Monday 10 February 2020 12:53 PM IST : By Rashmi Kao

नए साल का सदका

वक्त बदला, तारीखें बदलीं अौर इसके साथ बहुत कुछ बदल गया... लोगों के बीच कैलेंडर अौर ग्रीटिंग्स कार्ड को ले कर क्रेज खत्म हो गया। याद है एअर इंडिया का कैलेंडर घरों का स्टेटस सिंबल होता था। लोग डायरियां मांगते थे। डायरी अौर कैलेंडर के तोहफे रिश्ते की अहमियत बताते थे... अाज कैलेंडर कलाई पर बंध गया... दीवारें तारीखों के बोझ से मुक्त हो गयीं... पर पता नहीं कैसे दिलों में खड़ी दीवारें ऊंची हो गयीं।
अतीत वर्तमान से टकराने लगा, इंसान बदला... जीने अौर सोचने के अंदाज बदले... बातों के तेवर बदलेे... सवाल करना गुनाह हो गया... सवालों से नरमी गयी... जवाबों मेें गरमी नयी... बहस के मुद्दे बदले, एनवायरमेंट ने मौसम बदले... मौसम ने शक्लें बदलीं... खबरें बदलीं... सही अौर गलत की परिभाषाएं बदलीं... पीछे पड़नेवालों की जमात पिछड़ गयी... ट्रोल करनेवालों की भीड़ अागे निकल गयी।
बहनो अौर भाइयो, देखिए तो झंडा अौर राष्ट्रगान दोनों कटघरे में खड़े हो गए, बदलती तारीखों के दौर में दाग भी अच्छे हो गए... देश क्या बदला... देशभक्ति का रंग बदला... कश्मीर बदला, अयोध्या बदली... अाजादी के मायने बदले। खामोशी की अावाजें बदलीं... शोर ने सन्नाटे समझे। हमारी हरकतों से रूठ कर ग्राउंड वॉटर नीचे उतर गया... पानी में प्रदूषण बढ़ गया, कहीं अांखों का पानी उतर गया.... कहीं पानी अादमी को पी गया... कहीं खेती के साथ किसान भी सूख गया... देखते ही देखते पॉलिटिक्स दबंग हो गयी... संविधान को बेशरमी का कीड़ा चाट गया... नेता कभी स्कैम खिलाड़ी, तो कभी होटलों के कैदी बन गए, वोटर बेचारा अपनी उंगली निहारता रह गया। पॉलिटिक्स के प्रोफेशन में घोटाले मलाई के कटोरे बन गए। कहानियां सुनने अौर सुनानेवाले बदले... ‘खुल जा सिमसिम’ कहनेवाला वक्त गुजर गया। कितने अलीबाबा, कितने चोर, गिनते-गिनते अाम अादमी थक गया... दालें अॉर्गेनिक हो गयीं, टमाटर की ग्रेवी में पार्टियां डूब गयीं, बीफ का मुद्दा अादमखोर हो गया... नफरतें सड़कों पर उतर गयीं...  डेमोक्रेसी का कमाल देखिए कि बेचारे प्याज तक का चीरहरण हो गया.... मानते हैं ना वक्त बदल गया ! सेक्युलर टेस्टवाली तिरंगी बरफी की मिठास खो गयी... चाय का स्यापा इतना बढ़ा कि मुंह भीगा भी नहीं अौर चाय ठंडी हो गयी। नेताअों की बातों ने धार पकड़ी, डेवलपमेंट सुस्त पड़ा अौर इकोनॉमी की नब्ज धीमी हो गयी। वक्त का उबाल देखिए, कमजोर पड़ चुकी लैंडलाइन के बीच कई लोगों की सिटिजनशिप मोबाइल के नेटवर्क की तरह ड्रॉप हो गयी। साल का क्लाइमैक्स जाते-जाते मुल्क को जला गया।

