Monday 12 October 2020 12:54 PM IST : By Aarti Priyadarshini

पिघलता दर्पण (अंतिम भाग)

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‘‘कहीं यह सब इस शीशे की वजह से तो नहीं... नहीं-नहीं, मैं यह सब कैसे सोच सकता हूं। यह तो मेरा स्वभाव नहीं है। नीचे चलो कमरे में देखते हैं,’’ मैं निशा को लगभग घसीटते हुए कमरे में ले कर आया।

बेडरूम में आते ही एक सुखद आश्चर्य हुआ। आन्या कपड़ों की अलमारी के पास सो रही थी। निशा ने उसे गाेद में उठा कर सीने से चिपका लिया। इधर मैं इस सोच में पड़ गया कि अगर आन्या यहां है, तो वह सब क्या था, जो हम दोनों ने पार्क से अपने घर की छत पर देखा था। निशा के पार्क जाने में और हम दोनों के वापस आने के बीच में सिर्फ 15 से 20 मिनट लगे होंगे।

इसी बीच एेसी कौन सी औरत थी, जो आन्या को छत पर ले गयी, वह भी बंद कमरे में।

‘‘शोभित, आन्या के मुंह से और कपड़ों से अजीब सी बदबू आ रही है,’’ निशा की आवाज ने मेरी सोच को विराम दे दिया।

‘‘यह तो मछली जैसी बदबू है,’’ मैं आन्या के मुंह को सूंघते ही पहचान गया।

‘‘एेसा कैसे हो सकता है शोभित ! इस घर में जरूर कुछ है... तुम सिद्धार्थ को बुलाअो... हमें नहीं रहना यहां... हम जल्दी ही यह घर छोड़ देंगे...’’ निशा घबरा कर हांफने लगी।

‘‘निशा, तुम घबराअो मत, मैं अभी सिद्धार्थ से बात करता हूं,’’ मैंने जल्दी से पानी ला कर निशा को दिया और आन्या को भी बिस्तर पर लिटा दिया। घबरा तो मैं भी रहा था, मगर मैं इन सब बातों का कारण जाने बिना यह घर नहीं छोड़ना चाहता था। मैं जानता था कि जो भी हो रहा है उसके पीछे कोई ना कोई कारण अवश्य है, मगर मैं भूत-प्रेत में तो बिलकुल भी विश्वास नहीं करता था।

खैर ! मेरे फोन करते ही सिद्धार्थ आ गया। तब तक आन्या भी जाग गयी थी। उसका बुखार भी ठीक हो गया था, इसलिए वह सिद्धार्थ के आते ही उसकी गोद में जा कर खेलने लगी। निशा अभी तक रो रही थी। मछली की बदबू के कारण वह आन्या को गोद में नहीं ले रही थी।

‘‘अोह ! यह तो टूना की बदबू है,’’ सिद्धार्थ ने आन्या को गोद में लेते ही कहा।

‘‘टूना...!’’ मैंने और निशा ने लगभग एक साथ बोला।

‘‘हां, टूना एक विशेष प्रकार की मछली होती है, जिसे खाने से शरीर में रोग प्रतिराेधी क्षमता का विकास होता है और किसी भी प्रकार का संक्रमण नहीं होता। मुझे अच्छी तरह याद है कि मेरी मां बचपन में हम सभी भाई-बहनों को हफ्ते में 2-3 दिन टूना मछली जरूर खिलाती थीं। कहती थीं, बीमार नहीं पड़ोगे और पढ़ने में भी मन लगेगा, दिमाग तेज होगा... अन्य मछलियों से इसका स्वाद और महक अलग होता है। इसलिए मैंने पहचान लिया।’’

सिद्धार्थ की बातों से मुझे बेहद आश्चर्य हुआ। मगर निशा को कोई फर्क नहीं पड़ा, क्योंकि स्वास्थ्यवर्धक हो या रोग प्रतिराेधक, उसके लिए तो टूना केवल एक मछली थी और शुद्ध शाकाहारी परिवार की निशा को मछलियों से सख्त नफरत है।

‘‘सोचनेवाली बात तो यह है कि वह औरत कौन थी, जिसे मैंने और निशा ने छत पर देखा था। इतनी जल्दी वह कहां गायब हो गयी। और आन्या को मछली किसने और क्यों खिलायी !’’ मैं हैरत से बोला।

‘‘यही सारे सवाल तो मुझे भी परेशान कर रहे हैं,’’ मेरी तरह सिद्धार्थ भी बेहद परेशान था।

‘‘वैसे इतनी छोटी बच्ची को सीधे तौर पर मछली नहीं खिलायी जा सकती। उसका सूप बना कर या फिर तेल निकाल कर ही खिलाया जा सकता है। मुझे लगता है कि हमें पुलिस की मदद लेनी चाहिए,’’ सिद्धार्थ ने कहा, तो मैं अचंभित रह गया। चाहता तो मैं भी यही था, मगर मुझे लगा कि कहीं घर की बदनामी से सिद्धार्थ नाराज ना हो जाए।

