Monday 23 November 2020 02:28 PM IST : By Rashmi Kao

रसोड़े में मौन

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मैंने किसी से पूछा कि मुंबई फिल्म इंडस्ट्री, महाराष्ट्र सरकार, एनबीसी और दाएं-बाएं की सभी पॉलिटिकल पार्टियों के रसोड़े में कौन था? केबीसी के स्टाइल में बिना कोई ऑप्शन मांगे सामनेवाले से तुरंत जवाब मिला... रसोड़े में कौन होता है, और तें होती हैं, उनकी वही जगह है। कहीं भी चली जाएं, रसोड़ा उनका पीछा नहीं छोड़ता। इसलिए इन सभी के रसोड़े में औरतें ही थीं। दिशा सालियान, रिया चक्रवर्ती, अंकिता लोखंडे, कंगना रनौट और पता नहीं कौन-कौन। मुझे बड़ी हैरत हुई। बॉलीवुड के रसोड़े में तो ढेरों औरतें हैं... सभी पावर पैक्ड हीरोइनें हैं। दबंगई से भरी फिल्में करती हैं, हर तरह के स्टंट में माहिर हैं, पर असल जिंदगी में इतनी डरपोक, दब्बू, तमाशबीन, गूंगी गुडि़याएं क्यों बन जाती हैं कि कभी-कभी भगोड़ी लगने लगती हैं।

ये कैसी औरतें हैं? औरतें हैं या कठपुतलियां? ‘औरत’ शब्द से परहेज नहीं कर रहीं, क्योंकि अपनी बिरादरी के लिए यह ठेठ शब्द जो मैसेज देता है, वह कोई दूसरा सोफेस्टिकेटेड शब्द नहीं दे पाता। औरत होना अपने आपमें जो दम दिखाता है, वह इन भद्र महिलाओं या नारियों के पास नहीं। मैं इनको हीरोइन तो बिलकुल नहीं मान सकती, क्योंकि यहां सभी भद्र कही जानेवाली औरतों को मैंने कभी भी किसी भी मुद्दे पर अपनी बात रखते हुए नहीं देखा। सभी पिंक वालियां, आरा की अनारकलियां और अनगिनत शकुंतलाएं जिनकी राय अहम हो सकती थी, वे रिरियाती हुई नजर आयीं। इतना डर नेम और फेम के लिए कि मन की सच्ची बात तक कुर्बान... हमेशा जबान पर ताला... आपके पास कहने-बताने को कुछ नहीं। आपने कभी कुछ नहीं देखा-सुना? आपको छू कर कुछ नहीं गुजरा, आपकी चुप्पी को दाद मिलनी चाहिए। और तो और कंगना को चैलेंज करने तक की हिम्मत नहीं है। इस समय तो कंगना पर इनकी हंसी भी नहीं निकल रही। अंकिता की भी नपीतुली बातें...रिया की अपनी हकीकत... कितनी सच्ची, कितनी झूठ में डूबी, कोई नहीं जानता। वह किसके इशारे पर चल रही है? किसे बचा रही है, किससे बच रही है और कब तक? दिशा सालियान की जान कैसे और क्यों गयी? उस पार्टी के रसोड़े में कौन-कौन था। फिलहाल इंडस्ट्री की सभी औरतें चुप हैं, एक चुप सौ सुख की आड़ में। यहां अपने-अपने सुख को ले कर सभी खुश हैं, किसी को कोई पंगा नहीं चाहिए। शायद इसी में इनकी बहादुरी है। आपको अपनी यह बहादुरी मुबारक...

इस बॉलीवुड में मेरा कोई सगा संबंधी नहीं। ना ही मेरा कोई फिल्मी कनेक्शन है। मैं सिर्फ एक ‘मूवी बफ’ हूं। जब ‘बुक माई शो’ का जमाना नहीं था, तो ब्लैक में भी फिल्म देखने से परहेज नहीं था। पर जो औरतें इतने सालों से इस इंडस्ट्री का हिस्सा हैं, जो रात-दिन यहीं सांस लेती हैं, जो अंदर-बाहर की सब बातें जानती हैं, जिनसे कोई भी सच छुपे नहीं हैं, वे सभी औरतें ‘मैं चुप रहूंगी’ के रोल में क्यों हैं? यों तो सोशल मीडिया पर छलांगें लगाती हैं, अवॉर्ड वापसी पर चीखती-चिल्लाती हैं, जो देशभक्ति का दम भरती हैं, जो हर सही-गलत बात को सेक्यूलरिज्म के चश्मे से देखती हैं, जो ‘मी मुंबईकर’ का राग अलापती हैं, जिनकी पीढि़यों ने फिल्म इंडस्ट्री में झंडे गाड़े हैं, जो अपने आपको इंडस्ट्री का पिलर और छत मानते हैं, आज खामोशी का लबादा अोढ़े हुए हैं। उनको मुंबई फिल्म इंडस्ट्री के रसोड़े में लगी आग दिखायी नहीं दे रही, जिस थाली में खाते आए हैं, उस थाली में छप्पन छेद हो रहे हैं, थाली थाली ना रह कर छलनी बन गयी है। सवाल ज्यों का त्यों खड़ा है, रसोड़े में कौन था।

