Monday 09 November 2020 12:55 PM IST : By Meena Pandey

कोविड-19 के इलाज में कितनी कारगर है प्लाज्मा थेरैपी

plasma-1

प्लाज्मा थेरैपी को कोरोना के इलाज के लिए सबसे कारगर तरीके के रूप में देखा जा रहा है। सभी जानना चाहते हैं कि यह कैसी थेरैपी है? पारस हॉस्पिटल्स, गुरुग्राम में कंसल्टेंट हीमैटोलॉजिस्ट व बीएमटी डॉ. नेहा सिंह के मुताबिक किसी भी तरह के वायरस से संक्रमित होने पर मरीज की बॉडी में नेचुरल एंटीबॉडीज बन जाती हैं, जो शरीर को इन्फेक्शन से बचाती हैं। ये एंटीबॉडीज इसी तरह कोविड-19 के वायरस को भी खत्म करती हैं। दरअसल ये इम्युनोग्लोबुलिन होते हैं। यह ब्लड में एक तरह का प्रोटीन है, जो वायरस से लड़ता है। यह ब्लड प्लाज्मा के अंदर रह कर एंटीबॉडीज बनाता है, जिससे ब्रेन में उस इन्फेक्शन की एंटीबॉडीज की मेमोरी बन जाती है। जब कोरोना वायरस दोबारा शरीर में प्रवेश करता है, तो ब्रेन की मेमोरी एक्टिव होने के साथ एंटीबॉडीज भी एक्टिव हो जाती हैं और वायरस से लड़ कर उसे नष्ट कर देती हैं।

इसी तरह वैक्सीन के जरिए थोड़े से एंटीबॉडीज किसी खास बैक्टीरिया या वायरस के खिलाफ काम करने के लिए किसी की बॉडी में दाखिल करायी जाती हैं। ये जिंदगीभर बॉडी में पड़ी रहती हैं, पर जैसे ही उस बीमारी का शरीर पर अटैक होता है, तो ये एंटीबॉडीज सक्रिय हो कर उसे नष्ट कर देती हैं। कोरोना वैक्सीन आने का यही फायदा होगा कि हल्का-फुल्का बुखार आएगा, पर कोई जानलेवा हालत नहीं होगी। फिलहाल इसका इलाज प्लाज्मा थेरैपी के जरिए ही किया जा रहा है।

प्लाज्मा थेरैपीः कोविड-19 की एंटीबॉडीज प्लाज्मा में रहती हैं। यंग कोरोना पेशेंट इस वायरस को झेल लेते हैं। लेकिन जिनकी उम्र 50+ है, इम्युनिटी कमजोर है, डाइबिटीज, हाइपरटेंशन और कैंसर जैसी समस्याएं हैं, सिगरेट पीने से फेफड़े कमजोर हो चुके हैं, उनमें इन्फेक्शन को झेलने की क्षमता बहुत कम होती है। इस थेरैपी में कोरोना से स्वस्थ हो चुके पेशेंट के प्लाज्मा को ले कर कोविड-19 के उस मरीज में डालते हैं। स्वस्थ मरीज की एंटीबॉडीज डालने से उनके शरीर में धीमे काम कर रही एंटीबॉडीज में बूस्ट आ जाता है।

प्लाज्मा थेरैपी की प्रक्रिया बहुत आसान है। इसमें मरीज के ब्लड की तरह उसका प्लाज्मा मशीन से निकाल लिया जाता है। डोनर को कोई दिक्कत नहीं होती, वह सेहतमंद रहता है। यह प्लाज्मा बहुत बीमार पेशेंट को दिया जाता है।

एंटीबॉडीज टेस्टः कोविड-19 का पता आरटी-पीसीआर बेस्ड टेस्ट से लगाया जाता है। इसको स्क्रीनिंग के लिए भी इस्तेमाल कर सकते हैं। केस पॉजिटिव होते हुए भी रिजल्ट 20-30 प्रतिशत नेगेटिव आ सकता है। इसीलिए पेशेंट कहते हैं कि एक लैब से कराया, तो पॉजिटिव आया, दूसरी लैब से रिजल्ट नेगेटिव आया। क्योंकि कोई भी टेस्ट 100 प्रतिशत सही नहीं होता है। यह टेस्ट ब्लड ले कर किया जाता है। अगर तुरंत बुखार आया है, तो उस वक्त टेस्ट कराने का फायदा नहीं होता। एंटीबॉडीज शुरू होने में 6 हफ्ते लग जाते हैं। यह टेस्ट बिना डॉक्टरी सलाह और प्रिस्क्रिप्शन के बिलकुल नहीं कराना चाहिए। कोरोना इन्फेक्शन की जांच कई तरह से होती हैं-

