Thursday 24 September 2020 10:11 PM IST : By Rashmi Kao

हिटमैन या हीरो

कांच का बस एक घर है लड़कियों की जिंदगी
अौर कांटों की डगर है लड़कियों की जिंदगी    -श्याम सखा ‘श्याम’

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सत्यकथा सुनेंगी? अाज से 35 साल पहले एक शादी हुई, जिसमें नयीनवेली दुलहन की उम्र 20 साल की थी। वह ज्यादा पढ़ी-लिखी नहीं थी। सामान्य लड़कियों की तरह उसके भी शादी को ले कर अपने सपने थे, जो शादी के कुछ दिनाें के अंदर ही बिखर गए। सबसे पहले पति ने शादी के महीनेभर बाद ही उस पर हाथ उठाना शुरू कर दिया। जरा-जरा सी बात पर चीखता-चिल्लाता अौर मारता। पति का मानना था कि उसे पत्नी के साथ कैसा भी व्यवहार करने का पूरा हक है। समाज अौर कानून उसे लाइसेंस देता है कि वह पत्नी को ठंडी पड़ गयी चाय अौर तेज हो गए नमक पर चांटा लगा दे। इस लड़की ने अपनी शादी बचाने के लिए 10 साल कोशिश की अौर इन बीते सालों में उसके पति ने उसे हर तरह के कष्ट दिए। वह उसकी ब्रेस्ट पर अपनी जलती सिगरेट बुझाता। उसको इतना काटता कि शरीर पर नील पड़ जाते अौर खून निकलने लगता। उसके पति का कहना था कि जब वह तकलीफ से कराहती है, उसकी अाह निकलती है, तो उसको बहुत अच्छा लगता है।
अाज यही स्त्री समाज में अपनी खास जगह रखती है। उसकी अपनी पहचान बनी है। उसने अपनी मेहनत से इज्जत कमाई है व अाज अपने पैरों पर खड़ी है। वह कई बार अपने काम के लिए पुरस्कृत भी हुई है। लेकिन इतने साल गुजर जाने के बाद भी वह कहती है, ‘‘मैं बदली हूं। लेकिन ना हमारे समाज की सोच बदली है, ना ही पुरुष बदला है। हालात वहीं के वहीं हैं। सिर्फ हमारे कपड़े बदले हैं। हम पहनावे अौर दिखावे के लिए मॉडर्न हुए हैं।’’ ज्यादातर पुरुष, यहां तक कि पढ़े-लिखे पुरुष भी शादी को ठेकेदारी की तरह लेते हैं। पत्नी की सोच, उसकी पढ़ाई-लिखाई, उसके काम अौर कैरिअर किसी की भी कद्र नहीं है।
मॉडर्न माहौल में स्त्री का बहुत महिमामंडन हो रहा है। लेकिन  अचानक अगर घरों के अंदर जो चल रहा है उस असलियत से सामना हो, तो बहुत से परिवारों में पति का शर्मनाक व्यवहार देखने को मिलेगा। स्त्री मदद के लिए पुकार नहीं सकती। पति की बेरहमी को बयान नहीं कर सकती अौर किसी भी तरह उसकी क्रूरता से बच नहीं सकती। वह घर में बैठे हमलावर के लिए रोज उसकी पसंद का पकाती है, हजार अावाजें लगा कर बुलाती है, थाली परोस उसके स्वाद की मंजूरी व पसंदगी का इंतजार करती है। अौर तो अौर, उसकी डिमांड पर तुरंत बिछ भी जाती है। स्त्री शांत रहे, उसका शरीर गरम रहे अौर पति की सत्ता सुनििश्चत रहे, इससे अागे कुछ अौर देखा नहीं जाता। जीवन के क्लाइमेक्स तक पहुंच चुकी सांसेें सचाई को जबान पर लाने से हिचकिचाती हैं। शायद यही हमारे सामाजिक परिवेश में हैप्पी मैरिज कहलाती है।
अधिकतर परिवारों का रवैया भी खाप जैसा है, जिसमें पत्नी को सवाल करने का हक नहीं है। पति के अवतार में सामने खड़े हमलावर को रोकने की हिम्मत भी वह नहीं जुटा पाती। हम एक ऐसे समाज का हिस्सा हैं, जो विवाह की पहली रात ही पुरुष को बिल्ली मारने की सलाह देता है। ऐसा समाज पत्नी के सम्मान का पाठ कैसे पढ़ या पढ़ा सकता है। यहां तो पत्नी को डरा कर रखने का रिवाज है व इस रिवाज को कायम रखने की सीख दी जाती है। सपनों का हीरो अौर कुछ नहीं, हिटमैन निकलता है। पत्नी की उदासी अौर खालीपन को पति या तो समझता ही नहीं या समझने में बहुत वक्त लगा देता है। उम्र गुजर जाती है, घर ट्रॉमा सेंटर बन जाता है। इस सबके बीच पति के लिए लंबी उम्र, अच्छी सेहत अौर ना जाने क्या-क्या मन्नतें मांगती पत्नी व्रत-उपवासों का भी सहारा लेती है।
हंसमुख, मिलनसार, सबको साथ ले कर चलनेवाली, घर की इज्जत का ख्याल रखनेवाली, स्त्री इन सभी विशेषताअों को लाल बनारसी साड़ी के पल्लू में बांध कर पति के घर में कदम रखती है। लेकिन जब पति वीभत्स रस में डूबे कड़वे शब्दों का इस्तेमाल कर अपने कमजोर चरित्र को अपनी ताकत समझते हुए पत्नी पर अाजमाने लगे, तो रिश्ते का पोस्टमार्टम करने का वक्त अा जाता है। समाज में अायी अाधुनिकता के बावजूद दांपत्य में भाषा बेलगाम हुई है। क्रूरता बढ़ी है। हाउसवाइफ से ज्यादा वर्किंग वाइफ की चाहतें बढ़ी हैं, पर पत्नी से भावनात्मक स्तर पर जुड़ने की कोशिशें नहीं होतीं या यों कहें कि कभी हुई ही नहीं। उसे तोड़ने व उसके साथ हिसाब बराबर करने की सोच दिमाग में कुलबुलाती है।
लेकिन सच कहूं, तो अगर महिलाएं अपना दर्द दबंग हो कर सामने रखने लगीं, तो एक से एक दर्दनाक कहानियां निकल कर अाएंगी। वैवाहिक हिंसा के डरावने अनुभवों का समाज के सामने अाना जरूरी है। स्त्री के घावों पर मलहम तभी लगेगा, जब शादी की सचाई से परदा उठेगा। अपने डरों से बाहर निकलना ही जीत है।