Friday 04 December 2020 03:32 PM IST : By Nishtha Gandhi

ब्रेस्ट कैंसर पेशेंट्स के लिए खुशियां बुनती हैं जयश्री रतन

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देखा जाए तो कैंसर ही नहीं, बल्कि किसी भी बीमारी के नाम से डर लगना लाजिमी ही है। लेकिन कैंसर को ले कर खासकर महिलाअों के मन में एक और डर रहता है, वह यह कि इस बीमारी के इलाज के दौरान उनके रंग-रूप में क्या-क्या बदलाव आएंगे। उस पर अगर मामला ब्रेस्ट कैंसर का हो, तो महिला और भी डर जाती है। प्राप्त आंकड़ों के अनुसार पूरे विश्व में ब्रेस्ट कैंसर के मामले बहुत तेजी से बढ़ रहे हैं। अकेले भारत की बात करें, तो यहां महिलाअों को होने वाले कैंसर में 14 प्रतिशत मामले ब्रेस्ट कैंसर के हैं। 2018 में ब्रेस्ट कैंसर स्टैटिस्टिक्स द्वारा जारी की गयी रिपोर्ट के अनुसार उस साल भारत में ब्रेस्ट कैंसर के 1,62,468 नए मामले सामने आए।

ब्रेस्ट कैंसर की जिन पेशेंट्स को मैस्टैक्टमी यानी सर्जरी करानी पड़ती है, उनके लिए कई बार आईने में खुद से नजर मिलाना भी मुश्किल हो जाता है। खासकर कम उम्र की युवा महिलाएं बेहद परेशान रहती हैं। मैस्टैक्टमी में कई बार ब्रेस्ट पूरी रिमूव की जाती है और कई बार सिर्फ कुछ हिस्सा ही काट कर निकाला जाता है। दोनों ही स्थितियों में महिलाएं नेगेटिव बॉडी इमेज की शिकार हो जाती हैं। हालांकि अब ऐसे पेशेंट्स के लिए सिलिकॉन इंप्लांट्स या प्रोस्थेसिस का विकल्प मौजूद है, लेकिन इनसे जुड़ी एक बड़ी दिक्कत यह भी है कि हर किसी के लिए इनका खर्च उठा पाना आसान नहीं होता। दूसरे ब्रेस्ट प्रोस्थेसिस को सारा दिन लगाने में कुछ महिलाएं असहज भी महसूस करती हैं।  मुंबई की रहनेवाली एक साधारण सी महिला जयश्री रतन ने सोचा भी ना था कि एक दिन इंटरनेट पर कुछ सर्च करते समय यों ही उनका सामना ब्रेस्ट कैंसर से जुड़े ऐसे दर्द से हो जाएगा, जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता। जयश्री का कहना है, ‘‘एक दिन मुझे इंटरनेट पर अमेरिका की एक ऐसी संस्था निटेड नॉकर्स के बारे में पता चला, जो क्रोशिए से ब्रेस्ट कैंसर सर्वाइवर्स के लिए ब्रेस्ट प्रोस्थेसिस बना कर उन्हें फ्री बांटती हैं। उन दिनों मैं भी अमेरिका गयी हुई थी, इसलिए मैंने उस संस्था से संपर्क किया और उनके लिए वाॅलंटियर करना शुरू किया। फिर जब मैं भारत वापस आयी, तो एक रिश्तेदार से मिलना हुआ। उनकी भी मैस्टेक्टमी हुई थी, तो मैंने डरते-डरते उन्हें क्रोशिए से बनाए नॉकर्स दिए। उनकी सर्जरी हुए ज्यादा समय नहीं हुआ था। मुझे यह जान कर और भी दुख हुआ कि वे किसी भी तरह के प्रोस्थेसिस का इस्तेमाल नहीं कर रही थीं, बल्कि सिर्फ दुपट्टे से ही ब्रेस्ट को कवर कर रही थीं। मेरे कहने पर जब उन्होंने नॉकर्स का इस्तेमाल किया, तो उन्हें ये बहुत पसंद आए। उनकी शिकायत थी कि मैंने उन्हें ये नॉकर्स पहले क्यों नहीं दिए। बस तभी से यह आइडिया आया कि क्यों ना हम अपने देश में भी यह करना शुरू करें। वैसे भी यह बहुत दुखद बात है कि पैसों की तंगी की वजह से कई महिलाएं मैस्टैक्टमी के बाद प्रोस्थेसिस इस्तेमाल नहीं कर पातीं और हीन भावना की शिकार होती रहती हैं।’’

