Friday 19 February 2021 03:55 PM IST : By Meena Pandey

जानिए तलाक के लिए पति-पत्नी को क्या अधिकार मिले हैं

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हसबैंड के अत्याचारों की कहानी पुरानी हो गयी। यह भी कोई बात है कि पत्नी को कानूनी अधिकार पर अधिकार और बेचारे पति को कानून की दुत्कार, उस पर अगर वह तलाक ले रहा हो या ले चुका हो ! क्या यह ठीक है कि पति एकदम खाली हाथ रहे, बस पत्नी पर लुटाता जाए। वह साथ रहे, तो भी और अलग हो जाए तो भी? कभी गुजारा भत्ता, कभी मुआवजा, कभी कुछ और... जानते हैं तलाक के समय और उसके बाद के पति-पत्नी के हकों के बारे में दिल्ली हाईकोर्ट की एडवोकेट सुनीता सक्सेना से। उनके अनुसार, वैसे तो तलाक के कुछ मुख्य आधार हैं, मसलन जीवनसाथी का छोड़ कर चले जाना या लापता हो जाना। पति-पत्नी में से कोई लंबे समय तक ऐसी बीमारी से ग्रस्त हो कि ठीक होने की संभावना ना हो। हसबैंड या वाइफ में से कोई मानसिक अस्थिरता का शिकार हो। अगर अपने जीवनसाथी के साथ शारीरिक और जबानी रूप से क्रूरता से पेश आए। पति पत्नी को सेक्स के दौरान अननेचुरल सेक्स के लिए मजबूर करे। दोनों में से कोई एडल्टरी यानी संबंधों के प्रति बेवफाई करे, तो डाइवोर्स मिल सकता है। अब इन आधारों के सिवा हसबैंड-वाइफ कुछ अन्य कारणों से भी डाइवोर्स की मांग कर सकते हैं।

हसबैंड के हक

हसबैंड को कुछ आधारों पर समान रूप से डाइवोर्स पाने का अधिकार है।

- वाइफ द्वारा सताए जाने पर पति को तलाक मिलने के कई मामले हैं। पति को छोड़ कर प्रेमी के साथ पत्नी के चले जाने के अनेक किस्से हैं, जिनको साबित करने पर पति को तलाक मिल जाता है। एक मामले में पत्नी ऊंचे पद पर थी और बच्चों के साथ क्रूर व्यवहार करती थी। अदालत ने ना सिर्फ पति द्वारा डाइवोर्स की मांग पर सहमति की मोहर लगायी, बल्कि बच्चों की कस्टडी भी पति को दी, क्योंकि बच्चे अपने पापा और दादी के साथ ही रहना चाहते थे। इसी के साथ पत्नी की आर्थिक मजबूत स्थिति को देखते हुए उसकी मेंटेनेंस की अर्जी भी खारिज कर दी।

- हसबैंड को पता चले कि पत्नी उसके क्रेडिट या डेबिट कार्ड का गलत इस्तेमाल कर रही है या जॉइंट अकाउंट से सारा रुपया निकाल सकती है, तो पहले वह अपने कार्ड कैंसिल कराए, बैंक अकाउंट बंद या खाली करा ले, उसके बाद वह डाइवोर्स की याचिका लगा सकता है।

- डाइवोर्स के दौरान दोनों को ही किसी दूसरे रिश्ते में इन्वॉल्व नहीं होना है। गुस्से में धमकियां, बुरे शब्द या अजीबोगरीब मैसेजेज नहीं भेजने हैं।

- पति को अगर पत्नी के माता-पिता से कोई गिफ्ट मिला है, तो उस पर उसका ही हक होगा।

वाइफ के हक

- जब तक तलाक की प्रक्रिया पूरी नहीं होती, हसबैंड को गुजारा भत्ता देना होगा।

- तलाक होने के बाद पति पत्नी को एकमुश्त रकम देगा। यह पत्नी की मर्जी पर है कि वह हर महीने मुआवजा ले, तीन महीने में ले या साल में एक बार ले। यहां पति की आर्थिक स्थिति को देखा जाता है। अगर वह सालाना एकमुश्त रकम नहीं दे सकता, तो हर महीने चुका सकता है। मुआवजे की रकम कितनी ही बड़ी हो, लेकिन उस पर टैक्स नहीं लगेगा।

- पत्नी के नाम पर जितनी संपत्ति होगी, उस पर सिर्फ उसका अधिकार होगा। उसका अपने गहनों और कैश गिफ्ट पर भी पूरा हक होगा।

- अगर हसबैंड ने वाइफ के नाम पर चल-अचल संपत्ति खरीदी हो, लेकिन उसे गिफ्ट नहीं किया है, तो उस पर पति का ही हक होगा।

- महिला अगर कमा रही हो और उसने घर में काफी खर्च कर दिया हो, तो तलाक के बाद उसे वापस नहीं मांग सकती।

