Wednesday 23 February 2022 03:46 PM IST : By Team Vanita

डाइबिटीज से निपटें ऐसे

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दिल्ली में 14 प्रतिशत पुरुष और 12 प्रतिशत महिलाएं डाइबिटीज के शिकार हैं और पूरे देश में टाइप 2 डाइबिटीज मेलिटस के 7 करोड़70 लाख मरीज हैं। चीन के बाद हमारा ही नंबर आता है। फोर्टिस हॉस्पिटल, नयी दिल्ली की डाइबेटोलॉजिस्ट डॉ. अलका झा का कहना है कि इस बीमारी को मैनेज करने के लिए पेशेंट दो बातों का ध्यान रखें। लाइफस्टाइल में बदलाव, जिसमें डाइट और अपनी एक्सरसाइज पर ध्यान देना जरूरी है। डॉक्टर आपके बॉडी पैरामीटर को देखने के बाद बताएंगे कि आपको कितना वेट कम करने की जरूरत है। इसीलिए शुगर बढ़ने पर डॉक्टरी सलाह जरूर लें। कितनी कैलोरी लेनी है, रुटीन में खाने की मात्रा कितनी होनी चाहिए। कार्बोहाइड्रेट कम, प्रोटीन ज्यादा, फैट कम लेना है। ग्रीन वेज, फ्रेश फ्रूट, नट्स, बेरी का सेवन ज्यादा करना चाहिए। बेकरी प्रोडक्ट, रिफाइंड प्रोडक्ट, मिठाई खाने से बचें।

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प्री डाइबिटिक/गोल्डन पीरियड: प्री डाइबिटिक कंडीशन को मेडिकल भाषा में गोल्डन पीरियड कहते हैं। इसमें व्यक्ति अपनी डाइट से शुगर कंट्रोल कर सकता है। मोटापे के शिकार व्यक्ति अपना वजन कम करके डाइबिटीज की चपेट में आने से बच सकते हैं। वजन कम करने के लिए कंट्रोल्ड डाइट और रेगुलर एक्सरसाइज जरूरी है। अगर कोई व्यक्ति डाइबिटीज से ग्रसित हो चुका है और उसे अभी-अभी मालूम चला है, तो इस स्टेज में भी शुगर कंट्रोल कर सकता है। अगर आप सही वेट लॉस करें, तो डाइबिटीज के शुरुआती दौर में कंट्रोल हो जाता है। पर यह बीमारी लंबी या पुरानी हो जाए, तो वहां से लौटने में मुश्किल होती है।

एक्सरसाइज रूल बुक: किसी भी व्यक्ति के लिए कम से कम 45 मिनट का व्यायाम करना जरूरी है। कुछ ना कुछ वर्कआउट करना चाहिए, जिसमें ब्रिस्क वॉक और लाइट रनिंग शामिल करें। वेट्स के साथ मसल स्ट्रेंथनिंग एक्सरसाइज कर सकते हैं। वर्कआउट की इंटेंसिटी क्या रखनी है, यह डॉक्टर तय करता है। कार्डिएक कंडीशन क्या है। कितनी तेज ब्रिस्क वॉक करते हैं, यह भी देखा जाता है। अगर किसी तरह की समस्या नहीं है, तो हफ्ते में 
5 दिन 45 मिनट की मीडियम इंटेंसिटी की एक्सरसाइज करें।

नजर पर असर: डाइबिटीज की गिरफ्त में आए लोगों को आंखों का रेटिनोपैथी टेस्ट कराना चाहिए। अगर डाइबिटीज के शुरुआती दौर में मालूम चल जाए, तो इसका इलाज हो सकता है। अगर कोई लक्षण नहीं दिखता है, तब भी साल में एक बार आई चेकअप कराना जरूरी है। आंखों को ठीक रखने के लिए शुगर और ब्लड प्रेशर पर कंट्रोल करें। 

