Monday 28 September 2020 08:10 PM IST : By Rashmi Kao

साहिब, बीवी अौर स्मार्टफोन

अॉनलाइन पर हो गए सारे लाड़-दुलार
दुनिया छोटी हो गयी, रिश्ते हैं बीमार।  -अज्ञात

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एक बार फिर दमदार इश्क, रिश्ता, शादी अौर फिर ‘वो’ की धमाकेदार एंट्री। एंट्री भी मोबाइल की स्क्रीन पर। मैसेज अौर वॉट्सएप के टूटे बिखरे लफ्जों के बीच उभरा एक नया चेहरा। पारदर्शिता अौर ईमानदारी को ले कर शुरू हुई लव स्टोरी मदारी मोबाइल की चौखट पर करवटें बदलती देखने को मिली। सच क्या है, ढूंढ़ने की कोशिश कर रही हूं, पर नाकामयाब हूं, क्योंकि पति कहता है, ‘ऐसा कुछ नहीं है, ये फालतू में शक कर रही है।’ पत्नी कहती है, ‘अगर कुछ नहीं है, तो मैसेज मुझे पढ़ने क्यों नहीं दिया?’ मैसेज में उसको ‘स्वीटू’ कह कर संबोधित क्यों किया? इनकी लाइफ में ‘स्वीटू’ तो सिर्फ एक मैं ही हूं, तो यह ‘दूसरी स्वीटू’ कहां से अा गयी? मामला गरम अौर गंभीर है।
रिश्ते का ‘एग्जिट बटन’ अांखें दिखा रहा है अौर मैं सांस रोके सब देख रही हूं। हमेशा अॉनलाइन रहनेवाले अौर मोबाइल हाथ में रखनेवाले, शादी के मंडप में भी मोबाइल का साथ ना छोड़नेवाले, टॉयलेट में कमोड की सीट तक मोबाइल मोह में डूबे इन यंग कपल्स को कौन समझाए कि लव में जुड़वां बैलेंसशीट नहीं होती। अापकी जिंदगी में जुड़े कई बेतुके शेअर होल्डर अापके रिश्ते में सेंध लगा देते हैं अौर अापको पता भी नहीं चलता। तब मैरिज के म्यूचुअल फंड के खरेपन में खोट मिलने लगता है, क्याेंकि मैरिड लाइफ स्टीरियो टाइप तरीकों पर नहीं चलती। एक बेकार नॉन परफॉर्मिंग रिश्ता हमारे सिर पर सवार हो जाता है अौर हमें ले डूबता है। ना चाहते हुए भी जाने-अनजाने दंपती एक-दूसरे को छलने लगते हैं।
नेशनल लेवल पर ही डेवलपमेंट की पॉलिटिक्स नहीं चलती। शादीशुदा रिश्ते में भी इमोशनल डेवलपमेंट की दरकार होती है, जो भावनाअों के ‘रोड शो’ के सहारे अागे बढ़ती है। रिश्ते में साथी अापका हर मूव अपने मन के परदे पर देखता, परखता अौर महसूस करता है। मन की इंजीनियरिंग को भी समझने की कोशिश करें। अापका हैंडसेट चाहे समय-समय पर बदलता रहे, पर दिल के कलपुर्जे अभी भी पुराने ढर्रे पर ही चल रहे हैं अौर चलते रहेंगे।
लेकिन हम अौर हमारा स्मार्टफोन अाज का नशा नंबर वन है। स्मार्टफोन का अाकर्षण इतना है कि अमेरिका में 50% स्मार्टफोन यूजर रोज 4 घंटे फोन पर बिताते हैं। 25% ऐसे भी हैं, जो एक दिन में 4 घंटे से भी ज्यादा वक्त सिर्फ फोन को निहारने में ही गुजार देते हैं। मजे की बात तो यह है कि अाधे स्मार्टफोन यूजर तो अपने फोन के बिना रह ही नहीं सकते। ये सारी बातें अमेरिका में हुए एक अध्ययन में सामने अायीं। इसी अध्ययन से यह भी पता चला कि इंटरनेट से लगातार जुड़े रहनेवाला
व्यक्ति अपने अर्थपूर्ण रिश्तों को ले कर कमजोर पड़ने लगता है। उसकी रिश्तों को संवारने, सुधारने अौर बचाने की शक्ति भी कमजोर होती जाती है। अॉनलाइन बातचीत या संपर्क असली जिंदगी से ना सिर्फ बिलकुल अलग होता है, बल्कि काफी हद तक बुरा भी होता है।
स्टैनफोर्ड युनिवर्सिटी के मशहूर मनोचिकित्सक एलियस एब्युजॉड ने अपने एक इंटरव्यू में यहां तक कहा है कि व्यक्ति की अॉनलाइन पर्सनैलिटी भी होती है, जो उसके असली व्यक्तित्व से बिलकुल अलग होती है। इस अॉनलाइन पर्सनैलिटी में कई तरह की विशेषताएं जुड़ जाती हैं। व्यक्ति में अावेग बढ़ता है, वह अपनी क्षमताअों को ले कर बढ़ा-चढ़ा महसूस करता है अौर अात्मकेंद्रित भी हो जाता है। उसमें खुदगर्जी इस हद तक बढ़ जाती है कि वह बचकानी हरकतें कर बैठता है। यह सोच कि इंटरनेट हमारे चारों तरफ ही घूमता है, व्यक्ति सही अौर नैतिक व्यवहार से भी दूर होता चला जाता है।
एलियस के अनुसार, यह सब इतने सहज रूप से अौर जल्दी होता है कि व्यक्ति को खुद भी पता नहीं चलता कि वह कितना अौर किस रफ्तार से बदल रहा है। हमें कोई नहीं सिखाता कि अॉनलाइन रिश्तों अौर शॉपिंग में तेजी से अागे कैसे बढ़ें, पर हम अागे निकल जाते हैं। हम बेखबर रहते हैं अौर यह बदलाव हमें छू कर गुजर जाता है। ई-पर्सनैलिटी की यही कमियां हमें अनैतिकता की अोर धकेलती हैं अौर हमारी असली जिंदगी पर भी असर पड़ने लगता है।
स्मार्टफोन के सकारात्मक पहलू भी हैं। इंटरनेट पैक से दुनिया मुट्ठी में होने का अहसास हमें मजबूती देता है, जो एक अच्छी बात है। चैलेंज यह है कि हम इस मजबूती के अहसास के नशे में डूब कर असल जिंदगी में लापरवाह बन कर दुस्साहसी कदम ना उठाने लगें। अगर सही जिंदगी चाहते हो, तो अॉनलाइन लाइफ को रियल लाइफ के समान ही ‘जियो,’ क्योंकि खुशहाल जिंदगी के लिए एक ही स्वीटू काफी है। कहते हैं ना- अाधी छोड़ पूरी को धावे अाधी मिले ना पूरी पावे।