Thursday 21 September 2023 04:33 PM IST : By Yasmeen Siddiqui

एक बहू की डायरी

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हर शनिवार दिमाग को तरोताजा करने और नया कुछ जानने के लिए अकसर ऑनलाइन कुछ डॉक्युमेंट्रीज, वेबसीरीज या पुरानी फिल्में देखना मेरा रूटीन सा बन गया है। पिछले दिनों किसी दोस्त ने सुझाव दिया कि एक पाकिस्तानी शॉर्ट फिल्म है, डॉटर बाय लॉ इसे जरूर देखना। बस फिर क्या था, फिल्म देखने का प्रोग्राम बन गया। फिल्म तो बस खुद को हफ्तेभर की कामकाजी जिंदगी से बाहर निकालने के लिए देख रही थी, लेकिन एंटरटेनमेंट के आगे ऐसा लगा, जैसे यह फिल्म एक खलनायक को नायक बनाने पर तुल गयी है। सास-बहू के रिश्तों पर जब भी कोई फिल्म या टीवी सीरियल्स बनते हैं, उनमें हमेशा एक उलझा हुआ रिश्ता नजर आता है, जिसमें सास खलनायिका के तौर पर दिखती है। बरसों से बॉलीवुड फिल्मों और सीरियल्स में हम ऐसा ही देखते आ रहे हैं। डॉटर बाय लॉ फिल्म भी सास-बहू के रिश्ते पर केंद्रित है। जैसा कि हमेशा होता है, सास अपनी बहू को पूरी तरह से कंट्रोल में रखना चाहती हैं, लेकिन यहां कहानी में टि्वस्ट यह है कि बहू उस कड़वाहट के पीछे की कहानी को जान कर उन्हें जीवन में खुश रहने और आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती है।

कहानी कुछ अलग है

यह कहानी बीबी जान और उनकी बहू सारा पर केंद्रित है। सारा विदेश में पली-बढ़ी एक लड़की है, जोकि पाकिस्तान अपने पति के साथ रहने आती है। उसे अपनी सास के साथ सामंजस्य बिठाने में परेशानी का सामना करना पड़ता है। सास कड़क हैं, जो घड़ी की सुइयों के हिसाब से चलती हैं। अपने रूटीन और आदतों में बदलाव नहीं करना चाहतीं। सारा नए जमाने की खुल कर जीनेवाली लड़की है, व्लॉगर है और कड़वाहट व सख्ती के पीछे के सच को जानने की कोशिश करती है। इस कोशिश में वह कामयाब होती है। उसे पता चलता है कि सास जो युवावस्था में ही विधवा हो गयी थीं, वे शादी से पहले किसी और से प्रेम करती थीं, लेकिन घरवालों ने जबर्दस्ती उनकी शादी कहीं और करवा दी। पति उनसे उम्र में काफी बड़े थे। ऐसे में अपने जीवन की विपरीत परिस्थितियों ने उन्हें कड़वा और अकेला कर दिया। खैर, बहू अपनी सास के पुराने प्रेमी को ढूंढ़ कर लाने में सफल होती है।

एक नजर यहां भी

यह तो खैर फिल्म है, मगर कहीं ना कहीं आज भी हिंदुस्तान के कई हिस्सों में सास अपनी बहू पर पैनी नजर रखनेवाली महिला होती है, जो बहू के साथ अजीब सी दूरी बना कर रहती है और सब कुछ कंट्रोल में रखना चाहती है। खुद पर सख्ती का लबादा ओढ़ कर हमारी सासें उसूलों की पाठशाला बन कर रह जाती हैं। हाल ही में आयी फिल्म रॉकी और रानी की प्रेम कहानी में जया बच्चन कुछ ऐसी ही सास की भूमिका में हैं। सख्ती का नतीजा यह होता है कि कई बार सास-बहू के बीच इतनी दूरियां आ जाती हैं कि दोनों अपनी अलग दुनिया बना लेती हैं। बहू अगर साथ रहती है, तो अपने जीवन को सकारात्मक बनाए रखने के लिए सास की बातों पर ध्यान देना छोड़ देती है। इससे दूरी और बढ़ती जाती है।