फिल्म इंडस्ट्री ठप पड़ी है। कुछ लोग अपनी चुप्पी सेंक रहे हैं, कुछ वोट सेंक रहे हैं, कुछ नोट सेंक रहे हैं। दलीलों की ताकत से जोर आजमाइश हो रही है। सब दूध के धुले लग रहे हैं। हर कोई एक-दूसरे को ले कर जजमेंटल हो रहा है। जो दुनिया से कूच कर गए और जो पीछे बच गए, सभी न्यूज चैनलों की कमाई का कच्चा माल बन गए हैं। पब्लिक गच्चा खा रही है। सुशांत का जाना, उसके दर्द की वजह, आत्महत्या या हत्या, उसके लिए न्याय और मुक्ति सब कुछ उलझा पड़ा है। पर फिक्र किसे है? बॉलीवुड के दर्शकों का एक ही सवाल है - रसोड़े में कौन था?

आउटसाइडर के लिए हर लड़ाई ‘टाई’ हो कर ठहर जाती है, पर इनसाइडर जानते हैं कि अंदर ही अंदर सांठगांठ के दांवपेंच कैसे चलते हैं, जब तक खेल की अगली चाल सामने नहीं आती। हर लड़ाई की हिस्ट्री का रेकॉर्ड रखना भी बड़ी समस्या है। चाहे लड़ाई रोल की हो, स्क्रिप्ट की हो या ड्रग्स की हो। इंडियन हिस्ट्री की तरह फिल्म इंडस्ट्री की हिस्ट्री में भी कई पेंच हैं। मसलन पीआर का पेंच, कॉन्ट्रैक्ट का पेंच, पॉलिटिकल पेंच, अंडरवर्ल्ड का पेंच, इनसाइडर-आउटसाइडर का पेंच, ड्रग्स के लेनदेन का पेंच और ना जाने कितने पेंच।

सुशांत सिंह राजपूत का शो बिजनेस से ‘पवित्र रिश्ता’ अपवित्र ढंग से जब टूटा और वह दुनिया से छूटा, तो इतने किस्से उछले कि बॉलीवुड में जलजला आ गया। भाई लोग बोलते नहीं... भैया जी चुप... बहनों ने ना बोलने की कसम खायी है और कंगना ने बोल-बोल कर तूफान खड़ा कर दिया है। सभी बधाई के पात्र हैं। चुप रहनेवाले भी और बोलनेवाले भी। प्यारे भाइयो और बहनो, आपकी इस सुपरहिट परफॉर्मेंस को देख कर पब्लिक की अांखें फटी की फटी हैं, ना उनसे सीटी बज रही है, ना तालियां, एक गहरा सन्नाटा दर्शकों के मन में टूटती छवियों के साथ पसर गया है। सच तो यह है कि जो बोले वह कुंडा खोले। कंगना ने अपना सच इतना उगला कि उसके दफ्तर का दरवाजा ही टूट गया, जहां ना किवाड़ रहे ना कुंडा। वह तो कहीं भी बैठ कर बॉलीवुड की बखिया उधेड़ने लगेगी। और हमारी स्मार्ट, इंटेलीजेंट भीड़ उसकी बात कहीं भी खड़ी हो कर सुन लेगी। कंगना को घुप अंधेरे कमरे में काली बिल्ली के गले में घंटी बांधनी जो आती है।

