Monday 05 October 2020 12:23 PM IST : By Meena Pandey

बुजुर्गों को कंपनी देने के लिए युवा कर रहे हैं स्टार्टअप

backview of senior couple on sandy beach

ढलती उम्र की दुखभरी तनहाइयों, उनकी अनदेखी, बेटे-बहू की बेवफाइयों और उन सबसे बाहर आने की घर के बड़े-बुजुर्गों की छटपटाहट पर जिंदगी, बागवान और अवतार जैसी जाने कितनी फिल्में बनीं, पर समस्या समय के साथ बदलती गयी। वे अब अपना घर छोड़ कर बेटे या बेटी के साथ नहीं जाना चाहते, वे अपनी आजादी चाहते हैं। वे बच्चों की मजबूरी भी समझते हैं। उन पर बोझ भी बनना नहीं चाहते, क्योंकि अब वे अार्थिक रूप से मजबूत हैं। लेकिन कितना भी पैसा हो, सुविधाएं हों, बुढ़ापा तो बुढ़ापा ही है। इस उम्र में सबको सहारे की जरूरत होती है। कोई हो जो दवा ले आए, डॉक्टर के पास ले जाए, कपड़े खरीदने साथ चले। लेकिन अब बुढ़ापा जी रहे बुजुर्गों की फिजा दिल्ली जैसे महानगरों में बदली है। अकेलेपन और असुरक्षा के अहसास से निबटने का रास्ता उन्होंने तलाशा या कुछ स्टार्टअप और फाउंडेशन उनको ढूंढ़ते हुए उनके पास चले आए। यह एक अच्छी शुरुअात है।

सेफ्टी के नए अॉप्शन मिले


इन स्टार्टअप्स अौर संस्थानों के रूप में उन्हें सेफ्टी के नए ऑप्शन मिल गए हैं। बुजुर्ग इसकी कीमत चुका कर अपने अकेलेपन को भरापूरा बना रहे हैं। कुछ युवा बिना पैसा लिए इनसे मिलने अौर साथ समय व्यतीत करने जाते हैं। कुछ स्टार्टअप्स इन बुजुर्गों से उनका अकेलापन बांटने का पेमेंट लेते हैं। इसके बदले में उनको अखबार पढ़ कर सुनाते हैं, उनका राशन-पानी ला देते हैं, उनके साथ बैठ कर बातचीत करते हैं। उनको डॉक्टर के पास ले कर जाते हैं। यह सब आज नहीं शुरू हुअा है, बल्कि ऐसे ग्रुप्स पिछले लगभग 5-7 सालों से सक्रिय हैं। ये स्टार्टअप्स प्रोफेशनल और कुछ स्टूडेंट्स के साथ मिल कर काम कर रहे हैं, जो हर सप्ताह सीनियर सिटीजंस से कुछ घंटों के लिए मिलते, उनके साथ बैठते हैं। हर महीने इसके बदले वे कुछ कमा रहे हैं। अब बुजुर्गों का नजरिया भी बदल रहा है। उनको इस बात की कोई शिकायत नहीं है कि बच्चे उनके लिए समय नहीं निकालते, उलटा कहते हैं कि बेटे को अपने परिवार की देखभाल भी करनी है। अब यह सोच खत्म हो रही है कि घर के बड़े-बूढ़ों की देखभाल करना बेटे-बहू या बेटी की जिम्मेदारी है। अहमदाबाद में रहनेवाली सुभद्रा को अपने बेटे की फिक्र है, पर वे यह उम्मीद भी नहीं करतीं कि बेटा अा कर ले जाए। वे कहती हैं, ‘‘हमें प्रैक्टिकल होना चाहिए, बच्चों की अपनी जिंदगी है।’’

देश में कितने सीनियर सीटिजन


2011 के आंकड़े के अनुसार हिंदुस्तान में 10 करोड़ 30 लाख लोग 60 की उम्र पार कर चुके हैं। यह आंकड़ा 2021 तक 143 मिलियन तक पहुंचने का अनुमान है। यह बाकी आबादी का अच्छा खासा हिस्सा है। इनमें से कई बुजुर्गों की देखभाल परिवार वाले ही कर रहे हैं, लेकिन जो बच्चे जॉब के सिलसिले में दूरदराज चले गए वे माता-पिता की चिंता रहते हुए भी कुछ नहीं कर पाते हैं। जो विदेश जा बसे हैं, उनके माता-पिता अजनबी माहौल में रम नहीं पाए और अपने घर लौट अाए।
बुजुर्गों के घर चोरी, हत्या अौर हमले होने के मामले भी हुए हैं। विदेश में रहनेवाले उनके बच्चे कुछ ऐसा इंतजाम चाहते हैं कि माता-पिता जहां हैं, सुरक्षित रहें। जैसे अमेरिका में बसे प्रसाद भिंडे भारत में रहनेवाली अपनी मां की देखभाल के लिए लौट अाए और यहां आजी केअर सेंटर बनाया। आजी का मतलब मराठी में दादी होता है। यहां बड़े-बूढ़ों को मेडिकल मदद करनेवाले प्रोफेशनल और दूसरे लोग मदद के इरादे से जुड़े हुए हैं। अब उनके दूसरे शहरों, विदेश में पढ़ाई या नौकरी के लिए रहनेवाले बच्चों की उनकी सुरक्षा को ले कर चिंता कम हो गयी है। बड़े-बुजुर्गों से मिलने, उनकी देखभाल करनेवाले ये युवा उनसे सुख-दुख की बातें करते हैं। उनके साथ गेम खेलते हैं, हंसी-मजाक करते हैं, उनकी रोजबरोज की समस्याअों का हल निकालते हैं, मसलन नल का टपकना, गैस का पाइप बदलना, बिजली के स्विच ठीक कराना, बल्ब बदलना जैसी जरूरत की ऐसी चीजें जिनके बिना बुजुर्गों का काम नहीं चल सकता, वे ठीक कराते हैं। इन युवाअों को असिस्टेंट के तौर पर पहले संस्थाएं ट्रेनिंग देती हैं कि उनको सीनियर सिटीजन के साथ कैसे बिहेव करना है, कैसे अपनेपन का अहसास कराना है, क्योंकि सीनियर सिटीजन उनके क्लाइंट हैं। इन युवाअों की यह कोशिश होती है कि बुजुर्गों को कोई शिकायत नहीं हो। इस तरह बुजुर्गों पर कोई अहसान नहीं होता है, क्योंकि वे इसका मूल्य चुका कर सेवाएं ले रहे हैं।

