Thursday 05 November 2020 02:05 PM IST : By Rashmi Kao

डियर चांद

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‘‘मेरे डियर चांद तुम कहां हो? क्यों दिखायी नहीं देते? प्लीज जल्दी से नजर आओ ...थोड़ा पास... और पास... आओ और मुझसे नजरें मिलाओ ...मैं भूख से बेहाल हूं...पति प्रेम तो गहरा है, पर पॉल्यूशन ने मुझे आ घेरा है। मास्क ने मेकअप की ऐसी-तैसी कर रखी है। उस पर यह जहरीली हवा...लगता है पॉलिटिक्स के खिलाड़ी करवाचौथ नहीं मनाते। कहीं यहां भी वोट बैंक के लफड़े का डर तो नहीं...’’ मैं शायद नींद में बड़बड़ा रही थी...मेरे इन हाउस चांद ने मुझे झिंझोड़ कर जगाया, ‘‘उठो-उठो, सुबह हो गयी, ऑफिस नहीं जाना क्या? करवाचौथ ओवर हो गया।’’ मैं हड़बड़ा कर उठ बैठी, ब्रेकफास्ट, लंच बॉक्स और मास्क...

पता है आपको कल क्या सीन था? नहीं पता तो सुनिए। छत पर बैठ कर कल मैंने दिल्ली के एअर क्वॉलिटी इंडेक्स को दबा कर कोसा। एनसीआर के आसमान पर पसरी प्रदूषण की परत ने कोरोना के साथ मिल कर मेरा करवाचौथ चौपट तो किया ही, ऊपर से रात देर तक भूखा भी रखा। बारिश हुई नहीं, टिपटिप बरसा पानी हो जाता, तो भूख से आग ना लगती। पॉल्यूशन कंट्रोल में रहता, पर नहीं, ऐसा कुछ नहीं हुआ। बिल्डिंग के सभी जोड़े टैरेस पर पहुंच गए थे और चांद की ढुंढास मची थी। देखो-देखो वहां...ऊपर देखो..., देखो पीछे तेरे या मेरे । साड़ी, झुमका, छन्नी, लोटा सब बज रहे थे। दीया-बाती और मिठाई...मेरा मन मिठाई कुतरने का करने लगा। मैंने पतिदेव से कहा, चंद्रदेव रुष्ट हैं...वरुण देव अस्थमा अटैक से बेहाल हैं...यार, तुम ही मुस्करा दो, तो मैं दीया-बत्ती करके खाना खा लूं। वे बेसब्र आवाज में बोले, ‘‘कैसे मुस्कराऊं... भूख से तड़प रहा हूं। चोपड़ा खुद तो चांद पर जा बैठे, हमारे गले में करवाचौथ डाल गए।’’ उनका राज प्रेम हमारे करवाचौथ पर सवार हो जाता है...जो कभी ना किया अब करना पड़ रहा है...फेस्टिव सीजन और मैं भूखा रहूं...‘‘शक्ल से तो तुम कहीं से भी राज नहीं लगते और ना ही फेस्टिवल सीजन में खड़े ही दिख रहे हो। बरमूडा पहन कर छत पर आरती उतरवाने आ गए हो...’’

‘‘तो क्या दूल्हा बन कर आऊं...तुम भी बोर करती हो, सभी ऐसे ही तो हैं यहां...सजने-संवरने के लिए तुम ही काफी हो।’’

‘‘क्या मैं बेवकूफ हूं? हेडलाइट के साइज की बिंदी लगा कर, लाल चुनरी में लिपटी तुम्हारी पुरानी लाल मारुति 800 सी लग रही हूं और तुम हो कि लम्ब्रेटा स्कूटर से नीचे नहीं उतरते...फेस्टिव सीजन की ऐसी शुरुआत की मैंने कल्पना भी नहीं की थी।’’

बिल्डिंग के सभी जोड़े छत पर जमा थे। लगा जैसे सब सोते से जगे हैं...कोई ट्रैक सूट में, तो कोई वॉशिंग मशीन से निकले कुरते-पाजामे में... अब क्या कहूं?

‘‘तुम औरों के हसबैंड को क्यों देख रही हो... मुझे देखो...’’

‘‘नहीं, मुझे तो चांद देखना है, डियर चांद तुम कहां हो?’’

‘‘देखो, मैं लिबरल पति हूं, इसका मतलब यह नहीं कि तुम चांद को डियर कहो।’’

‘‘अरे छोड़ो, तुम और लिबरल? सुबह सेे दस बार चेक कर चुके हो कि कहीं मैंने चुपके से कुछ टूंग तो नहीं लिया?

करवाचौथ का व्रत, चांद निकलने का इंतजार प्रदूषण की धुंध और भूख से गुत्थमगुत्था, सोचती हूं अगले साल चंद्र दर्शन की रिक्वेस्ट नासा से डाइरेक्ट करूंगी और अपने पेट पर पराली को पालथी मार कर बैठने नहीं दूंगी।