न्यूज चैनल को क्या चाहिए। उन्हें भी चाहिए भीड़... अांखों की भीड़, कानों की भीड़... न्यूज चैनल खुश और डिबेटकर्ता का गला खुश्क... मोटी टीआरपी...मोटी कमाई...। सौ करोड़ क्लब के हमाम में अपने-अपने हिस्से के साथ सब नंगे। बॉलीवुड हस्तियों ने फिल्म इंडस्ट्री के जहाज के एंकर डाल दिए। न्यूज एंकर हीरो बन गए। सभी क्लीन बने बैठे हैं और दर्शक बेचारे ड्राई क्लीन हुआ सा महसूस कर रहे हैं। मुझे कुछ एेसा ही लगता है, आपको कैसा लगता है? प्लीज बताएं। चाहे कुरसी पर बैठ कर बताएं या बुलडोजर पर बैठ कर बोलें। क्योंकि यहां तो कोई जान से गया, कोई जहान से और बेचारा स्पॉट बॉय कब तक अपने पेट पर पट्टी बांधे रखे, वह तो दो जून की रोटी से भी गया। पर सवाल वहीं का वहीं है, रसोड़े में कौन था?

रसोड़े में पकी थी मछली-बॉम्बे डक...कहने को मछली की एक वेराइटी और खाने में टेस्टी। मछली बतख कब और कैसे बनी, इस पर बात फिर कभी....पर अभी फिल्मी खिलाड़ी सितारे जो डक पर आउट हुए बैठे हैं, उनका किस्सा समझते हैं। वे मान बैठे हैं कि दुनिया उनके बारे में अब भी यह समझती है कि वे कंगना के उस एक परसेंट में से हैं, जो ड्रग्स के चंगुल में नहीं हैं। इसलिए चुप्पी ही भली। यही वजह है कि सभी इनसाइडर चुप हैं। बॉलीवुड के गलियारों मेें आउटसाइडर चीख रहे हैं। सुनते आए थे कि बॉलीवुड में सभी थोड़े-बहुत नॉटी होते हैं, लेकिन सियासत का नॉटीपन किसी से छुपा नहीं है। जो हिट है वही सियासत और बॉलीवुड में फिट है। आप क्या कहते हैं? मेरा सवाल अभी भी बॉलीवुड की पिच पर पड़ा मिलेगा कि रसोड़े में कौन था? जब सुशांत हमें छोड़ गया...जब कंगना के मुताबिक 99 प्रतिशत बॉलीवुड ड्रग्स में डूब गया... क्या सच में ड्रग माफिया बॉलीवुड इंडस्ट्री को चूस गया...?

इतना तो तय है कि बॉलीवुड के रसोड़े का प्रेशर कुकर खाली नहीं, जो ड्रग से करते प्यार, वे इस पकती खिचड़ी से कैसे करें इनकार, वे कैसे कंगना से पल्ला छुड़ाएं यार... बहुत कुछ पकता रहा है और अभी भी पक रहा है। जब रसोड़े में कुकर सीटी मारेगा, तो खुदा जाने कितने बॉलीवुड मसीहाओं के नाम बाहर निकलेंगे, पर इतना जरूर कहूंगी कि बॉलीवुड की पाठशाला बहुत कुछ सिखाती है। सबसे पहले कि चिकना घड़ा कैसे बना जाता है, किसी से ना बिगाड़ने का फॉर्मूला क्या है? #मी टू हो या कास्टिंग काउच, किसी भी बात पर खून का खौलना और मुंह का खोलना गलत होता है। स्टारडम का सेफ हाउस, हमेशा फार्म हाउस और बाथरूम होता है।

बदनाम हुए तो क्या नाम ना होगा, बॉलीवुड इसी सोच को ले कर चलता है। बॉलीवुड की जड़ों को अगर ड्रग्स का स्लो पॉयजन सींचता रहा है, तो हमें डर है कि बॉलीवुड जिस दौर से गुजर रहा है, यह उसकी अब तक बनी कामयाब पहचान के लिए अच्छा नहीं होगा। कितने ही प्रतिभाशाली युवा मन मायूस होंगे। मेरी बॉलीवुड के महानायकों-नायकों और बहुरंगी भाईजानों से गुजारिश है कि इस वक्त बॉलीवुड की इज्जत दांव पर लगी है। सपने दिखाने और पकानेवाली इंडस्ट्री अगर भरोसा तोड़ने लगे, तो वह कहीं से क्रिएटिव नहीं रह जाएगी। वहां फिर दम तोड़ चुकी क्रिएटिव सांसों और ठंडी पड़ चुकी उम्मीदों का कब्रिस्तान खड़ा नजर आएगा। आज आपके अपने रसोड़े में आग लगी है। सब कुछ जल रहा है। एेसे में आप सब मौन क्यों हैं?