Friday 20 November 2020 02:59 PM IST : By Nishtha Gandhi

छठ 2020: अर्घ्य का क्या है महत्व, महिलाओं को क्यों प्रिय है छठ

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इस साल की छठ हर बार मनायी जाने वाली छठ से काफी अलग है, लेकिन एक बात जरूर है कि उमंग और उल्लास वही है, जो हर बार होता है। इस बार लोगों ने अपने घर की छत व आंगन को ही छठ के घाट में तब्दील कर दिया। देश के सभी सेलेब्रिटीज का भी छठ की बधाइयां देने का दौर शुरू हो चुका है।

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने दी देशवासियों को छठ की बधाई

बिहार के सीएम नीतिश कुमार ने सबको छठ की शुभकामनाएं देते हुए ट्वीट किया कि सभी कोरोना फ्री छठ मनाएं, मास्क पहन कर रखें अौर सामाजिक दूरी का पालन करें।

क्रिकेटर सुरेश रैना ने छठ के मौके पर एक गीत शेयर कर फैंस का दिल जीत लिया।

वहीं मध्य प्रदेश के सीएम शिवराज सिंह चौहान ने भी प्रशंसकों को छठ की शुभकामनाएं दीं।

उन्होंने ट्वीट करके कहा कि प्रकृति व पर्यावरण के संरक्षण का संकल्प लें व कोविड-19 महामारी को ध्यान में रखते हुए छठ मनाएं

क्यों मनायी जाती है छठ

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माना जाता है कि महाभारत काल में दुर्योधन के मित्र कर्ण ने छठ पूजा की शुरुआत की थी। वहीं कुछ का यह भी मानना है कि अपने वनवास काल में द्रौपदी ने अपने घर आए कई संन्यासियों को भोजन कराने के लिए धौम्य ऋषि के कहने पर सूर्य की पूजा करके अपने परिवार की सुख-शांति की कामना की थी। माना जाता है कि इसी पूजा के फलस्वरूप पांडवों को उनका राजपाट वापस मिला था। महाभारत से पहले भी ऋषि-मुनि उपवास रख कर सूर्य उपासना करते थे। सूर्य की किरणों से उन्हें जीवन ऊर्जा प्राप्त होती थी। भगवान राम और सीता ने राजतिलक के बाद कािर्तक शुक्ल पक्ष की षष्ठी को उपवास रख सूर्य उपासना की थी।

आत्मशुिद्ध का पर्व है छठ

छठ के दौरान यह ध्यान दिया जाता है कि व्रत करनेवाले की आंतरिक शुिद्ध हो और उसमें नयी ऊर्जा का संचार हो। इसे स्नान और उपासना का पर्व भी माना जाता है। छठ का व्रत करनेवाली स्त्री को व्रती या व्रतिन कहा जाता है, जो 4 दिनों तक घर-गृहस्थी से दूर रह कर तन-मन-वचन से सूर्य देव की उपासना करती है। इस दौरान वह चादर बिछा कर जमीन पर सोती है और बिना सिला हुआ केवल एक ही वस्त्र पहनती है।

छठ के पहले दिन नहाय-खाय की रस्म होती है। इस दिन नदी में स्नान के बाद पूजा का प्रसाद बनाते हैं और लौकी की सब्जी व अरवा चावल का प्रसाद बनता है। जो महिलाएं प्रसाद बनाने में व्रतिन की सहायता करती हैं, उन्हें पर्वैतिन कहा जाता है। इस दिन व्रतिन सिर्फ एक ही समय खाना खाती है।

दूसरे दिन खरना की विधि होती है। व्रतिन पूरा दिन उपवास रखती है। शाम को सूर्यास्त के बाद सूर्य और चंद्रमा दोनों को घर से ही अर्घ्य देती है। इसके बाद गुड़ की खीर, पूरी और केले का प्रसाद नाते-रिश्तेदारों में बांटा जाता है। प्रसाद खाने के बाद व्रतिन 36 घंटे तक निर्जल उपवास रखती है।

छठ के तीसरे दिन घर में पूरी शुिद्ध से प्रसाद बनाया जाता है। इस दिन शाम को समूचा परिवार व्रतिन के साथ डूबते सूरज काे अर्घ्य देने नदी के तट पर जाता है। इस दौरान नदी तटों का मंजर देखते ही बनता है। लोक-गीत गाए जाते हैं, गली-मोहल्लों में साफ-सफाई और सजावट हो जाती है। नदी पर घाट बनाए जाते हैं।

चौथे दिन उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता और इसके साथ ही छठ पूजा संपन्न हो जाती है। व्रतिन अपना व्रत तोड़ती है। इस दिन घाट पर प्रसाद बंटता है और व्रत संपूर्ण होने के बाद आसपड़ोस के लोग भी घर पर प्रसाद लेने के लिए आते हैं। अर्घ्य के सूप में खीर, ठेकुआ, मौसम की नयी सब्जियां जैसे मूली, अदरक, ड्राई फ्रूट, चावल, सिंदूर, नारियल, महताब नामक एक फल और बाकी फल, गन्ना, चावल के आटे से बना लड़ुआ (कसार) नाम का मीठा, चीनी से बना सांचा शामिल रहता है। इन्हीं चीजों का अर्घ्य सूर्य को दिया जाता है। अर्घ्य देने के लिए बांस के बड़े-बड़े सूप बनाए जाते हैं। कुछ लोग अपनी सामर्थ्य के अनुसार किसी धातु जैसे पीतल और चांदी के सूप भी बनवा लेते हैं, जिन्हें हर वर्ष प्रयोग में लाया जाता है। इन दिनाें घर में बननेवाला भोजन भी सात्विक और बिना प्याज-लहसुन के बनता है। यह परंपरा दीपावली के दिन से घर में शुरू हो जाती है। छठ का पर्व शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायक है। उगते और डूबते सूर्य की किरणें उपासक के शरीर की इम्यूनिटी बढ़ाती हैं। ये किरणें एंटीसेप्टिक गुणों से भरपूर होती हैं, जो त्वचा को फंगल और बैक्टीरियल इन्फेक्शन से बचाती हैं। ये किरणें जो ऊर्जा प्रवाहित करती हैं, वे हमारे रक्त में वाइट ब्लड सेल्स को स्वस्थ बनाती हैं। महिलाओं के हारमोन्स और ग्लैंड्स को ये किरणें स्वस्थ बनाती हैं, जिन्हें उषा और प्रत्यूषा कहा जाता है। गौरतलब है कि छठी मैया के रूप में इन्हीं को पूूजा जाता है। पुराणों के अनुसार, ये सूर्य देव की पत्नियां हैं।