Thursday 03 March 2022 11:56 AM IST : By Mala Verma

सॉरी नहीं तो नहीं!

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मिसेज सहाय आज जरा जल्दी ही सो कर उठ गयी थीं। अलसायी आंखों से खिड़की से नीचे झांका। जी धक्क से रह गया। ये क्या ! गाड़ी पोर्टिको में पड़ी है, गैराज खुला है और मेन गेट में ताला नदारद है ! इस तरह का दृश्य तो सुबह-सुबह नहीं दिखना चाहिए। तो क्या पति कहीं बाहर निकले थे, जो मेन गेट खुला छोड़ दिया ! लेकिन पति तो पलंग पर रजाई से मुंह ढांपे गहरी नींद में थे। वैसे भी उनकी सुबह जल्दी उठने की आदत नहीं। आउटहाउस में दईया का परिवार रहता है, लेकिन वे सब भी रातभर जग कर पहरेदारी तो नहीं करेंगे।

मिसेज सहाय का माथा भन्ना गया था। ये कौन सा तरीका है मिस्टर का ! इतनी लापरवाही ! दो दिनों से लगातार मोहल्ले में चोरियां हो रही हैं। परसों रात उनकी दईया की साइकिल चोरी हो गयी। उसके कुछ दिन पहले मोटर साइकिल गायब हुई थी। इतने करीब से चोर बेधड़क, बेखौफ सामान चोरी करके ले जा रहे हैं, पति को सब खबर है फिर भी इतनी ढिलाई, इतनी निश्चिंतता ! जब दो चक्के की सवारी, दो कदम से चोरी हो सकती है, तो चार चक्का क्यों नहीं ! अब महाशय सो कर उठे, तो चाय के साथ इनकी खैर लेती हूं। जैसे पूरे घर की सुरक्षा मेरे ही माथे है ! इनका कुछ फर्ज नहीं बनता? घर को होटल समझ रखा है, खाया-पिया और लंबे हो गए ! सुबह उठते मूड ऑफ हो गया। अब जब तक मन की भड़ास नहीं निकलती, चैन कहां !

रसोईघर में घुसीं और चाय का पानी गैस पर चढ़ा दिया। मिसेज सहाय काम कर तो रही थीं, पर कुढ़न इतनी ज्यादा कि चाय में दोबारा चीनी पड़ गयी। मीठी चाय से दोनों पति-पत्नी को परहेज है, पर अतिरिक्त चीनी निकले कैसे ! तब तक मिस्टर सहाय बेडरूम से निकल ड्राॅइंगरूम में आ कर अपने मोबाइल दर्शन में बिजी हो गए और रोजाना की तरह गरमागरम चाय का इंतजार करने लगे।

मिसेज सहाय ने चाय की ट्रे झन्नाक से रखी और फट पड़ीं, ‘‘ये क्या ! रात गाड़ी गैराज में नहीं रखी ! मेन गेट में ताला क्यों नहीं लगाया ! गैराज खुला पड़ा है ऊपर से इतना तेज बल्ब रातभर जलता रहा ! क्या तुम्हें पता नहीं कुछ फीट की दूरी से दईया के घर से कितनी वस्तुएं चोरी हो गयीं, फिर भी इतनी लापरवाही ! लाखों की गाड़ी पलक झपकते गायब हो जाती, फिर चढ़ लेते चार चक्के की सवारी। पेट्रोल का दाम बढ़ता है, तो दिल की धड़कन बढ़ जाती है, दोबारा गाड़ी खरीदनी पड़ी, तो हार्ट फेल ही होगा। रिटायरमेंट के बाद क्या लोग सचमुच सठिया जाते हैं ! चौबीस घंटे लैपटॉप व मोबाइल में मुंडी घुसाए रखोगे, तो दिमाग की बत्ती ऐसे ही सदा फ्यूज रहेगी। अब स्वयं फैसला कर लो कि दिमाग खर्च करना है या उसे बंद ताले में रखोगे।’’

