Wednesday 19 April 2023 01:42 PM IST : By Gopal Sinha

लिवर को रखें हेल्दी

लिवर यानी यकृत हमारी बॉडी में पेट के दाहिने भाग में मौजूद होता है और यह हमारे शरीर का स्किन के बाद दूसरा सबसे बड़ा अंग है। लगभग डेढ़ लीटर खून प्रति मिनट लिवर से हो कर गुजरता है। इसका काम भोजन को पचाना और पित्त बनाना तो है ही, बॉडी में बननेवाले टॉक्सिंस को भी यह निकाल बाहर करता है। लिवर लगभग 500 तरह के काम हमारी बॉडी में करता है। शरीर के लिए जरूरी एनर्जी को स्टोर करके, इस्ट्रोजन व थायरॉक्सिन जैसे हारमोन्स बना कर और प्रोटीन एब्जॉर्ब करके यह हमारे लिए बेहद जरूरी ऑर्गन बन जाता है। अधिक मात्रा में अल्कोहल लेने पर उसे बैलेंस करने का काम भी लिवर ही करता है। लेकिन अगर लिवर को बहुत अधिक मात्रा में बॉडी से टॉक्सिंस निकालने पड़ें या शराब की बड़ी मात्रा को बैलेंस करने का काम बार-बार करना पड़े, तो धीरे-धीरे लिवर डैमेज होने लगता है। हमने बात की कुछ एक्सपर्ट्स से और लिवर को सेहतमंद रखने और बारे में जानकारी जुटायी। आइए, जानते हैं क्यों खराब होता है लिवर और इसे कैसे हेल्दी रखा जा सकता है।

कैसे बीमार होता है लिवर

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डॉ. पीयूष रंजन गंगाराम अस्पताल, दिल्ली में गैस्ट्रोएंटेरोलॉजी विभाग में सीनियर कंसल्टेंट और वाइस चेअरमैन हैं। उनका कहना है कि लिवर में जब कोई खराबी लंबे समय तक होती है, तो लिवर सिरोसिस हो सकता है। लिवर खराब होने के मुख्य 4 कारण हैं- नियत मात्रा से अधिक अल्कोहल लेना, मोटापा, हेपेटाइटिस बी और हेपेटाइटिस सी। नॉन अल्कोहलिक फैटी लिवर मोटापा, डाइबिटीज, हाई कोलेस्ट्रॉल, थायरॉइड आदि के कारण हो सकता है।

इसके अलावा भी बहुत सी बीमारियां हैं, जिनसे लिवर खराब हो सकता है। ऑटो इम्यून हेपेटाइटिस, मेटॉबॉलिक डिजीजेज आदि बहुत कॉमन नहीं हैं। हेपेटाइटिस ए सेल्फ लिमिटिंग डिजीज है, जो स्वतः ही ठीक हो जाता है। यह प्रदूषित पानी से होता है, इसके लिए भी वैक्सीन है, जिसे कभी भी लगाया जा सकता है। हेपेटाइटिस ई के लिए कोई वैक्सीन नहीं है, इससे बचने के लिए खाने और पीने के पानी का ध्यान रखें। कई बार एक्यूट लिवर डैमेज आयुर्वेदिक दवाओं  के सेवन से भी हो सकता है। हालांकि कुछ एलोपैथिक मेडिसिन से भी लिवर डैमेज हो सकता है, लेकिन उनके बारे में डाॅक्टर को पता होता है और इसकी रेगुलर मॉनिटरिंग की जाती है। बेहतर है कि कोई दवा अपने मन से नहीं लेनी चाहिए। बॉडी बिल्डिंग के लिए ली जानेवाली हारमोनल दवाएं भी नुकसान पहुंचा सकती हैं। कॉम्प्लिमेंट्री व ऑल्टरनेटिव मेडिसिन (कैम) जिसमें चाइनीज मेडिसिन आती हैं, भी लिवर की दुश्मन हो सकती हैं। यहां तक कि ग्रीन टी के बहुत अधिक सेवन से भी लिवर को नुकसान पहुंचता है।

बचाव के क्या हैं उपाय

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लिवर को बचाए रखने के लिए बहुत ज्यादा अल्कोहल का सेवन नहीं करना चाहिए। दूसरा लाइफस्टाइल में गड़बड़ी जैसे शारीरिक गतिविधियां ना होना, एक्सरसाइज ना करना, अनियंत्रित डाइबिटीज, बचपन से ही खाने-पीने की गड़बड़ी से नॉन अल्कोहलिक फैटी लिवर हो सकता है। भारत में लगभग 40 प्रतिशत लोग फैटी लिवर से ग्रस्त हैं। आजकल मोटापा भी बहुत आम है। हेपेटाइटिस बी और सी का ट्रांसमिशन ब्लड ट्रांसफ्यूजन के जरिये, मां के माध्यम से बच्चे को और मल्टीपल यूजवाले निडिल से होता है। हेपेटाइटिस बी के लिए वैक्सीन है, जिसे बर्थ के समय अनिवार्य रूप से लगाया जाता है। अगर हेपेटाइटिस बी हो जाए, तो उसका ट्रीटमेंट ज्यादातर गोलियों से किया जा सकता है। हेपेटाइटिस सी के लिए कोई वैक्सीन नहीं है। इसके प्रीवेंशन के लिए जरूरी है कि किसी प्रोफेशनल ब्लड डोनर से ब्लड ना लें, वेरिफाइड ब्लड बैंक से ही पेशेंट के लिए ब्लड लें। ड्रग अब्यूज के मामले हमारे यहां ग्रामीण इलाकों में कॉमन हैं, अनस्टरलाइज सूई या शेअर्ड निडल से बचना चाहिए। सिंगल यूज निडल आने से काफी हद तक इसके मामले में कमी आयी है। एचआईवी की तरह ही सेक्सुअल कॉन्टैक्ट से भी यह फैलता है। इससे भी बचना चाहिए। ये सभी वायरल इन्फेक्शन हैं, जो लिवर को डैमेज कर सकते हैं।

