Friday 01 April 2022 11:32 AM IST : By Amit sharma

मूर्ख परंपरा

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मैं बचपन से मूर्ख रहा हूं, पर कभी इस पर गर्व नहीं किया, करता भी क्यों, आखिर गर्व मनुष्य द्वारा स्वअर्जित चीजों पर किया जाना चाहिए,प्रकृति प्रदत्त वस्तुओं पर कैसा गुमान। वह तो आपके पूर्व जन्म में किए गए कर्मों का ही फल होता है, जो कभी भी बासी नहीं होता है।

मूर्ख होने का सबसे बड़ा फायदा यह है कि विद्वता की तरह अपनी मूर्खता मनवाने के लिए आपको ज्यादा प्रयास नहीं करने पड़ते हैं। लोग खुद ही आ कर आपको बता देते हैं। विद्वता साबित करने के लिए आपको बार-बार मेहनत करनी पड़ती है, फिर भी शक्कीनुमा लोग संतुष्ट नहीं हाेते हैं और आपकी विद्वता को संदेह की दृष्टि से देखते रहते हैं। मूर्खता को ऐसे किसी भी खतरे से जेड श्रेणी की सुरक्षा प्राप्त होती है। बस एक बार आप मूर्ख साबित हाे जाएं, तो लोग खुद ही बिना किसी कमीशन के, सामाजिक मिशन के तहत इसके प्रचार की एजेंसी ले लेते है और जीवनभर कभी आपके मूर्खतारूपी धन पर संदेह का छापा नहीं डालते हैं। कहने का तात्पर्य है कि मूर्खता की ब्रांडिंग सरल है। विद्वता का निवास केवल दिमाग में होता है, जबकि मूर्खता के साथ ऐसा कोई संकट नहीं है। उसका स्वभाव लचीला होता है, वह कहीं भी गुजर-बसर कर लेती है, दिल में, दिमाग में, और जब मूर्खताओं का सीजन आता है, तो चेहरे से भी टपकने लगती है। इसका सबसे बड़ा लाभ यह होता है कि लोग आपके संपर्क आए बिना, आपकी फोटो देख कर ही आपका परिचय जान लेते हैं। मूर्खता की एक विशेषता होती है कि इसे सीमाओं में नहीं बांधा जा सकता है, जबकि बुद्विमता इस मामले में पंगु ही साबित होती है, उसका कार्यक्षेत्र सीमित होता है।

इंसान कितना भी प्रतिभावान क्यों ना हो अपने जन्मजात गुणों को ले कर थोड़ा ‘पजेसिव’ और ‘इनसिक्योर’ हो ही जाता है। इसलिए मुझे लगता था कि अगर किसी को मुझसे मिल कर, बात करके और मुझे देख कर भी अगर मेरी मूर्खता का भान ना हुआ, तो मैं किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रहूंगा। इसलिए मैं इस लेख के जरिए अपनी मूर्खता की सार्वजनिक मुनादी कर रहा हूं, क्योंकि आज के प्रतियोगी युग में मूर्ख होने के साथ-साथ मूर्ख लगना भी आवश्यक है। 

मूर्खता के बाकी फायदों के इतर सबसे बड़ा फायदा यह है कि आप मूर्ख होने की वजह से अपेक्षाओं को जन्म नहीं देते हैं। इस तरह से आप प्रसव पीड़ा से तो बचते ही हैं, साथ ही अपेक्षाएं पूरी ना कर पाने की ग्लानि से भी पार पा लेते हैं। मूर्खता की चादर अोढ़ कर आप अपने आपको मेहनत की सर्द ठंडी हवाओं से बचा सकते हैं और समाज से नजरें चुरा कर आराम से ‘येड़ा बन कर पेड़ा’ खा सकते हैं।

दुनिया में 2 तरह के मूर्ख होते हैं। एक होते हैं, मेरी तरह जन्मजात मूर्ख और दूसरे, जो बनाए जाते हैं। जन्मजात मूर्ख होने के नाते, मैं दूसरे प्रकार के मूर्खों को कमतर अांकता हूं, क्याेंकि ये मूर्ख अस्थायी प्रकृति के होते हैं। इनकी मूर्ख बने रहने की अवधि बहुत कम होती है, जन्मजात मूर्खों की तुलना में इनमें मेन्यूफैक्चरिंग डिफेक्ट ज्यादा होते हैं। और तो और मूर्ख बनने के बाद भी ये अपनी मूर्खता को कबूल करने में शर्मिंदगी महसूस करते हैं। ऐसे ही धूर्त और चालाक मूर्खों की वजह से ही मूर्खता की महान परंपरा कलंकित होती है, उस पर लांछन लगता है। 
बस इन्हीं नकली मूर्खों की वजह से मैं भयभीत हो जाता हूं, असुरक्षा की भावना ‘यू आर अंडर अरेस्ट’ कह कर मुझे घेर लेती है। मुझे कभी-कभी लगता है कि मैं अपने सिर पर एक तख्ती टांग कर उस पर ‘नक्कालों से सावधान, हमारी कोई शाखा नहीं है’ लिखवा कर अपनी मूर्खता का जीवन बीमा करवा लूं। लेकिन मेरे जैसे पहले प्रकार के जन्मजात मूर्ख इतने बड़े देश के लिए मूर्खता का काेटा पूरा नहीं कर सकते हैं, इसलिए दूसरे प्रकार के मूर्खों का भी अपना व्यापक महत्व है। अपने देश में हर 5 साल बाद बड़े तौर पर मूर्खिकरण अभियान चलाया जाता है, जिसे चुनाव की संज्ञा दी जाती है। जनता चुनाव के समय वोट डालते वक्त अपने आपको बहुत समझदार मान कर वोट डालती है, लेकिन उसे पता ही नहीं चलता कि वोट डाल कर उसने अगले 5 साल के लिए अपनी मूर्खता का नवीनीकरण कर लिया है। 

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मूर्खता की भूख पेट की भूख से भी बड़ी होती है इसलिए मूर्खता अपनी क्षुधा मिटाने के लिए नए-नए साधन तलाशती है। कभी वह टीवी विज्ञापनों की तरफ आशाभरी नजरों से देखती है, तो कभी बाबाओं की शरण में जाती है, तो कभी चेहरा देखो इनाम जीतो का नंबर मिलाती है।

हमारे देश में मूर्खता का व्यवहार और व्यापार बहुत व्यापक है। नोटबंदी या और किसी भी प्रकार की बंदी, इसमें मंदी नहीं ला सकती है। मूर्खता के लिए केवल एक दिन समर्पित करना, हम जैसे समर्पित मूर्खों के साथ बड़ा अन्याय होगा, जो सतत और नियत मूर्खता का उत्पादन कर ‘मूर्ख परंपरा’ को धरोहर के रूप में जीवित रखे हुए हैं।