जब चोट लग जाए: अगर शरीर में शुगर की मात्रा ज्यादा हो जाती है, तो इम्युनिटी और हीलिंग प्रोसेस पर नेगेटिव असर पड़ता है। शुगर ज्यादा होने पर घाव देरी से ठीक होता है। अगर समय पर इसका इलाज ना किया गया, तो रातोंरात स्थिति बिगड़ जाती है। अगर चोट में पस पड़ गयी है, चोट ठीक नहीं हो रही है, तो इसे नजरअंदाज ना करें और डॉक्टर को जरूर दिखाएं। 

हैप्पी हार्ट: डाइबिटीज क्या हार्ट को इफेक्ट करती है? जी हां, इससे हार्ट अटैक का रिस्क 4 गुना ज्यादा हो जाता है। डाइबिटीज में ब्लड प्रेशर और कोलेस्ट्राॅल को कंट्रोल करना चाहिए। इतना ही नहीं, अगर हम शुरुआती सालों में शुगर कंट्रोल में रखते हैं, तो याददाश्त 10 साल तक अच्छी रहती है। 

मेंटल और इमोशनल वेलनेस

डाइबिटीज का जितना असर शरीर पर पड़ता है, इससे उतना ही भावनात्मक स्वास्थ्य भी प्रभावित होता है। क्यूआरजी हॉस्पिटल, फरीदाबाद की क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ. जया सुकुल कहती हैं कि शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य दोनों को एक-दूसरे से अलग नहीं कर सकते, तन का मन से जबर्दस्त कनेक्शन है। बॉडी में कोई परेशानी होगी, तो मन खराब होगा और मन किसी वजह से खराब हो, तो उसका असर शरीर पर भी पड़ता ही है। डाइबिटीज ऐसी बीमारी है कि जितना इसको ले कर स्ट्रेस बढ़ेगा, उतना ही यह कंट्रोल में नहीं होगा। स्ट्रेस से शरीर में हारमोनल असंतुलन होता है, जिससे ब्लड में शुगर अनियमित हो जाता है। अगर तनाव पर नियंत्रण होगा, तो शुगर भी कंट्रोल में रहेगा। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि स्ट्रेस ना हो, तो डाइबिटीज खत्म हो जाएगी। इतना जरूर है कि शुगर कंट्रोल करने के लिए ली जानेवाली दवाओं पर आपकी निर्भरता कम हो सकती है।

डाइबिटीज डिस्ट्रेस 

डाइबिटीज डिस्ट्रेस सामान्य डिप्रेशन और आम भावनात्मक गड़बड़ी से हट कर है। डाइबिटीज के मरीजों के मन में पैदा होने वाली नकारात्मक भावनाएं और डाइबिटीज के कारण लगी बंदिशों के साथ रोज-ब-रोज जूझने की कंडीशन ही डाइबिटीज डिस्ट्रेस है। 

जो बातें हमारे शारीरिक स्वास्थ्य को प्रभावित करती हैं, उनसे हमारा मेंटल वेलनेस भी बिगड़ सकता है। अगर हम पूरी नींद नहीं लेते, रेगुलर एक्सरसाइज नहीं करते, समय पर खाना नहीं खाते, तो इनसे फिजिकल हेल्थ और मेंटल हेल्थ दोनों पर असर पड़ता है। डाइबिटीज लाइफस्टाइल से जुड़ी समस्या है। यानी कोई व्यक्ति डाइबिटिक है, तो ना तो वह अपने शरीर पर ध्यान दे रहा है और ना ही अपनी मानसिक सेहत का ही खयाल रख रहा है। डाइबिटीज के मरीजों को लाइफस्टाइल में इंप्रूवमेंट की बहुत जरूरत है। जो डाइबिटिक नहीं हैं,उनके लिए भी तन-मन का खयाल रखना जरूरी है।