सुबह-सुबह इतनी बातें अपने खिलाफ सुन कर मिस्टर सहाय भड़क गए, ‘‘गाड़ी चोरी तो नहीं हुई ! सही-सलामत है। साइकिल की चोरी आसान है, कोई चार चक्का कैसे उठा सकता है ! गाड़ी की चाबी घर में थी। और तुम्हें सिर्फ मेरा दोष नजर आता है। दिनभर मेरी गलतियां ढूंढ़ती रहती हो, कहीं से कुछ स्लिप हुआ नहीं कि बोलना शुरू। अब सुबह-सुबह मेरा दिमाग मत खराब करो, जाओ अपना काम देखो।’’

मिसेज सहाय बिफर गयीं, ‘‘जो कुछ भी कहा, क्या गलत था ! लाखों की चीज अपनी ढिलाई से निकल जाने दोगे ! कल गाड़ी बच गयी, तो इसका मतलब यह नहीं कि उसे खुले में छोड़ दो। गाड़ी ही चली गयी, तो घूमना-फिरना, बाजार-हाट कैसे होगा ! रिक्शा ऑटो-टोटो में बैठोगे नहीं, इज्जत जाती है अपनी। टैक्सीवाले अनाप-शनाप पैसे मांगते हैं, यह सब तुम्हारा ही कथन है। गाड़ी रहेगी, तो तुम्हारा ही फायदा है, मुझे क्या मैं तो घर में बैठी रहूंगी। घूमने का शौक तुम्हें ही है। अच्छी बातें कहो, तो वह भी कड़वी लगती है। ठीक है, आज अभी से तुम्हें किसी बात के लिए अलर्ट करना व समझाना-बुझाना बंद करती हूं। जब तक कोई भारी धक्का नहीं लगेगा, बुद्धि नहीं खुलेगी। कुछ कहूं, तो बेमतलब की बहसाबहसी शुरू कर देते हो। शांत मन से सोचना कि तुमने क्या किया और मैंने क्या कहा। बढ़िया होता चोर तुम्हारी कार उठा कर ले जाते, फिर देखती तुम्हारे चेहरे पर आते-जाते उन सभी सात रंगों को। पूरा घर संभालती हूं। अब यह भी मेरी ही ड्यूटी है कि गाड़ी गैरेज में गयी या सड़क पर खड़ी है। चेत जाओ, वरना एक दिन गाड़ी से हाथ धो बैठोगे।’’

मिस्टर सहाय ने गलती की थी, पर पुरुष दर्प के तहत इसे स्वीकार कैसे करें ! रोजाना ठीक ही चल रहा था। कल रात मोबाइल में लगातार टन-टन की आवाज सुन कर वे तेजी से घर में घुसे और गेट, गैराज व गाड़ी सब खुला रह गया। गलती हुई है, यह विचार मन में आ रहा था, किंतु पत्नी के सामने झुक कैसे जाएं ! छोटा कैसे बनें ! आदतन फिर बड़बड़ाने लगे। नारी के सामने एक पुरुष झुक जाए ! यह मर्द जाति की तौहीन नहीं ! 

मिसेज सहाय इसके बाद कुछ भी सुनने को तैयार नहीं थीं। उनके जिम्मे अभी ढेरों काम थे। नाश्ता-पानी, खाना-पीना सब रेडी करना था। दिनभर लैपटॉप, मोबाइल पर व्यस्त रहने से एक स्त्री का काम नहीं चल सकता, किंतु इसे एक पुरुष निभा ले जाते हैं और घर में है, तो तीन टाइम खाना मिल ही जाएगा।
काम जैसा रोजाना होता है वैसे ही सुचारु रूप से चलता रहा, क्योंकि आप लाख झगड़ लें, दिल-दिमाग चाहे जितना अशांत रहे, उससे पेट की कोई रिश्तेदारी नहीं। समय पर भूख लग ही आती है। किंतु यहां भी दोरंगी नीति होती है। औरतें गुस्से में खाना-पीना छोड़ देती हैं, उन्हें भूख नहीं लगती, किंतु अधिकतर मर्दों को उस झगड़ेवाली स्थिति में भी कड़ाके की भूख लगती है। सहाय जी उसी कैटेगरी में आते हैं। उन्हें वक्त पर खाना चाहिए चाहे झगड़ा छोटा-मोटा हो या गंभीर। और ऐसा पहली बार तो नहीं हुआ था, जब-तब कुछ ना कुछ लगा ही रहता है। हां, सहाय जी चाहे जितनी गलती करें। कभी स्वीकारा नहीं, तो आज क्यों मान लें ! जैसे कल नॉर्मल थे, अभी भी पूरा सामान्य थे। 

किंतु मिसेज सहाय के दिमाग पर वही बात, वही घटनाक्रम छाया रहा। चोरी की वारदातें निरंतर अपने गली-मोहल्ले में बढ़ रही है। कहां तो वे रात में खिड़कियां, दरवाजे बंद करना नहीं भूलतीं और इधर सहाय जी से इतनी भारी चूक !

