Tuesday 22 March 2022 11:10 AM IST : By Yasmin Siddique

सीमा कुशवाहा: निर्भया का केस जीता फिर कई गैंगरेप के आरोपियों को जेल भिजवाया

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साल 2012 का दिल्ली गैंग रेप केस तो सभी के जहन में ताजा है। उन चारों आरोपियों को फांसी तक पहुंचानेवाली सुप्रीम कोर्ट की वकील सीमा कुशवाहा के जीवन का वह पहला केस था। वे ना केवल इस केस को लड़ीं, बल्कि जीतीं भी। इन्हें आज भी इनके नाम से कम और निर्भया की वकील के नाम से ही जाना जाता है।

उस वक्त दिल्ली में वकालत की पढ़ाई पूरी करने के बाद मैं प्रशासनिक परीक्षा की तैयारी कर रही थी। अपनी जिंदगी की बात करूं, तो मैं अपने गांव की पहली लड़की हूं, जो आठवीं के बाद आगे पढ़ने गयी। मेरे आगे पढ़ने के लिए भी गांव में पंचायत बैठी थी। ऐसे में आप समझ सकते हैं कि दिल्ली आ कर पढ़ना इतना आसान भी नहीं था मेरे लिए। निर्भया के साथ जो हुआ, उसने मुझे पूरी तरह से झिंझोड़ दिया। वकील मैं बाद में थी और एक लड़की पहले। मुझे इस सवाल का जवाब नहीं मिल पा रहा था कि कोई कैसे एक लड़की के साथ ऐसा कर सकता है। मैं प्रोटेस्ट में जाती थी। उसके पेरेंट्स से मिली। उन्होंने मुझ पर यकीन किया और इस तरह वह केस मुझे मिला।

वादा किया था उससे

मैं निर्भया से नहीं मिली, लेकिन मैं उसे अपनी बहन मानती हूं। साल 2012 में जिन दिनों दिल्ली में प्रोटेस्ट चल रहा था, उसकी मां मुझे अपने घर ले कर गयी थीं। उसकी तसवीर के सामने हाथ जोड़ कर मैंने कहा था कि सिस्टर, मैं तुम्हें इंसाफ दिलवाऊंगी। आप खुद सोचिए उसकी क्या गलती थी। उसकी मां ने मुझे अपनी बेटी का कंगन ला कर दिया था, जिसे पहन कर मैं उसके लिए लड़ने जाती थी। 

उन्हें विश्वास था

मेरे लिए निर्भया का केस सिर्फ केस नहीं, मुहिम था। समाज को बदलने का एक प्रयास था। जब उन चारों गुनहगारों की फांसी में विलंब हो रहा था, तब बहुत लोगों ने उसके पेरेंट्स को कहा कि यह नयी लड़की है, आप वकील बदलो। लेकिन मुझे खुशी है कि उनके विश्वास की बदौलत हमने इस केस को लड़ा और जीता। लेकिन मेरी बहन निर्भया काे क्या मिला, उसे तो जिंदगी से ही हाथ धोना पड़ा।

दिशा दे गयी

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निर्भया के माता-पिता के साथ सीमा कुशवाहा

आज निर्भया के परिवार की बेटी हूं। अंकल-आंटी के साथ संबंध आज भी हैं। उसके भाइयों को राखी बांधती हूं। निर्भया ने तो मेरे जीवन को एक नयी दिशा दी है। इस केस के बाद मैं गैंगरेप से जुड़े कई केसेज लड़ रही हूं। इसमें हाथरस गैंगरेप भी शामिल है। मैं समाज की मानसिकता को बदलना चाहती हूं। मैंने अपना एक एनजीओ खोला है। हम लोग लीगल अवेयरनेस पर काम कर रहे हैं। स्कूल स्तर के बच्चों को हमें समझाना है कि लड़की के भी वही अधिकार हैं, जो लड़के के होते हैं। सोच बदलेगी तभी बलात्कार रुकेगा।

लड़कियों को जरूरत है साथ की

निर्भया इस मामले में बहुत खुशकिस्मत रही कि उसकी मां उसे न्याय दिलवाने में पीछे नहीं रहीं। हमारे समाज की पिछड़ी व संकीर्ण सोच ने बहुत से आक्षेप उन पर लगाए। लेकिन वे डटी रहीं। यही माद्दा हर पीडि़ता के माता-पिता रखें, तो लड़कियों के लिए बहुत सी चीजें सही होनी शुरू हो जाएंगी।

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