होम्योपैथ फिजिशियन डॉ. मुकेश सिंह कहते हैं कि ज्यादातर केस हाइपोथायरॉइडिज्म के होते हैं, जिसमें थायरॉइड हारमोन कम बनता है। हायपरथायरॉइडिज्म के कम मामले आते हैं। इसके रोगियों में मेंटल और फिजिकल दोनों स्टेटस बिगड़ जाता है। मूड स्विंग होते हैं, माहवारी अनियमित हो जाती है। पेशेंट सोचता है कि किसी और वजह से ये लक्षण उभर रहे हैं, लेकिन यह थायरॉइड के कारण ही होता है।

थायरॉइड डिसऑर्डर किसी भी उम्र में हो सकता है। इसके लक्षणों को देखते हुए और टेस्ट की रिपोर्ट के आधार पर होम्योपैथी में ट्रीटमेंट किया जाता है। होम्योपैथी में ट्रीटमेंट के कई मोड होते हैं। क्वॉलिफाइड होम्योपैथ डॉक्टर ज्यादातर कॉन्स्टिट्यूशनल मेथड से उपचार करते हैं। कॉन्स्टिट्यूशनल का मतलब है पेशेंट का फिजिकल मेकअप कैसा है यानी मोटी है, दुबली है, काली है, गोरी है, उसका मेंटल स्टेटस कैसा है यानी झगड़ालू टाइप की है या शांत स्वभाव की। उसके व्यवहार में क्या-क्या बदलाव आए हैं, उसे कैसा म्यूजिक पसंद आ रहा है। पेशेंट से सारे इनपुट्स लेने के बाद होम्योपैथ चिकित्सक ऑब्जर्ब करते हैं और ऐसी दवा लेने की सलाह देते हैं, जो मरीज के लक्षणों से मेल खाती हो। ऐसी दवा बीमारी को कंट्रोल करने के साथ-साथ क्योर भी कर सकती है। होम्योपैथ में दवा रोग ठीक होने पर बंद भी की जा सकती है, जबकि एलोपैथ में आमतौर जीवनभर दवा लेनी पड़ती है।
डॉ. मुकेश कहते हैं कि होम्योपैथी की कोई भी दवा लेने से पहले डॉक्टर की सलाह जरूर लें, वरना रिजल्ट नहीं मिलेगा। थायरॉइड डिसऑर्डर में नेट्रम म्यूर दवा दुबले-पतले रोगियों को देते हैं। पल्सेटिला दवा सिंपल, माइल्ड नेचर के रोगियों के लिए है। लैकेसिस दवा बहुत ज्यादा बोलनेवाले मरीजाें को दी जाती है। ऐसे मरीज सुबह उदास रहते हैं, इनमें ईर्ष्या की भावना हाेती है। इन मरीजों की बॉडी के बाएं हिस्से में प्रॉब्लम होती हैं। यह दवा मेनोपॉज की दिक्कतों में भी अच्छा काम करती है। कैलकेरिया कार्ब दवा गोरी, काम ना करनेवाली, बहुत जल्दी थक जानेवाली, पसीने से बदबू आनेवाली महिलाओं में बेहतर काम करती है। मरीज को होम्योपैथ पर पूरा भरोसा हो, तभी दवा भी बेहतर काम करती है।