच्चे भी कैरिअर या जीवन की अन्य उलझनों के बीच फोन करना भूल जाते। अब जब से यह दंपती अपने बच्चों के पास रहने लगे हैं, उनकी शिकायतें कम हो गयी हैं। वे घर-बच्चे संभालने व रिश्ते निभाने में व्यस्त हो गए हैं।

मिडिल एज और खाली घर एंप्टी नेस्ट सिंड्रोम एक हकीकत है। बच्चों के जन्म के बाद से माता-पिता के जीवन की धुरी बच्चों के ही इर्दगिर्द घूमने लगती है। उन्हें गोद में खिलाने से ले कर घुटनों के बल चलाने, स्कूल में एडमिशन कराने, एग्जाम्स की तैयारी कराने और फिर कैरिअर और शादी तक माता-पिता की व्यस्तता का ये आलम होता है कि उनकी सुबह-शाम बच्चों के ही बारे में सोचते हुए गुजरती है। फिर एक दिन अचानक बच्चे उच्च शिक्षा, कैरिअर बनाने या शादी के बाद दूसरे शहरों-देशों में रहने चले जाते हैं। उनका सामान चला जाता है, उनके कमरे खाली हो जाते हैं, वॉर्डरोब खाली हो जाते हैं, उनकी फरमाइशें एकाएक बंद हो जाती हैं, तो घर एकदम से खाली हो जाता है। ऐसा लगता है कि समय ही नहीं कट रहा। बच्चों के बचे-खुचे सामान, बिस्तर, अलमारियां, किताबें, कपड़े सब उनकी याद दिलाते हैं और माता-पिता के लिए पीड़ा का सबब बन जाते हैं। जिस घर में कहकहे गूंजते थे, जोर-जोर से टीवी-म्यूजिक चलता था, रसोईघर में तरह-तरह के प्रयोग होते रहते थे, डांट-डपट और प्यारभरी मनुहार होती थी, वह घर एकाएक बेआवाज सा हो जाता है। बच्चे थे, तो टाइम नहीं था और अब बच्चे नहीं हैं, तो टाइम ही नहीं कटता... ऐसी शिकायतें अकसर वे माता-पिता करते रहते हैं, जिनके बच्चे बाहर चले गए हैं। समस्या इसलिए भी बढ़ती है कि इस मोड़ तक आते-आते माता-पिता मिडिल एज में पहुंच चुके होते हैं, कई तरह की शारीरिक समस्याएं घेरने लगती हैं, लोग नौकरी से रिटायर होने लगते हैं, उनके सामाजिक दायरे कम होने लगते हैं।

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अब क्या करें यह एक सवाल अकसर उन माता-पिता के सामने खड़ा होता है, जिनका सबसे छोटा बच्चा भी घर से बाहर चला जाता है। फोर्टिस फ्लाइट लेफ्टिनेंट राजन ढल हॉस्पिटल, वसंत कुंज, नयी दिल्ली के मेंटल हेल्थ और बिहेवियरल साइंसेज में कंसल्टेंट साइकियाट्रिस्ट डॉ. त्रिदीप चौधरी कहते हैं, ‘‘अचानक घर के खाली होने से पेरेंट्स कई तरह के इमोशनल रोलर कोस्टर से गुजरने लगते हैं। अजीब तरह की भावनाएं उनके मन में आती हैं, जिनमें एंग्जाइटी, गिल्ट, गुस्सा, कुंठा, अवसाद, चिड़चिड़ाहट और अकेलापन प्रमुख हैं। जब वे किसी के सामने खुलते नहीं, अपने मन की बात शेअर नहीं कर पाते, तो आगे चल कर इससे गंभीर मनोवैज्ञानिक समस्याएं उन्हें घेरने लगती हैं, जैसे डिप्रेसिव डिस्अॉर्डर, एंग्जाइटी और साइकोसिस आदि। हालांकि कुछ मामलों में पेरेंट्स खुद को जिम्मेदारियों से स्वतंत्र भी महसूस करने लगते हैं, हालांकि उन्हें खालीपन महसूस होता है और वे बच्चों को मिस भी करते हैं।’’

समस्या है तो समाधान भी

बहुत से रास्ते हैं, जिनसे इस भावनात्मक उतार-चढ़ाव से बचा जा सकता है। बच्चों के जाने के बाद पति-पत्नी को एक-दूसरे के लिए वह समय मिल पाता है, जिसकी वे जीवनभर चाहत रखते हैं। इसके अलावा भी वे बहुत कुछ कर सकते हैं-

1. जीवन में खुश रहने के लिए कुछ बेहतर शौक पालें। दोस्त बनाएं, म्यूजिक सुनें, डांस-म्यूजिक या योगा क्लास जॉइन कर लें। पैसे की समस्या नहीं है, तो हॉलीडे ट्रिप प्लान करें।

2. एक नए सामाजिक दायरे में उठना-बैठना शुरू करें। अपनी सोसाइटी या आसपड़ोस के प्रति लगाव दर्शाएं। दोस्तों से मिलें-जुलें और कुछ सामाजिक कार्य करें।

3. रोज वीडियो कॉल पर बच्चों से बात करें, उन्हें अच्छे संदेशों का आदान-प्रदान करें, उनकी उपलब्धियों पर खुश रहें।

4. बच्चों के छुट्टियों पर आगमन का इंतजार करें। उनके मनपसंद व्यंजन बनाएं, उनके लिए कोई नयी खरीदारी करें, उनके कमरे को नए ढंग से सजाएं।

5. कपल टाइम को भरपूर जिएं, क्योंकि ये समय बहुत मुश्किल से मिला है। साथ मिल कर किचन में कुकिंग करें, घूमें, मूवी देखें, मजेदार गतिविधियों में हिस्सा लें।

6. नियमित वर्कआउट करें, प्रकृति के साथ समय बिताएं, घर को हरा-भरा करें और गार्डनिंग के लिए समय निकालें।

7. अब अपने मन की खुशी के लिए काम करें, कोई नयी स्किल सीखने में भी बुराई नहीं है। अपने भाई-बहनों, रिश्तेदारों के घर रहने जाएं।

8. सही समय पर सोएं-जागें, ताजा भोजन करें, फल खाएं और अपनी स्वास्थ्य जांच नियमित कराते रहें। खुद के प्रति उदासीन ना बनें।