इसके बाद जयश्री ने इस दिशा में काम करना शुरू किया और अपनी उन सहेलियों की मदद ली, जो क्रोशिया और बुनाई करना जानती थीं। इन लोगों ने अमेरिका की संस्था से संपर्क किया और भारत में अपनी संस्था साएशा इंडिया फाउंडेशन को उनके साथ रजिस्टर करवा लिया। आज इनके लगभग 170 से ज्यादा वाॅलंटियर्स हैं, जो खाली समय में ब्रेस्ट प्रोस्थेसिस या नॉकर्स बनाती हैं। इनकी संस्था अभी तक ढाई हजार से ज्यादा नॉकर्स ब्रेस्ट कैंसर की लड़ाई लड़ रही महिलाअों को बांट चुकी है।

इस्तेमाल होती है स्पेशल यार्न

चूंकि ये नॉकर्स सीधे स्किन के कॉन्टैक्ट में आते हैं, इसलिए इन्हें बनाते समय इस बात का भी ध्यान रखा जाता है कि इनसे स्किन को कोई एलर्जी ना हो। जयश्री बताती हैं कि ब्रेस्ट नॉकर्स बनाने के लिए 100 प्रतिशत कॉटन यार्न का इस्तेमाल किया जाता है, जो गोवा और वडोडरा में इनके रजिस्टर्ड सप्लायर्स से ही मिलते हैं। आज तक जिन भी महिलाअों ने इनका इस्तेमाल किया है, उन्हें ये गरमी के मौसम में पहनने में बहुत कंफर्टेबल लगते हैं। कॉटन यार्न के अंदर खास सॉफ्ट फाइबर भर कर इन्हें ब्रेस्ट की शेप दी जाती है।

केरल से वॉलंटियर करनेवाली वाल्सा मैरी मैथ्यू का कहना है, ‘‘मैस्टैक्टमी सर्जरी के बाद हर महिला सिलिकॉन प्रोस्थेसिस खरीद पाए, यह जरूरी नहीं है, इसलिए जिन भी महिलाअों को हमने क्रोशिए से बने ये नॉकर्स दिए, वे बहुत खुश हुईं। इस संस्था से जुड़ना भी मेरे लिए एक इत्तेफाक ही था। पिछले साल कुछ पुराने दोस्तों ने मिलने का प्रोग्राम बनाया था, 50 साल बाद जयश्री से मुलाकात होने पर उन्होंने मुझे अपनी संस्था साएशा और क्रोशिया से बनाए जानेवाले नॉकर्स के बारे में बताया, बस तभी मुझे लगा कि रिटायरमेंट के बाद मेरे जीवन को एक और मकसद मिल गया है। और इस तरह से मैं भी इस काम से जुड़ गयी।’’ चूंकि इन्हें आम ब्रा कप के अंदर ही इंसर्ट किया जाता है, इसलिए ये नॉकर्स ए, बी, सी और डी कप साइज में बनाए जाते हैं। इन नॉकर्स को इस तरह से बनाया जाता है कि महिलाएं इन्हें बड़ी आसानी से अपने कप साइज के मुताबिक फाइबर निकाल कर एडजस्ट कर सकती हैं। इन्हें आसानी से धो कर इस्तेमाल में लाया जा सकता है। आमतौर पर जिस महिला की एक ब्रेस्ट की सर्जरी हुई होती है, उन्हें दो नॉकर्स दिए जाते हैं, ताकि वे इन्हें बदल-बदल कर इस्तेमाल कर सकें। इनकी लाइफ 2 साल तक होती है। उसके बाद वे चाहें, तो इन्हें खुद भी बना सकती हैं अाैर अगर नहीं बनाना चाहतीं, तो साएशा की मदद से उन्हें नए नॉकर्स दे दिए जाते हैं।

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जिन्हें क्रोशिया करना आता है, वे महिलाएं बड़ी आसानी से इन्हें एक दिन में बना सकती हैं। अगर इसे घर और ऑफिस के दूसरे कामों के साथ किया जाए, तो ये बनने में 3-4 दिन ले लेते हैं। बहुत कुछ यह बनाने वाले की स्पीड पर भी निर्भर करता है। जो भी इस संस्था के साथ जुड़ कर वॉलंटियर करना चाहते हैं, जयश्री उन्हें बुनने के लिए यार्न और फाइबर भी उपलब्ध करवाती हैं।

