पिछले दिनों निर्माता वासु भगनानी की फिल्म बेलबॉटम सुर्खियों में रही और इसकी बड़ी वजह थी इंदिरा गांधी का वह किरदार, जिसे लारा दत्ता ने निभाया था। उनका ऑनस्क्रीन मेकअप करनेवाले विक्रम गायकवाड़ से बातचीत के प्रमुख अंश यहां प्रस्तुत हैं-
इस खास मेकअप के लिए आपने क्या कारनामा किया कि यह इतना हिट हुआ?
बेलबॉटम पीरियड फिल्म है, जिसमें लारा दत्ता को इंदिरा गांधी के रूप में दिखाना वाकई एक बड़ा चैलेंज था। देश की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा जी के लुक में जरा भी गड़बड़ी होना किसी को भी गवारा ना होता। एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी मुझ पर थी। मैंने पहले स्क्रिप्ट पढ़ी, निर्देशक और टीम के साथ इस पर विस्तृत बातचीत की। सभी किरदारों में सबसे कॉम्प्लेक्स किरदार था लारा दत्ता का। वे एक उम्दा अभिनेत्री हैं, पर इंदिरा गांधी के व्यक्तित्व से मेल नहीं खातीं। मैंने इंदिरा जी पर अनगिनत डॉक्युमेंट्रीज, वीडियोज देखे, उनकी फोटोज देखीं। उनके चेहरे का खास अध्ययन किया। लारा के चेहरे के साथ इंदिरा जी के चेहरे को मिलाने का डिजिटली प्रयोग किया। इंदिरा जी की आईब्रोज, नाक और फेस को मिलाना आसान नहीं था। इंदिरा जी की नाक का प्रोस्थेटिक किया, उनके बालों का अलग स्टाइल था, जिसके लिए विग तैयार किया। उनके बाल काले-सफेद मिक्स थे, चेहरे की झुर्रियों के लिए उसी तरह से प्रोस्थेटिक ढाला गया। हमने 3 ट्रायल्स किए। हर लुक को बनाने के लिए लगभग 3 घंटे लगे। लारा धैर्य से मेकअप कराती रहीं। हमारी प्रोस्थेटिक टीम में जगदीश येरे और प्रशांत डोईफोडे का मैं खासतौर पर जिक्र करना चाहूंगा, जिन्होंने बहुत बारीकी से इस मुश्किल प्रक्रिया में अपना योगदान दिया।
इस प्रोस्थेटिक मेकअप प्रोसेस के दौरान निर्देशक रणजीत तिवारी, निर्माता वासु भगनानी और जैकी भगनानी का रिएक्शन कैसा था?
एक नॉन स्टॉप रिएक्शन मुझे पूरी यूनिट से मिलता रहा। सब हूबहू इंदिरा गांधी के लुक को देख कर शॉक्ड थे। मेकअप और प्रोस्थेटिक के लेअर्स से एक सांचा बनता गया और जब लारा उसमें बिलकुल इंदिरा नजर आने लगीं, तो टीम का उत्साह दुगना होता गया। जब वह इंदिरा जी बन कर सामने आयीं, तो सचमुच कोई उन्हें नहीं पहचान पाया। मेरी टीम के लिए सबका यह भरोसा पाना सबसे बड़ी जीत थी। आज पूरी दुनिया में लारा का इंदिरा जी का लुक मशहूर हुआ है। लोगों ने इसे वायरल कर दिया। मैं नयी पीढ़ी की तहेदिल से दाद दूंगा,जिन्हें प्रोस्थेटिक मेकअप में बहुत दिलचस्पी है और वे इस मुश्किल मेकअप आर्ट को समझने की कोशिश करते हैं। प्रोस्थेटिक मेकअप और कुछ नहीं, एक ट्रांसफॉर्मेशन आर्ट है।
प्रोस्थेटिक मेकअप के लिए क्या कोई खास तरह का वातावरण जरूरी होता है?
हां। अपना देश ट्रॉपिकल कंट्री होने के कारण यहां ज्यादातर इलाकों में गरमी होती है। इस वजह से चेहरे पर प्रोस्थेटिक मेकअप की लेअर्स का टिके रहना बहुत मुश्किल होता है। यूरोपियन देशों का मौसम ठंडा होता है, तो वहां यह मेकअप टिक जाता है। हमारे देश में इस तरह का मेकअप ज्यादा खर्चीला और मुश्किल होता है। कई बार तो गरमी के कारण इसके लेअर्स निकल जाते हैं और उसे दोबारा लगाना पड़ता है। विदेशों में कई बार कंप्यूटर ग्राफिक्स का भी प्रयोग मेकअप आर्ट में किया जाता है, जो अपने देश में उनकी तुलना में कम है।
आपने अब तक कई तरह के लुक्स तैयार किए, सबसे चुनौतीपूर्ण काम कौन सा था?
19वीं सदी के फकीर लल्लन शाह को परदे पर दिखाना। 24 वर्ष की युवावस्था से ले कर 70 वर्ष के बुजुर्ग तक मैंने इन्हें परदे पर दिखाया। उनके चेहरे की महीन रेखाओं को दिखाना, मुद्रा पर संतुलित भाव को दर्शाना बड़ा चैलेंज था।
अमिताभ बच्चन से ले कर विद्या बालन, आमिर खान और लारा दत्ता तक आपने अनगिनत बॉलीवुड, बांग्ला, मराठी, साउथ के स्टार्स का मेकअप किया। कैसा अनुभव रहा?
