Monday 19 October 2020 02:37 PM IST : By Nisha Sinha

इंडियन मार्शल आर्ट है कलारिपयट्टू

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कमर पर लाल कपड़ा बांधे लड़कियों का ग्रुप कलारिपयट्टू करना शुरू करता है, तो आसपास खड़े लोग चार कदम पीछे हट जाते हैं। जैसे इनके अंदर शेर, बाघ, हाथी, सांप और मगरमच्छ जैसे खतरनाक जानवरों की ताकत और जोश समा गया हो। खतरनाक लड़ाकू शैली में जब तलवार और ढाल उठा कर वे सामने वाले पर वार करती हैं, तो वाकई एेसा महसूस होता है कि युद्ध आरंभ हो गया है। जिस तेज गति से यह वार होता है उतनी ही तेज गति से दूसरी युवती हवा में उछल कर प्रतिद्वंद्वी के कंधे पर तलवार रखते हुए उसे चुनौती देती है। देर तक दोनों एक-दूसरे पर तलवार से हमला करने और ढाल से खुद को बचाने का अभ्यास करती रहती हैं। इस बीच अलग-अलग हथियारों के साथ महिलाअों को इसका अभ्यास करते देखना वाकई अदभुत है। यह मंजर तब और भी जोशभरा हो जाता है, जब 6-7 साल की छोटी-छोटी बच्चियां फुर्तीली रफ्तार से हाथ-पांव को हवा में तेज धार हथियार की तरह लहरा कर एक्शन करती हैं। इनका पूरा झुंड जब एक साथ एेसा करता है, तो हाथ-पैर के तेजी से हवा में चलने पर जो ध्वनि उत्पन्न होती है, वह रोमांचित कर देती हैं। यकीन करें, उनको देख रहा हर व्यक्ति तब उस युद्ध कौशल में कूद पड़ने को उत्साहित हो जाता है।

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सेंटर में आ रही नुपूर गुप्ता ने पत्र-पत्रिकाअों और इंटरनेट से भारतीय मार्शल आर्ट कलारिपयट्टू के बारे में बहुत कुछ सुन रखा था। उनकी दिली ख्वाहिश थी कि उनके 10 साल के बेटे नुमांश को इसकी ट्रेनिंग मिले और वह इस मार्शल आर्ट की कला को सीखें। लेकिन गुड़गांव की इस वर्किंग मदर के लिए नोएडा के कलारिपयट्टू सेंटर तक बेटे को लाना-ले जाना सबसे बड़ी मुश्किल थी। फिर जल्दी ही नुपूर की चाह को राह मिल गयी। उनकी फैमिली नोएडा शिफ्ट हुई और यहां शिफ्ट होते ही सबसे पहले नुमांश को कलारि केंद्र में दाखिला दिलवाया। मजेदार बात यह है कि जब बेटे का दाखिला कराने आयी नुपूर ने ढेरों युवतियों को यह मार्शल आर्ट करते देखा, तो उन्होंने खुद भी इसे सीखने की ठानी। नुपूर बताती हैं कि वे 40 की होनेवाली हैं, लेकिन उनके ट्रेनर ने उन्हें आश्वासन दिया कि वह उन्हें उनकी उम्र के हिसाब से ही प्रशिक्षित करेगा। आज दोनों मां-बेटे नुपूर और नुमांश एक ही क्लास में साथ-साथ कलारिपयट्टू करते हैं। नुपूर कहती हैं कि वे नहीं चाहतीं कि जब किसी लड़की के साथ दुर्व्यवहार हो रहा हो, तो उनका बेटा मूक दर्शक बन भीड़ में खड़ा रहे, बल्कि वह उस लड़की की रक्षा के लिए सामने आए।

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इंडियन मार्शल आर्ट कलारिपयट्टू को संक्षेप में कलारि भी कहते हैं। कलारि का मतलब होता है रणभूमि। कहा जाता है कि लड़ाई की इस तकनीक को युद्धक्षेत्र के लिए तैयार किया गया था। इस विधा की जन्मस्थली देवों की भूमि यानी केरल है। यह भी कहा जाता है कि महर्षि परशुराम ने केरल राज्य की रक्षा के लिए इस विधा को यहां के लोगों को बताया था। इसे भारत के सबसे पुराने मार्शल आर्ट्स में से एक माना जाता है। यह भी माना है कि यह सभी मार्शल आर्ट्स की जननी है।