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चंद्रयान चांद पर लटक गया... चांदनी बिछा कर सोने का जमाना गुजर गया, क्योंकि कार्बन फुटप्रिंट्स ने कुदरत के फिल्टरों को कुचल दिया। जंगल को चोर ले गए, मिट्टी-बालू को अादमी फांक गया... प्लास्टिक के पहाड़ बन गए... अौर देखते ही देखते फैशन इकोफ्रेंडली हो गया। मसखरे बड़े हो गए... कॉमेडी न्यूज में बदल गयी... भला हो स्टैंडअप कॉमेडियंस का, हंसी अपने पैरों पर खड़ी हो गयी अौर ‘मीम’ को क्या कहें, वह तो जेल का वॉरंट बन गया। दमघोंटू टॉयलेट प्रेम कथा में तब्दील हो गया... लोटा-पार्टीवाली किटी पार्टियां करने लगीं... सेल्फी सहेलियों से ब्रह्मांड भर गया... देखते-देखते एलोवेरा सैनिटरी नैपकिन तक पहुंच गया। सैनिटरी नैपकिन तक को पंख मिल गए, लेकिन अफसोस जिस सोच को पंख लगने चाहिए थे, वह हर नयी तारीख से कट गयी।
शादी एक्सपेरिमेंट का रिश्ता बन गयी... पहले दोस्ती फिर लिव इन... फिर मोटे बजट में डूबी धूमधड़ाकेदार हो गयीं... चली तो चली, नहीं तो चुपचाप बैठ गयी। रोमांटिक रिश्तों ने नयी परिभाषाएं अोढ़ीं, इंटरनेटवाला लव सिर चढ़ गया... वॉट्सएप जोक्स का जुनून बढ़ गया। तलाक अासान हो गया... अौरत ने तिल-तिल कर मरना छोड़ा... डेटिंग एप्स ने हमजोली ढूंढ़ने का रास्ता खोला... फीलिंग्स के कपाट बंद रहे... हर रिश्ता सोची-समझी स्ट्रैटेजी बन गया... सब कुछ टच एंड गो हो गया... देखिए तो वक्त कैसे बदल गया। बधाई हो ! बच्चे अाईवीएफ सेंटरों से मिलनेवाला प्रसाद बन गए... अाईवीएफ सेंटर संतान सुख अौर परिवार के कल्याणकारी मॉडर्न मंदिर बन गए... बदलाव की बयार में दुअा है कि स्पर्म की सेहत अौर सरनेम सही रहे। सेहत की चर्चा हो अौर डॉक्टरों का नाम ना अाए... अोफ्फो, यह क्या डॉक्टर अब सेल्समैन बन गया... पेशेंट की पर्ची पर उसका कमीशन चढ़ गया। जाते दशक ने शिक्षा का अधिकार दिया, पर देखते ही देखते शिक्षा भी फायदे का व्यापार बन गयी। सच अौर अफवाहों के बीच का फर्क खो गया... कन्फ्यूज अादमी के लिए वक्त काटना भारी हो गया... नोट के रंग बदले... क्लासरूम के ब्लैकबोर्ड बदले... तख्ती अौर स्लेट गुम हो गयी... जिम्मेदारियों अौर हकों की गुत्थमगुत्था बढ़ गयी... एक पूरी पीढ़ी इंटरनेट की गोद में बड़ी हो गयी... सेल्फी युवाअों के मिजाज का हिस्सा बन गयी... एक बटन के क्लिक पर स्माइल रेडी जेनरेशन इमोशन मूवमेंट में एक्सपर्ट हो गयी।
मीनिंगफुल बातें फेस टू फेस कम फेसबुक अौर इंस्टाग्राम पर ज्यादा होने लगीं... उंगलियों की पोरें सुस्ती में डूबने लगीं... अंगूठे की दादागिरी बोलने लगी... टि्वटर डिबेट का स्टेज बन गया... शहर स्मार्टनेस की तरफ दौड़ने लगे... अादमी रास्ता भूलने लगा... गूगल मैप रिश्तों का घर ढूंढ़ने लगा। दुकानदार माल बेचते-बेचते घर में अा घुसा... टेक्नोलॉजी ने भूख-प्यास की शक्ल बदल दी... रसोई की अंगीठी एंटीक पीस हो गयी, स्विगी साबूदाना खिचड़ी परोसने लगी... ‘मैं किचन में क्यों जाऊं,’ मैं भी सोचने लगी।