बुजुर्ग बन रहे टेक्नोसेवी


2013 में गुड़गांव में संवेदना सीनियर केअर प्राइवेट लिमिटेड फाउंडेशन की नींव डालने के पीछे इसकी फाउंडर अर्चना शर्मा का मकसद बुजुर्गों को सहजता से टेक्नोसेवी बनाना था। वे कहती हैं, ‘‘मेरे पेरेंट्स खुद बुजुर्ग हैं। मुझे लगा कि पूजापाठ के अलावा भी दिल लगाने के लिए उनके पास कुछ हो, जहां वे अपनी बातें शेअर कर सकें। मैंने गुड़गांव में एक्टिविटी सीनियर सेंटर बनाया, जहां बुजुर्ग कंप्यूटर, टेबल टेनिस, बैडमिंटन, कैरम खेलते और अपना काम करते हैं। संस्था में काम कर रहे प्रोफेशनल उनको वॉट्सएप, स्मार्टफोन एप्स अौर इंटरनेट सर्फ करना सिखाते हैं। उनको योगासन, डांस आदि की क्लासेज भी दी जाती हैं। कई अस्वस्थ सीनियर सिटीजन को हम सेंटर लाते हैं, जहां उनका हेल्थ चेकअप अौर काउंसलिंग कराते हैं।’’
संवेदना फाउंडेशन में आनेवाले बुजुर्गों से 1500 रुपए हर महीने लिए जाते हैं, इसमें टी-कॉफी शामिल है। लेकिन होम विजिट की सर्विसेज के लिए 12-13 हजार रुपए महीने उनको देने होते हैं। होम विजिट पर जानेवालों को सैलरी मिलती हैं। इससे वे ही जुड़ते हैं, जिनमें बुजुर्गों के प्रति कमिटमेंट हैं। बुजुर्ग अकसर विजिटर असिस्टेंट के साथ मानसिक और भावनात्मक रूप से जुड़ जाते हैं। अर्चना बताती हैं कि बुजुर्ग को घर पर विजिट करने की सर्विस देने से पहले हम उनके बच्चों से बात करते हैं। उनको हम हर महीने रिपोर्ट भेजते हैं। उनको कहीं जाना है, तो ट्रेन में बिठाते हैं, उनके लेटर लिखते हैं और अखबार पढ़ कर सुनाते हैं। परिवार के साथ रहनेवाले डिमेंशिया से पीड़ित बुजुर्गों की हमारे काउंसलर, डॉक्टर उनकी फैमिली के साथ काउंसलिंग करते हैं, एक्टिविटीज कराते हैं। इस नए सेटअप में बुजुर्ग युवाअों के काम अा रहे हैं और युवा उनके काम अा रहे हैं। सीनियर सिटीजन को मदद मिलती है, तो युवाअों की कुछ इनकम हो जाती है।

दोस्त बीट कॉन्स्टेबल


जबसे दिल्ली में बीट कॉन्स्टेबल्स ने सीनियर सिटजन से रोजाना मिलना, उनकी समस्याएं पूछना अौर बातचीत करना शुरू किया है, तबसे बुजुर्ग खुद को ज्यादा सुरक्षित महसूस करने लगे हैं। उनको बताया जाता है कि इमरजेंसी में वे पुलिस को किस तरह कॉन्टेक्ट कर सकते हैं, वे प्लेस्टोर कैसे डाउनलोड करें और कब, कैसे एसअोएस बटन दबा कर पुलिस को सूचित करना है, यह जानकारी भी देते हैं। एरिया एसएचअो अौर बीट कॉन्स्टेबल को फोन से टेक्स्ट मैसेज मिलते ही इमरजेंसी रेस्पॉन्स टीम रवाना हो जाती है। 69 साल की गीता तिवारी कहती हैं कि जबसे रोज बीट ऑफिसर अाने लगे, मेरी चिंता खत्म हो गयी। वहीं 70 वर्षीय मिथलेश कहती हैं कि अब जब मैं घर अकेला छोड़ कर अपनी बेटी या बेटे के घर जाती हूं, तो यह बात पुलिस की जानकारी में होती है, फिर कैसा डर और कैसी चिंता।
कुछ सीनियर सिटीजन होम के नाम और पते जहां संपर्क किया जा सकता है-
➤ गोधूलि सीनियर सिटीजन होम,
प्लॉट नं. 7, द्वारका सेक्टर-2 नयी दिल्ली कॉन्टेक्ट नं. 25080568, 8851958301
➤ जनक सेवा समिति 1162, सेक्टर 19, फरीदाबाद एनआईटी हरियाणा
➤ मातोश्री वृद्धाश्रम, चंबुखड़ी, कोल्हापुर,
महाराष्ट्र-416010 फोन नं.098508151