थ्रोट टेस्टः कॉटन स्वाब से गले और नाक के अंदर से सैंपल ले कर टेस्ट करते हैं। गले में रुई के स्वाब को घुमाया जाता है। उसमें जो म्यूकस आता है, उसका टेस्ट करके कोरोना का पता किया जाता है।

नेजल एस्पिरेंटः नाक में सॉल्यूशन डालने के बाद रुई का स्वाब घुमा कर सैंपल लिया जाता है।

ट्रेशल एस्पिरेंटः ब्रोंकोस्कोप/पतली ट्यूब फेफड़ों में डाल कर लिए गए सैंपल की जांच होती है। इजराइल के वैज्ञानिकों ने बिना लैब के कोरोना वायरस की टेस्टिंग के कुछ तरीके खोज लिए हैं। उनके बारे में जानें, पर प्रयोग ना करें।

स्वाद व गंध सेः घर बैठे यह टेस्ट किया जा सकता है। मसलन खाने पर अगर मिठास का पता चल रहा है, तो इसका मतलब मरीज के स्वाद की ग्रंथियां काम कर रही हैं और उसे कोरोना नहीं है। इसी तरह गुलाब का फूल सूंघने पर अगर सुगंध ना पता चले, तो यह चिंता की बात है। इसके लिए ब्लड में ऑक्सीजन की मात्रा जांची जाती है।

रेडियो तरंगों के जरिए जांचः इसमें रेडियो तरंगों के उपयोग से जांच के दौरान गहरी सांस ले कर ट्यूब में 3 बार छोड़नी होती है। वहां सांस से पैदा हुए एयरोसोल से बने एक क्रम के आधार पर वायरस की जांच की जाती है।

डिजिटल घड़ी सेः ऐसी स्मार्ट वॉच या रिस्ट बैंड जिनसे टेंपरेचर, धड़कन और खून में ऑक्सीजन का सेचुरेशन मापा जा सकता है, उनमें कोरोना वायरस को मापने की भी तकनीक विकसित की जा रही है।

आवाज का विश्लेषणः इसमें वैज्ञानिक आवाज का एनालिसिस करने के लिए एआई के उपयोग पर काम कर रहे हैं, ताकि इन्फेक्शन का पता लगाया जा सके। यह तकनीक कोविड-19 के लक्षणों और आवाज को आपस में जोड़ कर अलर्ट जारी करेगी।

लार का टेस्टः आरटी-पीसीआर टेस्ट में लार का परीक्षण किफायती विकल्प के रूप में सामने आया है। छोटे बच्चों का सैंपल आसानी से लिया जा सकता है। मरीज को परेशानी नहीं होती। हालांकि इसकी एक्यूरेसी कम है। लार टेस्टिंग से संक्रमण के 91 प्रतिशत मामले ही पहचान में आए।

डॉ. नेहा की सलाह है कि आजकल लैब में पेशेंट अपने टेस्ट कराने वहां धड़ल्ले से पहुंच रहे हैं। कोविड-19 का महामारी का रूप हल्का पड़ चुका है। अब यह माइल्ड इलनेस की तरह है। बेवजह टेस्ट कराने की क्या जरूरत है? समस्या आती है हाई रिस्क पॉपुलेशन में। जिनकी सर्जरी, ट्रांसप्लांट हो रहा है, बड़ी उम्र के क्रोनिक बीमारियों के पेशेंट्स में इसकी आशंका बनी हुई है। उनका स्क्रीनिंग टेस्ट कराया जा रहा है। लेकिन अगर दो-चार दिन हल्का-फुल्का बुखार है, तो यह टेस्ट ना कराएं। गवर्नमेंट द्वारा मान्यता प्राप्त लैब से ही टेस्ट कराएं। जिन लैब के पास मान्यता नहीं है, वहां भूल कर भी ना जाएं।