स्वच्छता का अालाप बढ़ा, गटर मौतों का ग्राफ चढ़ा... हथेली पर सरसों जमानेवाले हथेली से नजरें हटाना भूल गए। देखिए तो, हथेली पर स्मार्टफोन कैसे उग गए... हालात बदले, रंगों ने शक्ल बदली। क्रिकेट की गेंद भी बदल गयी... गोरे रंग से ऊब कर वह अब गुलाबी हो गयी। पिंक का मतलब बदल गया... एक रंग खिलाड़ी की गेंद पर चढ़ा अौर दूसरा फिल्म बन स्काई तक पिंक कर गया। पिंक फिल्म ने बेखौफ बिगड़े नवाबों को स्त्री के ‘नहीं’ का मतलब समझा दिया... इस पिंक पर अौर क्या कहें, सेफ्टी के नाम पर अॉटो रिक्शा अौर बस का टिकट तक गुलाबी हो गया। लेकिन तारीख गवाह है कि साल दर साल रेप रोज का तमाशा बन गया है... हर शहर निर्भया की गिनती से जुड़ गया... लड़की अाइटम बनी अौर गैंग रेप मरदों का साझेदारी का शगल हो गया। मोमबत्तियां रोते-रोते थक गयीं, अांसू पत्थर हो गए, लुटेरों अौर दरिंदों के मानवीय हक अौरत के वजूद से बड़े हो गए। घड़ी की सुई भी मर्द अौर अौरत की जात के बीच बंट गयी। मर्द को वक्त ने वक्त दिया अौर अौरत पर वक्त की पाबंदियां लग गयीं...

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अंधेरों ने करवट बदली, उजालों ने शरम छोड़ी...चुप्पी से कहानियां फूटीं... अौरत ने डर को निगलना सीखा... काली तारीखों ने मुंह खोला... हैशटैग से मीटू उपजा... थर्ड जेंडर अौर गे रिश्ते मान्य हो गए... देखते- देखते कानून अौर न्याय व्यवस्था का भी एनकाउंटर हो गया... चूंकि फास्ट ट्रैक पर न्याय स्लो रहा अौर बैंक लोन फास्ट हो गया... फाइनेंशियल क्राइम अाम हो गया... रसूखवाले पैसा ले कर फरार हो गए... बिचौलिए मालामाल हो गए... वक्त ही तो है, कैसे बदल गया...
तारीख रुकेगी नहीं... लेकिन गलत को सुधारना हमारा काम है अौर इस नए साल में हमें बहुत कुछ सुधारना है... सुधारना है टूटते अनुशासन को, बिखरते संयम को, घटती ईमानदारी को, बढ़ते अविश्वास को, खोती विनम्रता को, फैलते झूठ को। विकास तभी अाएगा, जब यह सब खोया हुअा हम वापस कमाएंगे। हमारे पास सिर्फ एक ही तो चीज है, जो नहीं बदली अौर वह है उम्मीद... कुछ अच्छा करने की उम्मीद... कुछ सुंदर, बड़ा अौर नया करने की उम्मीद... सफलता के साथ अागे बढ़ने की उम्मीद... सच तक पहुंचने की उम्मीद... अानेवाला साल बेस्टम बेस्ट अौर खुशियों से भरा हो, इसके लिए जरूरी है कि हम सब मिल कर नयी उम्मीद के साथ नए साल का सदका उतारें, क्योंकि उम्मीद है, तो जिंदगी है !