अगर आप नौकरी बदल रहे हैं, तो नए एंप्लाॅयर के साथ सैलरी पर बातचीत करते समय कुछ सावधानियां बरतें -
➢ बेसिक सैलरी ः मूल वेतन ही सैलरी के अहम घटकों में से एक है। यह आपकी पे स्लिप में वेतन का मूल भाग बनता है। इसी के आधार पर विभिन्न घटक निर्भर होते हैं।
➢ एचआरए यानी मकान किराया भत्ता ः एचआरए मूल वेतन के 30 या 40% के रूप में मिलता है। यदि आप किराए के घर में रह रहे हैं, तो आप एचआरए के आधार पर पूरी तरह इसे अपने टैक्स से कम करने का दावा कर सकते हैं। यदि किराए के घर में नहीं रहते हैं, तो आपका एचआरए पूरी तरह टैक्स योग्य है।
➢ प्रोविडेंट फंड ः पीएफ की गणना मूल वेतन के 12% पर होती है। यह आपकी बचत भी है और टैक्स में छूट की रकम भी।
➢ विशेष भत्ता ः आपके वेतन का आबंटन कई घटकों पर करने के बाद एक घटक स्पेशल एलाउंस के रूप में रखा जाता है, जो पूरी तरह से टैक्सेबल है। इस भत्ते का उपयोग कंपनी द्वारा एक कर्मचारी के वेतन को तैयार करने के लिए किया जाता है।
➢ पीएफ में कर्मचारी का योगदान ः यह उन महत्वपूर्ण घटकों में से एक है, जहां नियोक्ता और कर्मचारी दोनों भविष्य निधि के लिए हर महीने मूल वेतन का 12% योगदान करते हैं। मूल वेतन जितना अधिक होगा, आपकी सेवानिवृत्ति के लिए हर महीने उतना अधिक पीएफ जमा होगा। जमा धन भी इस पर कंपाउंड इंटरेस्ट यानी चक्रवृद्धि ब्याज अर्जित करता है।
➢ अपनी सैलरी ऑफर पर बारगेन करें। अगर आपको सैलरी कम ऑफर की गयी है, तो उस पर बात करें। बेहतर सैलरी की मांग करें। यह आपका अधिकार है।
➢ सैलरी को नेगोशिएबल रखें। अकसर नौकरी देनेवाले यह पूछते हैं कि आप कितनी सैलरी चाहते हैं। सैलरी को बता कर फिक्स ना कर दें।
➢ सैलरी ऑफर बहुत जल्दी स्वीकार या अस्वीकार ना करें। आप यह कहिए कि आपको सोचने के लिए वक्त चाहिए और बाद में जवाब देंगे।
➢ सैलरी का फाइनल ऑफर राइटिंग में लें। आप अपनी प्रेजेंट सैलरी पर 15-20% की बढ़ोतरी की मांग कर सकते हैं।
➢ अपने एंप्लॉयर से जॉब ऑफर और सैलरी स्ट्रक्चर की जानकारी ईमेल पर मंगाएं। इससे किसी भी एंप्लॉयर को परेशानी नहीं होनी चाहिए। अगर कंपनी या एंप्लॉयर ऐसा करने से मना करता है, तो वहां नौकरी करने को ले कर सजग हो जाएं कि कहीं आप गलत फैसला तो नहीं ले रहे।
➢ अपने मूल वेतन पर वृद्धि अवश्य लें।