‘‘वैसे जब तुम लोग घर में आए, तो आन्या कहां थी?’’ सिद्धार्थ की आवाज पर मैं चौंका।

‘‘वहीं जहां हमेशा रहती है। इस अलमारी के पास,’’ इस बार निशा ने जवाब दिया। सिद्धार्थ निशा की बात सुनते ही अलमारी में रखे कपड़ों को उठा-उठा कर सूंघने लगा।

‘‘शोभित, टूना की बू यहां भी है।’’

‘‘क्या...! लेकिन एेसा कैसे हो सकता है। मैंने सारे धुले हुए कपड़े यहां रखे हैं,’’ निशा परेशान हो उठी।

सिद्धार्थ ने एक-एक करके सारे कपड़े अलमारी से बाहर निकाल दिए और उस अलमारी का मुआयना करने लगा, ‘‘यह दीवार से लगी हुई सीमेंट की बनी पुरानी अलमारी थी। मैंने इसमें बोर्ड लगवा दिया था, ताकि अच्छा दिखे। यह नीचेवाला रैक छूने में अजीब सा है।’’

‘‘मतलब...? मैंने सिद्धार्थ की बात को समझने की कोशिश करते हुए कहा।

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‘‘हां, ऊपर की तीनों रैक को छूने पर यह दीवार जैसा ही लग रहा है, मगर यह नीचे वाला किसी धातु जैसा,’’ सिद्धार्थ ने जब उसे हाथ से थपथपाया, तो उसकी आवाज से उसका शक स्पष्ट हो गया।

तभी डोरबेल बजने की आवाज आयी। मुझसे पहले सिद्धार्थ ने लपक कर दरवाजा खोल दिया। सामने एक वर्दीधारी पुलिस ऑफिसर को देख कर मैं और निशा चौंक गए।

‘‘मैंने ही इन्हें मैसेज किया है। ये मेरे मित्र हैं, एन. के. रामामूर्ति।’’

सिद्धार्थ ने रामामूर्ति को तमिल मिश्रित अंग्रेजी में सारी बातें समझायीं। मि. राममूर्ति ने भी सब कुछ ध्यान से देखा। ऊपर छत पर भी गए, मगर वहां एेसा कोई सबूत नहीं मिला, जिससे यह पता चल पाता कि यहां एक विचित्र महिला थी, जो चंद मिनटों में ही गायब हो गयी।

क्या यह शीशा काफी दिनों से यहां है?’’ राममूर्ति भी उस शीशे को देख कर चौंक गए।

‘‘हां, तकरीबन तकरीबन 30 सालों से है,’’ सिद्धार्थ ने कहा।

‘‘मिस्टर सिद्धार्थ, आप इसे हटा दीजिए, क्योंकि यह काफी पुराना है और हो सकता है कि किसी दिन टूट कर नीचे गिर जाए। एेसी स्थिति खतरनाक हो सकती है।’’

‘‘मैं आज ही हटवाता हूं इसे,’’ सिद्धार्थ ने अंग्रेजी में ही जवाब देते हुए अपना मोबाइल निकाल लिया।

‘‘और हां, जल्दी ही एक इंजीनियर बुलवा कर घर की सुरक्षा की अच्छी तरह जांच करवा लीजिए विशेषकर अलमारी की,’’ इतना कह कर मिस्टर राममूर्ति चले गए। उसके बाद हम सब नीचे आ गए। मैंने ऑफिस में फोन करके एक दिन की छुट्टी ले ली। निशा को एेसी स्थिति में अकेला छाेड़ना मुझे उचित नहीं लगा। सिद्धार्थ भी बालकनी में खड़ा हो कर माेबाइल पर बातें करने लगा और मैं निशा को सांत्वना देने लगा।

‘‘घबराअो मत निशा, आज मैंने छुट्टी ले ली है। कुछ ही दिनों में सब कुछ स्पष्ट हो जाएगा...’’

‘‘मगर तब तक मैं इस घर में नहीं रह सकती शोभित...’’ मेरी बात पूरी होने से पहले ही निशा ने गुस्से से कहा, ‘‘मैं आन्या को ले कर कोई समझौता नहीं कर सकती। हमें आज ही यह घर छोड़ना हाेगा।’’

‘‘...लेकिन इतनी जल्दी कैसे हो सकता है यह सब?’’

‘‘अगर आप लोग उचित समझें, तो मैं एक सुझाव दूं,’’ निशा की तेज आवाज शायद सिद्धार्थ के कानों तक भी जा चुकी थी। मुझे यह सब बहुत बुरा लग रहा था, क्योंकि इस पूरे घटनाक्रम में सिद्धार्थ की गलती बस इतनी थी कि वह इस मकान का मालिक था।

‘‘अगले 3-4 दिनों में मैं इस घर की पूरी जांच करवा दूंगा। शीशा तो आज शाम को ही हट जाएगा। मैंने सारी तैयारी आरंभ कर दी है। एेसे में निशा और आन्या की परेशानी को देखते हुए मैं तुम लोगों से यह गुजारिश करना चाहूंगा कि ये 3-4 दिन तुम मेरे यहां मेहमान बन कर रहो।’’

