
डीपीएस आरके पुरम दिल्ली में 12वीं क्लास की स्टूडेंट आन्या चौधरी यूं तो आम लड़की हैं लेकिन उनकी सोच जरा हट कर है। बहुत कम उम्र से फेमिनिज्म और स्त्रियों की सेहत को लेकर काम कर रही हैं। उनकी मां डॉ. पायल चौधरी स्त्री रोग विशेषज्ञ हैं, यह एक वजह है कि बचपन से आन्या को सेहत के बारे में बहुत कुछ मालूम है। 17 वर्षीय आन्या उन मुद्दों पर बात करती हैं, जिन पर बात करते हुए ना सिर्फ महिलाएं हिचकिचाती हैं, बल्कि कई बार डॉक्टर्स भी इन पर खुल कर बात नहीं कर पाते।
सेहत सबसे पहले
आन्या की मॉम गायनी हैं, इसलिए घर में एक्सपोजर और जागरूकता है। इसके बावजूद उनके परिवार की बुजुर्ग महिला को दिक्कत हुई, क्योंकि यूटीआई जैसे गाइनी मुद्दों को लेकर बड़े टैबू हमारे समाज में हैं और इन पर हम खुल कर बात नहीं कर पाते। आन्या कहती हैं, हम आम स्त्री स्वास्थ्य के मुद्दों को डिस्कस ही नहीं करते। यह देख कर मैंने इस तरह की वर्कशॉप आयोजित करने का फैसला किया, ताकि बड़ी संख्या में महिलाएं इस बारे में जागरूक हो सकें। वे स्त्रियों के साथ अपनी परेशानियां बांट सकती हैं। वहां उन्हें पता चलता है कि वह अकेली ऐसी समस्या नहीं झेल रही हैं, बहुत सी अन्य महिलाएं भी काफी समय तक ऐसी बीमारियों को झेलती हैं, जब तक कि उनकी जान पर नहीं बन आती। आन्या कहती हैं कि अगर एक भी महिला बोल पाती है तो बाकियों को भी हिम्मत मिलती है। मैं महिलाओं से कहती हूं कि यूटीआई ऐसी समस्या नहीं है कि इसे झेलते रहा जाए। इसका कारगर इलाज मौजूद है। मैंने एक जागरूकता अभियान चलाया- हमारी सेहत मायने रखती है। मैंने आसपास के रिक्रिएशन सेंटर्स में और ऑनलाइन कार्यक्रमों के जरिए वर्कशॉप आयोजित कीं।
वर्जित विषय पर रिसर्च पेपर

आन्या कहती हैं कि इस तरह की वर्कशॉप के जरिये एक वर्जित विषय पर चर्चा शुरू हुई और यह जानकर हैरानी हुई कि कितनी महिलाएं चुपचाप यूटीआई या यूरिनरी इन्कॉन्टिनेंस जैसी समस्याएं झेलती रहती हैं। मैंने इन वर्कशॉप्स के जरिये डेटा एकत्र किया और ऐसी स्वास्थ्य समस्याओं पर सामाजिक अवधारणाओं को बेहतर कैसे बनाया जाए, इस पर एक रिसर्च पेपर तैयार किया। यह परचा एसएसआरजी इंटरनेशनल जर्नल ऑफ मेडिकल साइंसेज में प्रकाशित हुआ और मुझे ब्रिटिश साइंस एसोसिएशन का क्रेस्ट गोल्ड अवॉर्ड भी मिला।
डॉक्टर पेशेंट रिश्ता
आन्या हर वर्कशॉप के साथ महिलाओं के व्यवहार में बदलाव को साफ महसूस कर पा रही हैं। उनकी मां कहती हैं कि आन्या जिस तरह पेशेंट्स से बात करती है, उस से उन्हें भी मोटिवेशन मिलता है, वह समझ पाती हैं कि कैसे पेशेंट के साथ विनम्र-संवेदनशील होकर बात की जानी चाहिए। वह कहती हैं कि इन वर्कशॉप्स के बाद ऐसी महिला मरीजों में इजाफा हुआ है, जो यूरिनरी ट्रैक संबंधी समस्याओं के इलाज के लिए क्लीनिक में आ रही हैं।
भविष्य के सपने

आन्या पूरी दुनिया के हेल्थ सिस्टम को ट्रांसफॉर्म होते देखना चाहती हैं। वह रिसर्च करना चाहती हैं, पॉलिसी मेकिंग में काम करना चाहती हैं और हेल्थ को यूटिलाइज करते हुए एक सामाजिक बदलाव का सपना देखती हैं। वे आगे फेमिनिज्म के बहुत से मुद्दों और जेंडर इक्वैलिटी के सवालों पर भी काम करना चाहती हैं। उनकी एक पुस्तक भी प्रकाशित हो चुकी है। वह कहती हैं-अभी हेल्थ से शुरुआत की है, आगे बहुत से और भी मुद्दे हैं, जिन पर काम करना है।