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दिल्ली-एनसीआर में कलारि केंद्र चला रहे शिंटो मैथ्यू का कहना है कि इस मार्शल आर्ट को सीखने की चाह हर उम्र के लोगों में है, लेकिन जिस तरह से महिलाएं इसमें रुचि ले रही हैं, वह वाकई प्रेरक है। दिल्ली और नोएडा में चल रहे दोनों केंद्रों में करीब 40 बच्चियां और युवतियां सीख रही हैं। सबसे कम उम्र की छात्रा साढे़ 5 साल की है और सबसे बड़ी छात्रा की उम्र 50 साल है। शिंटो मैथ्यू को सभी गुरुक्कल कहते हैं। हालांकि शिंटो कहते हैं कि ‘‘गुरुक्कल बनने के लिए इस विद्या में बहुत ही प्रवीण होने की जरूरत है। मुझे अभी उस उच्च स्तर तक पहुंचने के लिए लंबी दूरी तय करनी है। मेरे स्टूडेंट मुझे सम्मान देते हुए मुझे गुरुक्कल कहते हैं। इस तरह के केंद्र में गुरु-शिष्य परंपरा अपनाया जाता है। हर उम्र के बच्चे क्लास में आते ही गुरु के पांव छूते हैं। इसका कारण इस पुराने संस्कारों को जीवित रखना हैं। शिंटो कहते हैं कि जब मैं छोटा था, तो मेरे पापा को यह महसूस हुआ कि मैं देर तक सोया रहता हूं, किसी रुटीन को फॉलो नहीं करता, तो उन्होंने मुझे केरल के ही कलारि केंद्र में भेजना शुरू किया। फिर तो जैसे इसकी आदत बन गयी।’’

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दिल्ली के सेंटर में बिटिया को साथ ले कर पहुंची निधि भट्ट का कहना है, ‘‘मार्शल आर्ट तो कई हैं, पर मैं चाहती थी कि मेरे बच्चे इंडियन मार्शल आर्ट सीखें। मेरी 7 साल की बेटी विभूति बहुत ही आलसी थी। मुझे लगा कि क्यों ना मैं इसे कलारि सिखाऊं। उसमें फुरती आएगी, वह अनुशासित होगी और अपनी सुरक्षा के काबिल होगी। हालांकि मुझे शक था कि वह इसे ज्यादा दिनों तक कर भी पाएगी कि नहीं।’’ पर निधि ने विभूति के टैलेंट को कम अांका। विभूति नियमित कलारिपयट्टू का अभ्यास करती है। विभूति का भाई यश भी कलारि सीख रहा है।

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शिंटो कहते हैं कि यह युवतियों को सेल्फ डिफेंस टेक्नीक सिखाने के साथ ही उनको फिजिकली और मेंटली फिट रखता है। सातवीं क्लास की स्टूडेंट सुनयना की एक दोस्त कलारि सीखती थी। तब उसने भी सेल्फ डिफेंस के लिए इसे सीखने का मन बना लिया। पिछले ढाई साल से वह इस विधा को सीख रही है। इसकी क्लासेज शुक्रवार की शाम, शनिवार और रविवार को दिन में होती है इसलिए स्कूल को ले कर कोई दिक्कत नहीं आती। निमिषा ने कलारि स्टूडेंट्स को जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम के मंच पर कलारि करते देखा और उनमें भी यह सीखने की तमन्ना जाग गयी। उनके बड़े भाई ने 8 साल तक इसे सीखा है। कलारि सीखने के दौरान गुरुक्कल शिंटो मैथ्यू ने इनको जंक फूड से दूर रहने कहा। बर्गर, पिज्जा और मोमोज जैसे जंक फूड की शौकीन निमिषा अब बर्गर और मोमोज छोड़ चुकी हैं। उनका कहना है कि वे कभी-कभी पिज्जा खा लेती हैं। सिविल सर्विसेज की तैयारी कर रही काजल श्रीवास्तव 2 साल से इसे सीख रही हैं। इस दौरान उनका वजन 10 किलोग्राम कम हुआ है। मांसपेशियां भी डेवलप होने लगीं।

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शिंटो बताते हैं कि कलारि मार्शल आर्ट से ईटिंग हैबिट में सुधार आता है। यह अनुशासित बनाती है, इससे मन शांत रहता है। गुरु-शिष्य परंपरा का समावेश होने के कारण यह आपको देश के संस्कारों से जोड़ कर रखती है।

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