सिद्धार्थ की इस गुजारिश को हमने बिना कोई सवाल किए मान लिया और थोड़ा-बहुत जरूरी सामान ले कर हम तीनों सिद्धार्थ के साथ ही निकल पड़े।
सिद्धार्थ ने अपने कहे अनुसार शाम तक वह शीशा हटवा दिया और उसने हमारे आवभगत में भी कोई कमी नहीं की। सिद्धार्थ की पत्नी तो कुछ घंटों में आन्या से घुलमिल गयी। अगले दिन से मैं ऑफिस भी जाने लगा। सिद्धार्थ के बताए अनुसार तीसरे दिन इंजीनियर भी जा पहुंचा। सिद्धार्थ ने मुझे और पुलिस ऑफिसर एन. के. मूर्ति को भी बुला लिया। इंजीनियर ने पूरे घर को अच्छी तरह से देखा, उसके बाद वह कपड़ों की अलमारी का भी अच्छे से मुआयना करने लगा। वह नीचेवाले शेल्फ को एक औजार की मदद से खुरचने लगा।

‘‘आपका कहना सही है सिद्धार्थ सर। यह शेल्फ मेटल की बनी है, जो काफी पुराना है। यह देखिए, इसे यहां से इस दीवार में फिट किया गया है। मेरे ख्याल से इस घर को बनाने के दौरान ही एेसा किया गया होगा।’’

‘‘लेकिन पिता जी ने तो मुझे कभी इसके बारे में कुछ नहीं बताया,’’ सिद्धार्थ ने अपनी बात पूरी भी नहीं की थी कि इंजीनियर ने वह शेल्फ बाहर की तरफ निकाल दिया। उसके बाद वहां का दृश्य देख कर हम सबकी बोलती बंद हो गयी। सामने का दृश्य किसी हॉरर मूवी के क्लाइमेक्स की तरह था। सामने एक तहखाना बना हुआ था, जिसकी सीढि़यां नजर आ रही थीं। अब जब इंजीनियर ने उसको पूरी तरह खींच कर बाहर निकाला तब वहां नीचे का फर्श हट गया और वहां एक बड़ा सा दरवाजा दिखायी देने लगा।

हम चारों डरते-डरते सीढि़यों से नीचे उतरे। नीचे का दृश्य तो एेसा था कि अगर किसी हिंदी फिल्म में यह दृश्य हाेता, तो फिल्म के पाेस्टर पर यह कैप्शन लिखा होता, ‘‘कृपया कमजाेर दिलवाले ना देखें।’’ क्योंकि यह तहखाना एक छोटा सा भूतबंगला लग रहा था।

‘‘वैसे यह एक प्रयोगशाला है, मेरे घर में भी पिता जी ने लगभग एेसा ही तहखाना बनवा रखा था, क्योंकि वे एक वैज्ञानिक थे,’’ सिद्धार्थ ने फुसफुसाते हुए कहा।

अंधेरे की वजह से कुछ स्पष्ट दिख नहीं रहा था। मैंने मोबाइल की लाइट जलायी। पूरे कमरे में बहुत ही गंदी बदबू थी, जो शायद दवाइयों और मछलियों की मिलीजुली गंध थी। उस कमरे में इतना ज्यादा सामान रखा था कि हम 4 लोग वहां मुश्किल से ही खड़े हो पा रहे थे। कमरे की दीवार से लगे छोटे-छोटे 3 खाने बने हुए थे, जिनमें छोटी-छोटी सफेद रंग की पारदर्शी शीशियां रखी हुई थीं। वहीं नीचे एक गोलाकार टब था, जिसके गंदले पानी में ढेरों मछलियां थीं। आसपास भी मछलियों के ही अवशेष बिखरे पड़े थे। कमरे के बीचोंबीच एक आरामकुर्सी रखी हुई थी, जिस पर काले साए जैसा कुछ दिख रहा था। आरामकुर्सी के सामने छोटी सी आयताकार मेज भी थी, जिस पर कुछ पुरानी डायरी और कुछ फाइलें रखी हुई थीं।

मैंने जब मोबाइल की रोशनी उस आरामकुर्सी पर बैठे काले साए पर डाली, तो मिस्टर राममूर्ति ने अपनी सर्विस रिवाल्वर निकाल कर उसकी ओर तान दी। मगर उसने कोई हरकत नहीं की। हम चारों पूरी सतर्कता के साथ उसकी तरफ बढ़े। मैंने ध्यान से देखा, यह तकरीबन वैसी ही थी, जिसे मैंने अपनी छत पर देखा था। काले लिबास और सिर पर काला स्कार्फ बांधे हुए। चेहरे पर अजीब सी चमक थी, जो लाइट पड़ने पर आंखों को चुभ रही थी। ‘शायद कोई विशेष मेकअप हो’ मैंने अनुमान लगाया।

उसकी आंखें बंद थीं और शरीर में कोई कंपन नहीं थी। मिस्टर राममूर्ति अपना हाथ उसकी नाक के पास ले गए। मगर सांसों की आवाजाही का कोई लक्षण नहीं दिखा। तब उन्होंने उसकी कलाई पकड़ी शायद नब्ज देखने के लिए। तभी अचानक वे चिंहुक उठे, मानो करंट लग गया हो, ‘‘अोह माई गॉड !’’

