नीचे गिरे सूखे पत्तों पर अदब से चलना जरा
कभी कड़ी धूप में तुमने इनसे पनाह मांगी थी
-एक वृद्धाश्रम के गेट पर लिखी पंक्तियां

कहानी एक कहानीकार की है, जिनकी कहानियां पत्र-पत्रिकाअों में छपती रही हैं। इस पत्रिका में भी उनकी कई कहानियां छपी हैं। उन्होंने मुझे हमेशा मां जैसा स्नेह दिया। उनकी वह दोमंजिला कोठी दिल्ली के नामी कमर्शियल इलाके में थी। एक नामी स्कूल में पति के साथ अध्यापिका रह चुकी वे हमेशा से ही लेखन से जुड़ी रहीं। पति के साथ वे अपनी रचनाएं ले कर मुझसे मिलने अातीं। बातचीत ने हमारी निकटता बढ़ा दी। उनकी हर नयी रचना की मैं पहली हकदार होती। वे अमेरिका में बसे अपने बच्चों, दो बेटों अौर एक बेटी की ढेरों बातें मुझसे करतीं। अमेरिका जातीं, तो वहां खाली वक्त में उनकी कहानियां लिखने की रफ्तार तेज हो जाती। इसी बीच उनके पति दुनिया में नहीं रहे। अकेलापन बढ़ने लगा। उम्र के इस पड़ाव पर कहानियाें के साथ वसीयत भी लिखनी पड़ी।
एक दिन उन्होंने अपने अाईअाईटी से पढ़े छोटे बेटे से मुझे मिलवाया, जो उनका ‘पेपरवर्क’ कराने के लिए खासतौर से दिल्ली अाया था। तीनों बच्चों ने फैसला किया था कि मां अमेरिका में रहेंगी अौर इंडिया अाती-जाती रहेंगी। बड़ी कोठी किराए पर रहेगी। एक छोटा फ्लैट ‘मम्मी’ के लिए खरीद लिया जाएगा, जो मम्मी का इंडिया में हॉलीडे होम बन जाएगा। वे यह खुशखबरी देने मेरे अॉफिस तक चली अायीं। ‘‘मैं अमेरिका जा रही हूं। इंडिया अाती रहूंगी। जैसे ही फ्लैट फाइनल होता है, मैं यहां चली अाऊंगी अौर 4-5 महीने रह कर ही जाऊंगी।’’ उनको खुश देख कर अच्छा लगा अौर वे अमेरिका चली गयीं। दिसंबर की एक ठंडी रात मेरा मोबाइल बजा। इंटरनेशनल कॉल पर उनकी बेहद धीमी अावाज थी। मेरी बुजुर्ग दोस्त रो-रो कर एक ही बात दोहराए जा रही थीं कि उन्हें इंडिया वापस अाना है। उनके लिए मैं जल्द से जल्द किसी अोल्ड एज होम में इंतजाम कर दूं। मैंने उनसे फ्लैट खरीदनेवाली बात पूछी, तो वे बोलीं कि उन्होंने घर किराए पर चढ़ाने के लिए छोटे बेटे को पावर अॉफ एटॉर्नी दी थी, क्योंकि वह इंडिया में कुछ दिन ठहर रहा था। लेकिन अब तो सब कुछ बिक चुका है। तीनों बच्चे अापस में पैसा बांट चुके हैं। अमेरिका में उनका हर तीन महीने में बेटे के घर से बेटी के घर ट्रांसफर होता है। दामाद पैसा मिलने तक चुप था। बड़े बेटे के घर में इंडियन बहू को वे नहीं भातीं। बेटा चुप्पी साधे रहता है। इंडिया में छोटा बेटा फोन नहीं उठाता। मां की चेकबुक अौर पासबुकवाला ब्रीफकेस छोटे बेटे ने खो दिया। उनके हाथ में एक पैसा नहीं अौर वे इंडिया वापस अाना चाहती हैं। जब वे पावर अॉफ एटॉर्नी साइन कर रही थीं, तो वकील ने उनसे दस बार पूछा कि कहीं वे किसी दबाव में तो ऐसा नहीं कर रहीं, पर वे अपने ही पेट के जनो की चालबाजियां अौर मन का मैल नहीं पकड़ पायीं। उनका कहना था कि 70 की हो चुकी हूं अौर दिन में सात बार मौत को याद करती हूं। उम्र की घुटन से नहीं मर रही, जितना अपने अापको फालतू करार दिए जाने से मर रही हूं।
मेरी अब जरूरत नहीं, मुझे अब चले जाना चाहिए, पर कहां यह मुझे कोई नहीं बताता। उन्होंने मुझसे अपने लिए छत ढूंढ़ने को कहा अौर फोन रख दिया। मैंने उनके लिए अोल्ड होम तलाशने शुरू किए। इस बीच मैंने उनके छोटे बेटे को उस नंबर पर कई फोन किए, जो उसने अपनी मां के सामने मुझे दिया था, पर घंटी तक नहीं बजी। मैं अाज तक अपनी इस कहानीकार दोस्त के फोन का इंतजार कर रही हूं। जिस नंबर से उन्होंने फोन किया था वह किसी पब्लिक कॉल बूथ का था। कहानीकार अाज खुद एक कहानी बन चुकी हैं। बुढ़ापे की ऐसी ढेरों कहानियां हैं। कुछ को अखबारों की सुर्खियां मिलती हैं, कुछ खो जाती हैं। वाराणसी के एक परिवार की अौलादों ने पेंशन पाने के लिए मां की लाश को 5 महीनों तक छुपा कर रखा। वहीं दिल्ली में एक अधेड़ तलाकशुदा, किसी के इश्क के मारे नशेड़ी बेटे ने सुपारी दे कर जायदाद के लिए मां-बाप का कत्ल करा दिया। कहीं कोई अपने घर के बुजुर्ग को महंगी वील चेअर पर बैठा कर ट्रेन में छोड़ गया। मुंबई में किसी ने मां को बिल्डिंग के टैरेस से धक्का दे दिया।
सही कहा गया है कि बड़े होए पर जानिए बहू, बछड़ा, पूत। बुजुर्ग अपनी शरम में चुप रहते हैं अौर बच्चे बड़े हो कर शरम छोड़ देते हैं। सवाल यह है कि हम अपने बुजुर्गों को किस तरह देखते हैं। उनके साथ क्या करते हैं। उनका कितना अौर कैसा ध्यान रखते हैं। माता-पिता अपने बच्चों को हर कड़वाहट से दूर रखते हैं, पर बच्चे उम्र के पतझड़ में उनको ठूंठ समझने लगते हैं। माता-पिता को पुराने कपड़ों की गठरी सा ठेला जाता है। रिश्ते में अर्थशास्त्र ही बचा रहता है। पेरेंट्स की प्रॉपर्टी, बैंक डिपॉजिट, नॉमिनी के कॉलम में अपना नाम होने के बावजूद जल्दी मची है, जो कल मिलना है, वह अाज क्यों नहीं मिलता। बुढ़ापा अटल सत्य है, बच्चे यही भूल चुके हैं।