नाश्ता, खाना बना टेबल पर रख दिया गया, किंतु पति-पत्नी के बीच बातचीत बंद रही। पति के दिल में अहं भाव जाग्रत था और इधर पत्नी गुस्से में आहत। पत्नी की गलती नहीं थी, किंतु पति एक बार भी ‘सॉरी’ बोलने को तैयार नहीं। आश्चर्य ! ऐसा बहुत घरों में होता होगा, तब भी पति-पत्नी का संबंध डटा रहता है। हम अपने बच्चों को ‘थैंक्यू’ व ‘सॉरी’ बोलने के लिए सिखाते हैं, पर यही बच्चे बड़े हो कर भूल जाते हैं। अपनी गलती मान लेने का जज्बा कितनों के पास है ! 

खैर, शाम होते मिसेज सहाय ईवनिंग वॉक के लिए निकल गयी जैसा कि हर दिन होता था। एक खास जगह इनकी मित्र-मंडली जुटती है। आधे घंटे पार्क में घूमना-टहलना और आधे घंटे की बतकूचन बेंच पर बैठे-बैठे होती। घर-परिवार से जुड़ी बातों की कहीं कमी नहीं। हर दिन कुछ ना कुछ मसाला निकल ही आता है। छह-सात महिलाओं का ये ग्रुप बिला नागा घूमने निकलता है। कुछ घर की, कुछ जग की, कुछ हंसी-ठट्ठा, कुछ सुख-दुख की बातें शेअर करके अपने-अपने घर लौट जाती हैं। चौबीस घंटे में यह ‘एक घंटा’ उनका सबसे प्रिय समय होता है। मन का बोझ हल्का हुआ और वे प्रफुल्लित घर वापसी करती हैं। समस्या कुछ भी हो-  निदान चुटकियों में होता है। 

और... आज इस ग्रुप की सबसे चहेती, सबसे जिंदादिल, मस्तमौला व्यक्तित्व की स्वामिनी मिसेज सहाय का चेहरा उतरा हुआ था। घूमने का कार्य तो पहले सलटा लिया जाता है, उसमें कोताही नहीं होती, चाहे किसी के मन पर मनों बोझ ही क्यों ना हो। बेंच पर बैठ स्थिर होने के बाद सखियों ने मिसेज सहाय को चुपचाप देख कई सवाल कर डाले।

मिसेज सहाय मानो इसी पल का इंतजार कर रही थीं, अतिरिक्त मिर्च-मसाला लगा कर कलवाली घटना का ब्यौरा दिया। हरदम खुशमिजाज बुलबुल की तरह चहकने वाली मिसेज सहाय की आंखों में आंसू उमड़ आए और अंत में यह कहना नहीं भूलीं कि कार की चोरी हो जाती, तो अच्छा था। मिस्टर सहाय का दिमाग ऐसे दुरुस्त नहीं होगा जब तक जोर का झटका ना लगे। किसी चोर का अता-पता हो, तो उसे खबर करो... कार के साथ कुछ इनाम भी दूंगी। 

मिसेज सहाय की बात सुन कुछ महिलाओं ने अफसोस प्रकट किया, किसी को हंसी आयी। चोर वाली बात पर तो एक बिहारी सखी ने उसका हाथ थाम कर जवाब दिया, ‘‘अपने नैहर में कुछ लोग हैं, जो वहां के लोकल मस्तान लोगों को जानते हैं। तुम कहो, तो आरा-पटना से आठ-दस हट्टे-कट्ठे आदमी बुलवा देती हूं। कोई एक रात फिक्स करो। तुम्हारी चार चक्कावाली गाड़ी को ये दो पैरों वाले इंसान अपने सिर पर लादे रातों-रात कैसे ‘जय कन्हैया लाल की, मदन गोपाल की’ रट लगाते हुए झारखंड से बिहार की धरती पर पहुंचा देंगे और किसी को कानोंकान खबर नहीं होगी। मिस्टर सहाय को सोने दो रजाई ओढ़ के। तुम चाहो तो तुम्हें भी खबर ना होगी। ना रहेगा बांस ना बजेगी बांसुरी। चैन की नींद सोना...’’