कहीं कुछ गलत तो नहीं

सास-बहू का रिश्ता चाहे जितना जटिल हो, लेकिन दोनों रिश्ते में आने से पहले एक स्त्री हैं। इसलिए बहू को सोचना होगा कि कहीं कुछ ऐसा तो नहीं हुआ कि सास की कड़वाहट के पीछे कोई पुराने घाव हैं। कहीं सख्ती के पीछे आंसुओं का सैलाब तो छिपा नहीं है। मनोविज्ञान कहता है जब इंसान के साथ कुछ बुरा होता है, तो उसे हर चीज बुरी लगने लगती है। आसपास पुरानी महिलाओं को देखेंगे, तो इस दुख को समझ पाएंगे। कुछ महिलाएं घर से बाहर निकलना नहीं चाहतीं। उन्हें बाहर खाना, घूमना, सिनेमा देखना पसंद नहीं होता। हो सकता है कि पहले कभी कोई उन्हें बाहर ले ही ना गया हो, कभी उन्होंने बाहर खाया ही ना हो, तो मन मार कर उन्होंने भी ऐसी सभी इच्छाएं छोड़ दी हों। यही वे अपनी बहू से भी चाहती हों।

पहल अगर बहू करे

यह सच है कि आज के जमाने की लड़कियां दब कर नहीं रहतीं, ना ही सास की बातें सुनती हैं। हालांकि सामंजस्य बिठाने के लिए वे सास के साथ औपचारिक रिश्ता निभाती हैं, मगर इसमें वह लगाव या प्यार नहीं झलकता। बहू को समझना होगा कि सास की तमाम कड़वाहटों के पीछे क्या कारण है। उन्हें थोड़ा समय देना होगा और रिश्ते को भी। कई बार उम्र बढ़ने के साथ महिलाएं मायके जाना या दोस्तों से मिलना छोड़ देती हैं। बहू उनके दोस्तों संग उनका रीयूनियन कराने में मदद कर सकती है, उनके मायके में दोबारा उनका आना-जाना शुरू करवा सकती है। हो सकता है, मायके में माता-पिता ना भी हों, लेकिन वो छूटा शहर, लोग और बाकी रिश्ते तो होंगे।

उनका भी मी टाइम होता है

अगर आप आर्थिक रूप से स्वावलंबी हैं, तो तीज-त्योहार पर सास को सिर्फ साड़ियां लेने-देने के अलावा भी कुछ सोचें। सास-ससुर दोनों हैं, तो कभी उन्हें बाहर खाना खाने अकेले भी भेजें। उनके लिए कोई हॉलीडे प्लान करें। सोशल मीडिया पर उनकी सहेलियों को ढूंढ़ें। कभीकभार यह काम छुप कर भी करना पड़ सकता है। हो सकता है, उन्होंने इतनी दूरी बढ़ा ली हो कि बहू के प्रयासों से भी वे नाखुश ही हो जाएं। ऐसे में उन्हें यह ना पता चलने दें कि यह सब काम आप करवा रही हैं। उन्हें यही पता चलने दें कि उनका अपना लाड़ला बेटा ही यह सब उनके लिए सोच रहा है। इससे वह खुश हो जाएंगी। बहू के तौर पर आपको भी देखना होगा कि बढ़ती उम्रवाली अपनी सास के जीवन में नयी ऊर्जा कैसे ला सकती हैं, कैसे उनके जीवन में रंग भर सकती हैं। उन्हें घर की चारदीवारी के बाहर भी कुछ सोचने दें। हो सकता है, जीवनभर किचन की पॉलिटिक्स में बंधी रहनेवाली आपकी सास कुछ और सोच ही ना पा रही हों। उन्हें दुनिया दिखाएं, समझने दें कि घर की चारदीवारी के भीतर बिग बॉस की कुर्सी से परे भी एक प्यारी दुनिया है, जहां वह बहुत खुश हो सकती हैं। वो जो चाभी का गुच्छा अपने हाथ में भींचे बैठी हैं, शायद डरती हैं कि कहीं उनका आधिपत्य समाप्त ना हो जाए...। बहू अगर अपनी ओर से छोटे-छोटे प्रयास करती रहे, तो शायद सास भी बदलने की कोशिश करे। तमाम सख्ती और मुखौटों के बावजूद बहू अपनी ओर से सहज रहने की कोशिश करे। उनकी उम्र की नजाकत को समझ कर उनकी मानसिक सेहत का ध्यान रखें, उन्हें खुश रहने का मौका दें, तो शायद किसी दिन सास-बहू की खिलखिलाहटों से घर गुलजार हो उठे।