Friday 06 September 2024 02:40 PM IST : By Pariva Sinha

मुंबई के गणपति उत्सव की बात ही कुछ और है

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समुद्र के तट पर बसे मुंबई शहर के सुखकर्ता दुखकर्ता वार्ता विघ्नाची गणपति बप्पा साल में एक बार आते हैं और इनके स्वागत में सारा शहर गांव पहले से जुट जाता है। मुंबई के हर इलाके में बप्पा को अलग-अलग नामों से जाना जाता है जैसे- लालबाग में लालबागचा राजा, अंधेरी में अंधेरीचा राजा और चिंचपोकली में चिंचपोकलीचा चिंतामणी और मरीन ड्राइव में मरीनड्राइवचा सम्राट। कभी ना रुकने वाले शहर के लोग इन दिनों छुटि्टयां लेते हैं, पुणे की गंगु से लेकर बैंड्रा की गैब्रिएल तक बप्पा के पंडाल में सज धज के आरती करती नजर आती हैं। यह सिर्फ पंचांग में लिखी विनायक चतुर्दशी तिथि नहीं है। इस शहर के लोगों के लिए भावनाओं से भरे कुछ हफ्ते हैं। सौभाग्य से अगर आप मुंबई इस दौरान जाएं तो आपको देखने को बहुत कुछ मिलेगा। स्टेशन या एअरपोर्ट से घर पहुंचने तक आप ट्रैफिक में गणपति जी की ट्रक टेंपो में विराजमान भव्य मूर्तियों के साथ-साथ सफर करेंगे। जगह-जगह लगे गणपति की मूर्तियों के स्टॉल, फूल और डेकोरेशन का सामान आपका ध्यान अपनी ओर खींचेंगे। अगर आप घर से दूर अकेले रहते हैं तो डीजे पर दिन रात बज रहे एक से एक फिल्मी भजन आपके घर को कभी सूना नहीं रहने देंगे, क्योंकि बप्पा आपके साथ होंगे। बाहर निकलने पर पकवानों और तरह-तरह के स्वाद और आकार वाले मोदक की खुशबू आपके डाइट प्लान को जरूर खराब कर देंगे।

एक से बढ़ कर एक मूर्तियां

गणपति बप्पा की मूर्तियां पनवेल के पास बना कर तैयार की जाती हैं। डिजॉल्व हो जाने वाली ये मिट्टी की मूर्तियां एक से बढ़ कर एक लगती हैं। आर्टिस्ट मूर्तियों को पेंट कर के डीटेल देते हैं। उसके बाद इन मूर्तियों को तैयार किया जाता है। धोती, ज्वेलरी, बाजूबंद, बप्पा की सूंड़ पर भी मोती और कलरफुल स्टोन्स लगा कर सजाया जाता है। मुकुट पहना कर बप्पा का लुक पुरा करते हैं। हर पंडाल में गणपति थीम के अनुसार अलग-अलग सवारियों पर बैठे नजर आते हैं। मूशक के अलावा बाइक, कमल, सिंहासन पर भी बैठे नजर आते हैं बप्पा।

पूरे शहर में धूम

अब ले चलते हैं आपको पंडलों की तरफ, जहां लंबा सफर कर के गणपति जी विराजमान होते हैं। गणपति जी के लिए मंडप घरों में, कॉलोनी में और बिल्डिंग में भी लगाया जाता है। गणपति जी के दर्शन के लिए कई पंडाल हैं जहां आप जा सकते हैं। सबसे मशहूर लालबाग और गिरगांव चौपाटी पर आप उत्सव के माहौल का पूरा आनंद ले सकते हैं, लेकिन वहां आपको बप्पा दिखेंगे कि नहीं इसकी गारंटी नहीं है, भीड़ से अगर आप बचना चाहें तो अंधेरी, गोरेगांव, मलाड, ठाणे में भी जा सकते हैं। हर जगह मेले देखने को मिलेंगे, जहां रोशनी की चकाचौंध में घूमते हुए झूले, डीजे पर बजते हिट गाने, तरह तरह के खाने-पीने और खरीदारी के स्टॉल्स और सुंदर ट्रेडिशन आउटफिट्स में डांस करते लोग। इस तरह के मंडपों में कई बार आपको कोई बॉलीवुड सिंगर परफॉर्म करता मिल सकता है, क्योंकि कई पंडाल स्पॉसर्ड होते हैं। अगर आप टीवी के फैन हैं तो यहां टीवी आर्टिस्ट भी मिल सकते हैं। बॉलीवुड सेलेब्स के लिए लालबाग और चौपाटी में सुबह-सुबह कोशिशि करें तो बप्पा और रिश्ते में सबके बाप लगने वाले बच्चन जी के भी दर्शन हो सकते हैं।

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गणपति बप्पा को घर लाने की इच्च्छा सबकी होती है लेकिन इन्हें घर लाना फुल टाइम जॉब होता है। धूम-धाम से इन्हें घर लेकर आया जाता है फिर बप्पा के विराजमान होने के बाद घर से बाहर नहीं जाते। सुबह-शाम उनकी आरती और सेवा की जाती है। गणपति जी के प्रसाद में मोदक के अलावा भी कई तरह की चीजें बना कर चढ़ा सकते हैं। मिठाई की जगह केक, चॉकलेट या घर पर बना कोई भी शुद्ध शाकाहारी खाना भी प्रसाद के रूप में चढ़ाया जा सकता है।