क्या कहता है होम्योपैथ

डॉ. मीनाक्षी यादव दिल्ली में होम्योपैथ फिजिशियन हैं और उनका कहना है कि लिवर की सबसे अच्छी बात यह है कि यह एक हद तक अपने आपको खुद ठीक करने की प्रॉपर्टीज रखता है। जब इसके स्ट्रक्चर या फंक्शनिंग में कोई दिक्कत आ जाती है, तो यह डिजीज की कंडीशन में आ जाता है। लिवर के सामान्य रोगों में हेपेटाइटिस ए, बी, सी आदि हैं, जो वायरस इन्फेक्शन हैं। लिवर कैंसर हो सकता है, उसका साइज बड़ा हो जाता है, उसमें स्कार बन जाता है। कई बार लिवर का कोई एक भाग डेड हो जाता है, इसे लिवर सिरोसिस कहते हैं। जॉन्डिस भी लिवर के बीमार होने का लक्षण है। जॉन्डिस होने पर स्किन का या आंखों का रंग पीला हो जाता है, थकान बनी रहती है, भूख नहीं लगती है। अगर यह एडवांस स्टेज में चला जाता है, तो एब्डोमेन कैविटी में पानी भरना शुरू हो जाता है। ईचिंग होने लगती है, ज्यादा खराब स्थिति में लिवर से ब्लीडिंग होने लगती है। लिवर में कोई दिक्कत हो, तो ब्लड प्रेशर भी बढ़ सकता है।

लिवर के टेस्ट - लिवर हेल्दी है या नहीं, इसका पता लगाने के लिए सबसे पहले लिवर की फंक्शनिंग टेस्ट एलएफटी कराते हैं। अगर लिवर एंजाइम्स बढ़ गए होते हैं, तो उसका पता चल जाता है। उसमें कुछ क्लियर नहीं होता, तो अपर एब्डोमेन का अल्ट्रासाउंड कराते हैं। वहां से भी कुछ पकड़ में नहीं आता, तो लिवर बॉयोप्सी कराते हैं। एमआरआई और सीटी स्कैन भी कराने की जरूरत पड़ती है।

क्या हैं ट्रीटमेंट

डॉ. मीनाक्षी का कहना है कि होम्योपैथी में किसी एक रोग के लिए कोई खास दवा नहीं होती, जैसा कि एलोपैथिक ट्रीटमेंट में होता है। उसमें बुखार हो, तो पैरासिटामोल हर पेशेंट को दे सकते हैं, लेकिन होम्योपैथ में ऐसा नहीं है। चाहे हम एक ही दिन में लिवर के चार मरीज देखते हैं, तो चारों मरीज हमारे लिए नए होते हैं। हम उन्हें कोई एक ही स्पेसिफिक दवा नहीं दे सकते। होम्योपैथी में दवा का सलेक्शन पेशेंट के लक्षणों के आधार पर किया जाता है। एक पेशेंट को प्यास लगती है और दूसरे पेशेंट को प्यास नहीं लगती, तो दोनों के लिए एक ही डिजीज की अलग-अलग दवा होती है। हमें पेशेंट की एक पिक्चर प्रीपेयर करनी होती है। होम्योपैथी की सारी दवाएं ह्यूमन बॉडी पर टेस्ट करके तैयार की गयी हैं, जबकि दूसरी चिकित्सा पद्धतियों में ज्यादातर दवाएं एनिमल बाॅडी पर टेस्ट की जाती हैं। दूसरी बात, होम्योपैथिक दवाओं के साइड इफेक्ट होने के चांसेस बहुत कम होते हैं। बावजूद इसके, होम्योपैथ में भी सेल्फ मेडिकेशन बिलकुल नहीं करना चाहिए, क्योंकि डोज कब कम-ज्यादा करनी है, दवा कब रोकनी है या कब नयी दवा देनी है, यह कोई प्रोफेशनल ही बता सकता है।

मेडिसिन कौन सी

डॉ. मीनाक्षी कहती हैं कि कुछ दवाएं हैं, जिनका प्राइमरी एक्शन लिवर पर ही होता है। ये दवाएं डॉक्टर से पूछ कर ली जा सकती हैं। आजकल होम्योपैथ में भी लिवर टॉनिक बना कर बेचे जा रहे हैं। हाेम्योपैथ मेडिसिन का असर जीभ से ही शुरू हो जाता है, इसीलिए तेज गंधवाली चीजें दवा के साथ लेने से बचना चाहिए। जैसे कच्चा प्याज, मूली आदि खाने से परहेज करें, लेकिन इसे पका कर ले सकते हैं।

बचें इन्फेक्शंस से - डॉ. सुश्रुत सिंह, एडिशनल डाइरेक्‍टर, गैस्‍ट्रोएंटेरोलॉजी, फोर्टिस हॉस्‍पिटल, नोएडा कहते हैं कि इन्फेक्‍शंस कई बार लिवर फेल होने का कारण बनते हैं, जिसके कारण आगे चल कर क्रोनिक हेपेटाइटिस और लिवर सिरोसिस भी हो सकता है और कई बार यह लिवर कैंसर में भी बदल सकता है। ट्रांसफ्यूजन-ट्रांसमिटेड इन्फेक्‍शंस (टीटीआई) दुनियाभर में सार्वजनिक स्‍वास्‍थ्‍य के लिए प्रमुख मुद्दा बना हुआ है। किसी भी तरह के इन्फेक्शन से बचना जरूरी है।