उसके बाद तो ऐसा ठहाका गूंजा कि पार्क में घूमते हुए अन्य लोग ठिठक गए। अकस्मात ये हंसी का दौरा ! महिलाओं ने लॉफिंग क्लब तो नहीं खोल दिया ! ऐसी हंसी तो इस पार्क में पहली बार सुनी गयी थी।

मिसेज सहाय घर लौट रही थीं। दिल-दिमाग फूल की तरह हल्का हुआ था। सोच रही थीं कि रात के खाने में क्या बनाऊं। आलू का भुजिया और पूरी छान ली जाए। उन्हें तो भाता ही है, पति को भी बहुत पसंद है या फिर क्लब चल कर एग चिकन रोल या फिर लटपटिया भुना मीट व लच्छा परांठा ! उसके पहले चिकन सूप लिया जा सकता है। ऐसा कितनी बार हुआ है कि खाना बनाने का मूड नहीं या कुछ अलग हट के खाने का मन हुआ, तो चल कर क्लब में खा लेते हैं। वहां हर दिन स्वादिष्ट आइटम बनते हैं। 

लेकिन आज मिसेज सहाय कैसे कुछ बोलें ! पति के साथ तो सुबह से कट्टी है। सिर्फ एक बार पत्नी का मन रखने के लिए ही ‘सॉरी’ बोल दिया होता, तो सुबह ही बात खत्म हो जाती। ठीक है, मैं ही क्यों झुकने लगी वह भी खाने के नाम पर ! दईया को बोल देती हूं रोटी, आलू का चोखा बना कर रख देगी। पूरी-भुजिया गया भाड़ में, फालतू की बहसाबहसी और तर माल खाएंगे ! ना खुद अच्छा खाऊंगी ना खाने दूंगी। 

घर लौटीं, तो शाम के साढ़े 6 बज गए थे। जानबूझ कर पार्क में थोड़ी देर बैठी रह गयी थीं। पति सोफे पर बैठे टीवी देख रहे थे और चेहरा सुथनी की तरह लटका हुआ था, जबकि मिसेज सहाय नॉर्मल थीं। दईया चाय बना कर टेबल पर रख गयी तथा ‘खाना क्या बनेगा’ पूछने लगी।

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मिसेज सहाय रोटी-चोखा की बात उठाती तब तक मिस्टर सहाय कह उठे, ‘‘खाना बनाने की जरूरत नहीं, हम क्लब जा कर कुछ खा लेंगे।’’ 

दईया को तो जैसे मुंहमांगा मिल गया। चटपट कप-प्लेट धो कर वह घर से तीर की तरह निकल गयी। 

मिसेज सहाय ने आवाज में तल्खी घोलते हुए कहा, ‘‘मुझे क्लब नहीं जाना, ना पकवान खाने हैं। तुम्हें जाना है तो जाओ, इस बात के लिए जबर्दस्ती मत करना। मेरा मूड ठीक नहीं... सुबह से झंझट पसार रखा है और अभी चोन्हा रहे हो !’’ 

मिस्टर सहाय ने आवाज में अतिरिक्त प्रेम घोलते हुए कहा, ‘‘क्लब जाने की जरूरत नहीं। मैंने क्लब से ऑर्डर करके खाना घर ही मंगवा लिया है, जो 8 बजे तक पहुंच जाएगा। आज क्लब में तुम्हारा फेवरेट आइटम बना है- लटपटिया सूखा मीट व लच्छा परांठा। स्टार्टर में चिकन सूप तथा मीठा में गाजर का हलवा। यह कॉम्बिनेशन तो तुम्हें हमेशा पसंद आता है...’’

मिसेज सहाय की बोलती बंद, लेकिन एक बात मन में खटकती रही- बंदे ने दिनभर में सिर्फ एक बार ‘सॉरी’ बोला होता, तो खाने का यह प्रपोजल मिस्टर सहाय ने नहीं, मिसेज सहाय ने खुशी-खुशी रखा होता... पर नहीं तो नहीं, जिद्दी द ग्रेट...