ना सिर्फ पति-पत्नी को डाइवोर्स लेने का हक है, बल्कि अलगाव के समय और अलग हो जाने के बाद भी दोनों कुछ मामलों में बराबर का अधिकार रखते हैं। आइए जानते हैं उनके बारे में-

आपसी सहमति से डाइवोर्स

अगर पति-पत्नी दोनों ही तलाक के लिए राजी हैं, तो कोर्ट उनकी याचिका को स्वीकार करेगी। दोनों के लिए यह तलाक लेने का स्ट्रेस फ्री तरीका है। दोनों अपनी-अपनी जिम्मेदारी पर तलाक लेते हैं, क्योंकि बच्चों की कस्टडी, प्रॉपर्टी का बंटवारा और दूसरे मामले आपसी रजामंदी से उनके बीच तय हो जाते हैं। यह तलाक 6-18 महीनों के बीच लड़ाई-झगड़े और आरोप-प्रत्यारोप के बिना आराम से हो जाता है।

मेंटेनेंस का बराबर हक

- हिंदू मैरिज एक्ट के तहत हसबैंड-वाइफ दोनों को मेंटेनेंस पाने का हक है। इसमें पति-पत्नी की कमाई और आर्थिक स्थिति को ध्यान में रख कर मेंटेनेंस की रकम तय की जाती है।

- स्पेशल मैरिज एक्ट महिलाअों को ही मेंटेनेंस पाने के लिए उचित ठहराता है, क्योंकि उसने दूसरे धर्म में शादी की थी, अब तलाक ले रही है।

- गुजारे भत्ते की रकम कोर्ट ही तय करती है। लेकिन अगर पति यह साबित कर दे कि उसकी इतनी कमाई भी नहीं है कि वह अपना खर्चा उठा सके, ताे पत्नी को कहां से गुजारा भत्ता देगा। उसकी पत्नी कहीं ज्यादा कमाती है, उसका स्टेटस ऊंचा है, उसने दूसरी शादी कर ली या किसी अन्य के साथ लिव इन में है, तो कोर्ट पति को मुआवजे से बरी कर सकती है या कम मुआवजे में सेटलमेंट करा सकती है।

- पति भी मुआवजे की मांग कर सकता है। ऐसे मामले बहुत कम हैं, मगर अब हसबैंड भी बीवी से गुजारे भत्ते की मांग करने लगे हैं। डाइवोर्स के मामले से गुजर रही एक सफल महिला वकील से उनके पति ने अदालत में मेंटेंनेंस की मांग करके चक्कर में डाल दिया।

- अगर पति की इनकम पत्नी से कम है या उसके पास कोई काम नहीं है, तो कोर्ट पति द्वारा गुजारा भत्ता देने पर रोक लगा सकती है और पति के लिए मुआवजा तय भी कर सकती हैं।

- वैसे पति की कमाई का एक भाग पत्नी को मुआवजे के तौर पर दिया जाता है यानी सैलरी का 33% पत्नी को गुजारा भत्ता दिया जाएगा। पंजाब -हरियाणा हाईकार्ट ने 2 साल पहले ही एक आदेश दिया है कि अगर वाइफ खुद को संभालने के योग्य है, तो पति से गुजारा भत्ता पाने की हकदार नहीं है। इसी आधार पर पत्नी की मुआवजा पाने की रिट खारिज कर दी गयी। पति चाहे रिक्शा चलाता हो, पर उसे खुद पर निर्भर पत्नी को अपनी हैसियतभर मुआवजा देना होगा।

- अगर पति मुआवजा ना दे, तो इसे क्रूरता माना जाएगा। सिर्फ मारपीट करना ही क्रूरता नहीं है। पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने अपने एक फैसले में यह भी कहा कि अगर पत्नी पति पर अननेचुरल रिलेशन बनाने का आरोप लगाए और साबित ना कर पाए, तो कोर्ट परििस्थतियों को आधार मान कर तलाक मंजूर कर सकती है।

बच्चे की कस्टडी

- आमतौर पर म्यूचुअल डाइवोर्स होने पर हसबैंड-वाइफ बच्चे की कस्टडी खुद ही तय कर लेते हैं। अगर तलाक के बाद बच्चे किसके पास रहेंगे, यह विवाद बना हुआ है, तो भले मां को कस्टडी मिली हो और उसके हक में फैसला हुआ हो, पर पिता का पक्ष भी कोर्ट सुनेगी।

- अगर बच्चे अपने पिता के साथ रहना चाहते हैं और कोर्ट को लगता है कि बच्चे की देखभाल पिता की कस्टडी में ज्यादा बेहतर होगी, तो 18 साल की उम्र तक बच्चे हसबैंड की कस्टडी में रहेंगे। अगर मां की कस्टडी में बच्चे ज्यादा सहज हैं, तो उनकी परवरिश का सारा खर्चा पिता की उठाएगा। कोर्ट के लिए बच्चे का हित सर्वोपरि होता है। बच्चा किसी के भी पास रहे, माता-पिता दोनों को ही उससे हफ्ते में एक बार मिलने का अधिकार होगा।