Saturday 17 October 2020 10:20 AM IST : By Ruby Mohanty

क्यों होता है पूर्णमासी के दिन स्त्री शरीर मेें जबरदस्त बदलाव

ASHISH SOMPURA STOCK PHOTOGRAPHY

चांदनी रात का मजा लेने के लिए घर के बाहर या छत पर चलिए! क्योंकि पूर्णिमा की खास चांदनी का असर आपके दिल पर ही नहीं होगा, बल्कि दिमाग भी शांत रहेगा। पूर्णिमा की चांदनी से ज्यादा से ज्यादा लाभ पाने के इरादे से हर माह इस दिन के साथ कोई ना कोई पर्व जुड़ा है। ज्योतिषाचार्योंं के मुताबकि शरद पूर्णिमा में खासतौर पर सुबह 4-5 के बीच तारों की छांव में कुछ देर बाहर निकलिए। चांद अमृत बरसाता है। भारतीय ज्योतिषाचार्य ही नहीं, बल्कि वदिेशों के मनोवैज्ञानकिाें और शोधकर्ताओं ने स्त्री के तन-मन में पूर्णिमा के स्पेशल इफेक्ट को स्वीकारा है।

लव यू डार्लिंग

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प्यार में गुदगुदाते दिल में इसे इजहार करने की इच्छा चरम पर होती है, इसीलिए चांदनी रात में टहलने की और प्यार की फरमाइश पर वे भी चकरा जाते हैं। इस रात स्त्रियां देर रात जागने से नहीं कतरातीं, अगले दिन की मॉर्निंग रश जैसी टेंशन से भी उन्हें फर्क नहीं पड़ता। कुसूर उनका नहीं, सुपरमून का है। इस रतजगे से स्विटजरलैंड की यूनिवर्सिटी ऑफ बासेल के शोधकर्ता डॉ. क्रिस्चन कैजोचैन भी सहमत हैं। उनके शोध के मुताबकि पूर्णिमा की रात गहरी नींद में 30 प्रतशित गिरावट आती है। सामान्य रातों के मुकाबले 5 मिनट देरी से नींद आती है व 20 मिनट कम सोना होता है। उन्हीं के द्वारा एक अन्य शोध के अनुसार, स्त्रियां पूर्णिमा में भावनात्मक रूप से काफी सक्रिय होती हैं।  चांद चक्र (लूनर साइकिल ) में स्त्री का शरीर पूरे महीने की तुलना में सबसे ज्यादा एक्टिव होता है। स्त्री शरीर में अधिक शक्ति का संचार होता है। सुबह की तुलना में आप शाम को ज्यादा एनर्जी से भरपूर महसूस करती हैं।  

पीरियड्स और पूर्णिमा  

महिलाओं में हारमोन्स का बदलाव ही माहवारी की वजह है। पहले माहवारी के दिनों की गिनती चांद के मुताबकि होती थी। ऐसा माना जाता है कि पहला कैलेंडर भी महिला के माहवारी चक्र और चांद चक्र पर आधारित था। सच भी है जब चांद समुद्र की लहरों पर अपनी पकड़ रख सकता है, तो स्त्री माहवारी पर क्यों नहीं? इसीलिए माना जाता है कि अपने 28 से 30 दिन के माहवारी चक्र में दो बार गर्भधारण करने की क्षमता अपने चरम पर होती है। एक बार अपने ओवेल्यूशन पीरियड में और दूसरा लूनर फेज फर्टिलिटी पीरियड में। लूनर फेज फर्टिलिटी के बारे में पता लगाने केा श्रेय विदेशी मनोवैज्ञानकि डॉ. युगिनी जॉन्स को जाता है, जिन्होंने 10 दशक पहले ही प्रश्न उठाया था कि क्यों कई महिलाएं प्रिकाशन के बाद भी गर्भवती हो जाती हैं। सच तो यह है कि जब महिलाएं एक बार नहीं, बल्कि दो बार फर्टाइल पीरियड के दौर से गुजरती है। पूर्णिमा 29वें दिन के अंतराल में आती है। पूर्णिमा के दिन स्त्री के शरीर  में बायोकेमिकल और हारमोन्स में परिवर्तन होते हैं, इससे पूरा शरीर प्रभावित होता है। डॉ. जॉन्स की थ्योरी के मुताबकि देखें, तो पूर्णिमा के दिन कंसीव करने पर शिशु का लिंग भी निर्धारित होता है। यह इस बात पर निर्भर करता है कि कौन सी राशि पर चांद का प्रभाव सबसे ज्यादा है।

प्रजनन क्षमता और पूर्णमासी

पूर्णिमा पर समुद्र का जलस्तर अपने आप ही बढ़ जाता है। पूर्णिमा की रात में समुद्र की लहरों का ज्वार देखते ही बनता है। मौसम में आए इस उतार-चढ़ाव का असर स्त्री की प्रजनन क्षमता पर पड़ता है। स्त्री की काम इच्छाएं चरम पर होती हैं, गर्भधारण करने के अवसर भी ज्यादा होते हैं। एक विदेशी लेखिका फ्रैंसिस्का नाइश की किताब नेचुरल फर्टिलिटी में विस्तार से बताया है कि किस तरह लूनर साइकिल महिला की फर्टिलिटी को प्रभावित करता है। किताब में प्रकाशित एक शोध के शोधकर्ताओं ने यह संकेत दिया है कि रोशनी में एक्सपोज होने पर पिट्यूटरी ग्लैंड में मौजूद फॉलिकल स्टीम्यूलेटिंग हारमोन का स्तर बढ़ जाता है। पूर्मिणा के दिन पूरी धरती तेज चांदनी से नहायी हुई होती है। दरअसल पूर्णिमा की मीठी चांदनी अपने गुरुत्वाकर्षण से धरती के तरल पदार्थों को खींचती है। समुद्र ही नहीं, पेड़-पौधो, पशुओं में मौजूद तरलता भी चांद से प्रभावित होती है, इसीलिए ऐसा अंदाजा लगया जाता है कि अगर इस दौरान माहवारी हो, तो रक्तस्राव बढ़ जाता है और ओव्यूलेशन पीरियड्स हो, तो भी स्राव बढ़ जाता है। इसीलिए इस दौरान गर्भधारण करने की संभावना ज्यादा होती है।

मूनलाइट और नॉर्मल डिलीवरी

पूर्णमासी के दिन गुरुत्वाकषर्ण की वजह से गर्भ में मौजूद प्लेसेंटा फ्लूइड प्रभावित होता है। नतीजा, अगर डिलीवरी डेट नजदीक है तो प्रसव पीड़ा शुरू होने की संभावना बढ़ जाती है। इस दिन नॉमर्ल डिलीवरी होने के चांस भी ज्यादा होते हैं।  द मून एंड चाइल्ड बर्थ की लेखिका डेविड रोज अपनी किताब में लिखती हैं कि पूर्णमासी से एक दिन पहले और एक दिन बाद गर्भवती स्त्रियां खिड़कियां खोल कर सोएं, तो उनकी बॉडी का कनेक्शन चांद और प्रकृति से जुड़ा रहेगा और उनकी डिलीवरी में डॉक्टरों को सिजेरियन का सहारा नहीं लेना पड़ेगा। चांद की रोशनी से नॉर्मल डिलीवरी की संभावना बढ़ सकती है।