घर के मंडप

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गणपति जी को घर लाने की तैयारी बहुत पहले से ही शुरू हो जाती है। शहर में लगे पंडाल की तरह घर में भी भगवान के लिए मंडप जैसा बनाया जाता है जिसमें आसन लगता है और उस पर गणपति की स्थापना की जाती है। घर पर कई तरह से पंडाल बनाए जाते हैं पेपर कटिंग से सजाने के लिए फूलों और तरह-तरह के डिजाइंस, पीवीसी पाइप से पंडाल का ढांचा तैयार किया जा सकता है उसके ऊपर सुंदर नेट, वेलवेट, स्टोन्स वाला शिफॉन का कपड़ा भी इस्तेमाल किया जाता है। बप्पा के मंडप को फूलों, दूब घास, लाइटों से सजाया जाता है। घरों में और बाहर भी शहर में कई तरह के खूबसूरत पंडाल सजे देखने को मिलते हैं। घर को आप शादी वाले घर की तरह सजा के रखते हैं। घर के बाहर रंगोली और अंदर लाइटें हमेशा रहती हैं। गणपति जी के स्वागत में शहर दुलहन जैसा सजा रहता है और हर पंडाल किसी शादी के पंडाल से कम नहीं लगता है और सड़कों पर निकले लोग जब बप्पा को लाने जाते हैं तो नाचते गाते बारातियों से कम नहीं लगते। पूरा आसमान गुलाल और फूलों के रंग से रंग जाता है। ढोल और ताशों की आवाज कोने-कोने से आ रही होती है। घर पर दोस्तों और रिश्तेदारों को बुला कर पत्तल में खाना परोसा जाता है उनके साथ आरती भी की जाती है तो अगर आप बप्पा को अपने घर नहीं ला पा रहे हैं तो आप किसी पड़ोसी, दोस्त या रिशतेदार के घर आरती में शामिल हो सकते हैं।

गौरी-गणेश पूजा

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मुंबई के अंधेरी की नेहा कुलकर्णी बता रही हैं पूजा और प्रसाद से जुड़ी बातें। पहले दिन बप्पा को घर लाते हैं फिर आप अपने हिसाब से चुन सकते हैं कि हर साल आप उन्हें अपने घर कितने दिन का मेहमान बना कर लाना चाहते हैं। चतुर्थी से पहला दिन मानते हुए आप 11 दिन रख सकते हैं। डेढ़ दिन,3 दिन, 5 दिन, 7 दिन और 10 दिन में विसर्जन कर सकते हैं। तीसरे दिन जिस दिन गौरी पूजा की जाती है उस दिन गणपति जी के साथ गौरी की भी पूजा की जाती है। गौरी की भी मूर्ति बनायी जाती है और गौरी गणपति किया जाता है, साड़ी पहन कर महिलाएं तैयार होते हैं और गौरी विर्सजन भी किया जाता है।

प्रसाद में मोदक के अलावा चढ़ती हैं 16 सब्जियां

बप्पा को 21 दूब, लाल फूल, 21 ऊकडीचे मोदक यानी चावल के आटे से बने हुए मोदक जिन्हें गुड़, घिसा हुआ नारियल और इलाइची भर के स्टीम किया जाता है और चढ़ाए जाते हैं। आप इन्हें फ्राई कर के भी बना सकते हैं। सूजी और मैदा मिला कर भी मोदक बनाए जा सकते हैं। पूरनपोली, भाजा, 16 सब्जियों से बनी सब्जी भोग में बनाई जाती है। कुछ लोग सुहागनों को भी घर बुलाते हैं और खाना व तोहफे देकर विदा करते हैं।

धूम विसर्जन की

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गणपति जी को अलविदा करना आसान नहीं हैं। बच्चों का मन अकसर उदास हो जाता है, बप्पा के जाने से घर भी खाली लगने लगता है। विर्सजन वाले दिन बप्पा को पूरे घर में घुमाया जाता है। जिस भी दिन चाहें, मुहूर्त देख के घर के पूल, टब या आस पास बप्पा को गणपति बप्पा मोरया, पुढच्या वर्षी लवकर या यानी अगले बरस फिर आना बप्पा कह कर विसर्जन कर दिया जाता है। विर्सजन से पहले बप्पा के कान में अपनी इच्छा बोली जाती है, ऐसी मान्यता है कि यह इच्छा जरूर पूरी होती है। बड़ा विर्सजन देखने के लिए जूहू बीच या गिरगगांव चौपाटी जा सकते हैं लेकिन बच्चों को भीड़ में ले जाने से बचें।

बप्पा को विदा कर के पूरा शहर थक हार के सो जाता है। विर्सजन के बाद खाली सड़कें, झिलमिल करती लाइट्स, कटे टूटे डेकोरेशन की झालरें, सूने पंडाल किसी शादी के खत्म होने के बाद मंडप जैसे लगते हैं। बीच पर सुबह जॉगिंग करने जाने वालों को मालाएं, धुला गुलाल का रंग और गणपति जी की आधी डिजॉल्व हुई कुछ मूर्तियां दिख ही जाती हैं। सभी मूर्तियां ईको फ्रेंडली ही होती हैं लेकिन जितनी बड़ी मूर्ति होती है उसे विसर्जित होने में उतना ही समय लगता है। बप्पा के दोबारा आने का इंतजार फिर से शुरू हो जाता है अगले साल के पंडाल के लुक एंड स्टाइल के बारे में लोग फिर सोचने लगते हैं और इसी तरह गणेश चतुर्थी महाराष्ट्र में मनायी जाती है।