Monday 27 March 2023 12:19 PM IST : By Yasmin Siddique

रमजान के पाक महीने में जानें कि क्यों रखे जाते हैं रोजे और रोजे की अहमियत क्या है

ramzan

रमजान के महीने की शुरुआत 24 मार्च से हो गई है। हर धर्म में कुछ चीजों की अपनी एक अहमियत होती है। ऐसे ही इस्लाम में रमजान के महीने की भी है। इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार साल के 12 महीने होते हैं। रमजान उसका नवां और सबसे पाक महीना कहलाता है। इस्लामिक कैलेंडर चांद के अनुसार चलता है। रोजे के दौरान रोजदार सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक कुछ नहीं खाते-पीते। लेकिन वह अपने खान-पान में कुछ ऐसी चीजों का ध्यान रखते हैं कि वह पूरा दिन हाइड्रेटेड फील करते हैं। सहरी यानी कि सूर्योदय से पहले खाने में अक्सर दूध के साथ हल्की-फुल्की चीजें ली जाती हैं। इस बात का भी ध्यान रखा जाता है कि अगर खाना खा रहे हैं तो उसमें ज्यादा तेल और मिर्च न हो। अगर आप बहुत मिर्च वाला कुछ खाते हैं तो इससे एसिडिटी होने के चांस रहते हैं। यही वजह है कि अक्सर लोग कुछ हल्का ही प्रिफर करते हैं। वे लोग जिन्हें एसिडिटी की शिकायत रहती है वह दही का सेवन करते हैं। इससे एसिडिटी कंट्रोल रहती है।

सूर्यास्त के बाद रोजदार अपना रोजा खजूर से खोलते हैं। खजूर से रोजा खोलना सुन्नत माना गया है। इसमें एक साइंटिफिक चीज है कि इसमें ग्लूकोज की मात्रा भरपूर होती है। यह एंटी ऑक्सीडेंट से भी भरपूर होता है। इसे खाने से बॉडी को एकदम एनर्जी मिलती है। जिसकी जरुरत हर रोजदार को होती है। अगर आप इफ्तारी पर नजर डालें तो इसमें प्रोटीन, विटामिन, कार्बोहाइड्रेट और शुगर का एक कॉम्बिनेशन होता है। अक्सर इफ्तार में लोग फल, मिक्स पकौडे़, शर्बत जैसी चीजों का सेवन करते हैं। इससे पूरा दिन जो उनकी एनर्जी ड्रेन हुई होती है वो वापस मिलती है। अक्सर डायबिटिक लोग रोजा खोलने के बाद ज्यादा शुगर वाली चीजों का सेवन कर लेते हैं ताकि वो लो फील न करें। हां अगर डॉक्टर उन्हें रोजा नहीं रखने की सलाह दे रहा है तो उन्हें उस बात को मानना चाहिए। ईश्वर आपको दुखी नहीं देखना चाहता और इस्लाम में भी इसकी छूट है।

Dried dates on a silver tray

रोजे के बारे में अक्सर लोग बोलते हैं कि यह बहुत हार्ड होता है। आप एक बार रोजा रखकर देखें आप जान जाएंगे कि अगर आप सच्चे मन से रोजा रखते हैं तो आपको रोजा नहीं लगता है। व्रत और उपवास के बारे में भी यही बात लागू होती है। सभी कुछ मन और विश्चवास का खेल है।

दूसरी हिजरी से हुई शुरुआत

अब बात करते हैं रोजा रखने के इतिहास की, इस्लाम में रोजा रखने की शुरुआत दूसरी हिजरी में शुरू हुई है। इस्लाम के आखिरी पैगंबर मोहम्मद साहब के मदीना पहुंचने के एक साल बाद रोजा रखने का हुक्म आया। मुस्लिम लोगों के पवित्र ग्रंथ कुरान की दूसरी आयत सूरह अल बकरा में लिखा है कि रोजा तुम पर उसी तरह से फर्ज है। जैसा तुमसे पहले की उम्मत पर फर्ज था। हर बालिग मुसलमान पर रोजा रखना फर्ज है। पुरुषों के लिए यह उम्र 12 साल है और महिलाओं के लिए यह उम्र उनके पीरियड आने को लेकर है। हालांकि 7 साल की उम्र के बाद से अगर आप चाहें तो अपने बच्चे को रोजा रखवा सकते हैं।

