Friday 16 September 2022 01:28 PM IST : By Nishtha Gandhi

त्वचा और स्वास्थ्य के लिए गुणकारी है कुमकुमादि तेल, जानें इसे घर में बनाने का आसान तरीका

kumkumadi Image By Zivame

जड़ी-बूटियों से बना कुमकुमादि तेल एक अद्भुत आयुर्वेदिक मिश्रण है जो त्वचा के स्वास्थ्य को बेहतर बनाने और त्वचा की विभिन्न समस्याओं के इलाज के लिए एक जादुई उपाय के रूप में कार्य करता है। कुमकुम का अर्थ केसर होता है। क्योंकि संस्कृत में केसर को कुमकुम कहा जाता है और तेल को बनाने में उपयोग होने वाली प्रमुख सामग्री केसर है। ये मुँहासे, झाईं, दाग-धब्बे, ब्लैक हेड्स और व्हाइटहेड्स से मुक्ति और चेहरे की त्वचा पर ताजगी एवं सुंदरता लाने में अधिक फायदेमंद होता है। 

कुमकुमादि तेल को बनाने के लिए सामग्री

इस तेल को बनाने के लिए तिल के साथ लगभग 15 से 25 आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों का इस्तेमाल किया जाता है। जिसमें केसर के आलावा मंजिष्ठा, चंदन, पद्मका (कमल), विभीतकी (बहेड़ा), मुलेठी, हरीतकी (हरड़), दशमूल और फूलों के अर्क सहित हरिद्रा (हल्दी) डाली जाती है। 

तिल का तेल: आयुर्वेद में उपचार के लिए तिल के तेल का सबसे अधिक उपयोग किया जाता है। इसमें भरपूर एंटीऑक्सीडेंट होते हैं ये गठिया बाय में लाभकारी और त्वचा को पोषण देने में मददगार होता है। 

दशमूल: यह एक प्रकार की जड़ें होती है। जिसमें करीब दस आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों के शक्तिशाली मिश्रण होते हैं। इसमें बेल, पाढ़ल,गंभार, सोना पाढ़ा, अरनी, सरिवन, पिढ़वन, बड़ी कटेरी, छोटी कटेरी और गोखरू पाया जाता है।

केसर: कुमकुमादि तेल में मुख्य घटक लाल धागे जैसे पराग कण हैं जो जीवंत बैंगनी रंग के केसर के फूल से प्राप्त होते हैं। इसमें एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर केसर के धागे त्वचा के रंग को हल्का करने और चेहरे पर निखार लाने में बहुत ही फायदेमंद होता है। इसके साथ ही केसर के शक्तिशाली वार्मिंग और कांतिवर्धन गुण पित्त और वात दोष को सामान्य करते हैं।

मंजिष्ठा: यह एक ऐसी जड़ी बूटी है जिसका उपयोग आयुर्वेद में तरह-तरह की बीमारियों के उपचार करने के लिए किया जाता है। ये रक्त को साफ करके त्वचा को सेहतमंद बनाने, तेजी से घाव भरने और सूजन को कम करने के लिए मददगार होता है।

मुलेठी: इसमें कैल्शियम, ग्लिसराइजिक एसिड, एंटीऑक्सीडेंट, एंटीबायोटिक और प्रोटीन अच्छी मात्रा में पाया जाता है। जो न सिर्फ सर्दी और खांसी बल्कि वायरल फ्लू से भी बचाने में मदद करता है। इसके साथ ही मुलेठी त्वचा की लिए भी बहुत फायदेमंद होती है। 

चंदन: इसमें खास प्रकार के एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण पाए जाते हैं। जो चेहरे की सूजन, पिंपल्स, मुंहासों के निशान, दाग-धब्बे, सनटैन, सुस्ती,जलन जैसी समस्याओं को कम करने में मदद करती हैं। इसके साथ ही चंदन पेट के रोगों, बुखार और मानसिक तनाव को कम करने के लिए सहायक होता है। 

हरिद्रा (हल्दी): हरिद्रा खण्ड का मुख्य घटक हरिद्रा यानि हल्दी है। इसमें एंटी एलर्जिक व एंटी माइक्रोबियल भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। यह एलर्जिक चर्म रोग व जुकाम, खुजली, एक्जिमा, मुंहासे घटाकर त्वचा पर चमक लाती है।

पद्मका (कमल): कमल के फूल से प्राप्त अर्क, दर्द, सूजन व लालिमा दूर करने में प्रभावी रूप से सहायता करता है। यह रक्तस्राव विकार, अस्थमा, खांसी और सर्दी के लक्षणों का इलाज करता है। इसके साथ ही यह संक्रमण से लड़ने, ब्लड शुगर को कम करने और लिवर को स्वस्थ बनाए रखने में मदद करता है।

विभीतकी (बहेड़ा): बहेड़ा एक त्रिफला का अंग है। बहेड़ा के फलों का छिलका कफनाशक होता है। यह कंठ और सांस की नली से जुड़ी बीमारी पर बहुत असर करती है। इसके बीजों की गिरी दर्द और सूजन खत्म करती है। बहेड़ा वात, पित्त और कफ तीनों दोषों को दूर करता है।

हरीतकी (हरड़): यह तकनीकी रूप से पर्णपाती हरड़ बेर के पेड़ का फल है। हरीतकी को आयुर्वेद में उपचार के लिए एक महत्वपूर्ण जड़ी बूटी माना जाता है। हरीतकी कब्ज, बवासीर, पेट के कीड़ों को दूर करने, नेत्र ज्योति व भूख बढ़ाने, पाचन और शरीर के लिए बहुत ही फायदेमंद होती है।

कैसे करें कुमकुमादि तेल का उपयोग 

कुमकुमादि तेल सभी प्रकार की त्वचा के लिए उपयोगी होता है लेकिन जिनकी तैलीय त्वचा होती है उन्हें इस तेल का उपयोग कम करना चाहिए। ताकि यह त्वचा को चिकना न बनाए रखे। कुमकुमादि तेल की कुछ बूंदें हाथों में लें और इसे अपने पूरे चेहरे, गर्दन और प्रभावित हिस्सों पर लगाएं। तेल लगाते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि इसे 2-3 घंटे तक लगा रहने दें और तुरंत न धोएं। सूखी और फटी त्वचा वाले लोग इसे सोने से पहले लगा सकते हैं और जल्दी लाभ प्राप्त करने के लिए रात भर लगा रहने दे सकते हैं। चेहरे पर तेल लगाने से पहले अपने चेहरे और हाथों को अच्छी तरह से जरूर धो लें।