‘‘वॉट हैपेंड मिस्टर राममूर्ति?’’ इंजीनियर ने चौंक कर पूछने के साथ ही उस महिला के सिर पर हाथ रखा।

‘‘इट इज नॉट ए ह्यूमन... मेरा मतलब है कि यह कोई इंसानी शरीर नहीं है।’’

‘‘क्या मतलब है आपका,’’ मेरी तरह सिद्धार्थ के माथे पर भी पसीना आ गया।

‘‘इडू पोम्मई इल्ले... मेरा मतलब है, यह एक खिलौना है। आप लोग इसे रोबोट भी कह सकते हैं।’’

‘‘रोबोट !’’ मि. राममूर्ति की बात सुन कर मैं और सिद्धार्थ एक साथ बोल उठे। बोलने के साथ ही सिद्धार्थ भी उसे छूने के लिए लपका, मगर मिस्टर राममूर्ति ने मना करते हुए कहा, ‘‘आप सब लोग इन चीजों को हाथ ना ही लगाएं, तो बेहतर होगा।’’

उसके बाद आननफानन में राममूर्ति ने 2-4 फोन किए और अगले 15 मिनट में 4 पुलिसवाले एक एंबुलेंस ले कर पहुंच गए।

रोबोट होते हुए भी उस महिला को एंबुलेंस में रख कर ले जाया गया, ताकि शहर में किसी प्रकार का हंगामा ना हो।

‘‘हम इसे एक रोबोटिक रिसर्च सेंटर में भिजवा रहे हैं, क्योंकि हम पुलिसवाले सिर्फ इंसानी शरीर के बारे में ही पड़ताल कर सकते हैं,’’ मिस्टर राममूर्ति ने मुस्कराते हुए कहा और उस कमरे के सारे सामान को उन्होंने बड़े ही एहतियात से पैक भी करवा दिया। साथ ही उस मकान को भी सील बंद कर दिया।

पता नहीं क्यों मुझे बड़ा दुख हो रहा था उस ‘कनन्डी विडू’ के लिए। सिद्धार्थ तो जैसे संज्ञाशून्य हो गया था। यह सारा घटनाक्रम उसकी समझ से बाहर था। मैंने उसे ढांढस बंधाया।

निशा तो आंखें फाड़-फाड़ कर मेरी बातें सुन रही थी। उसके लिए मेरी बातों पर विश्वास करना मुश्किल हो रहा था, ‘‘शोभित ! तुम्हारे कहने का मतलब है कि हमारे घर की अलमारी के नीचे एक तहखाना है और उसमें एक रोबोट रहता था... साॅरी रहती थी, जो मेरी बेटी का ख्याल रखती थी। उसके बीमार पड़ने पर उसे मछलियों से बनी दवाइयां खिलाती थी, ताकि वह स्वस्थ हो सके।’’

‘‘हां निशा, अब तक तो मैंने जो कुछ भी देखा, उसका मतलब तो यही था। क्या तुम भी नहीं देख रही थी कि यहां आने के बाद आन्या का स्वास्थ्य काफी अच्छा हो गया था। उसके मुंह से मछली की गंध आने के बाद से उसका बुखार भी पूरी तरह चला गया, बिना किसी दवा के।’’

निशा ने मेरी बात पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।

एक हफ्ते से ऊपर का समय बीत गया था। अब मुझे सिद्धार्थ के गेस्ट हाउस में रहते अच्छा नहीं लग रहा था। लेकिन सिद्धार्थ ने कह रखा था कि जब तक इस ‘कन्नडी विडू’ का केस सॉल्व नहीं हो जाता तब तक हम यहीं रहें। उसके बाद वह खुद हमारे रहने का इंतजाम करवा देगा।

शायद सिद्धार्थ को भी मेरे मोरल सपोर्ट की जरूरत थी, इसलिए मैंने उसकी बात मान ली। मि. राममूर्ति के कारण यह बात मीडियावालों तक नहीं पहुंच सकी, यह हम सबके लिए अच्छी बात थी।

उस घटना के ठीक 10 दिन बाद मि. राममूर्ति ने मुझे और सिद्धार्थ को पुलिस स्टेशन में बुलाया। अगले दिन सुबह मैं और सिद्धार्थ पुलिस स्टेशन गए हम दोनों ही उस कन्नडी पोम्मई के बारे में जानने को बेहद उत्सुक थे।

‘‘मैं आपको जो बताने जा रहा हूं उस पर विश्वास करना मुश्किल तो होगा, मगर नामुमकिन नहीं,’’ मि. राममूर्ति ने बिना किसी भूमिका के मुख्य बात कहनी शुरू कर दी।

‘‘सबसे पहले तो यह बताइए कि डॉ. रामनाथ स्वामी और डॉ. शिव शंकर सिंह कौन हैं?’’