किन लोगों को मिलती है छूट

अगर आप गंभीर बीमारी से ग्रस्त हैं और डॉक्टर ने आपको रोजा रखने के लिए मना किया है तो इस सिचुएशन में आप रोजा नहीं रखना होगा, इसके अलावा अगर आप यात्रा कर रहे हैं तो आपको रोजा न रखने की छूट है। वहीं प्रेगनेंट महिलाएं और लैक्टिेटिंग मदर्स को भी रोजा न रखने की छूट है लेकिन उन्हें इसे बाद में रखना होता है।

शरीर को मिलता है रेस्ट

रोजा रखने का मकसद सिर्फ भूखे रहना नहीं होता है। यह आपकी बॉडी और मन को मजबूत बनाने का एक जरिया है। हम सभी जानते हैं कि हमारी बॉडी एक मशीन की तरह है और जब इस मशीन को भी रोजे और उपवास के जरिए रेस्ट मिलता है। कई रिसर्च में यह बात भी साबित हुई कि रोजा रखने से आपको कैंसर होने के चांस कम होते हैं। सबसे बड़ी सीख रोजे आपके अंदर पेशेंस यानी कि सब्र की पावर को डेवलप करता है। आपके सामने खाने की चीजें रखी होती हैं लेकिन आप नहीं खा सकते। यह आपके दिमाग को एलर्ट भी रखता है। आपको समय का पाबंद बनाता है। आपको एक फिक्स टाइम पर अपने रोजे को खोलना और बंद करना होता है। इस एक महीने में आप एक शेड्यूल में चलते हैं।

तीन अशरों में बंटा है रमजान महीना

वैसे रमजान के हर एक दिन की अपनी एक खासियत है। लेकिन रमजान के महीने को 10-10 दिन के तीन अशरों (हिस्सों) में बांटा गया है। इसमें पहला अशरा अल्लाह की रहमत का, दूसरा अशरा मगफिरत का और तीसरा अशरा दोजख से निजात का है। इसके आखिरी के अशरे में लोग रात को जाग कर ईबादत करते हैं। माना जाता है कि यह दुआएं कूबूल होने की रातें होती हैं। वैसे भी इस माह में खुदा को दिन में रोजे रखना और रात को इबादत करना बेहद पसंद है।

रोजेदारों के लिए नियम

रमजान का माह बहुत पवित्र माना जाता है और इस महीने गरीब व जरूरतमंद की मदद करनी चाहिए। आपको इस बात को भी समझना होगा कि रोजा सिर्फ भूखे-प्यासे रहने का नाम नहीं होता। अगर आप रोजा रख रहे हैं तो आपके मन का भी रोजा होता है। आपके न किसी से बुरा बोलना है और न ही बुरा सोचना है। दूसरों को उनकी गलतियों पर माफ करना है और दूसरों की गलत बातों को नजरअंदाज करना है। रोजा आपको सिर्फ खाने-पीने का नहीं व्यवहार का भी संयम सिखाता है। इसमें आापको अहसास होता है कि भूख लगना क्या है? रमजान जिंदगी जीने की एक तरह की प्रैक्टिस है। अगर हम अपनी जिंदगी में इन बातों का अमल करें ले तो शायद हमारे लिए और दूसरों के लिए दुनिया खूबसूरत हो जाएगी। रोजे सोशलाइजिंग का भी एक जरिया है। इस दौरान बहुत इफ्तार पार्टी होती हैं। आपस में एक-दूसरे को इफ्तार करवाने का भी पुण्य मिलता है। इसलिए इस रमजान मन भर के खाइए और खिलाइए। इस बारे में भी पुण्य मिल रहा है तो भला क्यों पीछे रहा जाए।