कोरोना ने एक बार फिर अपना कहर बरपा दिया है। एक्सपर्ट का कहना है कि बड़ी संख्या में लोगों ने वैक्सीन लगवा ली है, इसलिए बहुत हद तक उनमें गंभीर लक्षण नहीं दिखेंगे। इसी बीच 15 से 18 साल के बच्चों का वैक्सीनेशन और बुजुर्गों के लिए बूस्टर डोज का दौर भी शुरू हो चुका है। इसी सिलसिले में हमने बात की इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल, दिल्ली के पल्मोनरी विभाग के सीनियर कंसल्टेंट और कोविड मामलों के एक्सपर्ट डॉ. एम. एस. कंवर से -
प्रश्नः वैक्सीन की दोनों डोज लगवाने के बाद भी लोग बड़ी संख्या में कोरोना की चपेट में आ रहे हैं। इससे लोगों के मन में कहीं ना कहीं वैक्सीन के असर को ले कर सवाल उठ रहे हैं। आपका क्या कहना है?
उत्तरः ये वैक्सीन आपको पूरी तरह से बचाएंगी, ऐसा नहीं है। खासकर ओमीक्रॉन के समय में इसका असर कम हो गया है, क्योंकि यह वेरिएंट वैक्सीन को चकमा दे रहा है। लोगों को जो पहली और दूसरी डोज फरवरी और मार्च में लगी थी, ज्यादा समय बीत जाने से इसका असर स्वाभाविक रूप से कम हो गया है। वैसे भी वैक्सीन का असर 3 महीने के बाद कम होना शुरू हो जाता है और 6 महीने के बाद तो बहुत कम रह जाता है। वैक्सीन को लगे ज्यादा समय बीत गया है और ओमीक्रॉन वैक्सीन से बच कर निकल रहा है, इन दोनों वजहों से लोग वैक्सीन लगवाने के बावजूद इन्फेक्शन से बच नहीं पा रहे हैं। जितनी भी इंटरनेशनल स्टडीज हुई हैं, उनमें यही देखा गया है कि 2 नहीं, 3-3, 4-4 डोज लेनेवाले भी इसकी चपेट में आ रहे हैं, पर जिन्होंने वैक्सीन लगवा रखी है, उनमें कोरोना माइल्ड हो कर निकल रहा है। ज्यादा लोग हॉस्पिटल नहीं आ रहे हैं, उन्हें ऑक्सीजन सपोर्ट की जरूरत नहीं पड़ रही है, वे वेंटिलेटर पर नहीं जा रहे और मौतें काफी कम हो रही हैं। इंटरनेशनल स्तर के आंकड़े देखें, तो मॉर्टेलिटी रेट 0.27 प्रतिशत के करीब है। जबकि डेल्टा के टाइम में यह 3 से 5 प्रतिशत तक थी। कहने का मतलब है कि वैक्सीन लगवाने से रोग की गंभीरता और मृत्यु दर कम होती है।
प्रश्नः तो लोगों को बूस्टर डोज लगवाने की जरूरत है?
उत्तरः हां, लोगों को बूस्टर डोज लेनी चाहिए, क्योंकि जो वैक्सीन लग चुकी है, उसका असर कम हो चुका है। बूस्टर डोज से फायदा ही होगा, इससे कोई नुकसान नहीं है।
प्रश्नः लेकिन विदेशों में तो बूस्टर डोज लगवाने के बाद भी लोग संक्रमित हो रहे हैं।
उत्तरः इसकी वजह है ओमीक्रॉन का वैक्सीन की पकड़ में नहीं आना और इसके बच निकलने को मापना आसान नहीं है। इसकी एंटीबॉडी इवेजन को कुछ हद तक देखा जा सकता है, लेकिन फर्स्ट और सेकेंड डोज या बूस्टर डोज लगवाने वाले लोगों में टी सेल्स अच्छी तरह जेनरेट हो चुके हैं, जो इन्फेक्शन से लड़ते हैं, रोग की प्रोग्रेस को रोकते हैं, उसका भी आकलन करना आसान नहीं है। गिनेचुने लैब में ही इसे मापा जा सकता है, तो वैक्सीन की प्रभावशीलता पर सवाल ना खड़े कर हमें वैक्सीन लगवा लेनी चाहिए।
प्रश्नः ओमीक्रॉन इतनी तेजी से क्यों फैल रहा है?