फिलहाल जयश्री अपने साथ ज्यादा से ज्यादा लोगों को जोड़ते हुए एक बड़ा कारवां बनाने की तैयारी में हैं। जैसे-जैसे लोगों को उनके इस काम के बारे में पता चल रहा है, ज्यादा से ज्यादा लोग इनके साथ जुड़ते जा रहे हैं। ‘‘हम अब कई कैंसर स्पेशलिस्ट्स के पास जा कर उन्हें अपने बनाए नॉकर्स के बारे में बताते हैं। वे भी अपने यहां ट्रीटमेंट के लिए आनेवाली महिलाअों को इन्हें इस्तेमाल करने के लिए कहती हैं।’’  चेन्नई ब्रेस्ट सेंटर में प्रमुख सर्जन डॉक्टर सेल्वी राधाकृष्ण का कहना है कि ये नाॅकर्स बहुत अच्छी क्वाॅलिटी के तो हैं ही, जिन महिलाअों को हमने इन्हें इस्तेमाल करने के लिए दिया है, वे दोबारा इन्हें मांगने हमारे पास आती हैं। डॉक्टर सेल्वी महीने में कम से कम 25 कैंसर सर्जरी करती हैं। उनकी टीम अब अपने पेशेंट्स के लिए साएशा इंडिया से नॉकर्स मंगवाने लगी है।

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जो लोग साएशा संस्था के साथ जुड़ कर काम करना चाहते हैं, लेकिन उन्हें क्रोशिया करना नहीं आता, उनके लिए अब ये लोग खासतौर से वीडियो ट्यूटोरियल्स बना रहे हैं। जयश्री का कहना है, ‘‘फिलहाल जो महिलाएं हमारे साथ जुड़ कर काम कर रही हैं, उनमें से ज्यादातर बुजुर्ग हैं। युवा महिलाअों को चूंकि इस तरह के काम की जानकारी कम होती है, इसलिए वे चाह कर भी इस काम से जुड़ नहीं सकतीं। ऐसे लोगों को बढ़ावा देने के लिए हमने खासतौर से वीडियो ट्यूटोरियल्स बनाए हैं, जिनकी मदद से वे क्रोशिया करना सीख सकती हैं। ऐसी कई महिलाएं जिन्होंने हमारे बनाए नॉकर्स इस्तेमाल किए हैं, वे भी अब हमारे साथ जुड़ कर दूसरी महिलाअों के लिए नॉकर्स बनाने में हमारी मदद कर रही हैं।’’

रीजा ने ब्रेस्ट कैंसर की सर्जरी के बाद अपनी मां का कॉन्फिडेंस डगमगाते हुए देखा। वे यह देख कर परेशान थीं कि कैसे उनकी मम्मी अब बहुत सोच-समझ कर ऐसे कपड़े पहनने लगी हैं, जिनसे वे अपनी बॉडी में आयी इस कमी को छुपा सकें। जब उन्हें क्रोशिए से बने ब्रेस्ट नॉकर्स के बारे में पता चला, तो उन्होंने जयश्री को फोन करके इन्हें मंगवाया। रीजा का कहना है कि अब वे फिर से पूरे कॉन्फिडेंस के साथ तैयार होने लगी हैं। ये नॉकर्स ब्रेस्ट कैंसर सर्वाइवर्स का खोया आत्मविश्वास लौटाने में मददगार हैं। वहीं एक और ब्रेस्ट कैंसर सर्वाइवर शिल्पा का कहना है, ‘‘ये नॉकर्स पहन कर मैं इंटरव्यू देने के लिए गयी, ये बड़ी आसानी से मेरे इनरवियर में फिट हो गए। थैंक्यू साएशा।’’ साएशा द्वारा दिए गए नॉकर्स इस्तेमाल करके कल्पना भी बहुत खुश हुई, ‘‘जेली वाले प्रोस्थेसिस यूज करने में पिछले कुछ सालों में मेेरे 8 लाख रुपए खर्च हो चुके थे और इनसे कई बार एलर्जी भी हुई, जबकि साएशा द्वारा दिए गए नॉकर्स बहुत कंफर्टेबल हैं। इनसे एलर्जी भी नहीं होती।’’

फ्री निटेड नॉकर्स मंगवाने के लिए फोन नं 7700990212, 9920753276 पर संपर्क करें या वेबसाइट www.saaishaindia.org पर क्लिक करें।