‘‘शिव शंकर मेरे स्वर्गीय पिता जी थे और मि. रामनाथ स्वामी उनके मित्र, जो 30 साल पहले कन्नडी विडू में रहते थे,’’ सिद्धार्थ ने झट से जवाब दे दिया।

‘‘और ये दोनों ही नेशनल रिसर्च सेंटर ऑफ चेन्नई में शोधकर्ता थे,’’ आगे की बात मिस्टर राममूर्ति ने पूरी की।

‘‘जी हां, मगर बाद में रामनाथ अंकल की तबीयत खराब रहने लगी और उन्होंने नौकरी छोड़ दी और उस कन्नडी विडू में रहने लगे। एेसा मेरे पिता जी ने बताया था,’’ सिद्धार्थ ने जल्दी से मि. राममूर्ति के सवालों के जवाब दे दिए, ताकि वह आगे की घटना बता सकें।

‘‘आपके पिता ने आपको अधूरी बात बतायी थी। वह घर आपके पिता जी ने नहीं, बल्कि रामनाथ स्वामी ने बनवाया था। उनकी मृत्यु के बाद आपके पिता ने उस घर को अपने नाम करवा लिया, क्योंकि रामनाथ स्वामी आपके पिता शिव शंकर जी के कर्जदार थे। उन्होंने आपके पिता जी से काफी रुपए ले रखे थे।’’

मैं तो बस राममूर्ति और सिद्धार्थ की बातों को सुन ही सकता था। मेरे बोलने लायक तो वहां कुछ भी नहीं था। वह तो अच्छा था कि दोनों अंग्रेजी में बातें कर रहे थे, तो कम से कम मेरी समझ में तो आ रहा था, वरना मेरी हालत तो चेन्नई एक्सप्रेस के शाहरुख खान जैसी हो जाती।

‘‘मगर पिता जी ने मुझे इस बारे में कुछ क्यों नहीं बताया ! और तहखाने के बारे में भी नहीं बताया !’’

‘‘क्योंकि मि. सिद्धार्थ, आपके पिता जी को भी इसके बारे में कोई जानकारी नहीं थी,’’ मि. राममूर्ति ने सिद्धार्थ की फुसफुसाती आवाज को भी सुन लिया था, ‘‘डॉ. स्वामी ने अपनी डायरी में लिखा है कि वे मरने से पहले घर में स्थित तहखाने तथा अपने आविष्कार की सारी जानकारी एवं जिम्मेदारी डॉ. शिव शंकर सिंह को देना चाहते थे। मगर जब आपके पिता जी मास्को गए हुए थे तभी डॉ. स्वामी की मृत्यु हो गयी और वह तहखाना तथा रोबोट एक रहस्य बन कर ही रह गया।’’

‘‘वहां से हमें जो डायरी मिली है, उसमें रामनाथ स्वामी ने एक-एक दिन की एक-एक बात लिखी है। डॉ. स्वामी को एक लाइलाज बीमारी थी, जिसके कारण वे अधिक दिनों तक जीवित नहीं रह सकते थे। आपके पिता डॉ. सिंह को दवाइयों के लिए हमेशा रुपए देते थे। मगर डॉ. स्वामी ने सारे रुपए अपने इलाज में ना खर्च करके प्रयोगशाला और रोबोट बनाने में खर्च किए। डॉ. स्वामी अविवाहित थे।उनकी देखभाल करनेवाला कोई नहीं था। नौकरों से उन्हें सख्त नफरत थी और एलोपैथिक दवाइयों पर भरोसा नहीं था। एक वैज्ञानिक होते हुए भी वह पारंपरिक चिकित्सा में ज्यादा विश्वास करते थे। इसीलिए उन्होंने यह कन्नडी पिन यानी शीशे की औरत या रोबोट बनाया, जिसकी प्रोग्रामिंग कुछ इस तरह है कि वह किसी भी बीमारी का पारंपरिक तरीके से इलाज कर सकती है। साधारण भाषा में हम कहें, तो वह एक आयुर्वेदाचार्य है और बाल चिकित्सा में तो उसे महारत हासिल है। वह समुद्री जीव-जंतुअों तथा वनस्पतियों से स्वयं दवा बना सकती है। वह बच्चों के शारीरिक एवं मानसिक किसी भी प्रकार के रोग को पहचान कर उसका इलाज कर सकती है।’’

‘‘मगर वह घर तो काफी वर्षों तक बंद रहा। एेसे में उस कन्नडी पिन को निर्देशित एवं नियंत्रित कौन करता था। और जहां तक मुझे मालूम है कोई भी मशीन बिना किसी ऊर्जा स्रोत के संचालित नहीं हो सकता,’’ मुझे भी अपनी उत्सुकता व्यक्त करने का मौका मिल ही गया।

‘‘आपका सवाल बिलकुल सही है मिस्टर शोभित।’’ अपने पीछे से आती आवाज सुन कर मैं और सिद्धार्थ दोनों ही एक साथ पीछे मुड़ कर देखने लगे।

‘‘आइए मि. राव... ये हैं रोबोटिक्स रिसर्च सेंटर के प्रमुख मिस्टर अय्यप्पा राव। मैंने ही इन्हें यहां बुलाया है, ताकि ये आपके सारे सवालों का संतुष्टिपूर्ण उत्तर दे सकें,’’ मि. राममूर्ति ने मि. राव को बैठने का इशारा करते हुए कहा।