उत्तरः इसकी ट्रांसमिसिबिलिटी बहुत ज्यादा है। इसके 30-32 म्यूटेशंस हैं, जो ज्यादातर इसके स्पाइक प्रोटीन में ही हैं। इसीलिए यह इतनी तेजी से फैल रहा है, लेकिन इसकी विषाक्तता डेल्टा के मुकाबले बहुत कम है। यह जितनी तेजी से फैल रहा है, अगर इसकी विषाक्तता भी डेल्टा जितनी होती, तो पूरी दुनिया में हाहाकार मचा होता।
प्रश्नः ऐसी खबरें आ रही हैं कि अोमीक्रॉन का कोई बहुत ही खतरनाक वेरिएंट डेवलप हो जाएगा।
उत्तरः नए वेरिएंट बनने की आशंका हमेशा बनी रहेगी। इस वक्त भी नए वेरिएंट बन रहे हैं, म्यूटेशंस हो रहे हैं। यूरोप, फ्रांस में भी ऐसा पाया गया है। डेल्मिक्रॉन है, जिसमें डेल्टा और ओमीक्रॉन दोनों इकट्ठे अटैक कर रहे हैं, तो उस सिचुएशन में पेशेंट सीरियस भी हो सकते हैं। यह इस बात पर निर्भर करेगा कि जो नए वेरिएंट बन रहे हैं, उसके लिए हमारी बॉडी में कितनी इम्युनिटी है। मान लें वैक्सीन और पहले से हुए कोरोना से उत्पन्न हुई इम्युनिटी नए वेरिएंट को 50 प्रतिशत भी संभाल पाती है, तो पेशेंट में रोग की गंभीरता आधी हो जाती है। पिछले साल इंग्लैंड में दिसंबर में 50 से 60 हजार केस रोज आ रहे थे, जिसमें मॉर्टेलिटी रेट करीब 1300 से 1500 के बीच थी, एक दिन तो 1800 मौतें भी हुई थीं। अब इस समय वहां रोज 1 लाख 96 हजार पेशेंट आ रहे हैं, जबकि मौतों का आंकड़ा अब थोडा बढ़ा है, जो 336 के करीब है। कहने का मतलब है कि केस की संख्या चार गुना बढ़ गयी है, लेकिन मॉर्टेलिटी चार गुना कम हुई है।
प्रश्नः तो हम यह मान कर चलें कि कोरोना होने और वैक्सीन लगवाने से पैदा हुई इम्युनिटी से इस बार रोग की गंभीरता कम हो रही है।
उत्तरः माना तो यही जा रहा है कि जिन लोगों को पहले कोरोना हो चुका है और जिन्होंने वैक्सीन लगवा रखी है, उनमें जितने भी नए वेरिएंट आए हैं या आएंगे, वे उनमें हल्का असर ही कर पाएंगे, एकदम से आग नहीं लगाएंगे, जैसा पहले डेल्टा लगा चुका है।
प्रश्नः ओमीक्रॉन के पेशेंट में क्या लक्षण दिख रहे हैं?
उत्तरः रोजाना ओमीक्रॉन के काफी केस हमारे पास आ रहे हैं, उन सबमें मुख्य रूप से फ्लू जैसे माइल्ड लक्षण ही देखने को मिल रहे हैं। जैसे गले में हल्की खराश हो रही है, थोड़ी-बहुत खांसी हो रही है, लो ग्रेड फीवर हो रहा है, थोड़ा जुकाम या नाक बह रही या हल्का सिर दर्द हो रहा है। किसी-किसी को पेट में हल्का दर्द या लूज मोशन भी हो रहा है। इस बार स्वाद या गंध जाने जैसे लक्षण नहीं दिख रहे और ना ही ऑक्सीजन सपोर्ट की जरूरत पड़ रही है। डेल्टा की तरह ओमीक्रॉन लंग्स पर असर नहीं डाल रहा।
प्रश्नः वैक्सीन लगवाने के इतने फायदे हैं, तो लगवाना जरूरी है। लेकिन कुछ सवाल इसकी शेल्फ लाइफ को ले कर उठे हैं कि सरकार ने हाल ही में इसकी शेल्फ लाइफ को बढ़ाने की अनुमति दी है?

उत्तरः यह एक विवादास्पद विषय है। पहले 6 महीने से 9 महीने कर दिया, फिर 12 महीने कर दिया। शक की वजह यही है कि पहले वैक्सीन एक्सपायर हो रही थी, तो उसकी शेल्फ लाइफ बढ़ा दी। साइंटिफिक नजरिए से देखें, तो वैक्सीन की शेल्फ लाइफ उतने समय के लिए दी गयी थी, जितने समय के लिए इसकी स्टडी की गयी थी। अगर आप 2 या 4 डिग्री पर वैक्सीन को रख रहे हैं, उसकी पैकेजिंग ठीक से कर रहे हैं, तो उसकी इम्युनोजेनेसिटी कितने समय तक प्रिजर्व रहती है, यह देखा जाता है। अगर स्टडी में पाया गया कि यह इम्युनोजेनेसिटी 6 महीने तक बरकरार रहती है, तो वैक्सीन के लिए 6 महीने का ऑथोराइजेशन दे दिया गया। बाद में स्टडी में यह प्रूव हुआ कि वैक्सीन की इम्युनोजेनेसिटी 9 महीने या 12 महीने तक रहती है, तो इतने समय के लिए ऑथोराइज कर दिया। अपने देश में सेंट्रल ड्रग्स टेस्ट कंट्रोल ऑर्गेजाइनेशन है, यूएसए में ऐसी संस्था है। वहां भी फाइजर को 6 महीने से 9 महीने की एक्सटेंशन मिली थी। इंडिया में भी कोविशील्ड को 6 महीने से 9 महीने की ऑथोराइजेशन मिली थी, अब कोवैक्सीन को 9 महीने से 12 महीने किया है। जाइकोव बी को भी 6 महीने की एक्सटेंशन मिली है।
प्रश्नः कोरोना से बचने के क्या उपाय किए जाने चाहिए।
उत्तरः वही, जो हम अभी तक करते आ रहे हैं। मास्क लगाएं, हैंडवॉश करते रहें, भीड़भाड़ से बचें, ऐसी किसी जगह पर ना जाएं, जहां बहुत लोग हों, चाहे वे जानने वाले हों या अनजान।
प्रश्नः इस बार कोरोना का ग्राफ जितनी तेजी से ऊपर जा रहा है, क्या उतनी ही तेजी से नीचे आएगा?
उत्तरः हां, पीछे के केसों में देखें, तो जितने भी स्पाइक्स तेजी से बढ़े हैं, उतनी ही तेजी से नीचे आए हैं। इस बार भी ऐसी उम्मीद है।