ये सभी प्रोफेशनल हैं, अपने किरदारों में जान डालने के लिए वे पूरे समर्पण के साथ घंटों प्रोस्थेटिक मेकअप करवा लेते हैं। नयी जेनरेशन के कलाकार रणबीर कपूर, आलिया भट्ट और रणवीर सिंह भी बहुत धैर्य से मेकअप कराते हैं। लेकिन हां, मुझे भी अपने कैरिअर में कई बार कड़वे अनुभव हो चुके हैं, जिसका खामियाजा मेकअप आर्टिस्ट और फिल्म से जुड़े सभी को भुगतना पड़ता है।
अपने अनोखे कैरिअर पर कितने संतुष्ट हैं?
पुणे के फिल्म्स एंड टेलीविजन इंस्टिट्यूट से मैंने मेकअप पर पूरा कोर्स किया, जबकि 1983 के उस दौर में शायद ही कोई इस कला को इतना महत्व देता था। मुझे 4 राष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुके हैं। विद्या बालन को डर्टी पिक्चर फिल्म में सिल्क स्मिता बनाना भी एक टास्क था। मराठी फिल्म बालगंधर्व में अभिनेता सुबोध भावे को, जिन्हें अकसर स्त्री भूमिकाओं के लिए नवाजा गया, मैंने बालगंधर्व का लुक दिया, जो सराहा गया। इसे भी नेशनल अवाॅर्ड मिला। बांग्ला फिल्म मोनेर मानुष और जतिश्वर के लिए भी राष्ट्रीय पुरस्कार मिले। कई आइफा अवॉर्ड भी मिल चुके है। तेरे बिन लादेन, 3 इडियट्स, सरदार-मेकिंग ऑफ गांधी, डॉक्टर बाबासाहेब आम्बेडकर , मौसम, बर्फी (प्रियंका चोपड़ा और इलियाना डिक्रूज का ट्रांसफॉर्मेशन लुक), कमीने, ओमकारा जैसी कई महत्वपूर्ण फिल्मों का मैं हिस्सा रहा हूं। मैं अपने कैरिअर में और महारत पाना चाहता हूं। न्यूयॉर्क मेअकप एकेडमी से मैंने मेकअप आर्ट के साथ उसका साइंस के रूप में भी अभ्यास किया। इस कला से एक कलाकार का किरदार में जबर्दस्त ट्रांसफॉर्मेशन होता है। आज रियलिटी फिल्मों के दौर में मेकअप कला की अहमियत बढ़ गयी है। यह सिर्फ शृंगार का एक माध्यम नहीं रहा।
21वीं सदी की महिलाओं के लिए आपके पास क्या मेकअप टिप्स हैं?
पिछले 15-20 वर्षों में महिलाएं अपने लुक्स अौर परिधान के प्रति ज्यादा सजग हो चुकी हैं। कामकाजी महिलाओं की गिनती अपने देश में तेजी से बढ़ती जा रही है। जिस तरह से पूरी दुनिया को कोविड ने अपने चपेट में ले लिया, उसे देख कर कहीं ना कहीं यह आशंका बन चुकी है कि कोरोना की महामारी विश्वभर से हमेशा के लिए दूर होगी भी या नहीं ! ऐसे में मास्क पहनने पड़ें, जब आपका चेहरा ही ढक जाए, तो सौंदर्य प्रसाधन किस काम के ! अधिकांश महिलाएं अपने नेचुरल अवतार में घर के बाहर निकलने लगीं। कइयों को उनके बाल डाई कराने की भी जरूरत नहीं रही। यह सब कुदरत का कालचक्र है, जिसे हम सभी ने देखा, अनुभव किया! जब तक कोरोना से समाज-देश भयमुक्त नहीं होता, शायद नेचुरल लुक्स में सभी नजर आ सकते है। मेरा आज की महिलाओं के लिए यही टिप, यही मंत्र होगा- नो मेकअप लुक्स ! यह मेरी व्यक्तिगत राय है। अगर आपके लुक्स में, चेहरे में कोई नुक्स नहीं, तो आपको मेकअप की जरूरत नहीं। बी नेचुरल यही मेरा फिटनेस मंत्र है। आप चाहे खूबसूरत हैं या नहीं, तो भी खुद को बिलकुल नेचुरल पेश करें।
अगर आप अपनी खूबसूरती में इजाफा करना चाहती हैं, तो आपके परिधान और आपका मेकअप एक-दूसरे के साथ मैच करने चाहिए। और हां, यह बात हमेशा ध्यान में रखिए कि आप जिस अवसर के लिए जा रही हैं, उसे भूलें नहीं। अगर आप शादी में शरीक हो रही हैं, उस हिसाब से हल्का सा मेकअप व परिधान को मैच करनेवाली ज्वेलरी पहनें। ऑफिस में जाने वाली महिलाएं बहुत बेसिक तैयार हों। आई लाइनर या लिपस्टिक। फॉर्मल्स के साथ झुमके-नेकलेस नहीं मैच होते। अब हेवी या लाउड मेकअप का दौर आउट ऑफ डेट हो चुका है। आप जैसी हैं, वैसे ही खुद को स्वीकार करें। आत्मसम्मान के साथ जिंदगी जिएं। अपनी पहचान ना खोएं।