‘‘सबसे पहले तो मैं आप सबको यह बता देना चाहता हूं कि मैं जो भी जानकारी आप लोगों को दे रहा हूं वह डॉ. रामनाथ स्वामी के उस तहखाने में मिली फाइल तथा डायरी से ही प्राप्त हुआ है। उस रोबोट पर हमने कोई भी परीक्षण नहीं किया है, क्योंकि एेसे में उसके टूटने या खराब होने का डर है, जो हम कतई नहीं चाहते। चूंकि आन्या के अलावा हममें से किसी ने भी उस रोबोट की गतिविधियों को नहीं देखा है, अतः हम पूरी तरह से यह नहीं कह सकते कि हम जो कुछ भी कह रहे हैं वह 100 प्रतिशत सच है। फिर भी हमारी टीम ने पूरी कोशिश की है कि इस रोबोट तथा रामनाथ स्वामी से जुड़े अधिक से अधिक तथ्यों का पता लगा सकें।

‘‘आपके पहले सवाल का जवाब यह है कि उसकी ऊर्जा का स्रोत था वह बड़ा सा शीशा, जो घर के छत के ऊपर लगा हुआ था। वह कोई साधारण शीशा नहीं था। वह सूर्य की ऊर्जा को संग्रहित करने का कार्य करता था। उसी के हट जाने के कारण ही वह रोबोट निष्क्रिय हो गया और आप सब उसे पकड़ पाए। डॉ. स्वामी के शोध के मुताबिक वह रोबोट एक विशेष प्रकार के धातु विड्राल, लेड तथा चुंबकीय तत्वों के मिश्रण से बना हुआ है। विड्राल बेहद लचीला होता है और लेड यानी शीशा गरम होने पर पिघल जाता है। चुंबकीय तत्व उसे पुनः अपना स्वरूप प्राप्त करने में मदद करता है। ऊपर जो शीशा लगा हुआ था उसमें भी यही तीनों चीजें थीं। इस वजह से पूरे घर में एक गुरुत्वाकर्षण बल कार्य करता था, जिसके कारण वह रोबोट स्वयं के क्रियाकलापों को नियंत्रित कर सकता था। उदाहरणस्वरूप हमारी पृथ्वी भी एक विशाल चुंबक है और इसी के कारण हमारा स्वयं के शरीर पर नियंत्रण रहता है, जबकि अंतरिक्ष में या चांद पर जहां चुंबकीय शक्ति नहीं है, हमारा अपने शरीर पर नियंत्रण नहीं रहता।

‘‘छत पर रखे हुए उस बड़े से शीशे के माध्यम से जो सोलर ऊर्जा संग्रहित होती थी, उसी से यह रोबोट संचालित होती थी। और उसका शरीर इतना ज्यादा लचीला था कि वह छोटी से छोटी जगह से भी निकल सकती थी, शायद बंद दरवाजे के नीचे से भी। विज्ञान जगत के लिए यह किसी चमत्कार से कम नहीं है। अगर आज मिस्टर रामनाथ स्वामी जीवित होते, तो विज्ञान की दुनिया में कई और चमत्कार कर चुके होते। वैसे उनकी रिसर्च फाइल के आधार पर भी काफी कुछ किया जा सकता है।’’

‘‘एक और सवाल मिस्टर राव, अब तक हमारे साइंटिस्ट ने जितने भी रोबोट बनाए हैं, उसमें वे फीलिंग्स व इमोशंस नहीं डाल सके हैं, एेसे में उस रोबोट के अंदर एेसा कौन सा इमोशन डाला गया था, जिसके कारण उसका लगाव मेरी बेटी आन्या की तरफ हो गया था और वह उसकी एक मां की तरह देखभाल कर रही थी।’’

‘‘गुड क्वेश्चन मिस्टर शोभित, यह सवाल हम सबके दिमाग में भी सबसे पहले आया था। इसका सटीक उत्तर तो डॉ. स्वामी ही दे सकते थे। मगर उनकी डायरी के आधार पर हमने कुछ कयास लगाए हैं,’’ मि. राव ने थोड़ा रहस्यमयी अंदाज में कहा, तो मैं और सिद्धार्थ एक-दूसरे को देखने लगे।

हम कुछ पूछते, इससे पहले ही मि. राव ने फिर से कहना प्रारंभ किया, ‘‘डॉ. स्वामी की डायरी में लिखे गए आत्मकथ्य से पता चला कि उनकी एक छोटी बहन थी, जिसे वे बेहद प्यार करते थे, मगर कुपोषण के कारण असमय ही उसकी मृत्यु हो गयी। उसका इलाज एक सरकारी अस्पताल का एलोपैथिक डॉक्टर कर रहा था। उन्हें अपनी बहन की मौत का गहरा सदमा लगा था, और तभी से वे आयुर्वेद तथा पारंपरिक चिकित्सा से संबंधित पुस्तकें पढ़ने लगे थे। उनकी फाइलों में उनके परिवार की एक बहुत पुरानी फोटो भी हमें मिली, जिसमें उनकी छोटी बहन भी है,’’ मिस्टर राव ने हमारी तरफ एक फोटो बढ़ाते हुए कहा।

