Monday 18 January 2021 05:02 PM IST : By Ruby Mohanty

मीनाक्षी सिंह & दिव्य प्रकाश: ब्रिटिश कंपनी की नौकरी छोड़ी, भारत में बने स्मार्ट एजुकेटर

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किसी ब्रिटिश कंपनी में पति-पत्नी को नौकरी मिले और इंग्लैंड जाने का मौका हो, तो खुशियां सांतवें आसमान पर होंगीं ना! मीनाक्षी और दिव्य का भी यही हाल था। दोनों शादी के बाद अपनी जॉब की वजह से इंग्लैंड गए। उन्होंने अपनी शादी की शुरुआती जिंदगी और नौकरी खूब एंजॉय की, पर एक बात थी जो उनसे अकसर खटकती कि जब कोई ब्रिटिश नागरिक उनसे उनके देश की गरीबी पर अफसोस प्रकट करता। वहां दोनों को बेटी के जन्म भी खुशी मिली, पर वहां रहने का दिल नहीं था लिहाजा अपनी दो महीने की बच्ची को ले कर वे भारत लौट आए। दोनों ने फिर से यहां मल्टी नेशनल कंपनी में जॉब की। शाम को ऑफिस से आने के बाद कम से कम 2 घंटे वे अपने घर के इर्दगिर्द गरीब बच्चों को पार्क में पढ़ाने लगे, पर लोगों ने एतराज किया। मीनाक्षी हंसते हुए बताती है, “एक अंकल जी ने तो हद कर दी थी, जब पार्क से मुझे बच्चों के सामने कंधा पकड़ कर धक्का दिया और पार्क छोड़ कर जाने को कहा। वे उन बच्चों को आवारा और चोर उचक्का मानते थे, पर मैंने भी ठान ली थी कि बच्चों को जरूर पढ़ाऊंगी। मैंने एक बेसमेंट को भी किराए पर लिया और इन बच्चों की पढ़ाई को जारी रखा।’’

दिव्य को गरीब बच्चों को पढ़ाना इतना अच्छा लगा कि उन्होंने विदेशी फोन कंपनी के नेशनल हेड की जॉब छोड़ी और इन्हीं बच्चों को आगे पढ़ाने का जिम्मा ले लिया। पति-पत्नी दोनों ने पढ़ाने की अपनी-अपनी जिम्मेदारी ले ली। तय हुआ कि मीनाक्षी अपनी जॉब के साथ-साथ गांव के बच्चों को पढ़ाएगी और दिव्य शहर के गरीब बच्चों को पढ़ाएगा। गुड़गांव से 45 किलोमीटर दूर नूह हरियाणा का नूह गांव सबसे पिछड़े इलाकों में से एक है। जहां स्कूलों में टीचर्स कम है और बच्चों की पढ़ने में रुिच नहीं है। मीनाक्षी के सामाने यही मुददा था कि बच्चों में पढ़ाई को ले कर शौक कैसे जगाया जाए। गांवों में 3-4 कंप्यूटर से स्मार्ट एजुकेशन से शुरूआत की। मेज पर कंप्यूटर ऑन होता। यू ट्यूब के जरिए ऑडियो-वीजुएल चैप्टर पढ़ाए जाते। इसी तरह बच्चों के पढ़ने की इच्छा जागी। उसका काम देख कर हरियाणा सरकार ने मीनाक्षी से संपर्क किया और एक बड़े प्रोजेक्ट के साथ काम करने का ऑफर दिया। गांव के स्कूलों में कंप्यूटर लगाए गए और मीनाक्षी ने टीचर्स को स्मार्ट एजुकेशन की ट्रेनिंग दी। हर शाम को वह नेट के जरिए टीर्चस से रिपोर्ट भी लेती है जिससे मालूम हो सके कि कौन सा विषय कितनी देर तक पढ़ाया गया है। पूरे महीने की स्मार्ट क्लास रिपोर्ट भी तैयार होती। मध्यप्रदेश सरकार ने भी मीनाक्षी गांव के बच्चों को स्मार्ट एजुकेशन देने का अनुरोध किया। अब वे हरियाणा में 33 सरकारी स्कूल, मध्यप्रदेश में 17 स्कूल और उत्तर प्रदेश में कुछ सरकारी स्कूलों में स्मार्ट एजुकेशन देने में बिजी हैं। इससे लगभग 22500 बच्चों को इससे शिक्षा मिली। दिव्य ने 2014 में एनजीओ खोली और नाम रखा डोनेट वन आवर यानी एक घंटा दान कीजिए। बहुत से पढ़े-लिखे लोग अपनी इच्छा से दिव्य के साथ जुड़ने लगे। लोग अपनी ओर से यहां गरीब बच्चों को कॉपी, पेंसिल, चॉक और ब्लैक बोर्ड का खर्चा भी दे देते हैं। कई नामी लोगों ने बच्चों की पढाई के खर्चे का जिम्मा भी उठाया। इसी तरह गुड़गांव के कई सेक्टर्स में उनकी ब्रांचेस खुले। दिव्य प्रकाश कहते हैं कि मेरे साथ परिवार से लोग वालंटियर के तौर पर जुड़े हैं। एजुकेशन सेक्टर की खास बात यह है कि यहां पर सिर्फ गरीब बच्चे ही पढ़ते हैं। इन बच्चों को सरकारी स्कूलों में एडिमशन भी मिलता है और पढ़ाई मुफ्त होती है।” पढ़ाई का खर्चा कई बार वालंटियर की अपनी इच्छा से मिलता है या फिर मीनाक्षी अपनी सैलरी की मोटी रकम देती है। इतना ही नहीं, मीनाक्षी और दिव्य इन बच्चों को अपने खर्चे और वालंटियर की मदद से स्पेशल अरेंजमेंट के साथ दिल्ली के आसपास की जगहों पर शॉर्ट ट्रिप पर भी ले जाते हैं। मीनाक्षी का सपोर्ट सिस्टम उसकी मां है। सासू मां के देहांत के बाद मीनाक्षी की बिटिया को संभालने का पूरा जिम्मा नानी ने उठाया है।