Monday 28 September 2020 08:08 PM IST : By Rashmi Kao

मदर इंडिया जागो

किया करते हो तुम नासेह नसीहत रात दिन मुझको
उसे भी एक दिन कुछ जाके समझाते तो क्या होता। -अनाम

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अापकी अपने बेटों से कितनी बात होती है? बातचीत के विषय क्या होते हैं? क्या बातों में सिर्फ यही होता है कि बेटा, तुम ठीक से खाअो-पियो। अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो। दोस्तों को ले कर उलाहना अौर घर जल्दी लौट अाने की हिदायतें। सारा फोकस खाने-पीने अौर घूमने की बातों तक रहता है। कितनी मांएं अपने बेटों से सामाजिक सरोकारों, जिम्मेदारियों अौर व्यवहार जैसे मुद्दों पर बात करती हैं? शायद बहुत कम। क्या कभी उन्होंने 13-14 साल के बढ़ते बेटे को यह कहा है कि बेटा, हर लड़की को इज्जत की नजर से देखना चाहिए। क्या कभी मांएं यह सोचती हैं कि जिस सेक्स शब्द को अपने बेटे के सामने बोलने तक से वे परहेज करती हैं, वही शब्द उनके बढ़ते बेटे की सबसे बड़ी जिज्ञासा है? जबकि वह अपने हमउम्र लोगों के बीच बैठ कर मां की पीठ पीछे इस शब्द के कितने ही अर्थ निकालता है व कितनी ही कुंठाअों का शिकार होता है।
मांएं अपनी बेटियों को उठना-बैठना, दुपट्टा अोढ़ना, ब्रा का स्ट्रैप छुपाना, सैनिटरी नैपकीन को लपेट-लपाट कर रखना अौर ना जाने क्या-क्या सिखाती हैं, पर बेटे को तहजीब का पाठ पढ़ाना भूल जाती हैं। बेटी को लड़कों के साथ दोस्ती अौर उठने-बैठने की गाइडलाइंस देती मां क्या बेटे को एक लाइन में भी समझाती है कि उसका व्यवहार लड़कियों के साथ कैसा हो? क्या यह जरूरी नहीं कि सबसे पहले मां ही बेटे को स्त्री सम्मान का पाठ पढ़ाए, क्योंकि यह तो अाप सभी मानेंगी कि मां से बड़ा कोई टीचर नहीं हो सकता। क्या मां को अपने बेटों को यह नहीं समझाना चाहिए कि लड़की एंटरटेनमेंट का सामान नहीं होती, राह चलती लड़कियों को भूखी नजर से देखना गलत है। किसी स्त्री के साथ बेहूदगी करने से पहले उसके दिमाग में यह ख्याल क्यों नहीं अाता कि उसकी खुद की मां-बहन के साथ भी कोई पुरुष एेसा दुर्व्यवहार कर सकता है? मां का फर्ज बनता है कि बड़े होते बेटे के दिमाग में यह बात कूट-कूट कर डाले कि तुम्हें हर स्त्री की उतनी ही इज्जत करनी है, जितनी इज्जत तुम दूसरों से अपनी मां-बहन के लिए चाहते हो। टीनएज की शुरुअात ही वह सही समय है, जब मां बेटे को यह बात सिखा सकती है। लेकिन मां की अोर से ऐसी कोई मेंटल ट्रेनिंग बेटों को नहीं दी जाती कि वे लड़की को सेक्स टॉय न समझ कर सिर्फ इंसान समझें। जो मांएं बेटे को फर्श से उठा कर ना खाने की सीख देती हैं, बाहर से पिट कर मत अाना, पीट कर अाना जैसी नसीहतें देती हैं, वे ही बेटों में स्त्री को इज्जत देने का बेसिक संस्कार देने से क्यों चूक जाती हैं या फिर बेटे की बीमार होती दिमागी सोच को क्यों नहीं पकड़ पातीं?
बिगड़ता बेटा मां की नजर से बचा नहीं रह सकता, लेकिन मांएं भी किस्म-किस्म की होती हैं। एक वे, जो बेटे की गलतियों पर परदा डालने में एक्सपर्ट होती हैं। दूसरी वे, जिन्हें अपने बेटे की ऐसी हरकतों पर यह सोच कर नाज होता है कि उनका बेटा जवान हो गया है अौर जवान लड़कों से ऐसी गलतियां हो जाया करती हैं। हमारे देश का एक बहुत बड़ा तबका यही मान कर चलता है कि लड़कियां चीनी अौर लड़के चींटे होते हैं। बेटा हेकड़ी में अा कर गलत हरकतें करता है, लेकिन मां को बेटे के कैरेक्टर की कमियां दूसरों की गलतफहमी लगती है। क्या मां कभी बेटे को साफ शब्दों में यह समझाती है कि अगर अपनी मर्दानगी को अांकना है, तो कोई अर्थपूर्ण रास्ता अपनाअो। पर नहीं, हमारे समाज में ऐसा कहां होता है। मां-बाप बेटे की हरकतों पर सफाई दे-दे कर उसकी गलत सोच को सींचते हैं। वैसे भी हमारे यहां पुरुषों का बचपना 50 साल की उम्र तक खिंचता है अौर मां बेटे के इनोसेंस सिंड्रोम पर सदके जाती है। बेटा शरीर बनाने में लगा रहता है। अौलाद की ऐसी अंधभक्ति अच्छी नहीं, जो उसे दिल अौर दिमाग से बौना बना दे।
क्या हर मां को अाज के वक्त में अपनी तरफ से समाज को एक पुख्ता सपोर्ट सिस्टम देने की सोच नहीं रखनी चाहिए। बेटे को बाराती घोड़ा ना बनाएं। उसके अंदर ‘चेतक’ सी चेतना जगाएं। सारी लड़ाई मानसिकता की है, जिसे जीतने में हमें वक्त लग रहा है। बेटे की मानसिकता को मां बिगड़ने से क्यों नहीं रोकती। पूत अापनो सबको प्यारो, पर बेटा पैदा करने में कोई शान नहीं, शान है उसे सही अादमी बनाने में।
एक वक्त था जब गांधारी की पट्टी बंधी अांखें रजस्वला द्रौपदी का चीरहरण नहीं देख सकीं। उसकी गुहार भी उसे सुनायी नहीं दी। दूसरी तरफ कुंती ने द्रौपदी को बरफी का टुकड़ा समझा अौर बेटों को उसे अापस में बांट लेने को कहा। दोनों ही अौरतों ने अपनी गलतियों को सुधारने की एक भी कोशिश नहीं की। इन अौरतों के मुकाबले महबूब खान की फिल्म मदर इंडिया की ‘राधा’ स्त्री सम्मान में कहीं ज्यादा अागे है, जिसने ‘रूपा’ की इज्जत पर हाथ डालनेवाले अपने बेटे को भी नहीं बख्शा। अभी भी वक्त है, जागो, मदर इंडिया जागो !