‘‘यदि आप इस फोटो को ध्यान से देखें, तो मिस्टर स्वामी की छोटी बहन का चेहरा बहुत कुछ आपकी बेटी आन्या से मिलता है,’’ इस बार मिस्टर राममूर्ति ने कहा। फोटो देख कर तो मुझे भी आश्चर्य हुआ, लेकिन अगर आन्या को भी दक्षिण भारतीय पोशाक पहना दी जाए, तो संभवतः वह डॉ. स्वामी की बहन की तरह ही दिखेगी।

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‘‘मगर रोबोट के अंदर आनेवाली भावनाअों का डॉ. स्वामी एवं उनकी बहन से भला क्या संबंध हो सकता है?’’ मेरे दिमाग में प्रश्नों की जैसे कतार लगी हुई थी।

‘‘डॉ. स्वामी अपनी इस रोबोट को जी जान से चाहते थे। उन्होंने अपना पूरा जीवन इसे बनाने में लगा दिया। वे दुनिया के सामने इसे लाना चाहते थे, मगर इससे पहले ही चल बसे। हो सकता है कि उस घर से उनकी डेड बॉडी निकाली गयी हो, मगर उनकी आत्मा उसी रोबोट में बस गयी हो, शायद अपनी अधूरी इच्छाअों के कारण...’’

‘‘एक वैज्ञानिक हो कर आप आत्मा की बातें कैसे कर सकते हैं...’’ सिद्धार्थ को बेहद आश्चर्य हुआ।

‘‘मिस्टर सिद्धार्थ, यह सच है कि हम वैज्ञानिक हैं और भूत, प्रेत, आत्मा इत्यादि में विश्वास करना हमारा लक्ष्य नहीं है। परंतु इस संसार में कुछ परालौकिक शक्तियां भी हैं। कभी-कभी इनका अस्तित्व हमारे सामने इस प्रकार आता है कि हमारा विज्ञान भी उन्हें नकार नहीं पाता। यद्यपि मैं पूरी तरह से अपनी बातों की पुष्टि नहीं कर सकता फिर भी उनकी डायरी के आधार पर ही यह कह रहा हूं कि उन्हें अपने इस आविष्कार से इतना प्रेम था कि वह इसमें, इस आविष्कार के रूप में सदैव जीवित रहना चाहते थे। उन्हें एक लाइलाज बीमारी थी, मगर वे मरना नहीं चाहते थे। उनके अंदर जीवित रहने की एक दृढ़ इच्छाशक्ति थी और आप जानते हैं कि एक दृढ़ इच्छाशक्ति एवं कभी-कभी आत्मा की अतृप्ति, पुनर्जन्म का कारण बन जाती है। जिस प्रकार हम ईश्वर के अस्तित्व को पूरी तरह नकार नहीं सकते उसी प्रकार हम परालौकिक शक्तियों को भी सिरे से नकार नहीं सकते।

‘‘डॉक्टर स्वामी की डायरी में उस रोबोट से जुड़े सारे तथ्य हैं, परंतु कहीं पर भी रोबोट में होनेवाली फीलिंग्स व इमोशंस का जिक्र तक नहीं है। डॉ. स्वामी एक महान वैज्ञानिक थे, परंतु एक अत्यंत भावुक व्यक्ति भी थे, इसमें कोई दो राय नहीं है। एक बात जो उनकी डायरी में बार-बार लिखी हुई है, वह यह है कि वे अपने आविष्कार रोबोट के रूप में जीवित रहना चाहते थे और छोटे बच्चों को कुपोषण से बचाना चाहते थे।’’

‘‘...ताे क्या आन्या के रूप में उनकी बहन का ही पुनर्जन्म है या डॉक्टर स्वामी की आत्मा उस रोबोट में है... अतृप्त आत्मा, परालौकिक शक्तियां तथा पुनर्जन्म के बारे में मैंने भी बहुत कुछ पढ़ा था। विश्व स्तर पर एेसी कई घटनाएं हो चुकी हैं, जो इनके अस्तित्व को प्रमाणित करती हैं।’’

‘‘कुछ भी हो सकता है मिस्टर शोभित... मैंने कहा ना... यद्यपि हमारे पास इन सबका कोई प्रमाण नहीं है फिर भी डॉ. स्वामी की बहन और आन्या की शक्ल-सूरत में अत्यधिक समानता के बारे में भी तो हमारे पास कोई जवाब नहीं है,’’ मि. राव की बातें सुन कर मैं निरुत्तर हो गया।
‘‘मैं एक बात और पूछना चाहता था, सर,’’ सवाल बहुत सारे हो गए थे इसलिए सिद्धार्थ ने कुछ हकलाते हुए पूछा।

‘‘श्योर मिस्टर सिद्धार्थ... जो भी सवाल है जरूर पूछिए। उसी के आधार पर हमें इस केस का और भी परीक्षण करने में सहायता मिलेगी।

‘‘सर, आपके कहे अनुसार विड्राल, लेड और चुंबकीय तत्वों के मिश्रण के कारण वह रोबोट छोटी से छोटी जगह से भी कहीं आ-जा सकता है। मगर मेरी समझ में यह नहीं आ रहा कि वह आन्या को उस तहखाने में कैसे ले जा सकती थी। माना कि वह स्वयं उस तहखाने के अंदर कपड़ों की अलमारी के माध्यम से चली जाती होगी, परंतु आन्या को वह कैसे ले जाती होगी?’’ मिस्टर राव के प्रोत्साहित करने पर सिद्धार्थ ने पूछ डाला।