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डाइबिटीज के पेशेंट अगर समय पर दवा ना लें, तो वे कई बार बहुत लो फील करने लगते हैं, वे हाइपोग्लासेमिक हो जाते हैं, हाथ-पैरों में झनझनाहट होती है। ऐसे लक्षण दिखने पर वे अपनी बीमारी को बहुत गंभीर समझने लगते हैं, जिसका असर उनकी मेंटल हेल्थ पर पड़ता है। देखा जाए, तो डाइबिटीज ऐसी बीमारी नहीं है, जिसका इलाज ना हो। इसके लिए बहुत स्ट्रेस लेने की जरूरत ही नहीं है। हालांकि इसका उल्टा भी होता है। कुछ लोग डाइबिटीज को बिलकुल सीरियसली नहीं लेते। ना तो समय से दवा खाएंगे, ना ही खानपान में बदलाव लाएंगे। जबकि डाइबिटीज को पूरी तरह नियंत्रित किया जा सकता है। इसके लिए आपको अपनी सेहत का ध्यान बहुत सावधानी से रखना जरूरी है। 

डीप ब्रीदिंग के फायदे

डाइबिटीज के मरीज अपनी मेंटल वेलनेस के लिए क्या करें, इस पर डाॅ. जया कहती हैं कि पॉजिटिव थिंकिंग के साथ-साथ डीप ब्रीदिंग एक्सरसाइज इसमें लाभ पहुंचा सकती है। कुछ लोग अपने गुस्से पर काबू नहीं रख पाते, वहीं कुछ गुस्से को व्यक्त नहीं कर पाते। ऐसे लोगों का गुस्सा अचानक फट पड़ता है। दोनों ही स्थितियां मेंटल वेलनेस के लिए ठीक नहीं हैं। ना तो गुस्से को दबाएं और ना ही गुस्से से फट पड़ें। गुस्से को सही तरीके से जाहिर करके ना केवल आप मन को शांत कर पाते हैं, बल्कि स्ट्रेस से होने वाली डाइबिटीज जैसी बीमारी भी दूर रहेगी। 

डाइबिटीज कंट्रोल में ना रही, तो किडनी पर बुरा असर डालती है। डाइबिटीज के कारण जिनकी किडनी खराब हुई, उन्होंने अपनी डाइबिटीज को कंट्रोल में नहीं रखा। आप ऐसा ना करें, ऐसा स्ट्रेस ना लें, जिससे आपका नुकसान हो। 

किसी तरह की चिंता आपके शारीरिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित करती है और जब शरीर बीमार हो, तो मानसिक रूप से आप स्वस्थ नहीं रह सकते। दोनों को स्वस्थ रखना बहुत जरूरी है।

डाइबिटीज डिस्ट्रेस को कैसे संभालें

डाइबिटीज केअर के लिए किसी अच्छे एंडोक्राइनोलॉजिस्ट से भी मिलें

किसी ऐसे मेंटल हेल्थ काउंसलर की मदद लें, जिसे क्रोनिक हेल्थ कंडीशन में विशेषज्ञता हासिल हो 

किसी डाइबिटीज एजुकेटर के साथ बैठ कर अपनी दिक्कतों पर गौर करें, ताकि आप मन से जुड़ी परेशानियों का हल पा सकें 

डाइबिटीज से जुड़ी दिक्कतों पर एक-एक करके फोकस करें, ना कि सबको एक साथ दूर करने लग जाएं 

डाइबेटोलॉजिस्ट/न्यूट्रीशनिस्ट से अपने लिए अच्छा डाइट चार्ट बनवाएं और उसे फॉलो करें

सिगनल सेंटर 

शुगर वेल्यू को देखते हुए यह तय किया जाता है कि आप प्री डाइबिटिक हैं, डाइबिटिक हैं या डाइबिटिक नहीं हैं। 

ग्रीन सिगनल: फास्टिंग शुगर 110 या उससे कम है, पीपी 140 से कम होनी चाहिए। 

ऑरेंज सिगनल: फास्टिंग 125 से 150 के बीच, ब्रेकफास्ट के बाद 150 से 200 के बीच। 

रेड सिगनल: डाइबिटिक पेशेंट, जो दवाइयों पर निर्भर हैं। उनकी फास्टिंग 126 से कम होनी चाहिए और पीपी 200 से नीचे। इससे अधिक में खतरा है।