‘‘मिस्टर सिद्धार्थ, यह सवाल हमारी टीम ने भी उठाया था। और इसीलिए हमने उस तहखाने का पूरा परीक्षण किया है। वहां हमें एेसा कोई प्रमाण नहीं मिला, जिससे आन्या के उस तहखाने में जाने की पुष्टि होती हो। मि. शोभित के अनुसार भी तो आन्या उसी समय गायब होती थी जब आपका ध्यान आन्या की तरफ नहीं होता था या आन्या अकेली होती थी।

‘‘मेरा विचार है कि वह रोबोट आन्या को आप लोगों की अनुपस्थिति में ही दवाइयां खिलाती थी। या हो सकता है कि घर के किसी और कमरे में उठा कर ले जाती हो, क्योंकि उस रोबोट को अपना स्वरूप बदलने में कुछ मिनट ही लगते, एेसा डॉ. स्वामी ने स्वयं लिखा है। उसे आन्या को दवाइयां खिलाने में भी ज्यादा समय नहीं लगता होता। आन्या का हमेशा कपड़ों की अलमारी के पास मिलना तथा कपड़ों का बिखरा हुआ होना इस बात का सबूत है कि रोबोट कपड़ों की अलमारी के रास्ते ही अंदर जाती थी, परंतु वह आन्या को अंदर कभी नहीं ले जाती थी। वैसे भी उस तहखाने में बंद हो जाने के बाद ऑक्सीजन जाने का भी कोई रास्ता नहीं है। एेसे में वह रोबोट आन्या को अंदर ले जाने की बेवकूफी नहीं कर सकती थी, क्योंकि उसे पता है कि ह्यूमन बॉडी के लिए ऑक्सीजन कितना आवश्यक है।

‘‘आप सबकी तरह हमारे दिमाग में भी ढेरों सवाल हैं। हमने और भी कुछ विशेषज्ञों को बुलाया है। इन सारी बातों की जानकारी हासिल करने में अभी थोड़ा समय लगेगा। वैसे तो यह केस पूरी तरह से सॉल्व हो गया है, मगर अभी आप लोग उस घर में नहीं जा सकते। रिसर्च सेंटर के वैज्ञानिकों ने फैसला किया है कि वह कुछ दिन उस प्रयोगशाला में जा कर अध्ययन करेंगे, जिससे कुछ सार्थक जानकारियां हासिल हो सकें। आशा है कि आप लोग सहयोग करेंगे,’’ मिस्टर राममूर्ति ने हम दोनों के मनोभावों को भांपते हुए कहा।
अब जब सब कुछ शीशे की तरह साफ हो चुका था तब मैंने घर आ कर निशा को ये सारी बातें बतायीं, तो उसकी आंखों में हैरत के बजाय आंसू आ गए, ‘‘प्रकृति ने जिस प्रकार औरत को लचीला और कोमल बनाया है, वैज्ञानिकों ने भी उसे वैसा ही बना दिया। मैं कहती थी ना... हमारी सोच से परे भी कुछ है, जो कभी-कभी हम समझ नहीं पाते। मैं सुनामी आने के 3 दिन पहले से ही सपने में बार-बार एक ही चीज देखती थी कि भैया गहरे पानी में डूब रहे हैं, मैं बचाने की कोशिश कर रही हूं, मगर बचा नहीं पा रही। मैंने अपने इस सपने का जिक्र करते हुए भैया को एक पत्र भी लिखा था, मगर आज तक उसका जवाब नहीं आया,’’ इतना कह कर निशा फफक कर रोने लगी।

‘‘आत्मा, पुनर्जन्म, परालौकिक शक्तियां एवं भविष्य के स्वप्न भी संभवतः प्रकृति का ही एक रूप हैं, जिन्हें ना समझ पाने के कारण हमें ये रहस्यमयी लगते हैं,’’ निशा के आंसू देख कर मेरी और सिद्धार्थ की भी आंखें भर आयीं।

‘‘निशा और शोभित, मैं चाहता हूं कि आज से तुम दोनों मेरे इसी घर में रहो जब तक चेन्नई में हो। मेरे घर के ऊपर का कमरा पूरी तरह खाली है। मैं आज ही सफाई करवा देता हूं। तुम जिस तरह से कन्नडी विडू में किराए पर रहते थे उसी तरह से यहां भी किराए पर ही रहना। तुम्हें भी बुरा नहीं लगेगा और मुझे भी एक अच्छा दोस्त मिल जाएगा। अब तक तो मैं एकांतप्रिय ही था, मगर अब लगता है कि मुझे तुम्हारे जैसे दोस्त की बेहद जरूरत है,’’ सिद्धार्थ ने भावुक हो कर मेरा हाथ पकड़ते हुए कहा, तो मैंने भी उसे गले लगा कर अपनी सहमति दे दी।

निशा ने भी मेरे फैसले का मुस्करा कर स्वागत किया।